भारत में महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को लेकर बातों में खुलापन आज भी नहीं है। लेकिन वर्तमान से लगभग आठ दशक पहले सुलोचना डोंगरे ने इस दिशा में महत्वपूर्ण काम किया था। सुलोचना डोंगरे एक दलित नारीवादी और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने साल 1942 के समय महिलाओं के शरीर की स्वायत्ता और परिवार नियोजन की बहस को राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया था। इन्हें सुलोचनाबाई डोंगरे के नाम से भी जाना जाता है।
सुलोचना डोंगरे ने 1930-40 के दशक में महिलाओं के अधिकारों और परिवार नियोजन के समर्थन में अपनी आवाज़ मुखर तौर पर उठाई थी। वह अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन की अध्यक्ष थीं। साथ ही वह अखिल भारतीय अनुसूचित जनजाति संघ से भी जुड़ी हुई थीं। वह शुरू में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस से भी जुड़ी लेकिन संगठन में अन्य विशेषाधिकार प्राप्त जाति के लोगों के बढ़ते वर्चस्व के बाद उन्होंने अलग होने का फैसला ले लिया था।
उनका यह कदम दलित महिलाओं में चेतना पैदा करने के लिए बहुत बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ था। उस समय राष्ट्रीय महिला आंदोलन में दलित, बहुजन और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व बहुत कम था आंदोलन पूरी तरह तथाकथिक ऊंची जाति की महिलाओं के हाथ में था। साल 1937 में अखिल भारतीय महिला कांग्रेस में जाईबाई चौधरी को उनकी जाति की वजह से ही अलग बैठाकर खाना खाने के लिए कहा गया था। इसक घटना की वजह से दलित महिला आंदोलन ने और तेज़ी पकड़ी थी।
और पढ़ेंः रजनी तिलक : सफ़ल प्रयासों से दलित नारीवादी आंदोलन को दिया ‘नया आयाम’
सुलोचना डोंगरे ने 1930 और 40 का दशक में महिला के अधिकारों और परिवार नियोजन के समर्थन में अपनी आवाज़ मुखर तौर पर उठाई थी। वह अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन की अध्यक्ष थीं। साथ ही वह अखिल भारतीय अनुसूचित जनजाति संघ से भी जुड़ी हुई थी।
उनकी अध्यक्षता में ही 20 जुलाई 1942 को नागपुर में अखिल भारतीय दलित महिला सम्मेलन संपन्न हुआ था। सुलोचनाबाई डोंगरे दलित महिला फेडरेशन की प्रमुख थीं। सुलोचना डोंगरे पहली महिला नेता थीं जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बर्थ कंट्रोल तक सभी औरतों की समान पहुंच के लिए आवाज़ उठाई थी। मुख्यधारा में स्वतंत्रता के लिए लड़नेवाली किसी भी महिला संगठन ने इससे पहले इस विषय को नहीं उठाया था। डोंगरे ने 25,000 महिलाओं को इस विषय पर संबोधित किया था। उन्होंने कहा था, “जन्म नियंत्रण एक महत्वपूर्ण सवाल है। इस संबंध में शिक्षित महिलाएं सफल हो सकती हैं क्योंकि उन्हें इसकी बुराइयों का एहसास हो सकता है। माँ के स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर, अनपढ़, बीमार बच्चों की संख्या को बढ़ाना बेकार है। इस बुराई को रोकने के लिए हर महिलाओं को इस सवाल के बारे में सोचना चाहिए और जल्द ही कदम उठाना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए व्यापक स्तर पर शिक्षा की आवश्यकता है।”
डोंगरे का यह संबोधन केवल जन्म नियंत्रण तक ही सीमित नहीं था उन्होंने कई अन्य पहलूओं पर भी बात की थी। उनका मुख्य ध्यान दलित महिलाओं के हिंदुत्व से अलग उत्थान को लेकर था। शिक्षा पर बोलते हुए उनका कहना था, “शिक्षा के मामले में हम सब अभी बहुत पीछे हैं। आज की लड़की कल भविष्य में माँ बनेगी। वह वो है जो पालना हिलाती है और दुनिया को आज़ाद भी करती है। इसलिए लड़कियों को शिक्षित करना बहुत आवश्यक है। लड़कियों यह आना चाहिए कि बच्चों को कैसे बड़ा किया जाता है। यदि उसके पास शिक्षा नहीं होगी तो किसी के गुण और प्रतिभा को विकसित नहीं किया जा सकता है। हर जिले और तहसील स्थानीय बोर्ड में हर स्तर पर हमारी महिलाओं का प्रतिनिधित्व होना चाहिए। 20 विधायकों में से कई अशिक्षित है। यदि कुछ सीटों को हमारी पढ़ी-लिखी महिलाओं को दे दिया जाएं तो हमारी स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।”
