हमारे देश की सरकार आए दिन सशक्त बेटी, समृद्ध बिहार, बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ, जैसे नारे लगाकर बड़े जोर-शोर से देश में लैंगिक असमानता को चुनौती देने के लिए योजनाएं शुरू कर रही है। लेकिन जब ऐसे एक कार्यक्रम में एक लड़की पीरियड्स पोवर्टी जैसे मुद्दे पर सवाल करती है तो सरकारी प्रशासन की नीयत और योजनाओं की पोल साफ खुल जाती है। बड़े-बड़े बजट की योजनाओं का धरातल पर क्रियान्वयन शून्य नज़र आता है। सरकार के बड़े प्रचार तंत्र की विफलता भी साफ दिखती है। सरकारी योजना होने के बावजूद अधिकारियों तक को इसकी जानकारी नहीं है। आखिर में सरकारी अधिकारी इस सवाल के जवाब में एक बेतुका बयान देकर जनता को ‘मुफ्त की चीज़ें’ मांगने वाला ठहराती नज़र आती हैं।
इकनॉमिक्स टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़ महिला एवं बाल विकास निगम द्वारा यूनिसेफ, प्लान इंटरनेशनल व सेव द चिल्ड्रेन नामक संस्था के साथ सशक्त बेटी, समृद्ध बिहारः टुवार्ड्स इनहांसिंग द वैल्यू ऑफ गर्ल चाइल्ड विषय पर एक वर्कशॉप आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में एक लड़की सवाल करती है कि क्या सरकार 20-30 रुपए का सैनेटरी पैड नहीं दे सकती? जिसके जवाब में आईएएस अधिकारी हरजोत कौर कहती हैं कि इस मांग का कोई अंत है? कल को जींस पैंट भी दे सकते हैं, परसों सुंदर जूते भी दे सकते हैं, अंत में जब परिवार नियोजन की बात आएगी तो निरोध भी मुफ्त में देना पडे़गा।
तमाम आलोचनाओं के बाद आईएएस अधिकारी ने अपने बयान पर मांफी ली है। लेकिन एक अधिकारी का सैनेटरी पैड्स से लेकर वोट और जनता की बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे पर को उनका यह जवाब उनके अहंकार, अज्ञानता और पितृसत्तात्मक सोच को दिखाता है।
जब लड़की सरकार की ज़िम्मेदारी और वोट के अधिकार के बारे में कहती है तो अधिकारी कहती हैं, “बेवकूफी की इंतहा है। पाकिस्तान चली जाओ। तुम वोट पैसे और योजनाओं के लिए देते हो।” यह जवाब था बिहार सरकार की महिला एवं बाल विकास निगम की हेड आईएएस अधिकारी हरजौत कौर बम्हरा का। मुफ्त सैनेटरी पैड की मांग के अलावा छात्राओं की ओर से स्कूल में शौचालय के टूटे दरवाजे और लोगों द्वारा ताक-झांक के सवाल पर उन्होंने कहा, “क्या तुम्हारे घर में अलग से शौचालय है? हर जगह अलग से बहुत कुछ मांगोगी तो कैसे चलेगा।”
तमाम आलोचनाओं के बाद आईएएस अधिकारी ने अपने बयान पर मांफी ली है। लेकिन एक अधिकारी का सैनेटरी पैड्स से लेकर वोट और जनता की बुनियादी सुविधाओं के मुद्दे पर को उनका यह जवाब उनके अहंकार, अज्ञानता और पितृसत्तात्मक सोच को दिखाता है। हरजोत कौर के जवाब का एक अर्थ यह भी निकलता है कि लड़कियों को चुप रहना चाहिए और जो मिल रहा है उसमें संतुष्टि करनी चाहिए। दूसरी ओर एक अहम पद पर मौजूद अधिकारी का ऐसा गैर-ज़िम्मेदाराना रवैया इस सोच को मज़बूत करता दिखता है जिसमें आला अधिकारियों द्वारा गरीब जनता को बोझ समझा जाता है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार बिहार में केवल 58.8 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीन रख पाती हैं।
मुख्यमंत्री किशोरी स्वास्थ्य योजना के तहत 300 रुपये का प्रावधान
बिहार में पीरियड्स में स्वास्थ्य, स्वच्छता और लड़कियों में स्कूल ड्रॉप आउट को कम करने के लिए किशोरी स्वास्थ्य योजना के तहत वर्तमान में 300 रुपये देने का प्रावधान है। यह योजना साल 2015 में शुरू की गई थी। राज्य में माध्यमिक और उच्च माध्यमिक विद्यालयों की छात्राओं को के बैंक खातों में राशि उपलब्ध कराने की योजना है। बिहार सरकार की वेबसाइट्स के अनुसार कक्षा 7 से 12 तक की लड़कियां इस योजना की लाभार्थी हो सकती हैं। इस घटना के बाद सवाल यह भी उठता है कि अगर सरकार द्वारा मौजूदा समय में सैनेटरी पैड्स से जुड़ी योजना है तो इसकी जानकारी उस बच्ची को क्यों नहीं है और इसका उसे लाभ क्यों नहीं मिला है। आईएएस अधिकारी ने योजना होने का पक्ष क्यों सामने नहीं रखा। उन्हें खुद भी इस योजना की जानकारी क्यों नहीं थी।
