संस्कृतिकिताबें जल थल मल : अज्ञानता के अभिमान को आईना दिखाती किताब

जल थल मल : अज्ञानता के अभिमान को आईना दिखाती किताब

किताब में दुनिया के बहुत से बेहतरीन लोगों और योजनाओं के बारे में बताती है। कैसे कुछ मुठ्ठीभर लोग इस धरती को बचाने के लिए हर हाल में लगे हुए हैं। यह किताब अंत तक आते-आते जानकारियों के साथ इंसान को आत्मग्लानि से भर देती है।

लेखक सोपान जोशी की किताब ‘जल थल मल’ उन अदृश्य पहलूओं के बारे में बात करती है जो इस पृथ्वी ग्रह पर मनुष्य जीवनच्रक के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह किताब दिखाती है कि कैसे स्वच्छता केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य का मामला नहीं है बल्कि यह प्रदूषण और हमारी मिट्टी की उर्वरता और नदियों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ है। यह हमें बताती है कि कैसे हम जल और थल के साथ मल की इस तीसरी कड़ी को लगातार अनदेखा कर रहे हैं। विज्ञान, समाज, दर्शन और पर्यावरण जैसे विषय कैसे एक सिरे से जुड़े हुए हैं, किताब के अलग-अलग हिस्सों में सामने आते है। साथ ही वर्तमान के विकास की बर्बादी के परिणाम और परंपरागत तरीके से काम करके किस तरह जल, ज़मीन को बचाया जाता रहा है उस बात पर प्रकाश डालती है।

किताब की शुरुआत तीन अरब साल पहले के एक घटनाक्रम से होती है। धरती पर तब केवल एक कोशिका जीव पनपते थे। फिर एक क्रांति आई जिसके नायक थे साएनोबैक्टीरिया। जीवन की रूपरेखा तैयार हो गई और विषैली गैस ऑक्सीजन जीवन का स्रोत बन गई। आज की प्राणदायक ऑक्सीजन गैस कैसे विषैली थी, इसके बारे में बताया जाता है। किताब एकाएक करके तीन शब्द जल, थल और मल के बारे में न केवल खुलकर चर्चा करती है बल्कि इंसान को आईना दिखा देती है। आने वाले समय में क्या होगा उसे सोचकर भयभीत होने से पहले आत्मचिंतन से भर देती है। जल और थल पर चर्चाएं हमेशा से होती है लेकिन मल के बारे में बात नहीं कि जाती है। मल को स्वच्छता और शौचालय की उपलब्धता तक सीमित रखा जाता है। यह छपाक के महत्व से रूबरू कराती है जिसे हमें बचपन से घिन करनी सिखाई जाती है।

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आधुनिक शौचालय और सीवर कैसे पानी की घोर बर्बादी है और साथ ही जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है। “जंजीर खींच कर या एक ढेकली घुमा कर या एक बटन दबाकर इस सस्ते पानी के द्वारा अपने शरीर से निकला मल-मूत्र नजर से गायब कर देते हैं। इसके बाद उनका मैला पानी किसी और की समस्या बन जाता है।” मैला पानी साफ करने के तरीके और शुद्ध पानी को मैला करने की बातों को बहुत ही सरलता से सामने रखा गया है। नल में साफ पानी और चमचमाता शौचालय ही आज हमारे आदर्श हैं, जल स्रोतों का स्वच्छ और स्वस्थ होना महत्व नहीं रखता है। किताब में स्वच्छता अभियान की सारी रूपरेखा को सामने रखा गया है और यह भी बताया है कि नीतियां कागजों से निकलकर लागू होते-होते अपना वजूद क्यों खो देती हैं।

किताब में दुनिया के बहुत से बेहतरीन लोगों और योजनाओं के बारे में बताती है। कैसे कुछ मुठ्ठीभर लोग इस धरती को बचाने के लिए हर हाल में लगे हुए हैं। यह किताब अंत तक आते-आते जानकारियों के साथ इंसान को आत्मग्लानि से भर देती है।

शौचालय की महत्वत्ता और उस महत्वत्ता के परिणाम सामने रखती किताब बताती है कि आज केवल एक तिहाई आबादी के पास शौचालय की सुविधा है। उससे वही पानी गटर में जाता है जिसे हम पीते हैं। पानी साफ करने की व्यवस्था हमारे पास नहीं है। यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण गंगा, यमुना जैसी नदियां गटर बन गई हैं। किताब में मैला ढोने की प्रथा की जातिवादी प्रथा का अध्ययन कर वर्तमान में मैला ढोनेवालों की स्थिति के बारे में भी बताया है। जातिवादी समाज, सिस्टम की नाकामियों के बारे में भी किताब बात करती है। किताब मैला उठाने वाली जाति के संघर्षो के बारे में बताती है।

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किताब के आठवें अध्याय में खाघ पदार्थ की समस्या पर बात की गई है। यूरिया के प्रयोग से कैसे थल प्रभावित हो रहा है, ज्यादा पैदावार के लिए ऊपजाऊ भूमि को बंजर बनाया जा रहा है। इस अध्याय की शुरुआत अमेरिका की एक घटना से होती है। यूरिया के बढ़ते नशे और इसके दुष्परिणाम को जानते हुए भी दुनियाभर के इसके चलन के बारे में बताया गया। ज्यादा उपज की होड़ और खाने की बर्बादी रोकने की अनिच्छा किस तरह इस धरती को खाली कर रही है। “मनुष्य बेशकीमती साधनों को कूड़ा बनाने वाला सबसे तेज प्राणी है। पता नहीं कितनी शताब्दियों की जीवन लीला से बने उर्वरक समुद्र में बहाना ऐसी फिजूलखर्ची है जिसकी कीमत दूसरे प्राणी तो चुकाएंगे ही, मनुष्य भी चुकाएगा।” किताब में समस्याओं के समाधान के लिए पुराने विचारों के साथ वैज्ञानिक शोधों के महत्व को साथ रखने की भी बात कही गई है।

किताब में दुनिया के बहुत से बेहतरीन लोगों और योजनाओं के बारे में बताती है। कैसे कुछ मुठ्ठीभर लोग इस धरती को बचाने के लिए हर हाल में लगे हुए हैं। यह किताब अंत तक आते-आते जानकारियों के साथ इंसान को आत्मग्लानि से भर देती है। अस्वच्छता के प्रतीक के झूठ से पर्दा उठाकर मल के महत्व के बारे में बताती है। किताब पढ़ने का असर यह होता है कि फ्लश चलाते वक्त सोचने तक पर मजबूर कर देती है। इस किताब में दर्शन और विज्ञान के मेल से बहुत ही सजहता से बातें कही गई है। समाज में मैले ढोने की प्रथा, नदी-तलाबों पर शहरों की सफाई का बोझ, नदियों के पानी पर इंसानी हक, खेती-मिट्टी के संरक्षण जीवाणुओं की हत्या और आज की स्वच्छता के प्रतीक चमचमाते शौचालयों जैसे बहुत से महत्वपूर्ण विषयों के बारे में सार से कहा गया है। बेहद सरल भाषा में इंसानी गलतियों को सामने रखती किताब शुरुआत से लेकर आखिर तक पठनीयता को बरकरार रखती है। किताब समस्या, समाधान के साथ इंसान को उसकी गलतियां साफ तरीके से दिखाने में कामयाब होती है। सोपान जोशी की रोचक लिखावट का चित्राकंन सोमेश कुमार ने किया है।

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