समाजपर्यावरण क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स: भारत की रैंक बेहतर लेकिन ठोस रोडमैप और योजनाओं की कमी 

क्लाइमेट चेंज परफॉर्मेंस इंडेक्स: भारत की रैंक बेहतर लेकिन ठोस रोडमैप और योजनाओं की कमी 

हाल ही में कॉप-27 के समापन के बाद वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) द्वारा जारी किया गया है। भारत इस सूचकांक में 8वें नंबर पर है।

पृथ्वी और इंसान के अस्तित्व को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन की समस्या का समाधान सबसे ज्यादा ज़रूरी है। धरती की बिगड़ती सेहत को सुधारने के लिए आज इंसान को तेजी से उपाय करने की आवश्यकता है। इस दिशा में दुनिया का कौन सा देश कितना प्रयास कर रहा है उसे देखने और नापने के लिए कई अंतरराष्ट्रीय संस्थान काम कर रहे हैं। हाल ही में कॉप-27 के समापन के बाद वैश्विक जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक (सीसीपीआई) द्वारा जारी किया गया है। भारत इस सूचकांक में 8वें नंबर पर है। इससे अलग जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत की क्या नीतियां हैं, किस तरह से देश में मौजूदा समय पर नीतियों को फाइलों से अलग धरातल पर क्रियान्वित किया जा रहा है आइए जानते हैं विस्तार से।

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक क्या है?

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूचकांक हर साल जर्मनवॉच, न्यू क्लामेट इंस्टिट्यूट और क्लाइमेट ऐक्शन नेटवर्क द्वारा 2005 से जारी किया जा रहा है। यह 57 देशों और यूरोपीय संघ के जलवायु संरक्षण संबंधी उपायों के प्रदर्शन पर नज़र रखने के लिए स्वतंत्र निगरानी का काम करता है। सीसीपीआई का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय जलवायु राजनीति में पारदर्शिता बढ़ाना और जलवायु संरक्षण प्रयासों और अलग-अलग देशों द्वारा की गई प्रगति की तुलना करना है। भारत अपने जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन के आधार पर दुनिया के शीर्ष पांच देशों और जी-20 देशों में पहले स्थान पर है। पिछले साल के मुकाबले भारत दो पायदान ऊपर 8वें नंबर पर पहुंचा है। 

कुल देशों में किसी भी देश के बेहतर प्रदर्शन नहीं करने के कारण किसी भी देश को उच्च रेटिंग नहीं दी गई है। इस लिस्ट में शुरू की तीन जगहें खाली हैं। भारत से ऊपर डेनमार्क, स्वीडन, चिली और मोरक्को जैसे केवल चार छोटे देश हैं। जो क्रमशः भारत से ऊपर चौथे, पांचवें, छठे और सातवें नंबर पर हैं। भारत ने जलवायु नीति और नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और ऊर्जा उपयोग की श्रेणियों में उच्च रैंक हासिल की है। 

भारत की नीतियों में रोडमैप की कमी

जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन सूंचकांक की ओर से भारत के लिए पर्यावरण को बचाने की लड़ाई में कुछ चिंताएं भी जाहिर की गई हैं। पिछले सीसीआईपी के बाद से भारत ने अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) तो अपडेट किया है और 2070 तक नेट जीरो की घोषणा की है। इसमें भारत के लिए यह भी कहा गया है कि लक्ष्यों को हासिल करने के लिए रोड मैप और ठोस योजनाएं नहीं हैं। भारत उन नौ देशों में शामिल है जो वैश्विक कोयला उत्पादन के लिए 90 प्रतिशत जिम्मेदार है। भारत अपने तेल और गैस के उत्पादन को 2030 तक 5 प्रतिशत बढ़ाने की योजना बना रहा है। यह 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के साथ असंगत है। इस सूचकांक से अलग साल 2022 के पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में भारत दुनिया के 180 देशों में सबसे निचले पायदान पर था। 

इकोनॉमिक सर्वे 2020-21 के मुताबिक दस वर्षीय वृक्षारोपण योजना के तहत ग्रीन इंडिया मिशन में पूरे देश में केवल 2.8 प्रतिशत का लक्ष्य ही हासिल किया।

वर्तमान में भारत जलवायु परिवर्तन नीति क्या है, उसके संबंध में 30 जून 2008 में नैशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज (एनएपीसीसी) की घोषणा की गई थी। विज्ञान और प्रौद्योगिक विभाग के अनुसार इसके तहत जलवायु परिवर्तन के संकट से उबरने के लिए और तय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आठ मिशन की घोषणा की गई थी। नैशनल सोलर मिशन, नैशनल मिशन फॉर एन्हांस्ड एनर्जी इफिशन्सि, नैशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल हैबिट, नैशनल वाटर मिशन, नैशनल मिशन फॉर संस्टेनिंग द हिमालयन इको-सिस्टम, नैशनल मिशन फॉर ग्रीन इंडिया, नैशनल मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रीकल्चर, और नैशनल मिशन ऑन स्ट्रेटिजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज शामिल हैं। ये आठ मिशन भारत सरकार के अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा जारी किए गए हैं।

