इतिहास स्लट वॉकः यौन हिंसा के खिलाफ सड़कों पर मार्च निकालती दुनियाभर की महिलाओं का एक आंदोलन

स्लट वॉकः यौन हिंसा के खिलाफ सड़कों पर मार्च निकालती दुनियाभर की महिलाओं का एक आंदोलन

स्लट वॉक की शुरुआत 3 अप्रैल  2011 में टोरंटो, कनाडा में हुई थी। इसकी शुरुआत एक पुलिस अधिकारी द्वारा महिलाओं के कपड़ों पर दी गई एक टिप्पणी के बाद हुई जिसमें इस अधिकारी ने महिलाओं को सलाह दी थी कि महिला को यौन हिंसा से बचने के लिए वेश्याओं की तरह कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इसके जवाब में हीथर जार्विस और सोन्या बार्नेट नाम की दो महिलाओं ने टोंरटो पुलिस मुख्यालय की ओर मार्च निकाला था।

हिंसा का एक रूप जो धरती के हर कोने में एक समान है, वह है महिलाओं के साथ होनेवाली लैंगिक हिंसा। महिलाएं घर और समाज हर जगह शोषण, अपमान और भेदभाव का सामना करती हैं। इसी असमानता के खिलाफ दुनिया में महिलाएं लगातार संघर्ष भी करती आ रही हैं। दुनिया के हर कोने में नारीवादी संगठन महिलाओं के खिलाफ होनेवाली हिंसा और उनके बतौर नागरिक के रूप में सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए प्रयासरत हैं।

दुनियाभर में महिलाएं खुद की पंसद के कपड़े पहनने की वजह से हिंसा का सामना करती हैं। अपने अधिकारों के संरक्षण और यौन हिंसा के खिलाफ साल 2011 में पहली बार कनाडा की महिलाओं ने ‘स्लटवॉक’ के नाम से एक मॉर्च निकाला था। तब से स्लटवॉक के नाम से दुनियाभर में यह आंदोलन जारी हो गया। इस आंदोलन में अलग-अलग देशों में महिलाओं के खिलाफ होनेवाली यौन हिंसा के विरोध में महिलाएं, एलजीबीटीक्यू+ समुदाय और कुछ नारीवादी सोच के समर्थक पुरुष भी सड़कों पर मार्च में शामिल हुए थे। दुनिया के 75 से अधिक शहरों में स्लट वॉक का आयोजन हो चुका है। स्लट वॉक पिछले 20 सालों में नारीवादी आंदोलन के सफल प्रयासों में से एक माना जाता है।

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टोरंटो, कनाडा में हुए स्लट वॉक की एक तस्वीर, तस्वीर साभार: Torontoist

स्लट वॉक की शुरुआत

स्लटवॉक एक अंतरराष्ट्रीय आंदोलन है जिसमें महिलाएं यौन हिंसा के विरोध में सड़कों पर मार्च करने निकली थी। स्लट वॉक आंदोलन की मांग है कि सार्वजनिक जगहों पर सभी के लिए समान बर्ताव हो। कोई भी व्यक्ति यौन और मौखिक रूप से हिंसा का सामना न करे। साथ ही यह विक्टिम ब्लेमिंग को खत्म करने की भी मांग करता है। अंग्रेजी शब्द ‘स्लट’ को आमतौर पर महिलाओं के लिए गाली की तरह इस्तेमाल किया जाता है।

स्लट वॉक की शुरुआत 3 अप्रैल  2011 में टोरंटो, कनाडा में हुई थी। इसकी शुरुआत एक पुलिस अधिकारी द्वारा महिलाओं के कपड़ों पर दी गई एक टिप्पणी के बाद हुई जिसमें इस अधिकारी ने महिलाओं को सलाह दी थी कि महिला को यौन हिंसा से बचने के लिए वेश्याओं की तरह कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इसके जवाब में हीथर जार्विस और सोन्या बार्नेट नाम की दो महिलाओं ने टोंरटो पुलिस मुख्यालय की ओर मार्च निकाला था। उन्हें इस मार्च में केवल कुछ सौ महिलाओं के शामिल होने की उम्मीद थी। लेकिन उस दिन मार्च में 3 हज़ार से भी अधिक महिलाएं टोंरटो की सड़कों पर निकलीं। इस आंदोलन में मुख्य तौर पर युवा महिलाएं मार्च में उन पोशकों को पहनकर उतरी थीं जिन्हें पितृसत्तात्मक मानसिकता द्वारा भद्दा माना जाता है। मार्च में कुछ महिलाएं केवल अंतवस्त्र में शामिल हुई थीं। वहीं, कुछ महिलाएं विरोध जताने के लिए शॉर्ट स्कर्ट, स्टॉकिंग्स और शॉर्ट टॉप पहनकर सड़कों पर तख्तियां लेकर उतरी थीं।

