इंटरसेक्शनलजाति सफाई कर्मचारी आंदोलन: 200 दिन पूरे, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं

सफाई कर्मचारी आंदोलन: 200 दिन पूरे, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं

सीवर में होनेवाली मौतों को रोकने के लिए देशभर में पिछले 202 दिनों से सफाई कर्मचारी आंदोलन जारी है लेकिन सरकार हो या प्रशासन उसकी ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जातिवादी व्यवस्था के चलते ये सांस्थानिक हत्याएं हुई हैं जिन पर इस जातिवादी समाज और व्यवस्था ने सालों से चुप्पी साध रखी है।

देश की राजधानी दिल्ली की एक तस्वीर यह है कि यहां बेहतरीन सड़के हैं, ऊंची इमारतें हैं, यहां विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय है और देश की नयी संसद सेंट्रल विस्ट्रा का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। दूसरी तस्वीर यह है कि देश के बाकी हिस्सों की तरह यहां भी सीवर की सफाई के लिए एक इंसान को बिना किसी सुरक्षा उपकरण के टैंक में उतरना पड़ता है। यह 2022 में जातिवादी भारत के समाज का सच है। आज भी यहां के हर बड़े-छोटे शहरों में सीवर की सफाई के लिए एक ही जाति के लोगों से टैंक की सफाई कराई जाती है। सीवर में होनेवाली मौतों को रोकने के लिए देशभर में पिछले 202 दिनों से सफाई कर्मचारी आंदोलन जारी है लेकिन सरकार हो या प्रशासन उसकी ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जातिवादी व्यवस्था के चलते ये सांस्थानिक हत्याएं हुई हैं जिन पर इस जातिवादी समाज और व्यवस्था ने सालों से चुप्पी साध रखी है।

सीवर को साफ करने के लिए दलित मजदूरों को इसके अंदर भेजा जाता है। ये लोग बिना किसी सुरक्षा इंतजामों के केवल एक रस्सी के सहारे सीवर में उतारे जाते हैं। सीवर के भीतर मौजूद जहरीली गैस मौत की वजह बनती है। मीडिया में छपी कई अलग-अलग ख़बरों के मुताबिक हाल ही में भारत के हर कोने से लगातार इस तरह की मौतों की ख़बरे सामने आई हैं। बावजूद इसके इस समस्या के समाधान के लिए कोई तत्परता कहीं नज़र नहीं आती है।  

सीवर में होनेवाली मौतों को रोकने के लिए देशभर में पिछले 202 दिनों से सफाई कर्मचारी आंदोलन जारी है लेकिन सरकार हो या प्रशासन उसकी ओर से अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। जातिवादी व्यवस्था के चलते ये सांस्थानिक हत्याएं हुई हैं जिन पर इस जातिवादी समाज और व्यवस्था ने सालों से चुप्पी साध रखी है।

सीवर में होनेवाली मौत और जातिवादी प्रथा को जड़ से खत्म करने के लिए देश के शहर-शहर में सफाई कर्मचारी आंदोलन चल रहा है। लोग  #StopKillingUs के बनैर तले अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। इस आंदोलन में बच्चे, महिलाएं, बुजुर्ग सब शामिल होकर अपने भाइयों, बेटो, पति और पिता को सीवर और सेप्टिक टैंक में होने वाली मौतों की मुक्ति की मांग कर रहे हैं।

इस आंदोलन के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित और सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेज़वाड़ा विल्सन से बात की। बेज़वाड़ा विल्सन का कहना है, ”सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकार हाशिये पर रहने वाले लोगों के सम्मान और स्वाभिमान को समझती ही नहीं है। हाशिये पर रहनेवाले लोग बाहर निकल कर कुछ कह रहे हैं यह तो सरकार सुनने को तैयार ही नहीं है। वर्तमान सरकार ने तो सुनना ही बंद कर दिया है। लोकतांत्रिक मूल्यों में सबको समान अधिकार देने में सरकार की रूचि ही नहीं है। अगर योजनाओं की बात करें तो सरकार के पास कायदे में कोई योजना भी नहीं है। पुनर्वास के लिए वे ऑटो रिक्शा देंगे और कर्ज देने जैसी बातें भी सामने आती है लेकिन सच कहूं तो सबसे ज्यादा तो सरकारों में इच्छा शक्ति की कमी है। क्या आपको लगता नहीं है कि इस प्रथा को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, किया जा सकता है अगर इच्छा शक्ति हो। इस पूरे सिस्टम को बदला जा सकता है। लोगों को नये काम पर लगाया जा सकता है। कानून होने के बावजूद उस पर अमल नहीं है।”

इस आंदोलन के बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए फेमिनिज़म इन इंडिया ने रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित और सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेज़वाड़ा विल्सन से बात की। बेज़वाड़ा विल्सन का कहना है, “क्या आपको लगता नहीं है कि इस प्रथा को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, किया जा सकता है अगर इच्छा शक्ति हो। इस पूरे सिस्टम को बदला जा सकता है। लोगों को नये काम पर लगाया जा सकता है। कानून होने के बावजूद उस पर अमल नहीं है।”

वह आगे कहते हैं, “राजनीतिक इच्छाशक्ति जब कमज़ोर होती है तो प्रशासन भी इसमें कुछ नहीं करता है। 1993 में पहला कानून बना उसके बाद 2013 में इसमें नया कानून आया। 2013 के बाद 2022 आ गया है कि कहीं भी कोई एफआईआर और सजा नहीं। प्रधानमंत्री स्तर पर केंद्र कुछ दिखाए तो सारे लोग इसमें काम करेंगे लेकिन ऊपर से ही कोई इस पर ध्यान नहीं देता है। दूसरा यह मुद्दा केंद्र में नहीं आ रहा है कि सफाई कर्मचारियों की संख्या और राजनीति में उनकी समूह का अलग-अलग बंट जाने की वजह से यह राजनीतिक एंजेडा नहीं बन पा रहा है। यह आंदोलन हर राज्य में फैल गया है। लगातार भारत के हर शहर में इस अभियान से लोग जुड़ रहे हैं, इसको जारी रखे हुए हैं। सरकार जब तक जवाब नहीं देती है यह अभियान चलता रहेगा। सीवर-सेप्टिक टैंक में हत्या बंद होने की गांरटी जब तक नहीं दी जाएगी यह अभियान जारी रहेगा।” 

