भारत में लोग बड़ी संख्या में कृषि पेशे से जुड़े हुए हैं। यह लोगों की जीविका अर्जन का सबसे बड़ा स्रोत है। बदलते दौर में पर्यावरण के बदलते मिज़ाज का असर खेती पर पड़ रहा है। तापमान, आर्द्रता, मिट्टी का पीएच लेवल, कीट-पंतगे आदि खेती को सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण खेती की पैदावार में भी अंतर आ गया है। मौसम का बिगड़ता रूप सीधे तौर पर पौधों और फसल की ऊपज पर असर डालता है।
इसी समस्या के समाधान की दिशा में काम किया है डॉ. परमजीत खुराना ने। परमजीत खुराना प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी और जीनोमिक्स के क्षेत्र से जुड़ीं एक भारतीय वैज्ञानिक हैं। पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से परमजीत खुराना ने फसल में तनाव सहिष्णुता बढ़ाने और सस्टेनबल खेती के शोध में प्रमुख योगदान दिया है।
जन्म और शिक्षा
परमजीत खुराना का जन्म 15 अगस्त 1956 में हुआ था। उनकी स्कूली पढ़ाई दिल्ली के एक सरकारी हाई स्कूल से हुई थी। उन्होंने साल 1972 में हाई स्कूल की पढ़ाई, सर्वश्रेष्ठ छात्र पुरस्कार के साथ पूरी की। विज्ञान में रूचि होने के साथ उन्होंने इसी विषय में आगे पढ़ाई करना तय किया। उन्होंने स्नातक की पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से की। 1975 में वनस्पति विज्ञान में नेशनल मेरिट अवार्ड के साथ उन्होंने अपनी डिग्री प्राप्त की। इसके बाद 1977 में उन्होंने मास्टर्स की डिग्री हासिल की और दोबारा नेशनल मेरिट अवार्ड अपने नाम किया।
मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय में एमफिल में नामाकंन कराया। इसके बाद साल 1983 में वनस्पति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई पूरी होने के बाद डॉ खुराना ने दिल्ली विश्वविद्यालय के यूनिट फॉर प्लांट और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में एक साल काम किया। इसके बाद वह दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम करने लगीं।
परमजीत खुराना प्लांट बायोटेक्नोलॉजी, मालिक्यूलर बायोलॉजी और जीनोमिक्स की एक भारतीय वैज्ञानिक हैं। पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से परमजीत खुराना फसल में तनाव सहिष्णुता बढ़ाने और सस्टेनबल खेती के शोध में प्रमुख योगदान दिया है।
साल 1984 में वह एस.जी.टी.बी खासला कॉलेज के वनस्पति विभाग में लेक्चरर के तौर पर जुड़ीं। कुछ सालों बाद, 1987 में उन्हें मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, अमेरिका में रिसर्च एसोसिएट के पद पर काम करने का मौका मिला। वहां उन्होंने लीगम्स और बैक्टीरिया के बीच संबंध, राइजोबियम पर अध्ययन किया। अमेरिका से लौटने के बाद वह दोबारा दिल्ली यूनिवर्सिटी से जुड़ी। 1989-90 तक उन्होंने डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में लेक्चरर के तौर पर काम किया। इसके बाद 1990-98 तक एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अध्यापन कार्य किया। इसके बाद साल 1989 में प्रोफेसर के पद पर आसीन हुईं। साल 2004 से 2007 तक उन्हें हेड ऑफ डिपार्टमेंट नियुक्त किया गया।
परमजीत खुराना ने मुख्य रूप से सभी मौसम में फसलों को विकसित करने की तकनीक में मुख्य योगदान दिया है, जिससे भारत की कृषि उत्पादकता में कई गुना वृद्धि हो सके। उन्होंने भारतीय गेहूं में आनुवांशिक परिवर्तन पर रिसर्च, एनावायरमेंटल स्ट्रेस टॉलरेंस, शहतूत को सूखे की स्थिति का सामना करने के लिए उसमें ट्रांसजेनिक्स विकसित करना, आनुवांशिक इंजीनियरिंग तकनीक के माध्यम से फसलों में तनाव सहनशीलता बढ़ाने को बढ़ाना और पर्यावरण को बिना नकुसान पहुंचाने वाली खेती (सस्टेनेबल एग्रीकल्चर) पर व्यापक काम किया है।
गेहूं पर शोध कार्य
