दुनिया में हर महीने 1.8 बिलियन लोगों को पीरियड्स होते हैं। इनमें लाखों लड़कियां, महिलाएं, ट्रांस मेन और नॉन-बाइनरी लोग शामिल हैं जिन्हें अपने मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान पीरिड्स प्रॉडक्ट्स की ज़रूरत होती है। लेकिन बड़ी संख्या में लोग स्वस्थ और सम्मानजनक तरीके से पीरियड्स से जुड़ी ज़रूरतों को पूरा करने में असमर्थ होते हैं। लैंगिक असमानता, भेदभाव, सामाजिक धारणाएं, गरीबी, और बुनियादी सुविधाओं की पीरियड्स प्रॉडक्ट्स को उनकी पहुंच से बाहर करती है। इस दिशा में हाल ही में स्कॉटलैंड से एक सकारात्मक ख़बर सामने आई है।
बीबीसी के मुताबिक स्कॉटलैंड दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है जिसने सभी के लिए पीरियड्स प्रॉडक्ट्स को मुफ्त कर दिया है। स्कॉटलैंड में स्थानीय अधिकारियों की लीगल ड्यूटी बन गई है कि वे सभी तक आवश्यकता के अनुसार टैम्पन और सैनेटरी पैड्स की पहुंच सुनिश्चित करें। पीरियड प्रॉडक्ट्स ऐक्ट के अनुसार काउंसिल और एजुकेशन प्रोवाइडर इन प्रॉडक्ट्स को बांटेंगे। स्कॉटलैंड में पीरियड्स पॉवर्टी से संबंधित बिल 2016 में प्रस्ताव के तौर पर लाया गया था। यह कदम पीरियड्स के दौरान सम्मान, समानता के साथ निचले स्तर तक चीजों को बदलने वाला एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
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सामान्य एक महिला अपने एक मेंस्ट्रुअल साइकिल में हाइजीन के लिए इस्तेमाल करने वाले प्रॉडक्ट्स पर 20 डॉलर (लगभग 1600 भारतीय रूपये) खर्च कर देती है। इसके तहत वह अपने पूरे जीवन में 18,000 डॉलर की राशि खत्म कर देती है।
क्यों पीरियड्स प्रॉडक्ट्स मुफ्त होने चाहिए
दुनिया में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी पीरियड्स प्रॉडक्ट्स तक पहुंच नहीं है। मेंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान अगर पीरियड्स प्रॉडक्ट्स की ज़रूरत को पूरा नहीं किया जाता है तो इसका शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई पर विशेष ध्यान न देने के कारण शारीरिक बीमारियां हो जाने की संभावना रहती है। वहीं, प्रॉडक्ट्स तक पहुंच न होनेवाले तनाव की वजह से मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। पीरियड्स प्रॉडक्ट्स का मौजूद न होना लोगों के काम करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है। स्कूल, कॉलेज, सार्वजनिक शौचालयों और दफ़्तरों में पीरियड्स से जुड़ी चीजों को उपलब्ध कराकर मानसिक तनाव को खत्म किया जा सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक सामान्य तौर पर एक महिला अपने एक मेंस्ट्रुअल साइकिल में हाइजीन से जुड़े प्रॉडक्ट्स पर 20 डॉलर (लगभग 1600 भारतीय रूपये) खर्च कर देती है। इसके तहत वह अपने पूरे जीवन में 18,000 डॉलर की राशि खत्म कर देती है। मंहगे होने की वजह से पीरियड्स प्रॉडक्ट्स इस्तेमाल करने के लिए लोगों को अपने जीवन में बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है। सरकार द्वारा अगर इस बुनियादी ज़रूरत के सामान को उपलध्य कराया जाता है तो इससे लोगों की बचत बढ़ेगी जिससे वे अपने जीवन स्तर को और अधिक बेहतर बनाने के लिए खर्च कर सकते हैं। पीरियड्स की वजह से लैंगिक असमानता का सामना करनेवाले लोग अग पीरियड्स प्रॉडक्ट्स में खर्च होनेवाले पैसे को विशेषतौर पर अपने स्वास्थ्य और भोजन पर खर्च करते हैं तो यह उनकी स्थिति में बदलाव लाने का काम कर सकता है।
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सस्टेनबल मेंस्ट्रुएशन को मिल सकता है बढ़ावा
दुनियाभर में पीरियड्स प्रॉडक्ट्स तक की सबकी पहुंच न होने के साथ ही उससे पैदा होने वाला कचरा एक बड़ी समस्या है। अगर अकेले भारत की ही बात करे तो यहां हर साल 12.3 बिलियन सेनेटरी पैड्स का 113,000 टन कचरा लैंडफिल में डंप किया जाता है। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सामान्य तौर पर इस्तेमाल होनेवाले सैनेटरी पैड्स में 90 प्रतिशत प्लास्टिक होता है। रिपोर्ट के अनुसार एक सैनेटरी पैड को खत्म होने में 250-800 साल का समय तक लग सकता है। इससे अलग अगर सरकार मुफ्त पीरियड्स प्रॉडक्ट्स की सुविधा मुहैया कराती है तो वह अपनी योजनाओं के तहत इको-फ्रैंडली पीरियड्स प्रॉडक्ट्स को चलन में लाने का काम भी कर सकती है। इससे लोगों की ज़रूरतों के साथ-साथ पर्यावरण को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है।
