इतिहास जाति व्यवस्था का विरोध करने और ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का संदेश देनेवाले संत रविदास

जाति व्यवस्था का विरोध करने और ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का संदेश देनेवाले संत रविदास

सुप्रसिद्ध लेखिका गेल ओम्वेट ने अपनी पुस्तक ‘सीकिंग बेगमपुरा: दी सोशल विजन ऑफ एंटीकास्ट इंटेलेक्चुअल्स’ में सतगुरु रविदास को सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में प्रथम व्यक्ति माना है जिन्होंने आदर्श भारतीय समाज का मॉडल पेश किया।

देश के पांच राज्यों में 10 फरवरी से विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। इसे लेकर चुनाव आयोग तारीखों का ऐलान भी कर चुका था लेकिन पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव की तारीख को चुनाव आयोग ने बदल दिया। तारीख बदलने का कारण काफी सुर्खियों में रहा। तारीख ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का संदेश देनेवाले संत रविदास की जयंती की वजह से बदला गया। गुरु रविदास जयंती के जन्म स्थान सीरगोवर्धनपुर, वाराणसी में हर साल इनका जन्मदिवस बड़े धूमधाम और हर्षाोउल्लास से मनाया जाता है। देश-विदेशों से लाखों लोग इनके जन्मदिवस पर पंहुचते हैं। 

दरअसल, पंजाब में चुनाव 14 फरवरी को होना था। लेकिन पंजाब की राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव आयोग से अपील की कि 16 फरवरी को संत रविदास जयंती है जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग वाराणसी जाएंगे। लिहाजा यहां के विधान सभा चुनाव की ताऱीख को एक सप्ताह के लिए आगे बढ़ा दिया जाए। इसे मानते हुए चुनाव आयोग ने पंजाब में नई तारीख का ऐलान कर दिया। यानी कि अब पंजाब में विधान सभा चुनाव 20 फरवरी को होंगे। बता दें कि पंजाब में 32 फीसदी लोग अनुसूचित जाति के हैं और इस वर्ग के लोग संत रविदास में बड़ी श्रद्धा रखते हैं। तो आईए जानतें हैं संत शिरोमणि रविदास के बारे में।

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कौन थे संत रविदास 

भारत में अनगिनत साधु-सन्तों, ऋषि-मुनियों, महर्षियों ने जन्म लिया है। इन सबने अपने अलौकिक ज्ञान से समाज को अज्ञान, अधर्म और अंधविश्वास के अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाने का प्रयास किया। हमारे देश में शुरू से ही जात-पात, छुआछूत, पाखण्ड, अंधविश्वास का बोलबाला रहा है। साहित्य जगत में इस काल को मध्यकाल कहा जाता है। मध्यकाल को ही भक्तिकाल कहा गया। भक्तिकाल में कई संत पैदा हुए, जिन्होंने समाज में फैली कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ न केवल बिगुल बजाया, बल्कि समाज को टूटने से भी बचाया। इन संतों में से एक थे, संत रविदास, जिन्हें हम सभी रैदास के नाम से भी जानते हैं। इनका जन्म 1450 में वाराणसी के निकट सीर-गोवर्धनपुर में हुआ था। इनके जन्म स्थान सीर गोवर्धनपुर में सात मंजिला विशाल भवन है। इसे श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के नाम से भी जाना जाता है। 

‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ का दिया संदेश 

संत शिरोमणि रविदास बचपन से ही दयालु एवं परोपकारी प्रवृत्ति के थे। वह अपने काम के प्रति हमेशा समर्पित रहते थे। वह बाहरी आडम्बरों में विश्वास नहीं करते थे। एक बार उनके पड़ोसी गंगा स्नान के लिए जा रहे थे तो उन्होंने रविदास को भी गंगा-स्नान के लिए चलने को कहा। इस पर रविदास ने कहा, “मैं आपके साथ गंगा-स्नान के लिए जरूर चलता लेकिन मैंने आज शाम तक किसी को जूते बनाकर देने का वचन दिया है। अगर मैं आपके साथ गंगा-स्नान के लिए चलूंगा तो मेरा वचन तो झूठा होगा ही, साथ ही मेरा मन जूते बनाकर देने वाले वचन में लगा रहेगा। जब मेरा मन ही वहां नहीं होगा तो गंगा-स्नान करने का क्या मतलब। बात को समझाते हुए रैदास ने कहा कि यदि हमारा मन सच्चा है तो कठौती में भी गंगा विराजमान होगी।” सतगुरु रविदास के संदेश का सार प्रगतिशील आम जनों के बीच ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ लोक संदेश के रूप में बहुत ही प्रसिद्ध है। 

सुप्रसिद्ध लेखिका गेल ओम्वेट ने अपनी पुस्तक ‘सीकिंग बेगमपुरा: दी सोशल विजन ऑफ एंटीकास्ट इंटेलेक्चुअल्स’ में सतगुरु रविदास को सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में प्रथम व्यक्ति माना है जिन्होंने आदर्श भारतीय समाज का मॉडल पेश किया।

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आदर्श भारतीय समाज का मॉडल देने वाले पहले भारतीय

सुप्रसिद्ध लेखिका गेल ओम्वेट ने अपनी पुस्तक ‘सीकिंग बेगमपुरा: दी सोशल विजन ऑफ एंटीकास्ट इंटेलेक्चुअल्स’ (Seeking Begumpura : The Social Vision of Anticaste Intellectuals) में सतगुरु रविदास को सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में प्रथम व्यक्ति माना है जिन्होंने आदर्श भारतीय समाज का मॉडल पेश किया। वास्तव में, आदर्श भारतीय समाज का सपना ‘यूटोपिया’ अभिजात्य वर्ग के साहित्य की देन नहीं है, बल्कि यह तो जाति व्यवस्था का प्रखर विरोध करनेवाली शख्सियतों में से एक महान शख्सियत संत रविदास की देन है, जिनका लोग भरपूर आदर और सम्मान करते हैं। संत रविदास, भारत के प्रथम व्यक्ति हैं जिन्होंने अपने गीत ‘बेगमपुरा’ में आदर्श भारतीय समाज का ‘यूटोपिया’ प्रस्तुत किया है। ‘बेगमपुरा’ अर्थात बिना गमों का शहर, जो एक जातिविहीन, वर्गविहीन आधुनिक समाज है।’’ 

संत रविदास ने मीराबाई को अपना शिष्य स्वीकार किया और दीक्षा दी। उन्होंने मीराबाई को शिष्य उस दौर में बनाया जब हिन्दू धर्म में महिलाओं को कोई सम्मानजनक स्थान नहीं मिल रहा था। जब मीराबाई के पति की असमय मृत्यु हो गई तो राजपूताने की प्रथा अनुसार मीराबाई को सती होना था। लेकिन रविदास ने मीराबाई और उनके परिवार को समझाया और मीराबाई को सती होने से बचा लिया। इस तरह उन्होंने सतीप्रथा बंद करवाने की परंपरा की नींव डाली। मीराबाई ने अपने सतगुरु रविदास की याद में चित्तौड़गढ़, राजस्थान के किले में स्थित कुम्भा श्याम मंदिर के प्रांगण में गुरु रविदास की चरण पादुकाएं बनवाई थी। 

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तस्वीर: रितिका बनर्जी फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए

रेफरेंस: 

गेल ओम्वेट की पुस्तक ‘सीकिंग बेगमपुरा: दी सोशल विजन ऑफ एंटीकास्ट इंटेलेक्चुअल्स’

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