एक राष्ट्र का भविष्य उसके बच्चों में देखा जाता है। बच्चों का जैसा जीवन होगा देश की कल्पना उसके आधार पर की जा सकती है। भारत में 2 करोड़ से ज्यादा बच्चे अनाथ हैं। कोरोना महामारी के समय में यह संख्या और अधिक बढ़ी है। ऐसे बच्चे जिनका अपना कोई परिवार नहीं होता है उन बच्चों का बचपन बुनियादी अधिकारों से वंचित रहता है। दूसरी ओर बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो बच्चा गोद लेना चाहते हैं। अनाथ बच्चे और बच्चे की चाहत रखनेवाले किसी भी इंसान के लिए एक कानूनी प्रक्रिया है। जो किसी भी व्यक्ति को एक बच्चे का अभिभावक बनने का आश्वासन देती है। भारत में बच्चा लेने की कानूनी प्रक्रिया क्या है? आइए जानते हैं।
आमतौर पर किसी संस्था से बच्चे को गोद लेने के लिए भावी अभिभावकों को कई तरह की कानूनी प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। भारत में इसके लिए केंद्र सरकार के अधीन सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी गठित की गई है। यह संस्था महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है। यह संस्था एक नोडल बॉडी की तरह काम करती है। देश में बच्चों के गोद लेने की पूरी प्रक्रिया पर यह संस्था निगरानी रखती है। यह संस्था अनाथ, छोड़ दिए गए और आत्म-समर्पण करनेवाले बच्चों के अडॉप्शन के लिए काम करती है।
भारत में कानून के तहत बच्चे को गोद लेने वाले व्यक्ति और एक बच्चे के बीच कानूनी गठबंधन है। हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटीनेंस एक्ट 1956 (हिंदू दत्तक तथा भरण-पोषण अधिनियम, 1956) के तहत एक हिंदू, जैन, बौद्ध और सिख ही एक बच्चे को गोद ले सकते है। इससे अलग मुस्लिम, पारसी, ईसाई और यहूदी धर्म में पर्सनल लॉ के तहत बच्चे को गोद लेने का कोई प्रावधान नहीं हैं। इसलिए वे बच्चे के अडॉप्शन के लिए गार्डिअनशिप एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के अर्न्तगत बच्चे के संरक्षण का अधिकार प्राप्त करते हैं। भारत में बच्चे को गोद लेने की लंबी कानूनी प्रक्रिया है।
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भारत में बच्चे को कौन गोद ले सकता है
केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन एक्ट 2015 के गोद लेने के नियम 2017 के अनुसार भारतीय नागरिक, एनआरआई या विदेशी नागरिक के मामले में बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया अलग है। लेकिन बच्चे को तीनों में से कोई भी ले सकता है।
- भारत में कोई भी संभावित माता-पिता जिनकी अपनी कोई संतान हो या न हो, वे बच्चा गोद ले सकते हैं।
- संभावित माता-पिता का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य स्थिर हो।
- संभावित माता-पिता शादीशुदा हैं तो उन दोनों की आपसी सहमति होना ज़रूरी है।
- बच्चा गोद लेने के इच्छुक दंपति को उनकी शादी के दो साल के समय के बाद ही बच्चा अडॉप्ट करने के लिए योग्य माना जाएगा।
- जिन लोगों के पहले से ही तीन या इससे अधिक बच्चे हैं वे लोग बच्चा गोद लेने के लिए योग्य नहीं हैं लेकिन विशेष स्थिति में वे बच्चा गोद ले सकते हैं।
- बच्चे को गोद लेने वाले बच्चे, अभिभावक के बीच न्यूनतम 25 साल की उम्र का अंतर होना चाहिए।
- एक सिंगल महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है। सिंगल पेरेंट द्वारा बच्चा गोद लेने की अधिकतम आयु 55 वर्ष है।
- एक सिंगल पुरुष केवल लड़के को ही गोद ले सकता है।
- बच्चे को गोद लेने के लिए पंजीकरण की तिथि पर माता-पिता की आयु सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथारिटी के दिशानिर्देशों के अनुसार होनी चाहिए।
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एक बच्चे को कब गोद लिया जा सकता है
- भारत सरकार के तहत कार्यरत बाल कल्याण समिति के दिशा निर्देशो के तहत किसी भी अनाथ, आत्मसमर्पण और छोड़े हुए बच्चे को गोद लिया जा सकता है।
