‘सत्ता’ शब्द के बारे में हम सभी अक्सर सुनते है और कई बार इस महसूस भी करते हैं। लेकिन आमतौर पर जब हम सत्ता कहते है तो इसे राजनीति से ही जोड़कर देखा जाता है। पर वास्तव में सत्ता के मायने और इसके प्रभाव राजनीति से इतर उस राजनीति से भी है जो हमारे समाज की हवा में घुला है, जिसे हम जाति, वर्ग, शिक्षा, उम्र, संपर्क, काम, ओहदे और जेंडर जैसे ढ़ेरों रंगों में देखते है और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में दो-चार होते है। वैसे तो सत्ता का सही और ग़लत दोनों तरीक़े से ही इस्तेमाल किया जाता है पर दुर्भाग्य से सत्ता का ग़लत इस्तेमाल ही अधिक देखने को मिलता है। पर इसके इस्तेमाल के साथ-साथ एक सच्चाई ये भी है कि इस दुनिया का कोई भी इंसान इस सत्ता से अछूता नहीं है। इसके रूप-स्वरूप में बदलाव परिस्थिति के अनुसार हो सकता है, लेकिन ये होती सभी जिंदगियों में है।
सत्ता की चर्चा के बीच जब हम समता और समानता की बात करते है तो ऐसे में सत्ता को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि जब तक हमें सत्ता और इसके रूप के बारे में जानकारी नहीं होगी तब तक हम इसे चुनौती नहीं दे सकते है। तो आइए आज इस लेख के माध्यम से समझते है सत्ता के रंग और इसके स्वरूप को –
हमारे समाज में सत्ता तीन जगहों पर मुख्य रूप से काम करती है:
सार्वजनिक – यानी की जो सबके लिए है (सरकार, सेना, पुलिस, न्यायपालिका, विभाग, पंचायत व अन्य की सत्ता के रूप में।
निजी – जिसका ताल्लुक़ निजी जीवन से हो (परिवार, वंश, जातिगत समूह, दोस्ती व अन्य रिश्ते)।
अपने अंदर – जिन्हें हम अपनी सत्ता मानते है या जिसे अपने अंदर न होने का अभाव महसूस करते है (आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, अपने शरीर पर अपना नियंत्रण होने या न होने व अन्य पहलुओं में)।
अब इन अलग-अलग जगहों पर दिखायी देने वाली सत्ता के रूप अलग-अलग है, जिन्हें हम मुख्य रूप से इसप्रकार बाँटते है –
प्रत्यक्ष सत्ता
ये सत्ता सार्वजनिक और निजी दोनों जगहों में काम करती है और निश्चित करती है कि फ़ैसले लेने में कौन भाग लेता है और किसे बाहर रखा जाता है। जैसे – सरकार यह फ़ैसला करती है कि देश के विकास की प्राथमिकताएँ क्या होनी चाहिए या ग्राम परिषद के बजट को कैसे खर्च किया जाएगा। प्रत्यक्ष सत्ता राजनीतिक नेताओं (वो निर्वाचित हो या न हो), पुलिस, सेना और न्यायपालिका के पास होती है। यह बड़ी कम्पनियों के उच्च अधिकारियों, कुलों और ज़नजातियों के मुखियाओं, ट्रेड यूनियनों या ग़ैर सरकारी संगठनों और महिला संगठनों जैसे सामाजिक आंदोलन के संगठनो के प्रमुखों के पास भी होती है। निजी (प्राइवेट) क्षेत्र में यह परिवार, घरानों व कुल जैसे अनौपचारिक सामाजिक समूहों के मुखियाओं के पास होती है, जो कि ज़्यादातर पुरुष होते है। जैसे – घर में अगर पैसों की तंगी है तो स्कूल कौन जाएगा इसका फ़ैसला घर का पुरुष सदस्य ही करता है, पंचायत में हमेशा मुख्य फ़ैसले प्रधान ही लेते है। ये सभी प्रत्यक्ष सत्ता के जीवंत उदाहरण है।
