इंटरसेक्शनलशरीर वर्जिनिटी टेस्ट : अब तक क्यों बरकरार है यह अवैज्ञानिक, पितृसत्तात्मक परीक्षण

वर्जिनिटी टेस्ट : अब तक क्यों बरकरार है यह अवैज्ञानिक, पितृसत्तात्मक परीक्षण

अभी हाल ही में एक खबर आई कि भारतीय वायु सेना में नियुक्त एक महिला अफ़सर ने अपने सहकर्मी पर रेप का आरोप लगाया। महिला के अनुसार अपने साथ हुए यौन शोषण को साबित करने के लिए उसे ‘टू फिंगर टेस्ट’ से गुज़रना पड़ा, जिसे देश के उच्चतम न्यायालय द्वारा साल 2013 में ही अवैध घोषित किया जा चुका है। भारतीय मेडिकल अनुसंधान आयोग द्वारा भी इस टेस्ट को अवैज्ञानिक करार कर दिया जा चुका है। सेना, वायु सेना आदि में नियुक्त होने के लिए कितनी ही परीक्षाएं पास करनी पड़ती हैं लेकिन नियुक्त होकर भी औरतों के लिए चुनौतियों की एक अलग कतार तैयार रहती है। साल 2018 में संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने साझा बयान जारी कर वर्जिनिटी टेस्ट पर प्रतिबंध लगाने की गुहार की थी। जब वैज्ञानिक तौर पर यह सिद्ध हो चुका है कि ऐसा कोई भी टेस्ट नहीं है जिससे किसी की वर्जिनिटी का पता लगाया जा सके तो फिर ऐसा क्या है जो आधुनिकता की चादर ओढ़े लोग अभी भी वर्जिनिटी की अवधारणा पर विश्वास रखते हैं और इसके लिए ऐसा घटिया परीक्षण करवाते हैं। एक सर्वाइवर को अपना यौन शोषण साबित करने के लिए इस प्रक्रिया के तहत दोबारा अपने मानसिक और शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ता है।

क्या है ‘टू फिंगर’ वर्जिनिटी टेस्ट? 

एक स्त्री की योनि के अंदर एक छोटी-सी झिल्ली होती है जिसे हायमन भी कहा जाता है। अवैज्ञानिक और पितृसत्तात्मक सोच के आधार पर यह माना जाता है कि सेक्स करने के बाद यह हायमन टूट जाता है। इसलिए चिकित्सकों द्वारा स्त्रियों की योनि में दो उंगलियां डाली जाती हैं ताकि वे पता लगा सकें कि उनका हायमन बरकरार है या नहीं। यह प्रक्रिया यौन हिंसा के सर्वाइवर्स के साथ भी की जाती थी, जिसे अब भारत समेत कई देशों में अवैध करार दे दिया गया है।

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लड़की वर्जिन होनी चाहिए

न सिर्फ़ भारत में, बल्कि दुनिया के हर कोने में औरतें पितृसत्ता का दंश झेल रही हैं। स्त्रियों की यौनिक स्वतंत्रता पर प्रश्न चिह्न लगाती यह धारणा कि एक वर्जिन औरत ही सम्मानीय है सालों से चली आ रही है। बचपन से लेकर अब तक हमें यही बताया जाता रहा है कि शादी से पहले सेक्स करना एक अपराध है और यह कि एक सेक्सुअली ऐक्टिव औरत जितना भी छिपा ले, उसका शरीर और शरीर के अंग सारे राज़ खोल ही देंगे।’ इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि लड़कियां वर्जिन रहें, कई जगहों पर माँ-बाप ही अपनी बच्चियों का वर्जिनिटी टेस्ट करवाते हैं।

एक स्त्री की वर्जिनिटी को उसकी इज़्ज़त का पैमाना माना जाता है। यह कोई आज या कल की बात नहीं है, बल्कि सालों से यह परंपरा चली आ रही है। समाज के लिए औरतों का वर्जिन होना, उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से ज़्यादा ज़रूरी होता है। इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक या मेडिकल प्रमाण नहीं है। इस परीक्षण के कारण शारीरिक पीड़ा के साथ-साथ मानसिक तनाव का भी सामना करना पड़ता है। कई रिसर्च यह भी बताती हैं कि इस तरह के टेस्ट अगर ज़बरदस्ती करवाए जाएं तो मानसिक स्तर पर उस इंसान का आत्मसम्मान गिर सकता है और वह डिप्रेशन में जा सकते हैं, या कई मामलों में आत्महत्या के प्रयास भी किए जाते हैं। लेकिन इसे न सिर्फ़ व्यक्तिगत उद्देश्य बल्कि कई देशों में नौकरियां और सेना में नियुक्ति के लिए भी स्त्रियों पर ज़बरदस्ती थोपा जाता है। हाल ही में इंडोनेशियाई सेना ने इस पर रोक लगाई है।

