पॉप, जैज और प्लेबैक सिंगिंग की दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम ऊषा उथुप हैं। कांजीवरम साड़ी, माथे पर बड़ी बिंदी और अपनी खास आवाज़ से इंडियन पॉप म्यूजिक को ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाली ऊषा उथुप भारत का प्रतिनिधित्व पूरी दुनिया में करती हैं। देश-दुनिया की कई अलग-अलग भाषाओं में ऊषा उथुप ने गीत गाए हैं। पांच दशक से ज्यादा लंबे करियर में ऊषा उथुप की अलग आवाज़ आज भी हर किसी को थिरकने पर मजबूर कर देती है लेकिन इसी अलग आवाज़ की वजह से उन्हें लोगों की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा था।
1950- 60 के दशक में महिला कलाकारों को विशेषतौर पर नैतिकता और स्त्रीत्व और परंपराओं से जोड़ा जाता था। हिंदी सिनेमा में आदर्श महिलाओं की आवाज़ को मधुरता और कोमलता के रूप में दिखाया जाता था। महिलाओं की भारी और मोटी आवाज़ को साफ तौर पर नकार दिया जाता था। उस दौर में महिलाओं की नैतिकता, आदर्श और संस्कृति का प्रतिनिधित्व उनकी मधुर आवाज़ को माना जाता था। इसके अलग ऊषा उथुप की भारी आवाज़ को सिनेमा और संगीत में महिलाओं की बनाई हुई इमेज से अलग माना गया। लेकिन ऊषा उथुप की लगन और जिद ने राह में आनेवाली हर बाधा को पार किया। अपनी खास आवाज़ के साथ अलग तरह की गायिकी के साथ अपनी संगीत यात्रा की शुरुआत कर दी।
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शुरुआती जीवन
ऊषा उथुप का जन्म 7 नवंबर 1947 को आजाद भारत के मुंबई शहर में हुआ था। वह एक तमिल परिवार से संबध रखती हैं। उनका परिवार मूल रूप से चेन्नई, तमिलनाडु का रहनेवाला है। उनके घर में संगीत का माहौल था। उनके माता-पिता वेस्टर्न क्लासिकल से लेकर हिंदुस्तानी और कर्नाटक संगीत सुना करते थे। परिवार में भीमसेन जोशी, बेगम अख्तर, किशोरी आमोणकर और बड़े गु़लाम अली खान को सुना जाता था। ऊषा को रेडियो सीलोन सुनने की आदत बचपन में ही लग गई थी। रेडियो सुनकर ही उन्होंने संगीत सीखा था।
म्यूजिक टीचर ने क्लास से बाहर निकाला
उनकी पढ़ाई कॉन्वेट स्कूल में हुई थी। वहीं पर उन्होंने संगीत की शिक्षा लेने का सोचा। स्कूल में उन्हें म्यूजिक क्लास से यह कहकर बाहर निकाल दिया था कि उनकी आवाज़ संगीत में फिट नहीं बैठती है। लेकिन उनके म्यूजिक टीचर को लगता था कि उनमें संगीत है तो उन्हें ताली और संगीत यंत्र बजाने के लिए कहा। इसी बात को याद करते हुए हिंदुस्तान टाइम्स के एक लेख में ऊषा उथुप कहती है, “काश मैंने साइट-रीडिंग और नोटेशन सीखा होता क्योंकि यह मेरे करियर में मदद करता। अगर आप म्यूजिक शीट पढ़ सकते हैं तो आप संगीत को जल्दी पकड़ लेते हैं। लेकिन मुझे यह सीखने का मौका नहीं मिला। मेरे म्यूजिक टीचर ने नहीं सोचा था कि मैं संगीत के लिए फिट थी। इसलिए उन्होंने मुझे गाना गाने वाली क्लास से बाहर रखा, जो बहुत अविश्वसनीय है। लेकिन कुछ साल बाद एक बार जब मैं द अशोक, दिल्ली में परफॉर्मेंस दे रही थी मेरे म्यूजिक टीचर वहां दर्शकों में मौजूद थें। मैंने उन्हें एक गाना समर्पित किया, हम दोनों रोए थे, लेकिन यह अफसोस नहीं है जो मुझे पीछे खींचता। यह मुझे और बेहतर करने की प्रेरणा देता है।”
