इंटरसेक्शनलजेंडर युद्ध के दौरान बलात्कार को कैसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है

युद्ध के दौरान बलात्कार को कैसे एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है

हमारा पितृसत्तात्मक समाज यह मानता है कि किसी का बलात्कार करना इंसान के सबसे पवित्र अंग और गरिमा पर हमला करना है, औरत आदमी की संपत्ति है और वह अपने शरीर से जुड़े फैसले नहीं ले सकती है। इसलिए युद्ध के दौरान महिलाओं के साथ यौन हिंसा और बलात्कार दुश्मन के गौरव पर हमला करने जैसा माना जाता है।

“युद्ध में महिलाओं के शरीर को और बलात्कार को सबसे असरदार हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना,” इससे जुड़े बहुत सारे सवाल खड़े होते हैं। जैसे कि सेना में जवानों के द्वारा कैसे महिलाओं के शरीर और उनके अलग–अलग अंगों को देखा और समझा जाता है, कैसे यह महिला द्वेष और सैन्यवाद से संबंधित है, कैसे यह प्रशिक्षण और प्रशिक्षण के सिद्धांतों को प्रभावित करता है, जो यौन हिंसा को बढ़ावा देता है और। साथ ही पूरी दुनिया में अलग–अलग संस्कृतियों और देशों ने इसको कैसे समझा, कैसे अपने फायदे के लिए नीतियां बनाई जो यौन हिंसा या बलात्कार को सही ठहराती हैं।

जैसे कि पश्चिमी सभ्यता में मानना है कि मानव शरीर में सबसे पवित्र आत्मा है और योनि औरतों की आत्मा तक पहुंचने का एक द्वार है। बलात्कार को उस संपत्ति तक पहुंचने के एक कृत्य की तरह देखा जाता है और यह औरत को एक ‘चीज़’ मे तब्दील करता है। शोध लेखकों के अनुसार जब कोई किसी महिला का बलात्कार करता है तो बलात्कार कामुकता की आक्रामक अभिव्यक्ति नहीं है, बल्कि आक्रामकता की यौन अभिव्यक्ति है। बलात्कारी यौन आग्रह पर काम नहीं करता है, बल्कि वह कामुकता का इस्तेमाल महिला पर अपनी आक्रामकता और प्रभुत्व दिखाने के तरीके के रूप में करता है।

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हमारा पितृसत्तात्मक समाज यह मानता है कि किसी का बलात्कार करना इंसान के सबसे पवित्र अंग और गरिमा पर हमला करना है। एक औरत आदमी की संपत्ति है और वह अपने शरीर से जुड़े फैसले नहीं ले सकती है। इसलिए युद्ध के दौरान महिलाओं के साथ यौन हिंसा और बलात्कार दुश्मन के गौरव पर हमला करने जैसा माना जाता है। साथ ही यह उसकी पहचान पर हमला है। इससे दुश्मन मानसिक रूप से कमज़ोर होता है, जिससे उस पर हमला करना आसान हो जाता है और उसको हराना आसान हो जाता है। सबसे खराब बात यह है कि औरतों को अपने दर्द को भी अपना कहने का अधिकार नहीं है। इससे औरतों को दोहरा दर्द सहना पड़ता है। एक तो बलात्कार का दूसरा बलात्कार के बाद औरतों को ‘पवित्र’ नहीं समझा जाता। उन्हें घर से बाहर निकाल दिया जाता है। उनका अपना परिवार उन्हें अपनाने से मना कर देता है।

हमारा पितृसत्तात्मक समाज यह मानता है कि किसी का बलात्कार करना इंसान के सबसे पवित्र अंग और गरिमा पर हमला करना है, औरत आदमी की संपत्ति है और वह अपने शरीर से जुड़े फैसले नहीं ले सकती है। इसलिए युद्ध के दौरान महिलाओं के साथ यौन हिंसा और बलात्कार दुश्मन के गौरव पर हमला करने जैसा माना जाता है।

