इतिहास फ़ातिमा आलम अली उर्दू की वह लेखिका जिनके बारे में मुख्य धारा मीडिया में बहुत कम लिखा गया #IndianWomenInHistory

फ़ातिमा आलम अली उर्दू की वह लेखिका जिनके बारे में मुख्य धारा मीडिया में बहुत कम लिखा गया #IndianWomenInHistory

फ़ातिमा के पेन-पोर्ट्रेट कई समकालीन हैदराबादी लेखकों का ध्यान आकर्षित करते हैं जो कि चित्र लेखक और विद्वान आगा हैदर हसन के एक पुराने अलीगढ़ कनेक्शन, उनके पिता के प्रिय मित्र, और विद्वान हबीब उर-रहमान जैसे लोगों के जीवन के प्रकाशकों को जीवित करता है।

हम भारत के जिस महान इतिहास के बारे में बात करते हैं उसमें हमने महिला लेखिकाओं को किस स्थान पर रखा हैं और स्मृति के गलियारों में उन्हें क्या स्थान दिया गया है, महिला लेखिकाओं की रचनाओं का दस्तावेजीकरण किस तरह से किया है इस विषय पर बात होनी बहुत आवश्यक है। यहीं वजह है कि साहित्य जगह की ऐसी अनेक महिला रचनाकार हुई हैं जिनके बारे में कभी कुछ कहा और बोला नहीं गया है या बहुत सीमित उनके बारे में बातें हुई है। इस कारण उन्हें इतिहास के पन्नों से गायब कर दिया। उनकी विरासत, उनका लिखा नई पीढ़ी के लिए पीछे छूट गया। ऐसी ही एक लेखिका थीं फ़ातिमा आलम अली।

प्रांरभिक जीवन

फ़ातिमा आलम अली का जन्म साल 1923 में हुआ था। वह उर्दू की एक मशहूर लेखिका थीं। उनके पिता काज़ी अब्दुल गफ़्फार भी एक मशहूर लेखक, प्रकाशक और पत्रकार थे। इनकी माता की मृत्यु इनके बचपन में ही हो गई थी। इनके पिता अपने समय के एक बड़े प्रसिद्ध व्यक्ति थे इसलिए उन्हें कभी-कभी ऐसा भी महसूस होता था कि वह काज़ी साहब की बेटी हैं बस इसलिए लोग उनका सम्मान करते है न कि उनकी अपनी उपलब्धियों और योग्यता के कारण। फ़ातिमा आलम अली लिखने की शुरुआत अपने स्कूल के दिनों से ही कर दी थी। उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद से की थी। कॉलेज के दिनों में उर्दू लेखक और अध्यापिका जहां बानो नकवी ने उन्हें लिखने के लिए और प्रोत्साहित किया था।

फ़ातिमा आलम अली की शादी आलम अली के साथ हुई थी। वह निज़ाम शुगर फैक्ट्री के डॉयरेक्टर थे। इनके दो बेटे और एक बेटी थी जो कनाडा में रहने लगे थे। फातिमा ने जिस तरह से गृहस्थी के साथ अपने लेखन प्रक्रिया को संचालित किया हैं उससे उनकी लिखने के प्रति लगन साफ जाहिर होती है। यही नहीं फ़ातिमा अपने समय में सामाजिक और साहित्यिक संगठनों की भी एक सक्रिय सदस्य रही हैं।

फ़ातिमा ने कई अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों में अपनी कविताएं और निबंध व्यापक रूप से प्रकाशित किए। फातिमा आलम अली का लेखन ऑल इंडिया रेडियो पर भी प्रसारित किया जाता था। 1989 में उनके पेन प्रोट्रेट का एक क्लेक्शन और निबंधों को ‘यादाश बखेर’ नाम की किताब में प्रकाशित किया गया।

साहित्यिक कार्य

फ़ातिमा ने अपने लेखन करियर की शुरुआत एक उर्दू शिक्षक के रूप में की थी। वह अपना अधिकतर समय महिला लेखिकाओं के बीच में बिताती थीं। धीरे-धीरे फ़ातिमा ने कई अखबारों, पत्रिकाओं और किताबों में अपनी कविताएं और निबंध व्यापक रूप से प्रकाशित किए। फ़ातिमा आलम अली का लेखन ऑल इंडिया रेडियो पर भी प्रसारित किया जाता था। 1989 में उनके पेन प्रोट्रेट का एक क्लेक्शन और निबंधों को ‘यादाश बखे़र’ नाम की किताब में प्रकाशित किया गया।