न्यूज क्लिक में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक 11 मई 2022 को बेज़वाडा विल्सन ने इस अभियान को शुरू किया था। अपने ट्वीट में उन्होंने जानकारी दी थी कि आजादी के 75 साल पूरे होने और 57 नागरिकों की सीवर सेप्टिक टैंक में मौतों के बाद इसके रोकने के लिए यह अभियान चलाया गया। इसके बाद 75 दिन का #StopKillingUs और #Action2022 जारी किया गया था। ये 57 मौतें 14 अगस्त 2021 से 11 मई 2022 के बीच हुई थीं। वर्तमान में यह अभियान अपने 202 दिन पूरे कर चुका है। लोगों का प्रदर्शन जारी है। दिल्ली से लेकर उत्तराखंड, हरियाणा, तेलगांना, ओडिशा, आंध्र-प्रदेश और चंडीगढ़ जैसी जगहों पर सफाई कर्मचारियों के अधिकारों और सुरक्षा को लेकर आवाज़ उठाई जा रही है। 

बेज़वाड़ा विल्सन का कहना हैं, ”सबसे बड़ी समस्या ये है कि सरकार हाशिये पर रहने वाले लोगों के सम्मान और स्वाभिमान को समझती ही नहीं है। हाशिये पर रहने वाले लोग बाहर निकल कर कुछ कह रहे हैं ये तो सरकार सुनने को तैयार ही नहीं है। वर्तमान सरकार ने तो सुनना ही बंद कर दिया है। लोकतांत्रिक मूल्यों में सबको समान अधिकार देने में सरकार की रूचि ही नहीं है।” 

“कोई मौत नहीं हुई है”

सरकार से जब-जब मैनुअल स्केवेंजिग के आंकड़ों पर बात होती है तो उसका जवाब हर बार बदल जाता है। बीबीसी में छपी ख़बर के मुताबिक 28 जुलाई 2021 में सामाजिक न्याय मंत्री रामदास अठावले ने एक सवाल के जवाब में सरकार की ओर से कहा गया था कि बीते पांच सालों में मैनुअल स्केवेंजिग से किसी की कोई मौत नहीं हुई है। वहीं, दूसरी ओर बीते साल सरकार ने ही बजट सत्र में बताया था कि सेप्टिक टैंक और सीवर साफ करने के दौरान 340 लोगों की मौत हुई। यह आंकड़ा 31 दिसंबर 2020 तक का है। केवल यह वाक्या ही दिखाता है कि सीवर में मौतों को लेकर सरकार कितनी असंवेदनशील है।   

टैंक में उतरकर सफाई करता व्यक्ति, तस्वीर साभारः Scroll.in

द हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक सरकार ने ही गत वर्ष राज्यसभा में बताया कि 2013 और 2018 में दो अलग-अलग सर्वेक्षणों में देश भर में 58,098 हाथ से मैला ढोने वालों की पहचान की गई। भारत में मैनुअल एंड रिहेबिलिटेशन ऐक्ट, 2013 के तहत पूरी तरह से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध है। तमाम तरह के नियम कानून होने के बाद यह प्रथा बनी हुई और दलित समुदाय के गरीब लोग लगातार अपनी जान गंवा रहे हैं। 

मैले की प्रथा रोकने को लेकर भारत में मौजूदा कानून

भारत में मैनुअल स्केवेंजिग यानी इंसान का किसी भी तरह के मैले से जुड़े काम को खत्म करने और इसे प्रतिबंधित करने के लिए ‘सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय प्रतिषेध अधिनियम 1993’ में पहला कानून बना था। साल 2013 में इस कानून में संशोधन किया गया। ‘मैनुअल स्केवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम 2013’ किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। यह अधिनियम हाथ से मैला साफ करने और उसके परिवार के पुनर्वास की व्यवस्था करता है और यह जिम्मेदारी राज्यों पर आरोपित करता है। इस अधिनियम के तहत मैनुअल स्केवेंजर्स को प्रशिक्षिण देने, ऋण देने और आवास देने की व्यवस्था भी करता है। बावजूद इसके इस जातिवादी व्यवस्था के तहत सीवर में इंसान को उतारा जाता है और टैंक में मौजूद गैस की वजह से आदमी को अपनी जान गंवानी पड़ती है। जाति व्यवस्था के तहत इन्हें अवसरों और विकास से दूर रखा जाता है जिसकी वजह से दलित समुदाय के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी यह काम करने पर मजबूर हैं। 

कानून का सख्ती से पालन

संसद में सीवर में हुई मौतों से जुड़े सवाल के जवाब हो या सफाई कर्मचारियों के अभियान पर अब तक सरकार की ओर से नहीं आई प्रतिक्रिया दिखाती है कि सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती है। गंभीरता की साफ कमी, जातिवादी सोच की वजह से ही देश में आज भी सेप्टिक टैंक में लोग उतर रहे है और मर रहे हैं। दूसरा सफाई कर्मचारियों में इन कानूनों को अधिक प्रचार करने की बहुत ज़रूरत है। सरकारों को इनके पुनर्वास पर ज्यादा गंभीरता से सोचने की भी आवश्यकता है।


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