समाजपर्यावरण पर्यावरण सरंक्षण के लिए विश्व स्तर पर लड़ने वाली ये पांच महिला पर्यावरणविद्

पर्यावरण सरंक्षण के लिए विश्व स्तर पर लड़ने वाली ये पांच महिला पर्यावरणविद्

अलग-अलग देशों की ये महिलाएं पर्यावरण को होते खतरे के खिलाफ अपने- स्तर पर लड़ाई लड़ रही हैं और हमारे लिए एक शुद्ध और स्वच्छ पर्यावरण बनाने की कोशिश कर रहीं हैं, जिसके लिए हमें भी अपने स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है।

प्रकृति के दोहन और वायु प्रदूषण में पूंजीवादी व्यवस्था ने सबसे अधिक योगदान दिया है। अधिकतम लाभ की नीति पर खड़ी पूंजीवादी व्यवस्था ने न केवल अधिकतम संसाधनों को हड़पने का काम किया है बल्कि सामाजिक-आर्थिक विषमता को बढ़ाने का भी काम किया है। ‘स्त्री का सारतत्व’ के अपने लेख में नारीवादी लेखिका प्रभा खेतान प्राकृतिवादी नारीवाद के अंतर्गत पितृसत्ता और पूंजीवाद के प्रकृति और स्त्री पर नियंत्रण करने की मानसिकता पर चोट करते हुए कहती हैं, “अपनी आत्ममुग्धता में पूंजीवाद न केवल अपने आपको केंद्र में रखता है बल्कि बड़ी व्यवस्था जन्य रूप से स्त्री, दलित, आदिवासी और प्रकृति का शोषण करता है। प्रकृति पर सीधे-सीधे हमला न बोलकर आर्य पुरुष की सत्ता ने जो कुछ भी प्राकृतिक, स्त्रियोचित और सहज था, उसे नियंत्रित करना चाहा।” इसी पूंजीवाद की अधिक संसाधनों को हड़पने की भूख ने अधिक से अधिक पेड़ों की कटाई, नदियों में गंदगी और वनों का सफाया करके पर्यावरणीय तंत्र को असंतुलित कर दिया है जिसके कारण हमें आये दिन प्राकृतिक आपदाओं, वायु प्रदूषण और मौसम में परिवर्तन देखने को मिलता है।

हर साल 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, बावजूद इसके पूरे साल विकास के नाम पर, त्योहारों के नाम पर और परंपराओं के नाम पर पर्यावरण को प्रदूषित किया जाता है। फिर अचानक से एक दिन पर्यावरण की सुरक्षा और शुद्धता बनाए रखने के सरकारी वादे होने लगते हैं और जंगलों को काटकर बनी ऊंची-ऊंची कांच की इमारतों में रहनेवाले लोग पर्यावरण सुरक्षा की दुहाई देने लगते हैं। पर्यावरण सुरक्षा का मसला भारतीय समाज के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि समाज में महिला सुरक्षा का सवाल। पर्यावरण सुरक्षा में महिलाओं की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से भूमिका सदैव रही है।

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1991 में विश्व बैंक के अनुसार, महिलाएं मिट्टी, पानी,जंगल और ऊर्जा सहित प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में एक ज़रूरी भूमिका निभाती हैं। अक्सर उन्हें आसपास की प्राकृतिक दुनिया का गहरा पारंपरिक और समकालीन ज्ञान होता है।” पर्यावरण सरंक्षण में महिलाओं का योगदान सदियों से रहा है जिनकी भूमिका अलग-अलग आंदोलनों के ज़रिए देखी जा सकती है। भारत के संदर्भ देखा जाए तो खेजड़ली आंदोलन को पहला पर्यावरणवादी आंदोलन माना जाता है। यह आंदोलन सन् 1730 में राजस्थान के जोधपुर में शुरू हुआ जिसमें अमृता देवी और उनकी तीन पुत्रियों सहित 363 लोगों ने वृक्ष काटने से बचाने के लिए अपनी जान तक गंवा दी। इसके बाद भी समय-समय पर भारत और दुनियाभर के कई देशों में पर्यावरण सरंक्षण के लिए आंदोलन होते रहे हैं।

