समाजकानून और नीति जानें, क्या होता है निजी रक्षा का अधिकार और कैसे कर सकते हैं इसका इस्तेमाल

जानें, क्या होता है निजी रक्षा का अधिकार और कैसे कर सकते हैं इसका इस्तेमाल

भारतीय दंड संहिता ने हर व्यक्ति को शरीर और संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार दिया है। शरीर किसी का अपना शरीर हो सकता है या किसी अन्य व्यक्ति का शरीर हो सकता है और इसी तरह संपत्ति चल या अचल हो सकती है और खुद या किसी अन्य व्यक्ति की हो सकती है।

भारतीय दंड संहिता ने हर व्यक्ति को शरीर और संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार दिया है। शरीर के अंतर्गत किसा का अपना शरीर हो सकता है या किसी अन्य व्यक्ति का शरीर हो सकता है। इसी तरह संपत्ति चल या अचल हो सकती है और खुद या किसी अन्य व्यक्ति की हो सकती है। निजी प्रतिरक्षा यानी प्राइवेट डिफेंस का अधिकार किसी के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की सुरक्षा का एक ज़रूरी पहलू है। राज्य नागरिकों की हर गतिविधि को नहीं देख सकता है। ऐसी स्थिति हो सकती है जिसमें राज्य किसी व्यक्ति की जब उसके जीवन या संपत्ति खतरे में हो तुरंत मदद नहीं कर सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता में निजी रक्षा का अधिकार दिया गया है।

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निजी प्रतिरक्षा का कानून दो अलग-अलग सिद्धांतों पर आधारित है:

  • हर किसी को अपने शरीर और संपत्ति और दूसरे के शरीर और संपत्ति की निजी प्रतिरक्षा का अधिकार है।
  • निजी बचाव का अधिकार उन मामलों पर लागू नहीं होता जहां आरोपी खुद एक आक्रामक पक्ष है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 व्यक्ति और संपत्ति की निजी रक्षा के अधिकार से संबंधित कानून बताती है। इन धाराओं में निहित प्रावधान किसी व्यक्ति को अपने शरीर और संपत्ति के साथ-साथ दूसरे के शरीर और संपत्ति की रक्षा के उद्देश्य से हमलावर या गलत करनेवाले के ख़िलाफ़ उस स्थिति में आवश्यक बल का इस्तेमाल करने का अधिकार देते हैं, जब राज्य मशीनरी से तत्काल सहायता उपलब्ध नहीं होती है। ऐसा करने पर वह व्यक्ति अपने किये गए कार्य के लिए कानून में सजा का हक़दार भी नहीं है। 

भारतीय दंड संहिता की धारा 96 के अनुसार, कोई काम अपराध नहीं है, जो प्राइवेट प्रतिरक्षा के अधिकार के इस्तेमाल के लिए किया जाता है। वहीं, भारतीय दंड संहिता की धारा 97 के अनुसार, धारा 99 में शामिल प्रावधानों के तहत हर व्यक्ति को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं:

  • मानव शरीर पर प्रभाव डालने वाले किसी अपराध से अपने या किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर की प्रतिरक्षा करना
  • अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की, चल-अचल संपत्ति की प्रतिरक्षा करना चोरी, डकैती या आपराधिक अतिचार की परिभाषा में आनेवाले अपराध या चोरी, लूट, कुचेष्टा या आपराधिक अतिचार करने की कोशिश से।

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भारतीय दंड संहिता की धारा 96 से 106 व्यक्ति और संपत्ति की निजी रक्षा के अधिकार से संबंधित कानून बताती है। इन धाराओं में निहित प्रावधान किसी व्यक्ति को अपने शरीर और संपत्ति के साथ-साथ दूसरे के शरीर और संपत्ति की रक्षा के उद्देश्य से हमलावर या गलत करनेवाले के ख़िलाफ़ उस स्थिति में आवश्यक बल का इस्तेमाल करने का अधिकार देते हैं, जब राज्य मशीनरी से तत्काल सहायता उपलब्ध नहीं होती है। ऐसा करने पर वह व्यक्ति अपने किये गए कार्य के लिए कानून में सजा का हक़दार भी नहीं है। 

महिलाओं को उपलब्ध अधिकार 

निजी प्रतिरक्षा का अधिकार किसी के भी शरीर और संपत्ति के बचाव के अधिकार के लिए उपयोग किया जा सकता है। भारतीय परिपेक्ष्य में कोई भी महिला अपने शरीर, अपने गौरव या संपत्ति को बचाने के लिए इस अधिकार का उपयोग कर सकती है। अगर किसी महिला के शरीर को नुकसान पहुंचने की संभावना है या किसी हमले से उसके शरीर या संपत्ति या गौरव को हानि पहुंच रही है तो तो वह अपने आप को बचाने के लिए हमलावर के साथ हिंसा का भी प्रयोग कर सकती है। ऐसा भी हो सकता है कि उस हिंसा से हमलावर को अधिक क्षति पहुंची हो या फिर उसकी मृत्यु हो गई हो।