पीरियड्स पॉवर्टी को किया जा सकता है दूर
मंहगे होने की वजह से पीरियड्स प्रॉडक्ट्स जैसे सैनेटरी पैड्स, टैम्पोन तक पहुंच न होना पीरियड्स पॉवर्टी कहलाता है। दुनिया में बड़ी संख्या में लोग इसका सामना करते हैं। विकासशील और निम्न आय वाले देशों में यह स्थिति और भी चिंता जनक है। एक अनुमान के अनुसार कम से कम 500 मिलियन लोग हर महीने पीरियड्स पॉवरी का सामना करते हैं।
भारत में पीरियड्स प्रॉडक्ट्स की कमी
वहीं भारत से जुड़े आंकड़ो की बात करें तो 355 मिलियन महिला आबादी का 36 प्रतिशत पीरियड्स के दौरान सेनेटरी टॉवल का इस्तेमाल करती हैं। टॉयबाक्स में प्रकाशित ख़बर के अनुसार भारत में 10 में से 1 लड़की अपनी 21 साल की उम्र तक सैनेटरी प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल ही नहीं कर पाती है। एक आंकलन के मुताबिक 70 प्रतिशत प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी की वजह मेंस्ट्रुएशन हाइजीन को मैंटेन न करना है। एक अन्य ख़बर के अनुसार ग्रामीण भारत में पीरियड्स पॉवरी की वजह से किशोर लड़कियों पर इसका पहला असर पड़ता है जिस वजह से उनकी शिक्षा इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होती है। एनडीटीवी.कॉम की ख़बर के अनुसार हर साल भारत में पीरियड्स शुरू होने के बाद 23 मिलियन लड़कियों का स्कूल जाना छूट जाता है।
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भारत में 10 में से 1 लड़की अपनी 21 साल की उम्र तक सेनेटरी प्रॉडक्ट्स का इस्तेमाल ही नहीं कर पाती है। एक आकलन के मुताबिक 70 प्रतिशत प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी की वजह मेंस्ट्रुएशन हाइजीन को मैंटेन न करना है।
आज भी पीरियड्स को लेकर रूढ़िवादी धारणाओं का चलन है। अगर सरकारों की ओर से पीरियड्स प्रॉडक्ट्स या इससे जुड़े मुद्दे पर कोई नीति-कानून बनकर सामने आता है तो वह इस विषय पर संवाद की एक सकारात्मक पहल है जिसकी वजह से पीरियड्स को लेकर बनी धारणाओं को खत्म करने का काम किया जाता है। इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट में प्रकाशित लेख के अनुसार नेपाल में पीरियड्स के दौरान अपवित्रत होने की धारणा की वजह से महिला को अकेले कमरे में रहने के लिए कहा जाता है। वहीं 75 प्रतिशत युगांडा की लड़कियों ने पीरियड्स के दौरान शर्म की बात कबूली है। ठीक इसी तरह 50 प्रतिशत यूके की लड़कियों ने भी पीरियड्स की वजह से शर्म होने की बात को स्वीकारी है।
पीरियड्स को लेकर शर्म और टैबू को खत्म करने के लिए सरकारें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का काम कर सकती है। सबसे पहले तो पीरियड्स के दौरान आवश्यक सामग्री को उपलब्ध कराना दूसरी ओर पीरियड्स प्रॉडक्ट्स पर लगनेवाले टैक्स में रियायत देकर समावेशी नीति के आधार पर विकास किया जा सकता है। आज भी दुनिया के अलग-अलग देशों में पीरियड्स प्रॉडक्ट्स पर 30 से 50 प्रतिशत तक टैक्स लगता है। इसके अलावा उस समावेशी सोच का भी विस्तार करने की ज़रूरत है जिसके तहत मेंस्ट्रुएशन केवल महिलाओं के अधिकार का विषय नहीं है। इसमें ट्रांस, क्वीयर, नॉन-बाइनरी समुदाय के लोग भी शामिल हैं जिनकी ज़रूरत को एड्रेस कर अन्य लोगों के बीच जागरूकता लाई जा सकती है। वर्तमान में पीरियड्स से जुड़े अधिकतर रिसर्च को केवल महिलाओं और लड़कियों तक ही सीमित किया जाता है। पीरियड्स होने वाले हर लोगों की ज़रूरतों को अगर सरकारें एड्रेस करती है और नीति बनाती है तो यह लैंगिक भेदभाव खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
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तस्वीर साभारः About Her