इंटरसेक्शनल गर्भावस्था, आत्महत्या और एचआईवी जैसी वजहों से सबसे अधिक जान गंवाती हैं सेक्स वर्कर्स

गर्भावस्था, आत्महत्या और एचआईवी जैसी वजहों से सबसे अधिक जान गंवाती हैं सेक्स वर्कर्स

सेक्स वर्कर्स की मर्डर से मौत की दर 16.7 प्रतिशत है। भारत में एचआईवी/एड्स से होने वाली मौत की प्रतिशता दुनिया में दूसरी सबसे अधिक 20.5 फीसदी है। दुर्घटनाओं की वजह से महिला सेक्स वर्कस की मौत की वजह भी भारत की दुनिया में सबसे अधिक 7.6 प्रतिशत है। सेक्स वर्कर्स से जुड़े डेटा को इकठ्ठा करने के लिए अध्ययन में कम्यूनिटी नॉलेज अप्रोच का इस्तेमाल किया है। 

सेक्स वर्क के पेशे में शामिल महिलाओं की स्थिति बहुत ही दयनीय है। आज भी सेक्स वर्कर्स हाशिये पर जीवन जीने के लिए मज़बूर हैं। इस पेशे से जुड़ी महिलाओं तक सामाजिक तिरस्कार के चलते सार्वजनिक सेवाओं की सुगम पहुंच उन तक नहीं हो पाती है। इस बात की तस्दीक अलग-अलग देशों में सेक्स वर्कर्स की स्थिति पर हुई एक स्टडी बता रही है। इस अध्ययन के अनुसार बड़ी संख्या में सेक्स वर्कर्स की मौत की वजह मातृत्व के दौरान मौत, एचआईवी और आत्महत्या को बताया गया है।

मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित इस स्टडी में सेक्स वर्कर्स के स्वास्थ्य और मौत की वजह से संबंधित जानकारियां शामिल हैं। अध्ययन में निम्न और मध्यम आय वाले 8 देशों के 24 शहरों को शामिल किया गया। इसमें ब्राजील, अंगोला, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया, भारत, केन्या, नाइजीरिया और कांगो शामिल थे।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर सेक्स वर्कर्स की मृत्यु दर से जुड़ा इस तरह का अध्ययन शायद ही इससे पहले कोई मौजूद हो जिसमें उनसे जुड़े इस तरह के पहलूओं का विश्लेषण किया गया हो। इसमें महिला सेक्स वर्कर्स को होनेवाली बीमारियों की संख्या और उनकी मौत के कारणों का ज़िक्र किया गया है। अमूमन महिला सेक्स वर्कर्स के स्वास्थ्य के संदर्भ में एचआईवी तक चर्चा सीमित रहती है। लेकिन इस अध्ययन में महिला सेक्स वर्कर्स के जीवन को खतरे में पहुंचाने वाले अन्य कारकों को सामने लाया गया है।

उदाहरण के लिए कुछ अफ्रीकी देशों में लगभग 55 फीसद महिला सेक्स वर्कर्स एचआईवी से संक्रमित हैं जबकि केन्या में 17 फीसदी में दिल से संबंधित बीमारी पाई गई। दुनिया में बड़ी संख्या में महिला सेक्स वर्कस शारीरिक यौन हिंसा का सामना करती हैं। हेपटाइटिस जैसी अन्य बीमारियों के साथ-साथ महिला सेक्स वर्कर्स में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी भी परेशानियां भी बढ़ी हैं। दुनियाभर में महिला सेक्स वर्कर्स में आत्महत्या से मौत के मामले भी बड़े स्तर पर दर्ज किए गए हैं। कोविड-19 ने इन परेशानियों को और बढ़ा दिया है। 