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कनाडा से यह आंदोलन दुनियाभर में फैलता गया

टोंरटो में हुए पहले प्रदर्शन के बाद दुनिया के दूसरे देश के शहरों में भी महिलाओं के प्रदर्शन शुरू हो गए। इस मार्च के बाद न सिर्फ पूरे कनाडा में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्तरी अमेरिका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड में भी तेज़ी से महिलाएं यौन हिंसा के खिलाफ मोर्चा निकालती दिखीं। साथ ही लैटिन अमेरिका और एशियाई मुल्कों की महिलाओं ने भी इस आंदोलन में हिस्सा लिया था। जमीन स्तर पर इस आंदोलन को दुनियाभर में स्थापित करने के लिए किसी भी तरह की राजनीतिक रूप से स्थापित संगठन और संस्था के बजाय युवा महिलाओं ने संचालित किया था। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाली युवा लड़कियां प्रमुख रूप से इस आंदोलन का हिस्सा बनीं। आंदोलन के तहत रैलियों, ऑनलाइन और सार्वजनिक सभाओं में महिलाएं पहली बार सार्वजनिक रूप में बलात्कार सर्वाइवर के रूप में अपनी पहचान के बारे में बात करती हुई दिखी थीं।

स्लट वॉक की शुरुआत 3 अप्रैल  2011 में टोरंटो, कनाडा में हुई थी। इसकी शुरुआत एक पुलिस अधिकारी द्वारा महिलाओं के कपड़ों पर दी गई एक टिप्पणी के बाद हुई जिसमें इस अधिकारी ने महिलाओं को सलाह दी थी कि महिला को यौन हिंसा से बचने के लिए वेश्याओं की तरह कपड़े पहनने से बचना चाहिए। इसके जवाब में हीथर जार्विस और सोन्या बार्नेट नाम की दो महिलाओं ने टोंरटो पुलिस मुख्यालय की ओर मार्च निकाला था।

आंदोलन की कार्यशैली पर अनेक सवाल उठाए गए। कुछ लोगों ने इसकी कार्यप्रणाली की बहुत आलोचना की है। जर्विस और बार्नेट ने ‘स्लट’ शब्द चुनने के बारे में भी बताया। उनके अनुसार स्लट शब्द को नकारात्मक रूप से प्रयोग किया जाता है। स्लट शब्द को अपमानजनक और फूहड़ता से अलग बल्कि एक संदेश देने के लिए चुना गया था। बार्नेट ने यह भी कहा था कि इसको आगे बढ़ाने का उद्देश्य यह है कि कोई भी किसी भी प्रकार की हिंसा के योग्य नहीं है। कनाडा के पुलिस अधिकारी के अपने बयान में सुधार के बाद आयोजकों ने इस आंदोलन की वापसी के संदर्भ में कहा था कि यह मात्र एक टिप्पणी नहीं है, यह एक विश्वव्यापी मुद्दा है जिसे संबोधित करने की बहुत ज्यादा आवश्यकता है।

इक्कीसवीं सदी के इस आंदोलन की तुलना 1970 में हुए ‘टेक बैक द नाइट’ आंदोलन से की गई है जहां महिलाओं ने यौन हिंसा और महिलाओं को जागरूक करने के लिए रैलियां निकाली थीं। स्लट वॉक आंदोलन की सफलता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसका आयोजन दुनियाभर में किया गया। यह आंदोलन महिलाओं को उनकी यौन स्वतंत्रता को जाहिर करने और विक्टिम ब्लेमिंग पर बात करता है। ‘महिलाओं के कपड़ों के कारण उनका बलात्कार होता है,’ जैसी सोच पर खुलकर बात करता है। महिलाएं इस मार्च में खुले तौर पर अपनी पसंद के कपड़े पहनकर समाज में स्थापित हिला हिंसा की संस्कृति को खत्म करने के आह्वान करती नजर आई। स्लटवॉक के माध्यम से दुनियाभर में फैली महिला यौन हिंसा की कुरीति पर महिला स्वंय के अनुभव को जाहिर करने में सफल हुई है।

