किंकरी देवी एक दलित महिला एक्टिविस्ट और पर्यावरणविद् थीं जिन्होंने न केवल पर्यावरण के मुद्दे के प्रति जागरूकता फैलाई बल्कि सरकारी नीतियों के खिलाफ एक लंबी लड़ाई भी लड़ी। शिक्षा और विशेषाधिकारों से दूर किंकरी देवी जैसी साधारण महिला ने अस्सी के दशक में अपने राज्य में अवैध खनन के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, जनहित याचिका दायर की और ज़रूरत पड़ने पर भूख हड़ताल तक की। वर्तमान समय में जब पर्यावरण की बिगड़ती तस्वीर के प्रति सजगता और जागरूकता की बहुत आवश्यकता है उसके लिए किंकरी देवी एक सटीक उदाहरण है।
शुरुआती जीवन
किंकरी देवी का जन्म हिमाचल प्रदेश के सिरमौर ज़िले के घांटो गांव में साल 1925 में एक दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता परिवार के पालन-पोषण के लिए खेती करते थे। जातिगत पहचान और गरीबी की वजह से शिक्षा से इनकी दूरी हमेशा बनी रही। बहुत कम उम्र में उन्होंने घरेलू कामगार के तौर पर काम करना शुरू कर दिया था।
महज 14 साल की उम्र में किंकरी देवी की शादी उनके ही हमउम्र बंधुआ मज़दूर शामू राम से हो गई थी। शामू राम की मृत्यु शादी के आठ साल बाद टायफाइड से हो गई थी। 22 साल की उम्र विधवा होने के बाद परिवार को आर्थिक सहायता देने के लिए उन्होंने झाड़ू लगाने का काम करना शुरू कर दिया था। यही वह समय था जब उन्होंने पर्यावरण के बदलते स्वरूप को लेकर चिंता हुई।
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लंबे समय तक उनकी याचिका पर कोई कार्रवाई नहीं होने की वजह से उन्होंने शिमला का रूख किया। किंकरी देवी ने शिमला हाई कोर्ट के सामने जाकर भूख हड़ताल की। जब तक अदालत ने इस विषय पर संज्ञान में नहीं लिया तबतक वह 19 दिन लगातार भूख हड़ताल पर बैठी रही थी।
किंकरी देवी ने अपने आसपास के क्षेत्र में अनियंत्रित खनन की वजह से नकारात्मक प्रभाव को लेकर बेहद चिंतित थी। दरअसल, सिमरौर में चूना पत्थर खनन एक बड़ा व्यवसाय था। व्यापक उत्खनन के कारण पानी के स्रोत खराब हो गए थे, खेती की जमीन की गुणवत्ता नष्ट हो गई थी, चावल की खेती पर हानिकारक प्रभाव पड़ रहा था और वनों का आकार लगातार सीमित होता जा रहा था। खनन की वजह से होनेवाले नकुसाल के बारे में आवाज़ उठाई।
हाई कोर्ट में दायर की जनहित याचिका
धरती के बिगड़ते रूप को देखकर उन्होंने पर्यावरण के ख़िलाफ़ होनेवाले काम का विरोध करना शुरू कर दिया। अपने आसपास के लोगों को इसके बारे में जागरूक किया। एक लोकल वॉलेंटियर ग्रुप, ‘पीपल एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ के सहयोग से किंकरी देवी ने शिमला हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में 48 खदान मालिकों के खिलाफ थी जिसमें गैर जिम्मेदाराना तरीके से चूना पत्थर के खनन के आरोप थे। खनन मालिकों ने उनके सभी आरोपोंं को नकारते हुए उनपर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया गया।
लंबे समय तक किंकरी देवी की याचिका पर कोई कार्रवाई नहीं होने की वजह से उन्होंने शिमला का रूख किया। किंकरी देवी ने शिमला हाई कोर्ट के सामने जाकर भूख हड़ताल की। जब तक अदालत ने इस विषय पर संज्ञान में नहीं लिया तबतक वह 19 दिन लगातार भूख हड़ताल पर बैठी रही थीं। किंकरी देवी की हड़ताल की जीत हुई और हाई कोर्ट ने न केवल खनन पर रोक लगाई बल्कि पहाड़ों पर धमाके करने को भी बैन कर दिया था।
