इतिहास मैरी रॉय के क़ानूनी संघर्ष से मिला भारतीय महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार| नारीवादी चश्मा

मैरी रॉय के क़ानूनी संघर्ष से मिला भारतीय महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार| नारीवादी चश्मा

मैरी रॉय का नाम आमतौर पर 'द मैरी रॉय केस' के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। ये वही केस था जो महिलाओं को सम्पति का अधिकार दिलवाने के लिए एक मज़बूत आधार बना।

‘बेटी तो पराया धन होती है।‘

‘लड़कियों को तो दूसरे घर जाना होता है।‘

बचपन से ही हम लड़कियों को ‘पराया धन’ और ‘दूसरे के घर की लक्ष्मी’ जैसी बातों के साथ उनकी कंडीशनिंग की जाती है। यहाँ तक की उनके पैदा होने तक को अपशकुन और दुःख की ख़बर माना जाता है। ये वो बातें है जो पितृसत्ता हमेशा से एक घातक चाल के रूप में इस्तेमाल करती है, जिससे महिलाओं को हमेशा इस विचार से भी दूर रखा जाता है कि उनका भी अपना घर और अपनी सम्पत्ति होनी चाहिए। इस कंडीशनिंग के चलते उनके दिमाग़ में इसबात को अच्छे से बैठाया जाता है कि शादी से पहले तुम पिता और शादी के बाद पति की अमानत हो, वो अमानत जिसकी अपनी कोई अमानत नहीं होती है। 

पर अब इस रिजाव में बदलाव की पहल हुई और हमारे भारतीय संविधान में ‘बेटी को सम्पत्ति में अधिकार का प्रावधान दिया गया। जैसा कि हम जानते है कि भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी प्रावधान पारित होना इतना आसान नहीं होता है और किसी भी प्रावधान को लाने के पीछे होता है एक लंबा संघर्ष। आज हम पिता की सम्पत्ति में बेटियों के अधिकार के क़ानून के बारे में तो जानते है लेकिन इस क़ानून को पास होने किस महिला ने अहम भूमिका अदा की, उनके बारे में बहुत ही सीमित लोग जानते है। वो थी – मैरी रॉय।

कौन थीं मैरी रॉय?

ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट और शिक्षाविद मैरी रॉय ने लंबे संघर्ष के बाद भारतीय महिलाओं को उनके पिता की सम्पत्ति में अधिकार दिलवाया। वह प्रसिद्ध अंग्रेज़ी लेखिका अरुंधति रॉय की मां थीं। अरुंधति ने अपनी बुकर-विनिंग किताब ‘द गॉड ऑफ़ स्मॉल थिंग्स’ में उनको मुख्य किरदार के रूप में भी रखा है। मैरी रॉय अपनी असल ज़िंदगी में भी वैसी ही थी, जैसा उनकी बेटी अपनी किताब में उल्लेख किया था। मैरी रॉय केरल की एक सीरियाई ईसाई महिला थीं। उनके पिता पीवी इसहाक इंटोमोलॉजिस्ट थे, जिन्होंने हेरोल्ड मैक्सवेल-लेफ्रॉय के तहत इंग्लैंड में प्रशिक्षण लिया था और पूसा में इंपीरियल इंटोमोलॉजिस्ट बन गए।

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द मैरी रॉय केस

मैरी रॉय का नाम आमतौर पर ‘द मैरी रॉय केस’ के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। ये वही केस था जो महिलाओं को सम्पति का अधिकार दिलवाने के लिए एक मज़बूत आधार बना। जब आज़ादी के बाद भारत की रियासतों के संघ में शामिल होने की प्रक्रिया चल ही रही थी। त्रावणकोर के निवासी बेहद ज़िद्दी थे, महाराज चिथिरा थिरुनल और वी.पी. मेनन के बीच कई दौर की बातचीत के बाद राजा ने सहमति व्यक्त की। फिर 1 जुलाई, 1949 को त्रावणकोर साम्राज्य को कोचीन साम्राज्य में मिला दिया गया था और त्रावणकोर-कोच्चि राज्य का गठन किया गया था। अब शुरूआत में भारत के क़ानून और राज्यों के क़ानून में अंतर थे, जो धीरे-धीरे कम हुए। इसी तरह का मामला था त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट का।