और पढ़ेंः फूलन देवी : बीहड़ की एक सशक्त मिसाल
उन्होंने कहा था, “जन्म नियंत्रण एक महत्वपूर्ण सवाल है। इस संबंध में शिक्षित महिलाएं सफल हो सकती हैं क्योंकि उन्हें इसकी बुराइयों का एहसास हो सकता है। माँ के स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर, अनपढ़, बीमार बच्चों की संख्या को बढ़ाना बेकार है। इस बुराई को रोकने के लिए हर महिलाओं को इस सवाल के बारे में सोचना चाहिए और जल्द ही कदम उठाना चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए समाधान के लिए व्यापक स्तर पर शिक्षा की आवश्यकता है।”
महिलाओं के साथ यौन और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकारों के लिए आंदोलन में डॉ बी. आर. आंबेडकर ने भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। डॉ आंबेडकर महिलाओं के द्वारा चलाए आंदोलन में बहुत विश्वास रखते थे और उन्होंने दलित महिलाओं के उत्थान के लिए संघर्ष के लिए हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया। सुलोचना डोंगरे की अध्यक्षता में हुआ सम्मेलन शानदार निष्कर्ष पर पहुंचा था। जिसकी पूरे देश की दलित महिलाओं को आवश्यकता थी। इस आंदोलन में महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा हुई।
- महिलाओं को पति से तलाक देने का अधिकार को बहुविवाह के खिलाफ एक कदम के रूप में देखा गया। इस तरह की घटना पर नज़र रखने और महिलाओं के साथ अनुचित व्यवहार को खत्म करने के लिए एक कानून के रूप में इसे स्वीकार करने का संकल्प लिया गया।
- कामकाजी महिलाओं के लिए मिलों, बीडी इंडस्ट्री, नगरपालिका और रेलवे आदि में काम करने के लिए अच्छी व्यवस्थाा बनाना। महिलाओं को आकस्मिक छुट्टी का अधिकार और चोट के लिए पर्याप्त मुआवज़ा देने की मांग की।
- महिला कर्मचारियों के लिए मिल में महिला सुपरवाइजर की नियुक्ति।
- अखिल भारतीय अनुसूचित जाति महिला संघ की स्थापना की जाएं।
- सभी विधानसभा और अन्य प्रतिनिधित्व निकायों में अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए सीट आरक्षित।
- अनुसूचित जाति की महिलाओं में शिक्षा को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार को सभी के लिए प्राथमिक शिक्षा देने का कानून। साथ ही सभी प्रांतीय सरकार को अनुसूचित जाति की महिलाओं के लिए हॉस्टल और छात्रवृति की सुविधा।
- दलित नारीवादी आंदोलन पूरी तरह से डॉ आंबेडकर के विचारों की गहराई से जुड़ा हुआ था। सुलोचना डोंगरे ने उसी दिशा में काम किया। लैंगिक समानता के साथ शिक्षा, वेतन दलित महिलाओं के मुद्दों को लेकर उन्होंने महिलाओं को सजग किया। डोंगरे ने पेरियार के बाद जन्म नियंत्रण के विषय को राजनीतिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण बनाकर चर्चा की। शिक्षा की समानता को लागू करने के लिए राष्ट्र स्तर पर आह्वान किया। सुलोचना डोंगरे ने महिलाओं के शरीर की स्वायत्ता के अधिकार को पहचानकर दलित नारीवादी आंदोलन को मज़बूत किया। वह अपने विचारों से वास्तव में समय से बहुत आगे थीं। उनकी दूरदर्शिता ने दलित महिला आंदोलन को दिशा देने का महत्वपूर्ण काम किया था।
और पढ़ेंः मूल रूप से अंग्रेजी में यह लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए।