जब बात बराबरी की आती है तो इस पितृसत्तात्मक समाज को महिलाओं को उनके अधिकार देने में बहुत तकलीफ़ होती है। महिलाएं आगे न बढ़ जाएं इसलिए उन्हें लगातार नज़रअंदाज़ किया जाता है। इसी नज़रअंदाज़ी के कारण ही महिलाओं को काफ़ी पीड़ा सहनी पड़ती है, ख़ासकर बात जब पीरियड्स की आती है। एक महिला को पीरियड्स के दौरान आनेवाली परेशानियों को जानते हुए भी आज पूरा समाज अनजान बना हुआ है। पीरियड्स एक ऐसा विषय बना हुआ है जिस पर लोग आज भी खुलकर बात करने में कतराते हैं। जागरूकता की कमी के कारण पीरियड्स के दौरान इन्फेक्शन के अलावा और भी गंभीर बीमारियों का ख़तरा बना रहता है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की मानें तो 57.6 फ़ीसदी भारतीय महिलाएं ही सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करती हैं। 42.4 फ़ीसदी महिलाएं अभी भी कपड़ा, राख, घास, जूट जैसी अन्य चीजों का इस्तेमाल करती हैं। बिहार में आज भी 82 फ़ीसदी और छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में 81 फ़ीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती हैं।
पीरियड्स से जुड़ी शर्म महिलाओं यहां तक कि छोटी बच्चियों की मौत का कारण भी बन जाती है। दैनिक भास्कर में छपी रिपोर्ट बताती है कि तमिलनाडु के एक स्कूल में 12 साल की लड़की की यूनिफॉर्म पर पीरियड्स के कारण खून धब्बे लग गए जिसको लेकर टीचर ने उसे डांट दिया। इसी बात से बच्ची ने डिप्रेशन में आकर बिल्डिंग से कूदकर जान दे दी। राजधानी दिल्ली भी ऐसी घटनाओं से अछूती नहीं रही हैं। दिल्ली के बुराड़ी इलाके में पांचवीं कक्षा में पढ़ रही मासूम की मौत आत्महत्या से हो गई। बड़ी बहन ने कारण बताते हुए कहा कि उसे पहली बार पीरियड्स आया था। इससे वह काफी तनाव में थी। महिलाओं की इस परेशानी को घर के मर्दों की आंखों के सामने लाने के लिए एनजीओ ‘सेल्फी विद डॉटर’ ने एक मुहिम की शुरुआत की है जिसके ज़रिए घर की महिलाओं को पीरियड्स चार्ट लगाने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है।
और पढ़ें: पीरियड्स से कैसे अलग है वजाइनल स्पॉटिंग
क्या है पीरियड्स चार्ट
पीरियड्स चार्ट एक प्रकार का कैलेंडर है जिस पर ऊपर के कॉलम में 12 महीनों के नाम होते हैं और साइड के कॉलम में महिलाओं के नाम के लिए स्पेस होता है। इस चार्ट में महिलाओं के नाम के आगे खाली कॉलम होते हैं जिनमें पीरियड्स की तारीख़ भरी जाती है ताकि पूरे सालभर की पीरियड्स की तरीखों का सही विवरण मिल सके।
इस चार्ट के दो उद्देश्य हैं, पहला-समाज में पीरियड्स को लेकर खुलकर बात करना ताकि सबको पता चले की पीरियड्स क्या है और इस समय महिलाओं का किस प्रकार ख्याल रखा जाए। दूसरा इस चार्ट का उद्देश्य है-पीरियड्स की तारीख़ में आनेवाले बदलाव की पहचान करना। अनियमित पीरियड्स की समस्या इन दिनों महिलाओं में काफ़ी ज्यादा पाई जा रही है। इसके पीछे अच्छा खान-पान और पर्याप्त आराम नहीं मिलना जैसे कई कारण शामिल हैं। इस कारण महिलाओं में पीरियड्स जल्दी या फिर देर से शुरू होते हैं। सथ ही कई महिलाओं को यूटरस में दर्द होना, स्तन, पेट, हाथ-पैर और कमर में दर्द, अधिक थकान, कब्ज, दस्त और यूटेरस में ब्लड क्लॉट्स बनने जैसी शिक़ायत सामने आती हैं। इनकी पहचान करना और इसका इलाज़ करना ही पीरियड्स चार्ट का उद्देश्य है।
और पढ़ें: पीरियड्स लीव पर क्या सोचते हैं भारतीय मर्द, चलिए जानते हैं!
पीरियड्स चार्ट की मुहिम को मेरठ में साल 2021 के अंतिम में शुरू किया गया। मेरठ में अलग-अलग स्थानों पर इस मुहिम से जुड़े पोस्टर लगवाए गए। महिलाओं से संवाद किया गया और स्कूल और कॉलेजों के माध्यम से भी छात्राओं से इस मुद्दे पर बातचीत की गई। इसकी मुहिम की शुरुआत में लगभग 250 घरों में महिलाओं को पीरियड्स चार्ट बांटे गए थे।
मुहिम की शुरुआत
इस मुहिम को ‘सेल्फी विद डॉटर’ फाउंडेशन के डायरेक्टर सुनील जागलान ने कुछ महिलाओं के साथ मिलकर शुरू किया है और इस मुद्दे को लेकर वह एक शॉर्ट फ़िल्म भी बना चुके हैं। सुनील का कहना हैं कि पीरियड्स चार्ट को लेकर वह साल 2020 से उत्तर भारत में काम कर रहे हैं। महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होनेवाली परेशानियों को देखकर उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की। वह बताते हैं, “अपने घर की महिला सदस्यों को पीरियड्स के दौरान अक्सर में परेशान देखता था, जिसके कारण मेरे मन में आया कि मुझे इनके लिए कुछ करना चाहिए। इस दौरान मैने कुछ डॉक्टरों से मुलाक़ात की और उनसे सलाह लेने के बाद मैने ‘पीरियड चार्ट’ मुहिम की शुरुआत की।”
पीरियड्स चार्ट की मुहिम को मेरठ में साल 2021 के अंतिम में शुरू किया गया। मेरठ में अलग-अलग स्थानों पर इस मुहिम से जुड़े पोस्टर लगवाए गए। महिलाओं से संवाद किया गया और स्कूल और कॉलेजों के माध्यम से भी छात्राओं से इस मुद्दे पर बातचीत की गई। इसकी मुहिम की शुरुआत में लगभग 250 घरों में महिलाओं को पीरियड्स चार्ट बांटे गए थे। चार्ट बांटने के कुछ दिन बाद जब इनकी टीम के लोगों ने उन घरों का सर्वे किया तो उन्होंने पाया कि सिर्फ़ 65 से 70 घरों में ही चार्ट हैं। ज्यादातर घरों में या तो चार्ट फाड़ दिए गए या फिर लड़कियों को चार्ट लगाने की इजाज़त ही नहीं मिली। लेकिन जिन घरों में चार्ट लगे हैं उन घरों के पुरुष अब महिलाओं की परेशानी समझ रहे हैं। वह आगे बताते हैं कि जिन महिलाओं को चार्ट दिए गए हैं उन सभी से एक साल बाद चार्ट लिए जाएंगे और पीरियड्स के दौरान तारीखों में अगर कोई गड़बड़ी आती है तो उसकी जानकारी सरकार तक भेजी जाएगी ताकि आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की मदद से ऐसी महिलाओं को इलाज मिल सके।
और पढ़ें: पीरियड्स के दौरान होनेवाला सिरदर्द कहीं पीरियड्स माइग्रेन तो नहीं?