इस अध्ययन में आठ देशों की महिला सेक्स वर्कर्स की मौत की वजह के आंकड़ों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष निकाला गया है। साल 2012 से लेकर 2019 के बीच होने वाली मृत्यों का डेटा पेश किया है। अध्ययन के अनुसार आधे से अधिक मृत्यु 2019 में (58.4 प्रतिशत) दर्ज की गई। साल 2018 में 24.1 फीसद और 2014 से 2017 में 17.5 फीसदी दर्ज की गई। रिपोर्ट में तय डेटा हर देश से 2019 के अलग-अलग महीनों में इकट्ठा किया गया। कोविड-19 के कारण सेक्स वर्कर्स के काम और स्वास्थ्य दोंनो पर बहुत बुरा असर पड़ा है।  

सेक्स वर्कर्स की मौत की वजहों में मातृत्व मृत्यु दर और मातृत्व आत्महत्या की दर 62.5 प्रतिशत देखी गई है। मर्डर से होने वाली मौत की दर 12.5 फीसदी, एचआईवी एड्स 7.4 फीसद, गैर-मातृत्व आत्महत्या 5.4 फीसदी, अन्य कारण में दिल से संबंधित बीमारी और अज्ञात कारण 4.1 फीसद, दुर्घटना 3.2 फीसदी, टीबी से 2.7 फीसदी, ओवर डोज से 1.5 फीसदी और कैंसर से .7 फीसदी मौतें हुई हैं।  

सेक्स वर्कर्स की मौत की वजहों की सबसे बड़ी वजह मातृत्व मृत्यु में अबॉर्शन सामने आई है। मातृत्व मृत्यु में दूसरी वजह आत्महत्या से होनेवाली मौत है। सेक्स वर्कर्स में मातृत्व मृत्यु की दर सबसे अधिक अफ्रीकी देशों में पाई गई। गर्भावस्था से अलग सेक्स वर्कर्स की मौत की दूसरी बड़ी वजह अध्ययन में मर्डर सामने आई है। सेक्स वर्कर के मर्डर की सबसे ज्यादा संख्या केन्या में हुई। एचआईवी/एड्स की वजह से तीसरे सबसे ज्यादा मौत की वजह बताई गई है। इंडोनेशिया और भारत जैसे देशों में एचआईवी/एड्स सेक्स वर्कर्स की मौत की सबसे बड़ी वजहों में से एक है।

सेक्स वर्कर्स की आत्महत्या से मौत होने की दर भारत में सबसे अधिक दर्ज की गई है। भारत में 11.4 फीसदी मौत सुसाइड से हुई। देश में सेक्स वर्कर्स की मैटरनल डेथ की दर 32.6 दर्ज की गई है। सेक्स वर्कर्स की मर्डर से मौत की दर 16.7 प्रतिशत है। भारत में एचआईवी/एड्स से होने वाली मौत की प्रतिशता दुनिया में दूसरी सबसे अधिक 20.5 फीसदी है।

भारत से संबंधित आंकड़े

भारत में सेक्स वर्क गै़र कानूनी नहीं है। हालांकि कोठे की व्यवस्था और दलालों के काम को अवैध माना गया है। लैसेंट के इस अध्ययन में भारत के बैंगलोर, चेन्नई, सेलम, नासिक, हैदराबाद, वारंगल, गुडीबांधा शहरों को शामिल किया गया। सेक्स वर्कर्स की आत्महत्या से मौत होने की दर भारत में 11.4 फीसदी दर्ज की गई। देश में सेक्स वर्कर्स की मैटरनल डेथ की दर 32.6 दर्ज की गई है। सेक्स वर्कर्स की मर्डर से मौत की दर 16.7 प्रतिशत है। भारत में एचआईवी/एड्स से होने वाली मौत की दर दुनिया में दूसरी सबसे अधिक 20.5 फीसदी है। दुर्घटनाओं की वजह से भी महिला सेक्स वर्कस सबसे अधिक भारत में (7.6%) जान गंवाती हैं।