बिहार में सबसे ज्यादा महिलाएं सैनटरी प्रोडक्ट्स से हैं दूर
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार बिहार में मेंस्ट्रुएशन हाइजीन बेहद कम है। सर्वे के अनुसार बिहार में केवल 58.8 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीन रख पाती हैं। सर्वे में यह भी बताया गया है कि इसमें से केवल 56 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं और 74.7 फीसदी शहरी महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के तरीकों का इस्तेमाल कर पाती हैं। गांवों में आज भी महिलाओं में पीरियड्स के दौरान कपड़े के इस्तेमाल का चलन ज्यादा है।
क्यों भारत में पीरियड्स के मुद्दे पर खुलकर बात करनी बहुत आवश्यक है
पीरियड्स भारत में एक शर्म का विषय माना जाता है। पीरियड्स शुरू होने के बाद कई तरह की पाबंदियां लगा दी जाती हैं। भारत में लगभग 23 मिलियन लड़कियां स्कूल में मेंस्ट्रुएअल हाइजीन की सुविधाओं की कमी की वजह से स्कूल जाना छोड़ देती हैं। 2021 की टॉयबॉक्स, यूके की एक संस्था की स्टडी के मुताबिक भारत में 21 साल से कम उम्र की 10 में से 1 लड़की सैनेटरी पैड्स का खर्च नहीं उठा पाती है। सैनेटरी पैड्स की कमी की वजह से उन्हें अस्वच्छ विकल्पों का इस्तेमाल करना पड़ता है। रिपोर्ट के अनुसार 70 फीसदी यौन प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई नहीं रखने की वजह से होती है।
पीरियड्स के दौरान अन्य विकल्प चुनने की वजह के सामाजिक और आर्थिक दोंनो कारक बहुत महत्वपूर्ण हैं। यही वजह की ग्रामीण, छोटे शहरों और सामाजिक-आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से आने वाले लोगों को पीरियड्स के दौरान असुविधाओं का ज्यादा सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर वास्तविकता यह है कि आज भी पीरियड्स जैसे विषय पर लोगों की संकीर्ण सोच बनी हुई है। भारत जैसे देश में स्कूल जाने वाली छात्रा का मंच पर सरकारी अधिकारी से सैनेटरी पैड्स की मांग करना उसकी महत्वता को दिखाता है। भले ही देश में पीरियड्स और यौन प्रजनन स्वास्थ्य के मुद्दे पर इस तरह से खुलकर बात न होने का चलन हो।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5) के अनुसार बिहार में मेंस्ट्रुएशन हाइजीन बेहद कम है। सर्वे के अनुसार बिहार में केवल 58.8 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान हाइजीन रख पाती हैं। सर्वे में यह भी बताया गया है कि इसमें से केवल 56 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं और 74.7 फीसदी शहरी महिलाएं ही पीरियड्स के दौरान स्वच्छता के तरीकों का इस्तेमाल कर पाती हैं।
आज जहां दुनिया के कई देशों में सैनेटरी पैड्स समेत अन्य ज़रूरी मेंस्ट्रुअल प्रोडक्ट्स को बिल्कुल मुफ्त कर दिया है वहां एक सरकारी अधिकारी का यह व्यवहार हमें बहुत पीछे ले जाता दिखता है। भारत में भी त्रिपुरा सरकार की स्कूली छात्राओं के लिए फ्री सैनेटरी पैड्स देने की योजना है। एक सरकार और उसके अधिकारियों का पहला काम है कि वे देश के लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने वाली योजनाओं का निर्माण करें। इन योजनाओं को ज़रूरतमंदों तक पहुंचाना सुनिश्चित करें। एक लोकतंत्र और कल्याणकारी राज्य में ऐसी योजनाएं लोगों का बुनियादी अधिकार हैं।