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साल 1995 में किंकरी देवी के योगदान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहली बार पर्यावर्णविद् के रूप में सराहा गया था। किंकरी देवी को तत्कालीन अमेरिका की फर्स्ट लेडी हिलेरी क्लिंटन ने बीजिंग में अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया था। एक निजी संगठन ने उनकी चीन की यात्रा का खर्चा उठाया था। हिलेरी क्लिंटन ने उनसे दीप प्रज्वलित और कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए कहा था।
मौत की परवाह भी नहीं की
किंकरी देवी के इस कदम के बाद से खनन मालिक उनके जान के दुश्मन बन गए थे। उनके विरोधी उन्हें जान से मारना चाहते थे लेकिन वह लगातार लड़ती रही। 1995 में खदान मालिकों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की लेकिन दोबारा फैसला किंकरी देवी के पक्ष में आया। पर्यावरण संरक्षण के आवाज़ उठाने वाली किंकरी देवी की पहचान दुनिया में हो गई थी बावजूद इसके भी वह उस समय तक भी एक स्वीपर के तौर पर ही काम करती थी।
अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंची मुहीम
साल 1995 में किंकरी देवी के योगदान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहली बार पर्यावर्णविद् के रूप में सराहा गया था। किंकरी देवी को तत्कालीन अमेरिका की फर्स्ट लेडी हिलेरी क्लिंटन ने बीजिंग में अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन में आमंत्रित किया था। एक निजी संगठन ने उनकी चीन की यात्रा का खर्चा उठाया था। हिलेरी क्लिंटन ने उनसे दीप प्रज्वलित और कार्यक्रम की शुरुआत करने के लिए कहा था। मंच पर किंकरी देवी के स्वागत में पूरा हॉल तालियों से गूंज गया था। वहां उन्होंने अवैध चूना पत्थर उत्खनन से हिमालय को कैसे खत्म किया जा रहा था और कैसे सामान्य लोगों ने उसकी रक्षा की के संघर्षों को बयां किया। किंकरी देवी को भारत सरकार की ओर से रानी लक्ष्मीबाई स्त्री शक्ति पुरस्कार, 1999 से सम्मानित किया गया था। यह पुरस्कार उन्हें 2001 तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेजी से मिला था।
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शिक्षा के महत्व की दिशा में भी किया काम
किंकरी देवी एक अशिक्षित महिला थी जो अपनी सामाजिक और आर्थिक परिस्थिति की वजह जीवनभर शिक्षा से दूर रही। शिक्षा के महत्व को जानते हुए उन्होंने शिक्षा की सब तक पहुंच की दिशा में भी काम किया। उन्होंने सानगढ़ गाँव में डिग्री कॉलेज खोलने का आंदोलन शुरू किया। साल 2006 में उनके प्रयास कामयाब हुए और कॉलेज खुल गया। किंकरी देवी समाज में सकारात्मक बदलाव की दिशा में काम करने के लिए हमेशा अग्रसर रहीं।
किंकरी देवी की मृत्यु 30 दिसंबर 2007 में चंडीगढ़ में हुई थी। किंकरी देवी, भारतीय इतिहास में वह शख़्सियत हैं जिन्होंने भारत के उस संकट को पहचाना था जो आज हमारे देश की बहुत बड़ी समस्या है। धरती के बदलते स्वरूप के लिए चिंतित किंकरी देवी ने पर्यावरण के प्रति चेतना की वह नींव रखी थी जिस पर चलना आज के समय की पहली ज़रूरत है।
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तस्वीर साभारः Himachal Pradesh General Studies
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