संस्कृतिसिनेमा आशा पारेखः दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने जा रही अदाकारा के फिल्मी सफ़र पर एक नज़र

आशा पारेखः दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित होने जा रही अदाकारा के फिल्मी सफ़र पर एक नज़र

वह एक अभिनेत्री के साथ-साथ एक निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी सिनेमा में योगदान दे चुकी हैं। अपनी अदाकारी के चलते उस दौर में आशा पारेख बहुत ही लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक थीं। यही नहीं वह अपने समय में फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री भी मानी जाती हैं।

भारतीय सिनेमा के साठ और सत्तर के दशक की बेहद सफल अभिनेत्री आशा पारेख किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं। उन्होंने अपने फिल्मी करियर में एक से एक यादगार फिल्में की हैं। वह एक अभिनेत्री के साथ-साथ निर्माता और निर्देशक के तौर पर भी सिनेमा में योगदान दे चुकी हैं। अपने अभिनय के चलते उस दौर में आशा पारेख सबसे लोकप्रिय अभिनेत्रियों में से एक थीं। यही नहीं वह अपने समय में फिल्मों के लिए सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री भी मानी जाती हैं। सिनेमा जगत में एक शानदार करियर और तमाम उपलब्धियां हासिल करने वाली आशा पारेख को साल 2022 के दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित करने का एलान हुआ है। 

बचपन से ही की अभिनय की शुरुआत

आशा पारेख का जन्म 2 अक्टूबर 1942 में एक गुजराती परिवार में महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता बच्चूभाई पारेख अहमदाबाद, गुजरात के रहने वाले थे। उनकी माँ का नाम सुधा उर्फ़ सलमा पारेख था। बहुत छोटी सी उम्र में आशा ने शास्त्रीय नृत्य सीखना शुरू कर दिया था। जल्द ही उन्हें कई शिक्षकों से नृत्य सीखने का मौका मिला जिसमें पंडित बंशीलाल भारती का नाम भी शामिल हैं। 

तस्वीर साभारः Her Zindagi

आशा पारेख ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बचपन में ही कर दी थी। दरअसल डांस की वजह से ही आशा को फिल्मों में एंट्री मिली। उस दौर के मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय ने बेबी आशा की एक डांस परफोर्मेंस देखी जिसके बाद उन्होंने अपनी फिल्म ‘माँ’ (1952) में उन्हें अभिनय करने का मौका दिया। इसके बाद उन्होंने दोबारा 1954 में ‘बाप-बेटी’ में भी बिमल राय के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक बाल कलाकार के तौर पर कई फिल्में की। हालांकि स्कूली पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक ले लिया था। 

पहले ब्रेक और रिजेक्शन का सामना

बतौर नायिका काम करने के लिए उन्होंने दोबारा फिल्मों में काम करना शुरू किया। उस समय विजय भट्ट की फिल्म ‘गूंज उठी शहनाई’ में उन्हें चुना गया था। लेकिन दो दिन की शूटिंग के बाद विजय भट्ट ने उन्हें फिल्म से हटा दिया और कहा कि उनमें स्टार वाली खूबी नहीं है। कुछ दिनों बाद फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी की फिल्म ‘दिल देके देखो’ में शम्मी कपूर के साथ उन्होंने अभिनेत्री के तौर पर काम किया। इस फिल्म को निर्देशित नासिर हुसैन ने किया था। यह फिल्म रिलीज के बाद बहुत बड़ी हिट साबित हुई। इसके बाद आशा का फिल्मी करियर एक के बाद एक पायदान आगे बढ़ता रहा। 

