ग्लोरिया स्टाइनम, एक अमेरिकी नारीवादी पत्रकार और पॉलिटिकल ऐक्टिविस्ट हैं, जो अनेक सामाजिक आंदोलनों जिसने समान अधिकारों और अवसरों के साथ-साथ महिलाओं के लिए अधिक स्वतंत्रता की मांग की गई, उनका वह अहम हिस्सा रहीं। ग्लोरिया ने नागरिक अधिकारों को आगे बढ़ाने के लिए समर्पित अलग-अलग समूहों को बनाने और आगे बढ़ाने में काफी मदद की है। नारीवाद के क्षेत्र में उनकी दृढ़ता के परिणामस्वरूप महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने वाले कई प्रभावशाली संस्था, संगठन और आंदोलनों को जन्म दिया और ना सिर्फ जन्म दिया पर उन्हें चलाया भी। उन्होंने नैशनल वुमन पॉलिटिकल कॉकस, मिस फाउंडेशन फॉर वुमन, द फ्री टूबी फाउंडेशन और यूनाटेड स्टेट्स में महिला मिडिया सेंटर की सह-स्थापना की।
शुरुआती जीवन और शिक्षा
पर ये सब करनेवाली ग्लोरिया का जीवन भी काफी रोमांचक और चुनौतीपूर्ण रहा है। उनका जन्म 25 मार्च 1934 में ओहायो के टोलिडो में हुआ था। उनके पिता लियो एक सेल्समैन थे। उन्हें यात्राएं करना पसंद था। वह एक जगह टिके रहने में असमर्थ थे। उन्होंने अपनी दो बेटियों और पत्नी रूथ को अपने ट्रेलर से पूरे देशभर में घुमाया। ग्लोरिया ने इन सभी बातों का ज़िक्र अपनी किताब ‘माय लाइफ ऑन द रोड’ में किया है। इस किताब में वह कहती हैं कि उनकी माँ के लिए ये सब काफी परेशान करनेवाला था।
रूथ मानसिक तौर पर काफी नाजु़क हालत में थीं और ग्लोरिया के जन्म से पहले भी उन्हें इस वजह से काफी परेशानियां हुई। ग्लोरिया कुछ 10 साल की थीं, जब उनके माता-पिता का तलाक हुआ। तब ग्लोरिया अपनी माँ का ध्यान रखने के लिए पूरी तरह अकेली हो चुकी थीं। उसी समय उन्होंने डॉक्टर को अपनी माँ की स्पष्ट तकलीफ और मानसिक बीमारियों को नकारते देखा और उस समय जब वह नारीवादी नहीं हुई थी, तभी उन्होंने यह पक्षपात देख लिया था।
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अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता में अपना करियर बनाने के लिए वह न्यूयॉर्क चली गईं। न्यूयॉर्क पत्रिका में, ग्लोरिया ने राजनीतिक अभियानों और महिला मुक्ति आंदोलन के साथ-साथ कई सामाजिक मुद्दों पर रिपोर्टिंग और लेखन का काम किया। गर्भनिरोधक के मुद्दे पर भी उन्होंने मुखरता से अपनी बातें रखीं। यह साल 1962 का था और गर्भनिरोधक गोली पर लिखना एक बड़ी बात थी। निडर, स्टाइनम ने और अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक रिपोर्टिंग से जुड़े असाइनमेंट्स की मांग की। साल 1969 में उन्होंने अबॉर्शन के मुद्दे पर न्यूयॉर्क मैगज़ीन के लिए एक लेख लिखा। साथ ही अपनी किताब ‘My Life on the Road’ में ग्लोरिया ने यह भी ज़िक्र किया कि वह सिर्फ 22 साल की थीं जब उन्होंने गुप्त तरीके से अपना अबॉर्शन लंदन में करवाया था। उन्होंने अपनी यह किताब उसी डॉक्टर को समर्पित की थी।
स्टाइनम ने न्यूयॉर्क में एक पत्रकार के रूप में अपने पेशेवर करियर की शुरुआत की। विभिन्न प्रकाशनों के लिए स्वतंत्र लेख लिखे। 1950-60 के दशक के उस दौर में महिला पत्रकारों के लिए असाइनमेंट प्राप्त करना कठिन था। जब पुरुष न्यूज़ रूम चलाते थे और महिलाओं को बड़े पैमाने पर शोध या सेक्रेटरी के पद पर ही लिया जाता था। स्टाइनम बताती हैं, “जब मैंने द न्यूयॉर्क टाइम्स संडे मैगज़ीन को राजनीतिक कहानियों का सुझाव दिया, तो मेरे संपादक ने बस कुछ ऐसा कहा, ‘मैं आपके बारे में ऐसा नहीं सोचता।” अपने पत्रकारिता करियर के दौरान ही स्टाइनम को एहसास हुआ कि उस दौर में एक ऐसी पत्रिका की ज़रूरत थी जो महिलाओं की बात उनके नज़रिये से रखे। इस सोच के साथ उन्होंने मिस मैगज़ीन की साल 1971 में शुरुआत की।
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स्टाइनम का मानना है कि महिलाओं के लिए समान अधिकारों और अवसरों की उन्नति दुनिया को बेहतर बनाने के लिए ज़रूरी है। स्टाइनम ने समान अधिकारों पर उनके रुख के संबंध में कुछ प्रशासनों के समर्थन और विरोध में आवाज़ उठाते हुए, इन कुछ वर्षों में राजनीतिक आंदोलनों में भी योगदान दिया है। स्टाइनम का जीवन महिलाओं के अधिकारों के लिए समर्पित रहा है। साल 1972 में स्टीनम और नारीवादियों बेला अब्ज़ग, शर्ली चिशोल्म और नारीवादी बेट्टी फ्राइडन ने राष्ट्रीय महिला राजनीतिक कॉकस का गठन किया।
स्टाइनम की नारीवादी सक्रियता ने नारीवादी आंदोलन में एक अहम भूमिक निभाई। जब कि नारीवाद की पहली लहर कानूनी क्षेत्र में लैंगिक समानता पर केंद्रित थी। जैसे कि मतदान और संपत्ति के अधिकार। महिला मुक्ति आंदोलन नारीवाद की दूसरी लहर का हिस्सा था जिसने यौनिकता कार्यस्थल, प्रजनन जैसे विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला को संबोधित किया।
ग्लोरिया आज 88 साल की हैं और अपने पूरे जीवन काल में उन्हें अपने लेखन और पत्रकारिता के लिए कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। अगर ग्लोरिया ने हमें कुछ सिखाया है, तो वह यह है, “हम अपनी जमीन पर खड़े हो सकते हैं, अपनी सच्चाई बोल सकते हैं, और अच्छी लड़ाई लड़ सकते हैं।”
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