क्यों सुविधाओं का सेक्स वर्कर्स के जीवन में बना है अभाव

सेक्स वर्कर्स की मौत की वजह से जुड़े अध्ययन में उनके जान गंवानी की बड़ी वजहों में मातृ मृत्यु, मानसिक स्वास्थ्य, स्वास्थ्य, हिंसा, सुसाइड से मौत, एचआईवी, अबार्शन शामिल हैं। सर्वोदय समिति महिला संगठन, राजस्थान की सुल्तान बेगम से जब हमने सेक्स वर्कर्स तक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के बारे में बात की तो उन्होंने बताया, “हमारी सोसाइटी में सेक्स वर्कर होना ही एक बहुत बुरी बात है। उसके काम की वजह से उसे बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। अगर उनकी पहचान सामने आ जाती है तो चीजें उनकी पहुंच से बहुत दूर हो जाती हैं। सेक्स वर्कर ही नहीं उनके परिवार तक को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। हमारे क्षेत्र में एक सेक्स वर्कर के बेटे की पत्नी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होने की वजह यह थी कि उसकी सास एक सेक्स वर्कर थी। समय पर सही इलाज और टीके न लगने की वजह से गर्भवती सेक्स वर्कर की जान जाने का खतरा बना रहता है। सरकारी और प्राइवेट अस्पताल तक पहुंच न होने की वजह से कई बार घर में डिलीवरी तक होती है। घर में डिलीवरी की वजह से जान तक गंवानी पड़ती है और जान बच जाती है तो कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। भले ही कितनी ही बड़ी रिपोर्ट आ रही हो, फैसले आ रहे हो लेकिन सेक्स वर्कर के लिए जो नज़रिया है वह नहीं बदला है। उन्हें और उनके काम को गलत मानकर उन्हें अपमानित किया जाता है। उनके साथ भेदभाव किया जाता है। इन सब बातों का असर उनके मन पर भी पड़ता है।” 

वह आगे कहती हैं, “रोटी की चिंता सेक्स वर्कर्स को इस काम में लाती है और उसके बाद समाज में जिस तरह से उसके साथ बुरा बर्ताव होता है, जिस तरह की कमियों के साथ वह जीवन जीती हैं उससे उनकी चिंताएं बढ़ती है। किसी से खुलकर बात नहीं कर पाती है और आखिर में आकर आत्महत्या जैसे कदम उठा लेती है। मेडिकल में दवाई लेने जाती हैं तो स्टाफ़ गलत व्यवहार करता है। छेड़खानी करता है। गर्भवती होने पर भी उनसे सेक्स करने के लिए कहा जाता है। ये सब बातें सेक्स वर्कर के मानसिक स्वास्थ्य के नुकसान पहुंचाती है। उनके पास सहयोग नहीं होता है और भविष्य की चिंता के कारण सेक्स वर्कर आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लेती हैं।”   

जर्नल के अनुसार सेक्स वर्कर्स में मानसिक बीमारी की वजह हिंसा, शराब, क्लाइंट के साथ कंडोम के गलत इस्तेमाल और एचआईवी पॉजिटिव होने का डर और एसआईटी संक्रमण जैसी बाते हैं। साथ ही निम्न-मध्य आय वाले देशों में सेक्स वर्कर्स को लेकर बनी सामाजिक धारणाएं और उनके साथ अलग-थलग वाला व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

अदृश्य जीवन जीने पर मजबूर

महिला सेक्स वर्कर्स, दुनिया के सबसे कमज़ोर तबके में शामिल हैं। बात जब भारत में सेक्स वर्कर्स की करें तो यहां जेंडर के साथ-साथ जाति, वर्ग, धर्म आदि पहचान भी मायने रखती है। उन्हें जेंडर के साथ-साथ इन आधारों पर भी हाशिये पर धकेला जाता है। उन्हें कई तरह की हिंसा का सामना करना पड़ता है। सामाजिक तिरस्कार और शर्म की वजह से सार्वजनिक सुविधाओं तक उनकी पहुंच सीमित बनी रहती है। पीएलओएस मेडिसिन जर्नल के अनुसार निम्न और मध्यम आय वाले देशों में महिला सेक्स वर्कर्स के बीच मानसिक स्वास्थ्य एक बड़ी समस्या है। जर्नल के अनुसार सेक्स वर्कर्स में मानसिक बीमारी की वजह हिंसा, शराब, क्लाइंट के साथ कंडोम के गलत इस्तेमाल और एचआईवी पॉजिटिव होने का डर और एसआईटी संक्रमण जैसी बाते हैं।