मुंबई उनके परिवार के साथ ही एक पठान परिवार रहता था। उनकी बेटी जमीला और ऊषा बहुत अच्छी दोस्त थी। जमीला ने उन्हें हिंदी सिखायी और भारतीय शास्त्रीय संगीत की ओर ध्यान गया। घर में तमिल, स्कूल में अंग्रेजी और फेंच्र भाषा का ज्ञान मिला। इस फ्यूजन दृष्टिकोण ने ही उन्हें 1970 के दशक में इंडियन पॉप म्यूजिक का एक अनूठा ब्रांड बनाया।
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नाइट क्लब से की शुरुआत
म्यूजिक आर्ट और परफॉर्मेंस में पांच दशक का समय पूरा करने वाली ऊषा उथुप ने अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत नाइट क्लब से की थी। 1969 में चेन्नई के उन्होंने पहली बार लोगों के सामने एक नाइट क्लब में गाना गाया था। जब वह पहली बार स्टेज पर साड़ी में पहुंची तो वहां बैठे लोगों की प्रतिक्रिया चौंकने वाली थी। गाने ने पहले उन पर कॉमेंट किए गए। उन्हें कहा गया कि यह अम्मा यहां क्या करने आ गई है? उसके कुछ समय बाद उनकी परफॉर्मेंस के बाद हर कोई उनका गाना सुनकर चकित रह गया। इसके बाद उन्हें कलकत्ता के ‘ट्रिनकांस’ एक मशहूर क्लब में गाने का मौका मिला।
बिजनेस स्टैडर्ड में दिए एक इंटव्यू में उथुप का कहना है, “मैं यह बताते हुए बहुत खुश होती हूं कि मैंने अपने करियर की शुरुआत प्लेबैंक सिंगिग से नहीं की है। मैंने नाइट क्लब में सिंगर के तौर पर शुरू किया था और इसके कारण ही मुझे प्लेबैक गाने का मौका मिला। लाइव सिंगिग में कोई दूसरा टेक नहीं होता है। यदि आपके पास वन टेक होता है तो आप और अच्छे होते हो और परफेक्ट होते है।”
साड़ी पहने, माथे पर बड़ी बिंदी, चूड़ी भरे हाथों के साथ उनकी भारी-मोटी आवाज़ एक आईकन बन गई थी। उनके अलग पहनावे और गायिकी के कारण लोग उन्हें विशेषतौर पर सुनने आते थे। वह कहती हैं, “ट्रिनकास ने लोगों के बीच बार के बारे में गलत धारणा को बदल दिया था। वे बार में साफ और अद्भुत मनोरंजन की उम्मीद करने लगे थे। उन्होंने पाया कि नाइट क्लब भी एक पारिवारिक जगह हो सकती है। एक ऐसी जगह जहां सब लोग आ सकते हैं।”
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नाइट क्लब में सिंगिग ने उन्हें बहुत अनुभव, एक्सपोजर और मौके दिए, जिसने उन्हें भारत की पहली महिला पॉप गायिका बनाया। अपने सफर के बारे में एक इंटरव्यू में ऊषा उथुप का कहना है कि “वह एक कैबरे सिंगर थी। लोगों की कैबरे के बारे में बहुत गलतफहमियां हैं। कैबरे एक फ्लोर शो है। कांजीवरम साड़ी पहनते हुए जैज, पॉप, रॉक और फोक म्यूजिक गाना बहुत क्रांतिकारी था। लेकिन लोगों को यह पंसद आया।” उस दौर में नाइट क्बल को लेकर लोगों में यह धारणा बनी हुई थी कि नाइट क्लब्स में महिला कलाकारों के द्वारा सेंसुअस परफोर्मेंस दी जाती थी। लेकिन ऊषा उथुप ने इसे बदलते हुए एक नया ट्रेंड शुरू किया। साड़ी पहने हुए नाइट क्लब में लाइव सिंगिग करते हुए ऊषा उथुप ने गायन में भी कई प्रयोग किए। लोग बड़ी संख्या में उन्हे सुनने आते थे।