सत्ता को चुनौती इसकी पहचान के बिना अधूरी है, इसलिए पहले सत्ता के रंग पहचानिए और फिर इसे चुनौती देने की रणनीति तैयार कीजिए।
अप्रत्यक्ष सत्ता
इसे छिपी हुई सत्ता के नाम से भी जाना जाता है। ये सत्ता बिना किसी स्वाभाविक या सरकारी अधिकार के पर्दे के पीछे से, चीजों को कौन निर्धारित या प्रभावित करता है और तय करता है। या सत्ता, कौन से मुद्दों को संबोधित किया जा सकता है, किसकी आवाज़ सुनी जाएगी या किसी ख़ास मुद्दे पर किससे विचार-विमर्श किया जाएगा, इन सब बातों पर असर डालती है। ग़ौरतलब है कि छिपी सत्ता, निजी और सार्वजनिक दोनों जगहों में पाई जाती है। जैसे – सार्वजनिक क्षेत्र में, छिपी सत्ता को हम तब काम करते हुए देखते है जब निजी कम्पनियाँ अपना मुनाफ़ा बढ़ाने के लिए या जंगल, ज़मीन या खनिज जैसे सार्वजनिक संसाधनों पर कंट्रोल पाने के लिए सरकार के फ़ैसलों को अपने पक्ष में कर लेती है। या अगर किसी पंचायत में मुखिया पिछड़ी जाति से है तो गाँव का कोई धनी या ऊँची जाति का व्यक्ति पंचायत का सदस्य न होते हुए भी फ़ैसलों को अपने पक्ष में कर सकता है। परिवारों के अंदर भी हम देखते है कि ‘अच्छी औरतें’ वे हैं जो पितृसत्तात्मक व्यवस्था को पूरी लगन से निभाती है। पुरुषों के ख़ास अधिकारों की रक्षा करती हैं। वे अक्सर किसी भी औपचारिक अधिकार के बिना पर्दे के पीछे से फ़ैसला लेने वाले पुरुषों को प्रभावित करने के लिए सत्ता का इस्तेमाल करती है या घर में जिन महिलाओं की बात आदमी सुनते हैं वे फ़ैसलों को बदलवाने के लिए अपनी ताक़त का इस्तेमाल करती है।
अदृश्य सत्ता
इसे एजेंडा निर्धारित सत्ता भी कहा जाता है। कई मायनों में ये सबसे घातक सत्ता है, क्योंकि इसे चुनौती देना या इसका सामना करना सबसे मुश्किल है, क्योंकि हम शायद ही कभी इसे अपने ऊपर काम करते देखते है। फिर भी इसमें लोगों की आत्मछवि, आत्मसम्मान, सामाजिक नज़रिए और पूर्वाग्रहों को आकार देने की क्षमता है, वो भी सामने आए बिना। मीडिया और मार्केटिंग इस तरह की ही अदृश्य सत्ता का उदाहरण है। जैसे – टीवी पर रोज़ दिखाए जाने वाले समाचार हमारे अंदर ये विश्वास पैदा करते है कि दिन की सबसे ख़ास घटना है क्योंकि उसे बार-बार पूरे प्रभावों के साथ दिखाया जाता है। लेकिन वे किसको अनदेखा करते है और किसी खबर नहीं देते वो भी ख़ास पहलू है। ठीक इसी तरह से, विज्ञापन भी हमारो धारणाओं को बनाने और ज़रूरत को पैदा करने में अहम भूमिका अदा करते है। जैसे – महिलाओं के लिए गोरी स्किन और पतली काया की इच्छा क़रीब पूरी दुनिया में होती है, क्योंकि टीवी और अख़बार में यही दिखाया जाता है कि औरत को ‘सुंदर’ और गोरा होना चाहिए। इससे हम सोचते है कि अगर हम गोरे नहीं है तो सुंदर नहीं है और हमें कोई भी महत्व नहीं देगा, ये अदृश्य सत्ता का ही परिणाम है।
अपनी ज़िंदगी में दबाव बनाने वाली सत्ता को हम धीरे-धीर पहचान सकते है और इसे कैसे और कब चुनौती देना है ये फ़ैसला ले सकते है। हमेशा ये याद रखें कि सत्ता को चुनौती इसकी पहचान के बिना अधूरी है, इसलिए पहले सत्ता के रंग पहचानिए और फिर इसे चुनौती देने की रणनीति तैयार कीजिए।