इन आंदोलनों में चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन, ग्रीन बेल्ट आंदोलन (1977), नवदान्य आंदोलन, केन्याई भूमि अधिग्रहण (1980), डकोटा एक्सेस पाइपलाइन विरोध आदि कई आंदोलन हुए जहां महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। गौरा देवी, तुलसी गौड़ा, मेधा पाटकर, वंगारी मथाई, वंदना शिवा आदि महिलाओं ने इन आंदोलनों का नेतृत्व किया। इन्हीं महिलाओं की तरह हम कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में जानेंगे जिन्होंने पर्यावरण सरंक्षण की लड़ाई लड़ी।

1- वंगारी मथाई

वंगारी मथाई, तस्वीर साभार: Though Co

वंगारी मथाई को केन्याई पर्यावरणविद के रूप में जाना जाता है। वह ग्रीन बेल्ट आंदोलन की संस्थापक और महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता थीं। मथाई ने केन्या में पर्यावरण सरंक्षण और स्वदेशी वृक्षारोपण के साथ ही महिलाओं को पर्यावरण सरंक्षण के प्रति जागरूक करते हुए उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में काम किया था। सतत विकास, लोकतंत्र और शांति के लिए अपने योगदान’ की वजह से वह साल 2002 में सांसद बनीं और केन्या की सरकार में मंत्री पद पर भी रह चुकी थीं। साल 2004 में उनके सामाजिक योगदान के लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वह नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली अफ्रीकी महिला थीं। ग्रीन बेल्ट आंदोलन से जुड़े लोगों द्वारा साल 2005 तक सार्वजनिक और निजी भूमि पर लगभग 30 करोड़ पेड़ लगाए जा चुके थे।

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2- कांदोनी सोरेन

कांदोनी सोरेन, तस्वीर साभार: India Times

कांदोनी सोरेन झारखंड के जमशेदपुर जिले के एक गाँव सड़कघुट की रहने वाली आदिवासी युवती हैं। वह अपने गांव के लोगों के बीच ‘जंगल की शेरनी’ नाम से जानी जाती हैं क्योंकि वह शेरनी की तरह अपने जंगल की सुरक्षा करती हैं। इंडिया टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने करीब 45 महिलाओं की टीम बनाई और उनके साथ मिलकर ‘वन सुरक्षा समिति’ बनाई। वह उनके साथ मिलकर करीब 100 हेक्टेयर में फैले वनक्षेत्र की रक्षा करती हैं। शुरुआती दौर में उन्हें जंगल के पत्थर और लकड़ी माफियाओं से धमकियां भी मिलीं लेकिन वे पीछे नहीं हटीं और अपनी जान की परवाह किए बगैर जंगल की सुरक्षा करती रहीं।

कांदोनी झारखंड पुलिस में फिलहाल होमगार्ड की नौकरी कर रही हैं। वह और उनकी टीम जंगल की रक्षा के लिए जंगल में घूमते हुए हमेशा अपने साथ जंगल माफियाओं से लड़ने के लिए आदिवासियों के पारंपरिक हथियार तीर-धनुष, कटारी आदि साथ लेकर चलते हैं जिसकी वजह से वन माफिया उनके नाम से भी कांपते हैं। उनका कहना है, “हम केवल सरकार और सिस्टम के भरोसे पर नहीं बैठे रह सकते। स्थानीय लोगों को भी जंगल के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।”