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बचपन से लेकर अब तक हमें पितृसत्तात्मक समाज यही बताता रहा है कि शादी से पहले सेक्स करना एक अपराध है और यह कि एक सेक्सुअली ऐक्टिव औरत या लड़ती जितना भी छिपा ले, उसका शरीर और शरीर के अंग में होनेवाले बदलाव सारे राज़ खोल ही देंगे।

वर्जिनिटी से जुड़े मिथक 

हमारी शारीरिक रचना से जुड़े दो बहुत बड़े मिथक हैं जो हमारी यौनिकता और यौन स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाए गए हैं। सबसे पहला मिथक खून से संबंधित है। ऐसा माना जाता है कि जब एक स्त्री पहली बार सेक्स करती है तो उसका हायमन टूटता है और उसमें से खून निकलता है। कई जगहों पर तो उस खून से भरी चादर औरतें कई सालों तक संभालकर रखती हैं। यह उनकी शान मानी जाता है। सच तो यह है कि हायमन इतना हल्का और लचीला होता है कि ज़रूरी नहीं है कि वह सेक्स से ही टूटे। विज्ञान द्वारा यह साबित किया गया है कि खेल-कूद करने से, दौड़ने से या ऐसे शारीरिक श्रम करने से हायमन आसानी से टूट सकता है। वहीं, कई लोग तो बिना हायमन के पैदा होते हैं। वह बिना हायमन के पैदा होती हैं तो इसमें भी उन्हें ही दोषी ठहराया जाता है। इसी बात को समझाने के लिए ‘द वन्डर डाउन अंडर’ की लेखिकाएँ और मेडिकल प्रोफेशनल्स एक हूलाहूप का सहारा लेती हैं। हूलाहूप के बीच में वह प्लास्टिक का कागज़ लगा देती हैं और ज़ोर से मुक्का मार कर उसे तोड़ती हैं। वे बताती हैं, “अब हमारा समाज यह समझेगा कि यह हूलाहूप वर्जिन नहीं है।” 

इसी से जुड़े दूसरे मिथक की बात करें तो लोगों को लगता है कि चूंकि सेक्स से हायमन टूट जाता है, इसलिए वह यह समझते हैं कि वह गायब ही हो जाता है लेकिन ऐसा नहीं है। इस बात की पुष्टि के लिए वह एक रबर बैंड का सहारा लेती हैं। वह बताती हैं कि हमारा हायमन एक रबर बैंड जैसा होता है, गोल और लचीला। हर व्यक्ति में यह अलग-अलग रूप और आकार में होता है। यह व्यक्ति के हायमन के आकार पर निर्भर करता है कि वह दिखेगा या नहीं, उसमें से खून निकलेगा या नहीं। वह यह भी कहती हैं कि हायमन से जुड़े मिथकों की खोज करीब 115 साल पहले 1906 में एक नॉर्वे की चिकित्सक द्वारा की गई थी। उसने देखा कि एक 35 वर्षीय सेक्सवर्कर का हायमन एक 16 साल की वर्जिन लड़की से मिलता जुलता है और फ़िर शुरू हुआ, बातों को घुमाने का खेल। 

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क्या है री-वर्जिनिटी 

वर्जिन और वर्जिन न होने के बारे में हम सबने सुना है पर यह री-वर्जिनिटी क्या है? हमारे समाज में वर्जिनिटी को हमेशा से ही इज़्ज़त से जोड़कर देखा जाता रहा है। इसलिए कुछ लोग जो समाज के पितृसत्तात्मक रवैये और ऐसी मानसिकता के परिणाम का सामना नहीं करना चाहते वे ‘हायम्नोप्लास्टि सर्जरी’ करवाते हैं। एक गूगल क्लिक पर आपको इसके विज्ञापन दिखने लगेंगे जिन पर लिखा होगा “अपनी वर्जिनिटी 30 मिनट में बिना किसी दर्द के वापिस पाएं।” जहां मेडिकल विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है, वहां इस सर्जरी को तो बढ़ावा मिल रहा है। वैज्ञानिक तथ्यों और रिपोर्टों को मानने के लिए कोई तैयार नहीं है। समाज के डर से लोग इस दर्दनाक प्रक्रिया से गुज़र कर अपना हायमन रिपेयर करवा रहे हैं। 

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तस्वीर साभार : DailyO

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