“लोग हिंदी और अंग्रेजी और फिल्मी गानों को गाने का अनुरोध करते थे। मैंने हिंदी सीखी और पंजाबी, बंगाली, मराठी और तमिल को अपने रेट्रो म्यूजिक में शामिल किया। टैगोर को नाइटक्लब में गाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता लेकिन मैंने यह मिथक भी तोड़ा। रविन्द्रनाथ टैगोर का ‘पुरानो सेही दीनर कोथा’ को नाइट क्लब में गाया।”
प्लेबैक की शुरुआत
ट्रिनकांस के साथ उथुप को दिल्ली में ओबेरॉय होटल में परर्फोमेंस का मौका मिला। उस समय नाइट क्लब में नवकेतन फिल्मस की टीम मौजूद थी। देव आनंद भी उस समय नाइट क्लब में मौजूद थे। उन्होंने वहीं ऊषा उथुप को फिल्मों में गाने का मौका दिया। इसके बाद उथुप के बॉलीवुड मे करियर का आगाज़ हुआ। 1970 में फिल्म ‘बॉम्बे टॉकीज’ में उन्हें गाने का मौका मिला था। 1970 और 80 के समय में ऊषा उथुप ने संगीतकार आर.डी. बर्मन और बप्पी लहरी के साथ बहुत से हिट गाने गाए। “हरि ओम हरि, दोस्तों से प्यार किया, रंबा हो-हो-हो, कोई यहां नाचे-नाचे और चा-चा” उनके कुछ प्रसिद्ध बॉलीवुड गाने हैं।
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ऊषा उथुप ने भारत की 17 अलग-अलग भाषाओं में गाने गाती हैं। इसके अलावा वह अलग-अलग 8 विदेशी भाषाओं में भी गाने गा चुकी हैं। इसमें अंग्रेजी, फ्रेंच, इटैलियन और स्हाली प्रमुख है। उन्होंने कई अफ्रीकन देशों में शो किए। उन्होंने दुनिया के बहुत देशों में लाइव स्टेज शो किए और लोगों को अपनी आवाज़ पर झूमने के लिए मजबूर किया। ऊषा उथुप के इंडियन पॉप म्यूजिक में दिए योगदान के लिए दुनियाभर में कई सम्मान अपने नाम किए हैं। भारत सरकार ने उन्हें 2011 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया। फिल्म सात खून माफ के ‘डॉर्लिंग’ गीत के लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड मिला। ‘द क्वीन ऑफ इंडियन पॉप’ के नाम इनकी बॉयोग्राफी भी छप चुकी हैं।
पांच दशक से अधिक समय तक के करियर में लगातार काम करने वाली ऊषा उथुप भारतीय संगीत का दुनिया में एक प्रसिद्ध शख्सियत हैं। उनकी गायिकी के साथ उनकी साड़ी और बिंदी एक ट्रेंड बनी। साड़ी और बिंदी के अपने स्टाइल पर बोलते हुए उन्होंने एक कार्यक्रम कहा था, “बहुत से लोग सोचते हैं कि यह एक योजना के तहत हुआ था। यह एक मार्केटिंग और पोजिशनिंग है। लेकिन उन दिनों हम सब इसके बारे में नहीं सोचते थे। लेकिन मैं कहना चाहती हूं कि मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से आती हूं। मेरी मां साड़ी पहनती हैं, मेरी बहन पहनती हैं और मेरी दादी भी पहनती थीं। मैंने स्कूल के बाद सीधे साड़ी पहनी है। यह किसी तरह के प्रभाव के लिए नहीं बस एक परिधान था। आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो ईश्वर का शुक्रिया करती हूं। थैक्स गॉड आई एम बार्न एन इंडियन एंड थैक्स गॉड फॉर साड़ी।”
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तस्वीर साभारः The Indian Express