साथ ही निम्न-मध्य आय वाले देशों में सेक्स वर्कर्स को लेकर बनी सामाजिक धारणाएं और उनके साथ अलग-थलग वाला व्यवहार उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। हफपोस्ट में प्रकाशित एक डेटा के अनुसार विश्व में 45 से 75 फीसदी सेक्स वर्कर्स का अपने काम के दौरान यौन हिंसा होने की संभावना बनी रहती है। साल में 32 से 55 फीसदी यौन हिंसा होने की संभावना बनी रहती है।  

सर्वोदय समिति महिला संगठन, राजस्थान की सुल्तान बेगम से जब हमने सेक्स वर्कर्स तक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच के बारे में बात की तो उन्होंने बताया, “हमारे क्षेत्र में एक सेक्स वर्कर के बेटे की पत्नी को स्वास्थ्य सुविधाएं मिलने में देरी होने की वजह यह थी कि उसकी सास एक सेक्स वर्कर थी। समय पर सही इलाज और टीके न लगने की वजह से गर्भवती सेक्स वर्कर की जान जाने का खतरा बना रहता है। सरकारी और प्राइवेट अस्पताल तक पहुंच न होने की वजह से कई बार घर में डिलीवरी तक होती है। घर में डिलीवरी की वजह से जान तक गंवानी पड़ती है और जान बच जाती है तो कई तरह की बीमारियां हो जाती हैं। भले ही कितनी ही बड़ी रिपोर्ट आ रही हो, फैसले आ रहे हो लेकिन सेक्स वर्कर के लिए जो नज़रिया है वह नहीं बदला है।”

भारत में सेक्स वर्कर के स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अनुभव पर इंटरनैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट में प्रकाशित लेख में कहा है कि भारत में सेक्स वर्कर्स अदृश्य और दयनीय जिंदगी जीने पर मज़बूर हैं। जब एक गर्भवती सेक्स वर्कर डिलीवरी के लिए अस्पताल जाती है तो अस्पताल में उसे सबसे कम प्राथमिकता दी जाती है भले ही स्थिति कितनी ही इमरजेंसी वाली ही क्यों न हो। पीपल्स आरकॉइव ऑफ रूरल इंडिया में प्रकाशित लेख के अनुसार अस्पताल में एचआईवी टेस्ट कराते समय सेक्स वर्कर्स को वहां के मेल स्टॉफ के बुरे व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इलाज के दौरान वह उनके शरीर को गलत तरीके से छूते हैं, दवाई दिलवाने और इलाज करवाने के बदले में सेक्स तक की मांग करते हैं। इसके अलावा यदि अस्पताल के कर्मचारी को यह पता लग जाता है कि वह सेक्स वर्कर के तौर पर काम करती है तो उन्हें अपमानित भी किया जाता है। 

सेक्स वर्क से जुड़े होने की वजह से इस पेशे के लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। सेक्स वर्कर के साथ यौन हिंसा और उनका स्वास्थ्य को लेकर चिंताएं उनके मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर डालती है। सेक्स वर्कर के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा पर कई अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रिपोर्ट जारी हो चुकी है बावजूद इसके उनके ख़िलाफ़ होने वाले अपराध पर ज्यादा कार्रवाई नहीं है। सेक्स वर्कर्स पुलिस के दमन और अभ्रदता का सामना करती हैं। भारत में यह समस्या सबसे आम है। सेक्स वर्कर्स को उनके पेशे की वजह से पुलिस उनके साथ दुर्व्यवहार करती है। न्याय और सुविधाओं तक उनकी पहुंच का रास्ता उनके लिए बहुत जटिल और लंबा हो जाता है।

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