इतिहास पार्वती गिरी: ओडिशा की ‘मदर टेरेसा’| #IndianWomenInHistory

पार्वती गिरी: ओडिशा की ‘मदर टेरेसा’| #IndianWomenInHistory

पार्वती गिरी जिनको ओडिशा की मदर टेरेसा भी कहा जाता है, एक ऐसी स्वतंत्रता सेनानी थीं जिनका ज़िक्र अकसर हमें किताबों में नहीं मिलता है।

पार्वती गिरी जिनको ओडिशा की ‘मदर टेरेसा’ भी कहा जाता है, एक ऐसी स्वतंत्रता सेनानी थीं जिनका ज़िक्र अकसर हमें किताबों में नहीं मिलता है। आज़ादी को याद करते वक्त स्वतंत्रता सेनानियों की एक सीमित छवि हमारे मीडिया द्वारा बना दी गई है। भारत की आज़ादी में पार्वती गिरी का बहुत बड़ा योगदान है, इस बात से अनजान होने  का कारण  पितृसत्तात्मक समाज की यह सोच भी है जो महिलाओं को घर के अंदर ही उपयुक्त मानती है। साथ ही इस पितृसत्तात्मक समाज में  जिन महिलाओं ने इन बेड़ियों को तोड़कर साहसी काम किए उनको आज तुलनात्मक रूप से कम ही दिखाया जाता है।

पार्वती गिरी का जन्म 19 जनवरी 1926 को ओडिशा के संबलपुर ज़िले में हुआ। उनके पिता धनंजय गिरी गांव के प्रमुख थे और चाचा रामचंद्र गिरी कांग्रेस के नेता थे। इस कारण अन्य स्वतंत्रता सेनानियों का आना-जाना घर में लगा रहता था। घर में भारत की आज़ादी को लेकर बातें होती थीं जिन्हें पार्वती सुनती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी उम्र से ही उन्होंने कांग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया और कांग्रेस की बैठकों में हिस्सा लेने लगीं। 

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जब वह बड़ी हो रहीं थीं तो आज़ादी पर चलनेवाली बहसों में उन्हें और दिलचस्पी होने लगी। पार्वती महात्मा गांधी के विचारों से बहुत प्रभावित थीं जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने महात्मा गांधी के 1942 के “भारत छोड़ो आंदोलन ” में हिस्सा लिया। वह तभी से ब्रिटिश सरकार विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो गई।  यह आंदोलन पूरे ओडिशा में पहुंचाने में बहुत बड़ा योगदान पार्वती गिरी का था और अपने जिले संबलपुर में उन्होंने घर-घर तक यह आंदोलन फैलाया।

घर में भारत की आज़ादी को लेकर बातें होती थीं जिन्हें पार्वती सुनती थीं। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी उम्र से ही उन्होंने कांग्रेस के लिए प्रचार-प्रसार करना शुरू कर दिया और कांग्रेस की बैठकों में हिस्सा लेने लगीं। 

पार्वती गिरी ने मात्र 11 साल की उम्र से ही स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना शुरू कर दिया। छोटी उम्र से ही वह संबलपुर, पदमपुर जैसे क्षेत्रों में जाकर लोगों को महात्मा गांधी के बारे में बताती थीं और उनके स्वतंत्रता संबंधी विचारों को लोगों से अवगत करवाती थीं। पार्वती गिरी का एकमात्र लक्ष्य देश की आज़ादी था। छोटी सी उम्र में ही अंग्रेज़ों ने उन्हें कई बार गिरफ्तार करने की कोशिश की लेकिन पार्वती के नाबालिग होने के कारण वह हर बार गिरफ्तारी से बच निकलती थीं। लेकिन जब वह 16 साल की थीं तब उन्हें 2 वर्ष के लिए कारावास की सजा सुनाई गई थी। मामला यह था कि पार्वती गिरी एसडीओ के ऑफिस जाकर वकीलों से अंग्रेजों का विरोध करने के लिए कहती हैं जो कि वह नहीं करते। इसके बाद वह वहां ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नारे लगाने लगती हैं जिसके कारण उन्हें 2 वर्ष के लिए जेल की सजा होती।

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पार्वती गिरी बहुत छोटी उम्र में जेल गईं और अंग्रेजों द्वारा कई बार उन पर लाठी से प्रहार भी किया गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बचपन में देश को आज़ादी दिलाने जैसे लक्ष्य में शामिल होने के कारण उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी जो कि आज़ादी के बाद उन्होंने पूरी की। साल 1950 में प्रयागराज के प्रयाग महिला विद्यापीठ से उन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी की और 1955 में वापस अपनी जन्मभूमि संबलपुर लौटी।

पार्वती गिरी उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिन्होंने आज़ादी से पहले अपना जीवन स्वतंत्रता दिलाने में लगाया और आज़ादी के बाद सामाजिक कार्यकर्ता और समाज सुधारक के तौर पर कार्य किया। देश के आज़ाद होने के बाद उनका लक्ष्य गरीबों को सहारा देना, निराश्रितों और असहाय लोगों की सेवा करना बन गया। पार्वती गिरी ने अनाथों , महिलाओं और बच्चों के लिए कस्तूरबा गांधी मातृकुंठा नामक संघ की स्थापना की। संबलपुर में उन्होंने निराश्रितों के लिए डॉक्टर संतरा बाल निकेतन की स्थापना की। पार्वती गिरी ने जेल सुधार के लिए भी आंदोलन चलाया। एक समय ऐसा भी आया जब राजनीतिक दल उनसे राज्यसभा में सीट लेने के लिए आग्रह करते हैं लेकिन वह कहती हैं, “लोकसभा व राज्यसभा जैसी चीजें मुझे प्रभावित नहीं करती हैं।” 

पार्वती गिरी उन स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं जिन्होंने आज़ादी से पहले अपना जीवन स्वतंत्रता दिलाने में लगाया और आज़ादी के बाद सामाजिक कार्यकर्ता और समाज सुधारक के तौर पर कार्य किया। देश के आज़ाद होने के बाद उनका लक्ष्य गरीबों को सहारा देना, निराश्रितों और असहाय लोगों की सेवा करना बन गया।

1955 में उन्होंने संबलपुर जिले में अमेरिकन एसोसिएशन के साथ मिलकर स्वास्थ्य एवम हाइजीन पर काम किया। गरीब बच्चों को आश्रय देने के लिए रुक्मिणी लठ बाल निकेतन खोला। उन्होंने आचार्य विनोबा भावह के भूदान आंदोलन में भी हिस्सा लिया। सामाजिक कार्यों के लिए उन्हें 1984 में डिपार्टमेंट ऑफ सोशल वेलफेयर द्वारा पुरस्कार मिला। जब ओडिशा में अकाल पड़ा तो भूख से पीड़ित लोगों को उन्होंने खाना पहुंचाया। साल 1998 में उन्हें ओडिशा के संबलपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया था। 2016 में मेगा लिफ्ट सिंचाई योजना का नाम पार्वती गिरी रखा गया। 17 अगस्त 1995 में आखिरकार उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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