3- मिया कृष्णा प्रतिवि

कृष्णा प्रतिवि, तस्वीर साभार: BBC

इंडोनेशियाई पर्यावरण कार्यकर्ता कृष्णा प्रतिवि गैर लाभकारी संगठन ‘ग्रिथालुहू’ के माध्यम से बाली द्वीप पर प्लास्टिक कचरे के संकट को हल करने के लिए काम कर रही हैं। स्थानीय समुदाय के साथ मिलकर उनके संगठन ने एक ‘डिजिटलवेस्ट बैंक’ स्थापित किया जो एक ऐप आधारित प्रणाली है जिसमें कचरे को बेहतर तरीके से इकट्ठा करने और कचरा प्रबंधन में बदलाव का समर्थन करने के लिए डेटा एकत्र करने की व्यवस्था है। इंस्टीट्यूट टेक्नोलॉजी बांडुंग से पर्यावरण इंजीनियरिंग में डिग्री प्राप्त कर चुकीं कृष्णा प्रतिवि स्थानीय कचरा बैंक की दिन प्रतिदिन की गतिविधियों की देखरेख के लिए संचालन प्रबन्धक के रूप में काम करने के साथ ही पर्यावरण विश्लेषक भी हैं।

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4- रिद्धिमा पांडे

रिद्धिमा पांडे

साल 2020 में बीबीसी ने दुनिया भर की 100 प्रभावशाली महिलाओं की लिस्ट ‘वूमेन ऑफ 2020’ निकाली जिसमें महज़ 13 साल की रिद्धिमा पांडे का भी नाम शामिल था। रिद्धिमा ने साल 2017 में बढ़ते प्रदूषण और पर्यावरणीय स्वच्छता की गिरावट पर भारत सरकार की ओर से कोई कार्यवाही न करने पर उसके खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक याचिका दायर की थी। वह एक पर्यावरण कार्यकर्ता हैं जिन्होंने 9 साल की उम्र में साल 2019 में 15 अन्य याचिकाकर्ताओं के साथ मिलकर सयुंक्त राष्ट्र में पांच देशों के खिलाफ मुकदमा दायर किया जिसमें भारत भी शामिल था। वह हरिद्वार की रहने वाली हैं और 2011 में उत्तराखंड त्रासदी से मानसिक रूप से प्रभावित रही हैं।

पर्यावरण के लिए लड़ने का एक कारण यह त्रासदी भी रही है। वह जलवायु, पेड़ों की बेलगाम कटाई और प्रदूषण जैसे मुददों के लिए काम कर रही हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में वह कहती हैं, “अब समय आ गया है जब हम मजबूत बनें और एकजुट हो और ये साबित करें कि मुश्किल वक़्त में हमारे अंदर कितनी शक्ति आ जाती है। अगर कोई महिला कुछ हासिल करने की ठान लेती है तो फिर उसे कोई रोक नहीं सकता।”

5- साल्साबिला ख़ैरून्निसां

साल्साबिला ख़ैरून्निसां, तस्वीर साभार: Correspondents of the world

जकार्ता की रहनेवाली एक 17 बरस की छात्रा साल्साबिला हर शुक्रवार को पर्यावरण और वन मंत्रालय के सामने जंगलों की कटाई के खिलाफ अपने स्कूल के बच्चों के साथ हड़ताल और विरोध-प्रदर्शन आयोजित करती हैं। उन्होंने 15 साल की उम्र में ही युवाओं के नेतृत्व वाले एक आंदोलन ‘जागा रिम्बा’ की शुरुआत की थी। वन सरंक्षण के अलावा यह संगठन आदिवासी समुदाय के सदस्यों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष करता है। वे लोग जो किनीपैन के जंगलों में अपने पुश्तैनी घर गंवा रहे हैं, उनके हक की लड़ाई यह संगठन लड़ रहा है। किनीपैन के जंगल कालिमन्तन के आखिरी बचे हुए वर्षा वन हैं। 

इस प्रकार अलग-अलग देशों की ये महिलाएं पर्यावरण को होते खतरे के खिलाफ अपने- स्तर पर लड़ाई लड़ रही हैं और हमारे लिए एक शुद्ध और स्वच्छ पर्यावरण बनाने की कोशिश कर रहीं हैं, जिसके लिए हमें भी अपने स्तर पर कदम उठाने की जरूरत है।

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