उषा मेहता वह स्वतंत्रता सेनानी हैं जिन्हें गुप्त रूप से कांग्रेस रेडियो चलाने के लिए जाना जाता है। उषा मेहता का जन्म 25 मार्च 1920 को गुजरात राज्य में सूरत के पास स्थित सरस गांव में हुआ था। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भागीदारी निभाई थी। साल 1928 में, मात्र 8 साल की उम्र में उन्होंने साइमन कमीशन के खिलाफ अपने पहले प्रदर्शन में भाग लिया था। अपने एक इंटरव्यू में वह बताती हैं कि नमक सत्याग्रह के दौरान वह अपने घर में समुद्र का पानी लाती थीं और उससे नमक का उत्पादन करती थीं। डॉ. उषा के पिता इस तरह के आंदोलनों में उनकी भागीदारी के आलोचक थे क्योंकि वह ब्रिटिश शासन में न्यायाधीश के पद पर थे। उषा मेहता जब छोटी थीं तब वह शराब की दुकानों के सामने विरोध किया करती थीं। साथ ही वह जेल में बंद लोगों के लिए एक संदेशवाहक का भी काम करती थीं।
साल 1939 में, उषा मेहता ने मुंबई के विल्सन कॉलेज से दर्शनशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई पूरी की और इसके बाद वह कानून की पढ़ाई की तैयारी करने लगीं। हालांकि ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की घोषणा के बाद ही, उन्होंने अपनी पढ़ाई बंद करने और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया। साल 1942 में, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के एक सत्र में, डॉ. उषा मेहता को महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, मौलाना आज़ाद और सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा दिए गए भाषणों की जानकारी थी। इन भाषणों ने ही उन्हें एक रेडियो स्टेशन बनाने और दुनिया तक समाचार को पहुंचाने के लिए प्रेरित किया। उन्हें पूरा विश्वास था कि अपने देश की घटनाओं को दुनिया के लोगों तक पहुंचाने के लिए रेडियो काफी मददगार साबित होगा। उनका मानना था कि रेडियो उन्हें उनकी बात रखने का अवसर देगा।
और पढ़ें : जयंति विशेष : अंग्रेज़ी हुकूमत पर बंदूक चलाने वाली क्रांतिकारी बीना दास| #IndianWomenInHistory
14 अगस्त 1942, को डॉ. उषा मेहता ने अपने सहयोगियों के साथ ‘कांग्रेस रेडियो’ की पहली घोषणा की। ब्रिटिश अधिकारियों की कड़ी निगरानी के बावजूद भी, उन्होंने रेडियो के ज़रिए ब्रिटिश शासन द्वारा भारतीय लोगों पर किए गए अत्याचारों की सूचना देना जारी रखा। ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान, उन्होंने लगभग 7-8 बार रेडियो स्टेशन बदले। 12 नवंबर 1942 को, जब वह गिरगांव से एक शो होस्ट कर रही थीं, तब पुलिस ने उन्हें और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद उन पर पांच हफ्ते तक विशेष अदालत में मुकदमा चला और उन्हें चार साल की जेल की सजा सुनाई गई। साल 1946 में उन्हें जेल से रिहा किया गया। जेल में, डॉ. उषा मेहता को ब्रिटिश सरकार ने अपने साथियों के बारे में जानकारी देने के बदले विदेश में पढ़ने का प्रस्ताव दिया।
उषा मेहता को पूरा विश्वास था कि अपने देश की घटनाओं को दुनिया के लोगों तक पहुंचाने के लिए रेडियो काफी मददगार साबित होगा। उनका मानना था कि रेडियो उन्हें उनकी बात रखने का अवसर देगा।
हालांकि, इन सब के बावजूद भी उन्होंने अपने साथियों से जुड़ी किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं किया। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से गांधीवादी विचार पर पीएचडी की और इसके बाद वह राजनीतिक विज्ञान पढ़ाने के लिए वापस विल्सन कॉलेज चली गई। वह गांधी पीस फाउंडेशन की अध्यक्ष भी रहीं। उषा मेहता ने स्वतंत्रता के बाद के भारत के बारे में अपने विचारों को नवीन जोशी द्वारा संकलित ‘फ्रीडम फाइटर्स रिमेम्बर’ नामक किताब में बताया। इस किताब में उन्होंने अमीर और गरीब के बीच सत्ता के विभाजन के बारे में बात की है। साल 1998 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। 11 अगस्त 2000 को डॉ. उषा मेहता का 80 साल की उम्र में निधन हो गया। देश की आज़ादी की लड़ाई के लिए उनका जोश और उत्साह एक महत्वपूर्ण योगदान है।
और पढ़ें : अरुणा आसफ़ अली : स्वाधीनता संग्राम की ग्रांड ओल्ड लेडी| #IndianWomenInHistory