फ़ातिमा ने हैदराबाद के कई शैक्षणिक और साहित्यिक संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोस्तों और संगठनों से उनका लगाव भरपूर और अटूट था। वह कई साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों से जुड़ी हुई थीं, जिनमें ‘इदारा-ए अदबियत-ए-उर्दू’ और ‘अंजुमन तारक़ी’ उर्दू (एक संगठन जिसे उनके पिता ने स्वतंत्रता के बाद अकेले ही पुनर्जीवित किया था) में उनका योगदान सबसे महत्वपूर्ण हैं।

वह अलग-अलग रंगों की स्याही, नियमित पेंसिल, रंगीन पेंसिल, फाउंटेन पेन और बॉल-पॉइंट पेन से लिखती थीं। वह अपने पास उपलब्ध हर कागज पर लिखा करती थीं। वह कैलेंडर, शादी के निमंत्रण और किराने की रसीदों के पीछे निबंधों, भाषणों और पत्रों के पूरे ड्राफ्ट तैयार करती थी। उनके कागजों में से कई हिसाब की किताबें भी होती थीं जिन्हें फ़ातिमा ने कई वर्षों से उपयोग की जाने वाली स्कूल नोटबुक में बचा के रखा था। इनमें उनके घर के काम और घरेलू गतिविधियों के साथ-साथ महत्वपूर्ण व्यक्तिगत और पारिवारिक घटनाओं के दस्तावेज़ीकरण के साथ-साथ उनके निबंधों के मसौदे भी शामिल है। ऐसे नोट हमें उनके जीवन के साथ-साथ उसके आस-पास के अन्य लोगों के साथ बिताए गए समय अनुभवों को समझने में मदद करता है।

फ़ातिमा के पेन-पोर्ट्रेट कई समकालीन हैदराबादी लेखकों का ध्यान आकर्षित करते हैं जो कि चित्र लेखक और विद्वान आगा हैदर हसन के एक पुराने अलीगढ़ कनेक्शन, उनके पिता के प्रिय मित्र, और विद्वान हबीब उर-रहमान जैसे लोगों के जीवन के प्रकाशकों को जीवित करता है। फातिमा घरेलू हिसाब -किताब रखने से लेकर किताब लेखिका, घरेलू अर्थव्यवस्था और जीवन चक्र की महत्वपूर्ण घटनाओं का दस्तावेजीकरण करने से भी आगे जा सकती हैं। यह अकेले होकर एक निश्चित उद्देश्य के लिए ध्यान दिए जाने के इरादे से शुरू हो सकता है। लेकिन जल्द ही, वह व्यस्त गृहिणी, जो दिन के कारोबार में काफी व्यस्त रहती है, अपनी लेखनी को भरपूर रूप से शुरू कर देती है।

कभी-कभी ऐसा भी महसूस होता था कि वह काज़ी साहब की बेटी हैं बस इसलिए लोग उनका सम्मान करते है न कि उनकी अपनी उपलब्धियों और योग्यता के कारण।

फ़ातिमा के पेन-पोर्ट्रेट हमेशा पुरानी यादों और नुकसान की अभिव्यक्तियों के साथ भरे होते थे जिनमें उन्होंने अपने जीवन के हिस्सों को दर्ज किया है। उनके आंकड़ों और काम को आगे कि पीढ़ी के लिए उनके परिवेश के लिए रिकॉर्ड करना बहुत ज़रूरी है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें भुलाया नहीं गया है। इस प्रक्रिया में, वह एक महत्वपूर्ण “यादगार” संग्रह बनी हुई हैं जो उर्दू साहित्य के इतिहास में विशेष रूप से महत्वपूर्ण तारीख पर ख़ास जानकारी और गहरा पक्ष प्रदान करती हैं।

वह बहुत सज्जन और मृदुभाषी स्वभाव की महिला थीं। फ़ातिमा ने हैदराबाद के कई शैक्षणिक और साहित्यिक संस्थानों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दोस्तों और संगठनों से उनका लगाव भरपूर और अटूट था। वह कई साहित्यिक और सांस्कृतिक संगठनों से जुड़ी हुई थीं, जिनमें ‘इदारा-ए अदबियत-ए-उर्दू’ और ‘अंजुमन तारक़ी’ उर्दू (एक संगठन जिसे उनके पिता ने स्वतंत्रता के बाद अकेले ही पुनर्जीवित किया था) में उनका योगदान सबसे महत्वपूर्ण हैं। 4 मई 2020 को हैदराबाद में उनकी मृत्यु हो गई। फ़ातिमा आलम अली की मृत्यु हैदराबाद के साहित्यिक और सांस्कृतिक लेखन के इतिहास में एक गौरवशाली अध्याय का अंत हुआ था। फ़ातिमा आलम अली के लेखन उर्दू साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया हैं जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।

स्रोतः

  1. The Scroll
  2. Siasat.com
  3. Maidaanam.com

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