यह एक व्यापक रूप से मान्यता है कि युद्ध के समय यौन हिंसा मानवाधिकारों का उल्लंघन है। अगर हम युद्ध के समय उपयोग किए जानेवाले हथियारों के बारे मे बात करें तो नारीवादी विचारधारा के अनुसार युद्ध में यौन हिंसा कई प्रकार से होती है। जैसे, जेंडर को एक बहुत ही जरूरी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाना, महिलाओं और लड़कियों के बलात्कार या यौन हिंसा का सामना करने से लेकर, पुरुष लड़ाकों के लिए यौन दासी होना, तथाकथित ‘पत्नी’ होने से लेकर नौकरानी की तरह जो दिन के दौरान घरेलू काम करती है और रात के दौरान यौन सेवाएं प्रदान करती है, आदि आते हैं।

युद्ध के समय औरतों के खिलाफ हिंसा में निस्संदेह अपमान और शक्ति का प्रदर्शन शामिल है, लेकिन कभी-कभी दुश्मन की पूरी नस्ल को खत्म करने के लिए महिलाओं को गर्भवती करना, उन्हें एचआईवी या एड्स से संक्रमित करना भी उपकरण के रूप में शामिल है। हमारे समाज मे एक बहुत दुर्भाग्यपूर्ण पितृसत्तात्मक विचार है कि बलात्कार पुरुषों की अनियंत्रित संभोग शक्ति के कारण होते हैं। यह इस विचारधारा पर ध्यान केंद्रित करता है कि पुरुष का स्वभाव एक प्रेशर कूकर की तरह है, वह अपने वश नहीं है और अपनी इच्छाओं से मजबूर है।

युद्ध के दौरान बलात्कार का एक हथियार के रूप में कब-कब किया गया इस्तेमाल

इन सबके बीच सबसे ताजा उदाहरण रूस द्वारा यूक्रेन की महिलाओं पर किए जा रहे यौन हमले का है। रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध के बीच यूक्रेन में रूसी सैनिकों के द्वारा यूक्रेनियन महिलाओं का बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है। द गार्डियन की रिपोर्ट के मुताबिक डॉक्टरों का कहना है कि ऑटॉप्सी की रिपोर्ट बताती है कि कई यूक्रेनियन महिलाओं को गोली मारने से पहले उनका रेप किया गया है। 3 जून तक यूएन की टीम को यूक्रेन में कथित रूप से 124 यौन हिंसा के मामले रिपोर्ट किए गए हैं।

बांगलादेश लिबरेशन वार (1971) के समय पश्चिमी पाकिस्तानी सेना ने लगभग 2,00,000 और 4,00,000 बंगाली महिलाओं को शिविरों में रखा, बार-बार उनका बलात्कार किया ताकि इस विश्वास को मजबूत किया जा सके कि पश्चिमी पाकिस्तानी प्रमुख अधिक शक्तिशाली और आबाद हैं, न कि उन बंगाली पुरुषों की तरह जो अपने लोगों की रक्षा नहीं कर सकते इसलिए वे पूर्वी पकिस्तानियों से बेहतर हैं और उन पर राज करने के लायक है। बहुत सारी महिलाओं ने आत्महत्या कर ली या फिर उन्हें घरों से बाहर निकाल दिया गया। कुछ औरतें जो गर्भवती हो गई थीं उन्हें गर्भपात करने का मौका तक नहीं मिला। बांग्लादेश में हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या को यूनाइटेड नेशन्स ने अभी तक एक नरसंहार के रूप में स्वीकार नहीं किया है। इस घटना पर 2014 में एक फिल्म ‘चिल्ड्रेन ऑफ वॉर‘ के नाम से बनाई गई थी।

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साल 1937 में जापान की आर्मी ने चीन पर आक्रमण किया और चीन की राजधानी पर कब्जा कर लिया। इसे नानचिंग नरसंहार के रूप में जाना गया। जनरल इवाना मात्सुई और प्रिंस असाका यासुहिको के आदेश पर जापानी सैनिकों और अधिकारियों ने व्यवस्थित रूप से शहर में सभी महिलाओं का बलात्कार किया। यह घटनाएं चीन के साथ-साथ दक्षिणी कोरियाई महिलाओं के साथ भी हुईं। इन औरतों को यौन दासता में धकेला गया। इन महिलाओं को कम्फर्ट वूमन के नाम से जाना जाता था। इन्हें सेना के कैंप मे रखा जाता था और जापानी जवान अपनी इच्छा के अनुसार उनका उपयोग करते थे। 20वीं शताब्दी के अंत में रवांडा, अफ्रीका और बोसनिया-हर्जेगोविना के गृहयुद्ध में बलात्कार को डराने, धमकाने, एक-दूसरे की नस्लों को खत्म करने और नरसंहार के एक व्यवस्थित उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया गया। महिलाओं को बंदी बनाकर, उनका बलात्कार करना और उनके स्तनों को काट देना युद्ध की नीतियों में शामिल थे।