नासिर हुसैन की लगभग छह फिल्मों में उन्होंने काम किया। जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वो ही दिल लाया हूं (1963), तीसरी मंजिल (1966), बहारों के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969), और कारवां (1971) में काम किया। इसके अलावा उन्होंने नासिर हुसैन की फिल्म मंजिल-मंजिल (1984) में कैमियो रोल किया। आशा पारेख की पहचान इंडस्ट्री में एक ग्लैमरस हीरोइन और एक बेहतरीन डांसर के तौर पर बन गई थी। लेकिन उसके बाद उन्होंने कुछ ऐसी फिल्मों में अभिनय किया जहां से उनकी पहचान एक गंभीर अभिनेत्री के तौर पर बन गई।

मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय ने बेबी आशा की एक डांस परफोर्मेंस देखी जिसके बाद उन्होंने अपनी फिल्म ‘माँ’ (1952) में उन्हें अभिनय करने का मौका दिया। इसके बाद उन्होंने दोबारा 1954 में ‘बाप-बेटी’ में भी बिमल राय के साथ काम किया। इसके बाद उन्होंने एक के बाद एक बाल कलाकार के तौर पर कई फिल्में की। हालांकि स्कूली पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने कुछ समय के लिए फिल्मों से ब्रेक ले लिया था। 

तस्वीर साभारः Rediff.com

राज खोसला द्वारा निर्देशित ‘दो बदन’ (1966), ‘चिराग’ (1969), और ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी फिल्मों में काम किया। ‘मैं तुलसी तेरे आंगन’ की मराठी उपन्यास ‘आसी तुझी प्रीत’ पर आधारित थी। इस फिल्म में नूतन, विजय आनंद और विनोद खन्ना भी थे। यह फिल्म अपने समय की सबसे हिट फिल्मों में से एक मानी जाती है। इस फिल्म के रोल के लिए आशा पारेख फिल्म फेयर के बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के तौर पर नॉमिनेट की गई थीं।

इसके बाद उन्होंने ‘पगला कहीं का’ (1970) और ‘कटी पतंग’ (1970) जैसी ड्रामा फिल्मों में काम किया। फिल्म ‘कटी पतंग’ की संजीदा भूमिका ने उनके करियर को एक नए आयाम पर पहुंचा दिया था। यह फिल्म आशा की छवि गंभीर अभिनेत्री वाली बनाती है जो हर तरह के अभिनय में कुशल हैं। चंचल और चुलबली किरदारों से अलग ये फिल्में आशा पारेख के करियर में मील का पत्थर साबित हुई। आशा पारेख ने उस दौर के हर निर्देशक के साथ काम किया। इसमें विजय आनंद, ऋषिकेश मुखर्जी, एस.एस. वासन और मोहन सहगल जैसे नाम भी शामिल हैं।

1952 में बतौर बाल कलाकार करियर शुरू करने वाली आशा की अभिनेत्री के रूप में आखिरी फिल्म ‘आंदोलन’ (1995) रही। अपने करियर में आशा 80 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी हैं। उनकी काफी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रही। आशा पारेख की कुछ अन्य फिल्मों में हम हिंदुस्तानी, घूंघट, घराना, भरोसा, लव इन टोक्यो, राखी, उपकार, शिकार, हीरा, नया रास्ता, मेरा गाँव मेरा देश, कारवां, नादान जैसे नाम शामिल हैं। 

गैर-हिंदी भाषी फिल्मों में भी किया काम

आशा पारेख के अभिनय को किसी एक भाषा तक सीमित नहीं किया जा सकता है। उन्होंने हिंदी के अन्य भाषा पंजाबी, गुजराती, कन्नड में भी काम किया है। उन्होंने अपनी मातृ भाषा गुजराती मे तीन फिल्मों में काम किया। उसमें साल 1963 में रिलीज ‘अखंड सौभाग्यवती’ एक बड़ी हिट साबित हुई। इसके अलावा उन्होंने कुछ पंजाबी फिल्मों में भी काम किया है। आशा पारेख ने एक कन्नड़ फिल्म में भी काम किया। हिंदी फिल्मों में आशा ने देव आनंद, शम्मी कपूर, राजेश खन्ना जैसे अभिनेताओं के साथ ज्यादा काम किया है।

