डब्ल्यूएचओ ने गर्भावस्था के 28 सप्ताह के बाद गर्भ मे यानि जन्म से पहले या उसके दौरान मृत बच्चे के जन्म को स्टिल बर्थ के रूप में परिभाषित किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल 2 मिलियन स्टिल बर्थ होते हैं। प्रत्येक 16 सेकेंड में एक बच्चा अपनी जान गंवा देता है। लगभग 40 प्रतिशत नवजात शिशुओं की जान प्रसव के दौरान जाती है। डब्ल्यूएचओ की रिर्पोट के अनुसार गर्भावस्था के दौरान बच्चे की मौत के विषय को विश्व स्तर पर राजनीतिक और वित्तपोषित कार्यक्रमों में बहुत ही गंभीर तौर पर नहीं उठाया गया है। मृत बच्चा होने का विशेष प्रभाव महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। साथ ही परिवार पर आर्थिक भार के साथ सामाजिक तौर पर लोगों के बुरे बर्ताव तक का सामना करना पड़ता है। यूनिसेफ़ की एक रिपोर्ट के अनुसार हर एक मिनट में चार बच्चे स्टिल बर्थ पैदा होते हैं। पिछले दो दशकों में दुनिया 48 मिलयन स्टिल बर्थ हुए। अगले दशक में लगभग 20 मिलयन स्टिलबर्थ होने का अनुमान लगाया गया है।
साल 2014 में विश्व स्वास्थ्य असेंबली ने दुनिया में स्टिल बर्थ की समस्या से निपटने की एक योजना बनाई। एवरी न्यूबॉर्न एक्शन प्लान (ईएनएपी) के तहत 2030 तक हर देश में 1000 बच्चों के जन्म पर बारह या उससे कम स्टिल बर्थ का वैश्विक लक्ष्य तय किया गया। ईएनएपी की योजना के तहत 2.9 मिलयन बच्चों की जान को बचाया जा सकता है। गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली बच्चों की मौतों की अधिक संख्या निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देशों में ज्यादा देखने को मिलती है। दुनिया में होने वाली नवजात की मृत्यु का 84 प्रतिशत निम्न और मध्यम निम्न आय वाले देशों में पाया गया है। रिपोर्ट के सुझाव के अनुसार इस तरह के नुकसान को अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करवाकर, गर्भावस्था के दौरान महिला की लगातार डॉक्टर के साथ परामर्श और आवश्यकता पड़ते पर आपातकालीन प्रसूति देखभाल की सुविधा देकर इस समस्या का समाधान किया जा सकता है।
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भारत की कमज़ोर चिकित्सा व्यवस्था की तस्वीर किसी से छिपी नहीं हुई है। भारत में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में बड़ी संख्या में लोग अपनी जान खो देते हैं। चिकित्सा व्यवस्था की खराब स्थिति ही वजह है कि दुनिया में मृत पैदा होने वाले बच्चों के मामले में भारत सबसे ऊपर है।
कोविड-19 महामारी से जूझ रही दुनिया में चिकित्सा सुविधा के ढांचे को पूरी तरह चरमरा दिया है। ऐसे में सब तक सुगम तरीके से चिकित्सा सुविधा की पहुंच भी एक चुनौती बन गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी के तौर पर पिछले वर्ष ही यह कहा था कि कोविड-19 महामारी के कारण दुनिया में स्टिल बर्थ की संख्या में बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है। अधिकांश स्टिल बर्थ गर्भावस्था और जन्म के दौरान खराब देखभाल के कारण होते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रसव के पूर्व और बाद प्राप्त सुविधाओं का कम होना, स्वास्थ्य पर कम निवेश करना और नर्सिंग और मिडवाइफरी स्टाफ की कमी भी एक चुनौती है। लगभग 40 प्रतिशत स्टिल बर्थ के मामले प्रसव के दौरान होते हैं। 28 वें सप्ताह में सबसे ज्यादा 61 प्रतिशत स्टिलबर्थ के केस होते हैं। प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मचारियों की आपातकालीन पहुंच से इस तरह की मौत को रोका जा सकता है। उप-सहारा अफ्रीका और केन्द्रीय और दक्षिणी एशिया देशों में आधे से अधिक स्टिल बर्थ प्रसव के दौरान होते हैं। यूरोपीय, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में यह दर मात्र 6 प्रतिशत के करीब है।