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अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का क्या रहा है रुख़

साल 2013 में यूनाइटेड नेशन सिक्यूरिटी काउंसिल की मीटिंग के दौरान, ब्रिटिश विदेश सचिव विलियम हेग ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को यह समझने की ज़रूरत है कि बलात्कार एक युद्ध का हथियार है जिसका उपयोग जीवन को नष्ट करने, समुदायों को अलग करने और सैन्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए ठीक उसी तरह किया जाता है जैसे टैंक और गोलियों का इस्तेमाल किया जाता है। 

साल 2009 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर एमनेस्टी इंटरनेशनल के एक अभियान ने बलात्कार को गोलियों से सस्ता घोषित किया था। एमनेस्टी की इस बात को ध्यान मे रखते हुए, यूके के विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय में एक मंत्री, मार्क मल्लोच-ब्राउन ने जोर देकर कहा था कि बलात्कार पारंपरिक तोपखाने की तरह ही प्रभावी है, लेकिन इसे प्राप्त करना आसान और इसका उपयोग करना सस्ता है। इसे आपको मिसाइल और गोले-बारूद की तरह खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती है। युद्ध की योजना के समय कमांडर रेप को सामूहिक विनाश का सबसे सस्ता हथियार और औरतों के शरीर को एक वस्तु की तरह देखते हैं। वे बलात्कार को एक गोली की तरह और जेंडर को एक गन की तरह देखते हैं।

संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की मून ने परिषद को संबोधित करते हुए कहा था कि वह व्यक्तिगत रूप से संयुक्त राष्ट्र के कर्मचारियों द्वारा यौन शोषण या दुर्व्यवहार के खिलाफ एक शून्य-सहिष्णुता नीति की सांत्वना देते हैं। इसका मतलब यह है कि अगर यूनाइटेड नेशन के अधिकारी पर बलात्कार आरोप लगेगा तो उसके खिलाफ निष्पक्ष जांच की जाएगी। बान की मून ने परिषद को यह भी सूचित किया कि वह महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए वकालत करनेवाले शांति दूत की नियुक्ति करेंगे। सदस्य राज्यों से अधिक महिला उम्मीदवारों को आगे आने का अनुरोध करते हुए उन्होंने दुनियाभर में अधिक महिलाओं को तैनात करने का संकल्प लिया, न केवल पुलिस, सैन्य और नागरिक कर्मियों के रूप में, बल्कि मिशन नेतृत्व के उच्चतम स्तरों पर भी। मार्च 2008 में, उन्होंने एक वैश्विक अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के लिए सभी अभिव्यक्तियों से निपटना था, जिसमें सशस्त्र संघर्ष में यौन हिंसा भी शामिल है।

नारीवादी आंदोलनों का निश्चित रूप से युद्ध में महिलाओं के साथ होनेवाली हिंसा पर प्रभाव पड़ा है। इन आंदोलनों के कारण ही संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने अब महिलाओं के मुद्दों को वैश्विक मुद्दों के रूप में देखना शुरू कर दिया है। युद्ध में एक हथियार के रूप में यौन हिंसा के उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च न्यायालय के प्रस्तावों को भी पारित किया गया है।

और पढ़ें: पितृसत्तात्मक समाज को चुनौती दे रही हैं अफ़ग़ानिस्तान की ये महिलाएं


तस्वीर साभार: DW

Comments:

  1. Shweta Singh says:

    In my opinion, this one is one of the best articles you have written so far.You are great at conveying things literally.

  2. samar says:

    Liked it. This issue is taken for granted as if the world has absolved its responsibility.

  3. Asma says:

    So well written Deepa🙌🏻

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