- एक बच्चा जिसके कानूनी माता-पिता नहीं है और जिसके अभिभावक बच्चे की देखभाल करने के लिए योग्य नहीं है उस बच्चे को अनाथ कहा जाता है।
- जब एक बच्चे के माता-पिता द्वारा उसे अकेला छोड़ दिया हो। बाल कल्याण समिति ने बच्चे को छोड़ा हुआ घोषित कर दिया हो। ऐसे अकेले छोड़े हुए बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया जा सकता है।
- बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया में बच्चा कानूनी रूप से मुक्त होना चाहिए। एक बच्चे को कानूनी रूप से फ्री तब माना जाता है यदि पुलिस अपने स्तर पर जांच करने के बाद बच्चे के माता-पिता या अभिभावक को खोजने में विफल साबित होती है।
बच्चे को गोद लेने के लिए आवश्यक दस्तावेज
बच्चे को गोद लेने के लिए सीएसीए के अनुसार आवश्यक दस्तावेज। गोद लेने वाला फार्म, माता-पिता या संभावित अभिभावक की फोटो, मैरिज सर्टिफिकेट, गोद लेने का कारण, पैन कार्ड, आय प्रमाण-पत्र, मूल निवास, दो लोगों से रेफरेंस लेटर और अदालत के द्वारा तय किये अन्य कागज।
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भारत में बच्चे को कैसे गोद लिया जाता है
बच्चा गोद लेने की एक कानूनी लंबी प्रक्रिया है। जो कानून के अनुसार कई चरणों में पूरी होती है।
पहला चरण- रजिस्ट्रेशन
संभावित अभिभावक को सबसे पहले एक अधिकृत एजेंसी के साथ रजिस्ट्रेशन कराने की आवश्यकता है। जहां सामाजिक कार्यकर्ता पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी देंगे। बच्चे को गोद लेने की कानूनी औपचारिकताओं, जरूरी कागज और रजिस्ट्रेशन से संबंधी जानकारी के बारे में बताएगें।
दूसरा चरण- होम स्टडी और कॉउंसलिंग
रजिस्ट्रर्ड एजेंसी के सोशल वर्कर संभावित अभिभावक के घर की स्थिति के आकलन के लिए घर की विजिट करेंगे। यह एजेंसी गोद लेने वाले बच्चे के व्यवहार और संभावित माता-पिता के बीच समझ बनाने के लिए कॉउसलिंग सेशन कराएगी। यह होम स्टडी की प्रक्रिया को रजिस्ट्रेशन की गई तारीख के तीन महीने के अंदर पूरा करने की आवश्यकता है। इसके बाद कॉउंसलिंग सेशन को पूरा करने के बाद कोर्ट में रिपोर्ट कर सकते है।
तीसरा चरण- बच्चे का संदर्भ में सूचना
इस चरण में संभावित माता या पिता के साथ बच्चे की मेडिकल रिपोर्ट, शारीरिक जांच की रिपोर्ट और अन्य जरुरी जानकारी एंजेसी प्रदान करेंगी। जब वे साझा किये गए विवरण से संतुष्ट होते हैं, तो उन्हे बच्चे के साथ बिताने के लिए कुछ समय देते है। इसके बाद माता-पिता बच्चे के साथ सहज होने पर उनके द्वारा बच्चे की स्वीकृति से संबंधित कुछ दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने की आवश्यकता होती है।
चौथा चरण- ज़रूरी दस्तावेज़ों की जांच
आवश्यक कागज को वकील के सामने प्रस्तुत किए जाते हैं जो एक याचिका तैयार करता है जिसे अदालत में पेश किया जाता है। याचिका पूरी होने के बाद संभावित माता-पिता को हस्ताक्षर के लिए अदालत में अधिकारी के सामने प्रस्तुत होना होता है।
पांचवा चरण- प्रीअडॉप्शन केयर
अदालत में याचिका साइन होने के बाद, बच्चे को घर ले जाने से पहले उसकी आदतों को समझने के लिए प्री-अडॉप्शन केयर का समय दिया जाता है।
छठा चरण- अदालत की सुनवाई
बच्चे के साथ, माता-पिता को एक अदालत की सुनवाई में भाग लेना होता है जो एक न्यायाधीश के साथ बंद कमरे में होती है। जज के द्वारा कुछ सवाल पूछे जाते हैं और बच्चे के नाम पर निवेश की गई राशि की भी जानकारी लेते हैं। इसके बाद निवेश की गई रसीद जज के बाद पेश होती है और जज बच्चे को गोद लेने का आदेश पारित करते हैं। बच्चे के गोद लेने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी एजेंसी 1-2 साल तक लगातार कोर्ट के सामने रिपोर्ट पेश करती है।
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