दुनिया के 17.3 फीसद स्टिल बर्थ भारत में होते हैं
भारत की कमज़ोर चिकित्सा व्यवस्था की तस्वीर किसी से छिपी नहीं हुई है। भारत में स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में बड़ी संख्या में लोग अपनी जान खो देते हैं। चिकित्सा व्यवस्था की खराब स्थिति ही वजह है कि दुनिया में मृत पैदा होने वाले बच्चों के मामले में भारत सबसे ऊपर है। साल 2019 में दुनिया के 17.3 फीसद मृत बच्चे के मामले भारत में पाए गए। पड़ोसी देशों से तुलना करने हुए भारत की स्थिति दुनिया में सबसे खराब है। पाकिस्तान में यह 9.7 फीसद है। बांग्लादेश में 3.7 फीसद और श्रीलंका में यह दर 0.1 प्रतिशत है।
वैश्विक स्तर पर जारी इस रिपोर्ट में भारत का सबसे ऊपर होना देश की खराब चिकित्सा व्यवस्था और सुविधाओं की कमी पर मोहर लगाती है। दुनिया में लगातार प्रयासों और जागरूकता के कारण मृत बच्चों की होने वाली मौत में गिरावट देखी जा रही है। भारत में भी इसका असर देखने को मिला है। साल 2000 के मुकाबले साल 2019 में होने वाली मौतों की दर में कमी पाई गई है। इस दौरान भारत में स्टिल बर्थ की दर में लगभग 53 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। साल 2019 में भारत में 340,622 कुल स्टिल बर्थ के केस सामने आए, इस तरह वार्षिक दर में यह कमी 4 फीसद की दर्ज की गई है। इस गिरावट के साथ भी भारत में दुनिया के सबसे ज्यादा मृत बच्चों का जन्म होता है।
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उचित देखभाल और सुविधा है समाधान
दुनिया में स्टिल बर्थ के ग्राफ में होती गिरावट एक कदम बेहतर की ओर को दिखाती है। लेकिन निम्न आय वाले देशों के लिए यह समस्या बनी हुई है। क्षेत्रीय स्तर और आर्थिक तौर पर कमजोर क्षेत्रों में स्टिल बर्थ की दरों में यह अंतर बताता है कि केवल सुविधा और सजगता ही इसका समाधान है। अफ्रीकी और एशियाई देशों के मुकाबले यूरोपीय और अमेरिकन देशों में स्थिल बर्थ से होने वाली कमी का एक कारण वहां की उत्तम चिकित्सा सुविधा है। नियमित निगरानी और स्वास्थ्य सेवाओं तक आसानी तक पहुंच के साथ जागरूकता के साथ इस समस्या को खत्म किया जा सकता है।
कोविड-19 में स्टिलबर्थ का ज्यादा जोखिम
कोविड-19 महामारी के दौरान यह प्रमुख चिंता बनी रही कि कि यह गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है। सेन्ट्रल फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेनशन के जारी किए नये आंकड़ों के मुताबिक गर्भावस्था के दौरान कोविड-19 से संक्रमण हो जाने के कारण स्टिलबर्थ का काफी ज्यादा खतरा बना रहता है। कोविड-19 गर्भावस्था को कैसे प्रभावित करता है इसके लिए सेन्ट्रल फॉर डिसीज कंट्रोल ने मार्च 2020 से लेकर सितंबर 2021 तक अमेरिका के 736 अस्पतालों में पैदा हुए 1.2 मिलयन बच्चों के जन्म का मूल्याकंन किया। इस दौरान कोविड-19 से संक्रमित महिलाओं में स्टिलबर्थ का खतरा ज्यादा महसूस किया गया। इस निगरानी के दौरान जिन महिलाओं में वायरस संक्रमण नहीं था उनमें 155 में से एक ने मृत बच्चे को जन्म दिया। संक्रमित होने वाली महिलाओं में यह 80 में से एक ने मृत बच्चे का जन्म दिया। इस तरह के आंकड़े बताते हैं कि कोविड-19 गर्भवती महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक है।
बिना संक्रमण वाले लोगों के मुकाबले कोविड से संक्रमित गर्भवती महिला को आईसीयू की तीन गुना ज्यादा आवश्यकता पड़ी। साथ ही दो से तीन गुना ज्यादा लाइफ सपोर्ट की आवश्यकता, सांस में लेने मे दिक्कत और स्टिलबर्थ और प्रीटरम बर्थ की ज्यादा संभावना देखी गई। पूरी तरह से कोविड-19 के गर्भावस्था पर प्रभाव और स्टिलबर्थ के होने के कारण को समझने के लिए लगातार शोध जारी है।
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तस्वीर साभारः UNICEF