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अपनी बात रखती महिलाएं

दुनियाभर में महिला हिंसा की प्रवृति के कारण ही कनाडा के एक शहर से शुरुआत हुई इस रैली का आयोजन फिर दुनिया के अलग-अलग देशों में होना शुरू हो गया था। अमेरिका से लेकर भारत तक के अलग-अलग शहरों में महिलाएं यौन हिंसा के खिलाफ इकट्ठा होकर स्लट वॉक में शामिल हुई। अमेरिका के कई शहरों में स्लटवॉक का आयोजन हुआ। साल 2011 में न्यूयॉर्क शहर में स्लटवॉक निकाला गया जिस कारण यूनियन स्क्ववायर तक बंद रहा था। इसके अलावा शिकागो में भी महिलाएं यौन हिंसा के विरोध में इसमें शामिल हुई थी। ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में 28 मई 2011 में 2500 से भी अधिक महिलाएं सड़कों पर यह संदेश देते हुए उतरी की महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को यौन उत्पीड़न के डर के बिना कैसे कपड़े पहने चाहिए। यहां प्रदर्शनकारियों ने तख्तियों पर यह संदेश लिखा हुआ था, “हमारे वार्डरोब पर पुलिसिंग बंद करो, स्टॉप विक्टिम ब्लेमिंग, नो विक्टिम इज टू ब्लेम।”

स्लटवॉकः यौन हिंसा के खिलाफ के सड़कों पर मार्च निकालती दुनियाभर की महिलाओं का एक आंदोलन
लंदन स्लट वॉक की एक तस्वीर, तस्वीर साभारः Live Science

यूरोप के आइसलैंड में पहली स्लट वॉक 23 जुलाई 2011 में हुई थी। यहां बड़ी संख्या में लोग महिलाओं के अधिकारों और उनके खिलाफ होने वाली यौन हिंसा का विरोध करने के लिए मार्च में शामिल हुए थे। स्विट्ज़रलैंड में साल 2012 के अगस्त महीने में पहली बार स्लटवॉक का आयोजन हुआ था। लंदन, एडिनबर्ग, ब्रिस्टल और ऑक्सफोर्ड सहित ब्रिटेन के कई शहरों में भी इसी तरह के जुलूस निकाले गए। 4 जून 2011 में न्यूकैसल स्लट वॉक यूके का सबसे लंबा चलने वाला सेटेलाइट इवेंट था। महिला हिंसा के खिलाफ लैटिन अमेरिका के ब्राजील, अर्जेंटीना, कोलंबिया, चिली जैसे देशों में स्लट वॉक निकाला गया। अधिकतर सभी देशों में हर साल अलग-अलग शहर में यह मार्च दोहराया जाता है। एशिया में सबसे पहले स्लटवॉक का आयोजन दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में हुआ था।    

भारत में स्लटवॉक का आयोजन

दुनियाभर में यौन हिंसा के खिलाफ आवाज मुखर करती महिलाओं में भारतीय महिलाएं भी शामिल हुई। हालांकि, भारत में महिलाओं का सड़क पर यौन हिंसा के खिलाफ़ आवाज उठाना एक नई क्रांति के समान है। भारत में महिलाओं के कपड़ों को उनके साथ होनेवाली हिंसा का दोष सार्वजनिक मंचों से दे दिया जाता है। पंसद के कपड़े पहने से ही भारतीय समाज में लड़कियों का चरित्र की परिभाषा तय कर दी जाती है। भारत में स्लट वॉक को बेशर्मी मोर्चा का नाम दिया गया। 16 जुलाई 2011 में भोपाल शहर में सबसे पहले स्लटवॉक निकाला गया जिसमें लगभग पचास लोग शामिल हुए थे। इसके बाद दिल्ली, कोलकत्ता, लखनऊ जैसे शहरों में स्लट वॉक का सफल आयोजन किया गया। भारत में युवा महिलाओं ने इस मार्च में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। देश के अलग-अलग शहरों की महिलाएं यौन हिंसा के खिलाफ अपनी बात सार्वजनिक तौर पर रखती नजर आई।

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तस्वीर साभारः Wall Street Journal

स्रोत:

The University of British Columbia

Wikipedia

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