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निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के उपयोग की सीमा 

अब सवाल यह उठता है कि महिलाओं द्वारा निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का किस सीमा तक और कब प्रयोग किया जाना चाहिए? इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने योगेंद्र मोरारजी बनाम गुजरात राज्य के वाद में स्पष्ट रूप से निजी रक्षा के अधिकार के सिद्धांतों को स्पष्ट किया था। साथ ही यह भी बताया कि इसका किस हद तक उपयोग किया जाना चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि निजी रक्षा का अधिकार शरीर के लिए खतरे की उचित आशंका पैदा होते ही उपलब्ध होता है, और किसी भी स्थिति में इस अधिकार का विस्तार आवश्यकता से अधिक नुकसान पहुंचाने तक नहीं होता है।

यह अधिकार वास्तविक या संभावित हमलावर की हत्या तक विस्तारित होता है, यह अधिकार तब भी प्रयोग किया जा सकता है जब दंड संहिता की धारा 100 के छह खंडों में उल्लिखित किसी भी अपराध की उचित और आसन्न आशंका थी। इस प्रकार यह अधिकार पीड़ित महिला द्वारा या उनके किसी संबंधी या साथी द्वारा बलात्कार, बलात्कार करने के इरादे से हमला, उत्पीड़न, पीछा, अपहरण, तेज़ाब फेंकने का अंदेशा या कोशिश आदि अपराधों के विरूद्ध भी उपयोग में लाया जा सकता है। 

दंड संहिता की धारा 100 का खंड 3 “बलात्कार करने के इरादे से हमला” की बात करता है। ऐसे में अगर यह पर्याप्त सबूत है कि बलात्कार करने के इरादे से हमला किया गया था और पीड़ित आरोपी अपने निजी बचाव की सीमा के भीतर था तो यह माना जाना चाहिए कि आरोपी इस प्रकार के किसी भी अपराध का दोषी नहीं था। एक माँ द्वारा अपने बलात्कारी पति की हत्या करना जो पिछले कई सालों से अपनी बेटी का बलात्कार कर रहा था और घटना के दिन भी वह बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था उसके निजी प्रतिरक्षा के अधिकार में आता है।

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निजी प्रतिरक्षा का अधिकार किसी के भी शरीर और संपत्ति के बचाव के अधिकार के लिए उपयोग किया जा सकता है। भारतीय परिपेक्ष्य में कोई भी महिला अपने शरीर, अपने गौरव या संपत्ति को बचाने के लिए इस अधिकार का उपयोग कर सकती है।

ज़रूरी नहीं कि पीड़ित को गंभीर चोट लगे 

यह अधिकार सामान्य सिद्धांत पर टिका है कि जहां किसी अपराध को बलपूर्वक करने का प्रयास किया जाता है, उस बल को आत्मरक्षा में पीछे हटाना वैध है। ऐसे में यह कहना कि पीड़ित आरोपी (जिसने निजी प्रतिरक्षा का उपयोग किया है) बल प्रयोग के अधिकार का दावा तभी कर सकता है जब उसे आक्रामक और गलत तरीके से किए गए हमले से गंभीर चोट लगी हो, एक ग़लतफहमी है। उपरोक्त धारा में निहित कानून यह नहीं कहता कि पहले पीड़ित आरोपी को चोट लगे उसके बाद वह इस कानून का उपयोग करे। निजी प्रतिरक्षा का अधिकार गैरकानूनी आक्रमण से सुरक्षा के लिए उपलब्ध है, न कि हमलावर (पीड़ित आरोपी) को उसके द्वारा किए गए अपराध के लिए दंडित करने के लिए। यह एक निवारक और दंडात्मक अधिकार नहीं है।

स्वयं की सहायता करना किसी भी इंसान का पहला कर्तव्य है। हर देश के नागरिकों में आत्मरक्षा के अधिकार को बढ़ावा दिया गया है और दिया जाना भी चाहिए। इससे बाहरी सहायता के इंतज़ार में पीड़ित खुद को नुकसान पहुंचाने से बचा सकता है। कानून की हर प्रणाली में इस अधिकार को मान्यता दी जाती है और इसकी सीमा नागरिकों के जीवन और संपत्ति की रक्षा के लिए राज्य की क्षमता से अलग होती है।

व्यक्तियों के जीवन और संपत्ति की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है, लेकिन कोई भी राज्य, चाहे उसके संसाधन कितने भी बड़े क्यों न हों, देश में हर नागरिक के बचाव के लिए एक पुलिसकर्मी की प्रतिनियुक्ति नहीं कर सकता। परिणामस्वरूप, राज्य द्वारा देश के प्रत्येक नागरिक को अपनी सुरक्षा के लिए कानून अपने हाथ में लेने का यह अधिकार दिया गया है।

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स्रोत:

1- Lawpedia

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