इतिहास उषा खन्ना: 17 साल की उम्र में संगीत निर्देशक बन दी थी, इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में दख़ल

उषा खन्ना: 17 साल की उम्र में संगीत निर्देशक बन दी थी, इस पुरुष प्रधान क्षेत्र में दख़ल

ऐसा नहीं है कि संगीत निर्देशन में कभी किसी महिला ने काम किया ही नहीं। उषा खन्ना संगीत निर्देशन जैसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से सर्वाधिक सफल संगीत निर्देशकों में से एक रही हैं।

आज बहुत सारी औरतें बॉलीवुड में फिल्मों का निर्माण, निर्देशन और संपादन कर रही हैं लेकिन संगीत निर्देशन अभी एक पुरुष वर्चस्व वाला क्षेत्र बना हुआ है। कुछ विशेषज्ञों का ऐसा कहना है कि यह इसलिए हो रहा है क्योंकि बहुत सी लड़कियां संगीत निर्देशन करना ही नहीं चाहती हैं। अगर वे बॉलीवुड में करियर बनाना चाहती हैं तो केवल अभिनेत्री के रूप में। इस बात में पता नहीं कितनी सच्चाई है कि संगीत निर्देशन में महिलाओं के न होने की वजह सिर्फ उनका इस क्षेत्र के प्रति दिलचस्पी न होना है। इस क्षेत्र में पुरुषों के मुकाबले उन्हें मिलनेवाले अवसरों में कितनी समानता है इस मुद्दे की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता।

लेकिन ऐसा नहीं है कि संगीत निर्देशन में कभी किसी महिला ने काम किया ही नहीं। उषा खन्ना संगीत निर्देशन जैसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से सर्वाधिक सफल संगीत निर्देशकों में से एक रही हैं। उषा, जद्दन बाई और सरस्वती देवी के बाद हिंदी फिल्म उद्योग की तीसरी महिला संगीत निर्देशक हैं, लेकिन निर्विवाद रूप से इन्होंने सबसे लंबी पारी का लुत्फ उठाया है।

उषा का जन्म 7 अक्टूबर 1941 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर ज़िले में हुआ था। उनके पिता मनोहर खन्ना एक शास्त्रीय गायक थे, और ग्वालियर राज्य के जल विभाग में कार्यरत थे। संगीत के प्रति प्रेम पैदा करने का श्रेय उषा अपने पिता को देती हैं। गीतकार इन्दीवर (श्यामलाल बाबू राय) उषा के पिता के मित्र थे। इस माहौल में पली बढ़ी उषा, छोटी उम्र से ही मुखड़ा लिखा और गाया करतीं थीं। 

उषा ने न केवल हिंदी फिल्मों के लिए बल्कि मलयालम फिल्मों के लिए भी गीतों की रचना की है। 17 साल की उम्र में संगीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत करनेवाली उषा ने तमिल, तेलुगु, गुजराती जैसी क्षेत्रीय फिल्म सहित लगभग 250 फिल्में की हैं। इन्दीवर ने उषा को सशधर मुखर्जी से मिलवाया लेकिन उषा का गाना सुनकर सशधर मुखर्जी का कहना था कि उन्होंने लता या आशा जैसा अच्छा नहीं गाया।  

ऐसा नहीं है कि संगीत निर्देशन में कभी किसी महिला ने काम किया ही नहीं। उषा खन्ना संगीत निर्देशन जैसे पुरुष प्रधान क्षेत्र में व्यावसायिक रूप से सर्वाधिक सफल संगीत निर्देशकों में से एक रही हैं।

बाद में इन्दीवर ने सशधर मुखर्जी बताया कि उषा ने जो गाना सुनाया है उसे उन्होंने खुद बनाया है। इसके बाद सशधर ने उषा को एक मुखड़ा दिया और गाना बनाने को कहा। उषा ने तुरंत गाना बनाकर सुनाया, जिसके बाद सशधर ने उन्हें रोज़ दो गाने बनाने को कहा। इस घटना के कुछ ही महीनों बाद, उन्होंने अपनी फिल्म ‘दिल देके देखो‘ में उषा को बतौर संगीत निर्माता साइन किया। इस फिल्म में शम्मी कपूर और आशा पारेख ने अभिनय किया था। साल 1959 में आई यह फिल्म उषा के साथ-साथ आशा की भी पहली फिल्म थी। इस फिल्म के कुछ गाने बेहद लोकप्रिय हुए लेकिन इसके बावजूद उन्हें कुछ सालों तक काम नहीं मिला और उन्हें घर पर बैठना पड़ा।

पुरुष प्रधान संगीत क्षेत्र में उषा उस दौर की अकेली महिला संगीत निर्माता थीं। कई हिट गाने बनाने के बाद भी उन्हें संगीत निर्देशन के क्षेत्र में अपना स्थान बनाने के लिए ख़ासा संघर्ष करना पड़ा। 1964 में आई फिल्म ‘शबनम’ उषा के कैरियर में दूसरी महत्वपूर्ण टर्निंग प्वाइंट साबित हुई। उन्होंने लाल बंगला, एक सपेरा एक लुटेरा जैसी कई बी और सी ग्रेड के फिल्मों में भी अपने गाने दिए। इस विषय में उनका कहना था कि अगर वह फिल्म इंडस्ट्री में बने रहना चाहतीं थीं तो उन्हें लगातार काम करना ही था। उनका मानना था कि उनके लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कोई फिल्म किस बैनर के तले बनी है, क्योंकि फिल्मों को तो कैटेगरी में लोगों ने बांटा है। उनके लिए केवल यह ज़रूरी था कि छोटे बजट की फिल्मों के ज़रिए ही सही पर उनका काम लोगों तक पहुंचता रहे। इन्हीं छोटे बजट की फिल्मों में उनके गाने हिट रहे और उनके काम को पहचान मिली। गायिका बनने की चाह रखने वाली उषा ने संगीत निर्देशन में आने के बाद बतौर गायिका भी कुछ गाने गाएं।

सावन कुमार की फिल्मों में उन्होंने कई अच्छे गाने दिए। 1979 में आई केजे येसुदास की फिल्म ‘दादा’ के गीत ‘दिल के टुकड़े टुकड़े’ के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार। वहीं, 1983 में आई हिट फिल्म ‘सौतन’ के गीतों की रचना के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया। अगर तुम ना होते, शायद मेरी शादी का, छोड़ों कल की बातें, और जिंदगी प्यार का गीत है इत्यादि उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध गानों में शामिल हैं। 1990 के दशक के मध्य तक एक संगीतकार के रूप में वह काफी सक्रिय थीं। बतौर संगीतकार उनकी आखिरी फिल्म 2003 में रिलीज हुई ‘दिल परदेसी हो गया’ थी।

उषा ने अक्सर नये गायकों को मौका दिया, जिसमें अनुपमा देशपांडे , मोहम्मद अजीज़, पंकज उदास और सोनू निगम सहित कई अन्य चर्चित नाम शामिल हैं, आगे चलकर इनमें से कई उल्लेखनीय गायक बने। जब उन्हें कई लोगों का करियर बनाने का श्रेय दिया गया तब उनका कहना था कि, उनका करियर भी किसी ने बनाया ही था इसलिए वह वही चुका रही हैं।


स्रोत:

1-The Hindu
2-Wikipedia
3-The Times of India

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