महिलाओं का क्या कहना है
मेरठ की रुकैय्या का कहना है, “पहले घर में मैं कभी पीरियड्स पर बात नहीं कर पाती थी, लेकिन इस मुहीम के बाद से काफी मदद मिली है। घर में पीरियड्स चार्ट होने की वजह से मेरे घर में पहले ही पैड की व्यवस्था हो जाती है।” वहीं अमानिया के अनुसार, “जब मैंने अपने घर पर पीरियड्स चार्ट लगाया तो मेरे घरवालों ने पूरा सपोर्ट किया। पीरियड्स आने से पहले मेरे घर में ताक़त की चीजें फल और ड्राई फ्रूट्स वगैरह आ जाते हैं और उस दौरान कोई भी मुझसे काम के लिए नहीं कहता। मुझे इस चार्ट से बहुत फ़ायदा हुआ है।”
पीरियड्स चार्ट के बारे में छात्रा छवि जैन से जब पूछा गया कि उन्हें क्या लगता है कि इस तरह पीरियड्स के बारे में खुलकर चर्चा होनी चाहिए?” तो वह कहती हैं, “जी, पीरियड्स के बारे में ज्यादा से ज्यादा खुलकर बात होनी चाहिए क्योंकि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसके लिए कोई भी ज़िम्मेदार नहीं है। पीरियड्स को अशुद्ध या घिनौना नहीं माना जाना चाहिए। इसलिए यह एक ऐसा विषय है जिस पर खुलकर चर्चा करनी चाहिए। इसके साथ ही हमें लोगों को शिक्षित भी करना चाहिए और उन्हें उन समस्याओं से अवगत कराना चाहिए जो महिलाओं को पीरियड्स के दौरान होती हैं ताकि लोग उनकी समस्या को समझ सकें। सेल्फी विद डॉटर ने एक बहुत अच्छी पहल शुरू की है, इस पहल को प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि इससे परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों को भी पीरियड्स के बारे में जागरूक होने में मदद मिलेगी। इसके अलावा ये पहल घर की बहू बेटियों को पीरियड्स के बारे में खुलकर बोलने के लिए भी प्रेरित करेगी।”
पीरियड्स चार्ट एक प्रकार का कैलेंडर है जिस पर ऊपर के कॉलम में 12 महीनों के नाम होते हैं और साइड के कॉलम में महिलाओं के नाम के लिए स्पेस होता है। इस चार्ट में महिलाओं के नाम के आगे खाली कॉलम होते हैं जिनमें पीरियड्स की तारीख़ भरी जाती है ताकि पूरे सालभर की पीरियड्स की तरीखों का सही विवरण मिल सके।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह भी इस चार्ट को अपने घर में लगाएंगी छवि कहती हैं, “जी बिलकुल, मैं इस चार्ट को अपने घर में लगाना चाहूंगी क्योंकि ये मेरे और मेरे घरवालों के बीच पीरियड्स को लेकर एक ओपन कम्यूनिकेशन रखेगा। लेकिन हो सकता है कि मेरे घरवालों को शुरू में ये सब थोड़ा अजीब लगेगा क्योंकि वे इस विषय पर इतने खुले नहीं हैं, लेकिन मेरे द्वारा इस चार्ट को लगाने से उनके अंदर भी साहस आएगा कि वे घर की महिलाओं की पीरियड्स की तारीखों को याद रखते हुए महिलाओं का ज्यादा से ज्यादा ख्याल रखें। मुझे लगता है कि धीरे-धीरे वे भी इस दृष्टिकोण को अपनाना शुरू कर देंगे, हां, इसमें समय ज़रूर लग सकता है लेकिन यह मेरे परिवार की धारणा में बहुत ठोस बदलाव लाएगा।” वहीं, लॉ की विधार्थी फराह खान कहती हैं कि यह शुरुआत हर घर के लिए बहुत जरूरी है। हमें सचमुच इन दिनों में बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। मेरठ जैसे हमारे क्षेत्र में जहां सैनेटरी पैड का नाममात्र प्रयोग होता है, वहां सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के पीरियड्स चार्ट से जरूर बदलाव आएगा।
और पढ़ें: पीरियड्स के दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा ज़रूरी है
फीचर तस्वीर साभार: सुनील जागलान की फेसबुक वॉल से
यह लेख मोहम्मद अली द्वारा लिखा गया है जो पेशे से स्वतंत्र पत्रकार हैं। आप उन्हें ट्विटर और इंस्टाग्राम पर फॉलो कर सकते हैं।
Himachal Hindi News