क्विंट में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक आशा पारेख, शम्मी कपूर को अपना गुरु मानती थीं। उन्होंने उनसे बहुत कुछ सीखा था। उनके अनुसार डांस से लेकर सिनेमा की अन्य कई विधाओं को समझने में शम्मी कपूर ने उनकी बहुत मदद की है। शम्मी कपूर और आशा पारेख की डांस केमेस्ट्री पर्दे पर बहुत पसंद की जाती थी। 

फिल्म के एक दृश्य में शम्मी कपूर के साथ आशा पारेख, तस्वीर साभारः Rediff.com

निर्देशक के तौर पर भी किया काम

फिल्मों में कई तरह की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने टीवी पर निर्देशक के तौर पर भी काम किया हैं। आशा पारेख ने कई टीवी सीरियल निर्देशित किए। 1990 में गुजराती में सीरियल ‘ज्योति’ का निर्देशन। यहीं नहीं उन्होंने एक प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई और कई अन्य सीरियल का निर्माण किया। इसमें ‘पलाश के फूल’, ‘बाजे पायल’, ‘कोरा कागज़’ और कॉमेडी सीरियल ‘दाल में काला’ भी शामिल है।

आशा पारेख ने फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी कई संस्थाओं में महत्वपूर्ण पदों पर रहकर भी काम किया है। वह 1994 से 2000 तक सिने आर्टिस्ट एसोशिएशन की निर्देशक भी रह चुकी हैं। आशा पारेख सेंटर बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेट (सेंसर बोर्ड) की 1998 से 2001 तक अध्यक्ष भी रह चुकी हैं। आशा ने इस पर बिना किसी वेतन के काम करने का फैसला किया था। फिल्मों के सर्टिफिकेशन के मामले में आशा पारेख ने काफी आलोचनाओं का भी सामना किया था। कुछ फिल्मों को पास करने और न करने को लेकर उन्होंने कई तरह के विरोध का सामना किया था। साल 2017 में उन्होंने ‘द हिट गर्ल’ के नाम से अपनी आत्मकथा भी रिलीज की थी। जिसे उन्होंने सह लेखक खालिद मोहम्मद के साथ मिलकर लिखा था। यही नहीं सिने और टेलीविजन आर्टिस्ट एसोशिएशन में भी आशा पारेख ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

फिल्मों में कई तरह की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने टीवी पर निर्देशक के तौर पर भी काम किया हैं। आशा पारेख ने कई टीवी सीरियल निर्देशित किए। 1990 में गुजराती में सीरियल ‘ज्योति’ बनाया। यहीं नहीं उन्होंने एक प्रोडक्शन कंपनी भी बनाई और कई अन्य सीरियल का निर्माण किया।

सिनेमा जगत का सर्वोच्च सम्मान

आशा पारेख अपने अभिनय और फिल्मों के लिए इंडस्ट्री में जानी जाती हैं। उन्होंने अपने करियर में सिनेमा की कई विधाओं में योगदान दिया हैं। आशा पारेख फिल्मों में अपने काम के लिए कई पुरस्कार और सम्मान भी अपने नाम कर चुकी हैं। साल 1992 में अभिनय जगत में योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा था। साल 2002 में फिल्मों में योगदान के लिए फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।

तस्वीर साभारः Filmfare.com

इसके बाद उन्होंने लगातार लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार मिलें। साल 2004 में कलाकार अवार्ड, 2006 में इंटरनैशनल इंडियन फिल्म एकेडमी अवार्ड, पुणे इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल अवार्ड (2007), से नवाज़ा गया। आशा पारेख को फिक्की की ओर से लिविंग लेजेंड अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। साल 2019 में बिमल राय मैमोरियल लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी मिला। फिल्मों और अभिनय कौशल में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए आशा पारेख को दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा रहा है।


संदर्भः

  1. Wikipedia
  2. The Quint

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