मैरी रॉय का नाम आमतौर पर ‘द मैरी रॉय केस’ के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। ये वही केस था जो महिलाओं को सम्पति का अधिकार दिलवाने के लिए एक मज़बूत आधार बना।

त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट के तहत, सीरियाई ईसाई समुदाय की महिलाओं को प्रॉपर्टी में विरासत का कोई अधिकार नहीं था। ऐक्ट के मुताबिक़, एक बेटी को संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं था। उसका हक़ केवल एक-चौथाई या 5,000 रुपये (दोनों में जो भी कम हो) पर होता था। इसी सक्सेशन ऐक्ट की वजह से मैरी को अपने माता-पिता की संपत्ति में बराबर अधिकार नहीं मिला तो उन्होंने अपने भाई जॉर्ज इज़ैक पर मुकदमा कर दिया। मैरी ने दलील दी कि त्रावणकोर उत्तराधिकार ऐक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1986 के फैसले में भारतीय उत्तराधिकार ऐक्ट को चुना। तब के सीजेआई पीएन भगवती और जस्टिस आरएस पाठक की पीठ ने फ़ैसला सुनाया कि अगर मृतक माता-पिता ने वसीयत नहीं छोड़ी है तो उत्तराधिकार का फैसला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत किया जाएगा। इस फ़ैसले ने सीरियाई ईसाई परिवारों में महिलाओं को संपत्ति पर बराबर अधिकार दिया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद भी मैरी रॉय की लड़ाई ख़त्म नहीं हुई और अंत में साल 2009 में स्थानीय अदालत ने उनके पक्ष में डिक्री जारी की। 

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प्रसिद्ध नारीवादी लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता व शिक्षाविद् कमला भसीन ‘दिल में बेटी विल में बेटी’ नामक अपने लेख में लिखती हैं, “किसी भी बदलाव के लिए समाज की मानसिकता बदलना ज़रूरी है और यह काम अकेले महिलाओं का नहीं है। महिलाओं के समान अधिकारों का लाभ पूरे परिवार और समाज को होता है। शोध से पता चलता है कि महिलाओं के संपत्ति पर अधिकार से परिवार में दरिद्रता की सम्भावना कम होती है और बच्चों का बेहतर भविष्य निर्माण होता है। हमें यह भी भूलना नहीं चाहिए की एक समान परिवार ही एक सुखी परिवार हो सकता है। आज पूरी दुनिया को पता है कि स्त्री-पुरुष समानता के बग़ैर परिवार, समाज और देश तरक़्क़ी नहीं कर सकते।”

एक इंटरव्यू में जब मैरी से इस पूरी क़ानूनी लड़ाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ज़वाब दिया, “मैं बहुत गुस्से में थी. मेरे पास कोई और कारण नहीं था। मैं जनता की भलाई के लिए ऐसा नहीं कर रही थी। मैं बस गुस्सा थी कि मुझे अपने पिता के घर से निकाला जा रहा है क्योंकि इसमें मेरा हिस्सा नहीं है।”

ऐसे में महिलाओं का आर्थिक रूप से मज़बूत होना एक बेहद ज़रूरी आधार बन जाता है,जो बिना सम्पति के खोखला है। ऐसे में भारतीय संविधान में महिलाओं का सम्पति का अधिकार, भारत की महिला अधिकार की लड़ाई में मील का पत्थर है, जिसका पूरा श्रेय जाता है मैरी रॉय को। लेकिन एक इंटरव्यू में जब मैरी से इस पूरी क़ानूनी लड़ाई के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ज़वाब दिया, “मैं बहुत गुस्से में थी. मेरे पास कोई और कारण नहीं था। मैं जनता की भलाई के लिए ऐसा नहीं कर रही थी। मैं बस गुस्सा थी कि मुझे अपने पिता के घर से निकाला जा रहा है क्योंकि इसमें मेरा हिस्सा नहीं है।”

बीते एक सितंबर को मैरी रॉय का 89 वर्ष में निधन हो गया। मैरी ने भले ही इस लंबी क़ानूनी लड़ाई को सामाजिक बदलाव या महिला अधिकारों की लड़ाई समझकर नहीं लड़ा, लेकिन उनकी इस पहल ने आज भारत की हर महिलाओं को अपने आत्म, खुद की अमानत होने का एक मजबूर आधार दिया है, जिसकी हक़दार वो उस घर में जहां उसने जन्म लिया है।

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तस्वीर साभार : madhyamam.com

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