डॉ परमजीत खुराना ने मुख्य तौर पर गेहूं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए ऐसी तकनीक को विकसित करने का काम किया जिससे प्राकृतिक संसाधन पर बुरा प्रभाव न पड़े। फसल का उत्पादन ज्यादा किया जा सके। उन्होंने शोध करके भारतीय गेहूं को हानिकारक कीट से बचाने के लिए आनुवंशिक रूप से उसमें बदलाव किया। यह कीड़ा मुख्य रूप से सबसे ज्यादा गेहूं की फसल के उत्पादन को नष्ट करने का काम करता है। यह उन हानिकारक कीटों में से एक हैं जिसकी वजह से गेहूं की फसल की वृद्धि रुक जाती है और फसल खराब हो जाती है। परमजीत खुराना ने अपने शोधकार्य से इस कीड़े को रोकने के लिए गेहूं के एक स्ट्रैन को विकसित करने काम किया।
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सूखे में भी हो सकती है शहतूत की खेती
शहतूत, रेशम की खेती का एक प्रमुख घटक है। शहतूत को उगाने के लिए किसानों को चारा, ईधन और खाद की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन देश में शहतूत की बड़ी मात्रा में फसल जमीन की खराब गुणवत्ता और सूखे के कारण नष्ट हो जाती है। शहतूत की खेती की इस समस्या के लिए परमजीत खुराना ने बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से समाधान निकाला। उन्होंने बायोटेक्नोलॉजी से शहतूत को अधिक गर्मी, उच्च यूवी किरण और तनाव के प्रति अधिक सहनशील के लिए खोज की। उन्होंने शहतूत को मॉडिफाइ किया। मॉडिफाइड शहतूत की खेती को आसानी से बंजर और कम भूजल वाले क्षेत्र में किया जा सकता है। परमजीत खुराना ने अपनी शोध से रेशम की खेती को सस्टेनेबल बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
इसके अवाला परमजीत अपनी टीम के साथ बदलती जलवायु में कृषि, चावल के गुणसूत्र 11, टमाटर के गुणसूत्र 5 और शहतूत के क्लोरोप्लास्ट जीनोम का अनुक्रमण का काम किया। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए सस्टेनेबल खेती को बढ़ावा देने की दिशा में भी कार्यरत है।
पुरस्कार और सम्मान
डॉ. परमजीत खुराना ने बायोटेक्नोलॉजी क्षेत्र में प्रभावशाली काम के लिए अनेक पुरस्कार अपने नाम किए हैं। शोधकार्य करने के लिए उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप प्राप्त की हैं। इस क्रम में नेशनल एकेडमी ऑफ सांइस (2003), इंडियन एकेडमी ऑफ साइंस (2010), नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस (2014) और द वर्ल्ड एकेडमी ऑफ साइंस, इटली (2016) शामिल है। इसके अवाला भारत सरकार की ओर से वह दो बार लगातार प्रो. जे.सी. बोस फेलोशिप प्राप्त कर चुकी हैं।
डॉ. खुराना विभिन्न विश्वविद्यालयों की विभिन्न शैक्षणिक और चयन समितियों की सदस्य हैं। इसके अलावा साइंस एंड टेक्नोलॉजी, डिपॉर्टमेंट ऑफ बायोटेक्नॉलाजी, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च, यूजीसी और साइंटिफिक और इंडस्ट्रियल रिसर्च की सलाहकार समिति की सदस्य हैं। वह थर्ड वर्ल्ड ऑर्गनाइजेश फॉर वीमन इन साइंस, इटली की लाइफ मेंबर भी हैं।
परमजीत खुराना से कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं। उन्हें 2011 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर गंतव्य संस्थान की ओर से सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर से नवाज़ा गया। इंडियन साइंस कांग्रेस की ओर से साल 2011-12 के अर्चना शर्मा मैमोरियल अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस, इंडिया की ओर से श्री रंजन मैमोरियल लेक्चर अवार्ड (2014), प्लांट टिशू कल्चर एसोसिएशन, इंडिया द्वारा द स्ट्रीट मैमोरियल लेक्चर अवार्ड, प्रो. अर्चना शर्मा मैमोरियल लेक्चर अवार्ड अपने नाम कर चुकी हैं। परमजीत खुराना अब तक 125 से अधिक पेपर पब्लिश कर चुकी हैं।
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तस्वीर साभारः University of Delhi
स्रोतः Wikipedia