डॉउन टू अर्थ में साल 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जलवायु परिवर्तन के लिए राष्ट्रीय कार्य योजना में सुधार की बहुत आवश्यकता है। नैशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के तहत कार्यक्रम बहुत धीमे चल रहे हैं। इसके क्षेत्रीय मिशन जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए सरकार के द्वारा घोषित योजनाओं के समान नहीं है। भारत सरकार के प्रचार से अलग इन नीतियों के तहत पर्यावरण संरक्षण की स्थिति में कुछ बदलाव धरातल पर नज़र नहीं आता है। घोषित योजनाओं की घोषणा हुए एक लंबा समय बीत चुका है। 

पर्यावरण संरक्षण नियमों को ताक पर रखकर प्रोजक्ट जारी

बीते कुछ सालों से भारत लगातार कई क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से उपजी भीषण प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता आ रहा है। एक तरफ तो सरकार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु संरक्षण के लिए बड़े कदम उठाने के कागज़ी वादे करती नज़र आती है, वहीं दूसरी तरफ देश के हर कोने में विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन को सबसे ज्यादा नुकसान सरकारी प्रोजेक्ट के तहत ही हो रहा है। सरकारी रवैये के ऐसे तमाम उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं। नैशनल ग्रीन इंडिया मिशन की ही बात करें तो सरकार पेड़ लगाने और जंगल को बचाने के लिए योजनाएं बना रही है। लेकिन वह अपने वादे में तो पिछड़ रही है साथ ही सड़कों के नाम पर जंगल भी तेजी से काट रही है। 

भारत के लिए यह भी कहा गया है कि लक्ष्यों को हासिल करने के लिए रोड मैप और ठोस योजनाएं नहीं है। भारत उन नौ देशों में से है जो वैश्विक कोयला उत्पादन के लिए 90 प्रतिशत जिम्मेदार है। भारत अपने तेल और गैस के उत्पादन को 2030 तक 5 प्रतिशत बढ़ाने की योजना बना रहा है। यह 1.5 डिग्री सेल्सियस लक्ष्य के साथ असंगत है।

हिंदुस्तान टाइम्स की ख़बर के मुताबिक ग्रीन इंडिया मिशन के तहत ही भारत नये पेड़ लगाने में बहुत पीछे है। इकोनॉमिक सर्वे 2020-21 के मुताबिक दस वर्षीय वृक्षारोपण योजना के तहत ग्रीन इंडिया मिशन में पूरे देश में केवल 2.8 प्रतिशत का लक्ष्य ही हासिल किया। 2015 में शुरू हुई इस योजना का लक्ष्य दस साल में देश के पांच मिलियन हेक्टेयर में वन और गैर वन भूमि पर जंगल बढ़ाना था। अपनी ही नीतियों में सुस्त सरकार बड़े पैमाने पर जंगल की कटाई भी कर रही है। हंसदेव अरण्य में जंगल की कटाई हाल ही का उदाहरण है। जगह-जगह पर सरकार की पर्यावरण विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। 

इससे अलग देश के पहाड़ी क्षेत्र में सड़क निर्माण कार्य और बांध कार्य भी तेजी से हो रहा है। इन बड़े प्रोजेक्टों में खुद सरकार पर्यावरण संरक्षण के नियमों का उल्लंघन कर रही है। पर्यटक बाज़ार के लिए सरकार हिमालय क्षेत्र में चार लाइन हाईवे के प्रोजेक्ट को मंजूरी दे चुकी है। उत्तर भारत से उत्तर पूर्व भारत के क्षेत्र में भौगोलिक क्षमता को ताक पर रखकर प्रोजेक्ट चल रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में चौड़ी सड़के बहुत ख़तरनाक है। सड़कों का हिमालय क्षेत्र में चौड़ीकरण पूरे इको-सिस्टम के लिए बहुत खतरनाक है। द थर्ड पोल में प्रकाशित लेख में उत्तराखंड में मौजूद दुनिया की ऊंची श्रृंखला में इस तरह से सड़कों का चौड़ीकरण पूरे ढलान को अस्थिर करता है। चार धाम प्रोजेक्ट के तहत सड़कों के निर्माण के बाद से क्षेत्र में भूस्खलन की घटनाएं तेजी से घटित हो रही है। 

भारत में पर्यावरण का मुद्दा क्यों है ज़रूरी

पिछले कुछ समय से भारत लगातार प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है। हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ने इस साल हर दिन एक प्राकृतिक आपदा का सामना किया है। जलवायु परिवर्तन की वजह से देश का लगातार तापमान बढ़ रहा है। ओआरएफ में प्रकाशित लेख के अनुसार भारत जलवायु परिवर्तन से उभरने में गरीब देश होने की वजह से यह न केवल देश के सकल घरेलू उत्पाद को नुकसान पहुंचा रहा है बल्कि लाखों लोगों के जीवन को भी खत्म करने का काम कर रहा है। इससे भोजन, पानी की असुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरणीय स्तर गिर रहा है। 

बावजूद इसके देश में नीतियों के क्रियान्वयन में कोई सुधार नहीं हो रहा है। जलवायु संरक्षण के निदान कार्यों में फंडिंग तक समय पर नहीं हो पा रही है। किसी भी रैंक से अलग भारत को इस मुद्दे को जिस संवेदशीलता से संबोधित करने की आवश्यकता है वह स्पष्ट तौर पर गायब नज़र आती है। जलवायु परिवर्तन वर्तमान समय में सबसे गंभीर मुद्दों में से एक है जिस पर बेहतर नीतियों और तेजी से काम करने की ज़रूरत है। भारत की आगे पर्यावरण की स्थिति को और बिगड़ने से बचाने और जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना मिशन के लक्ष्यों को वास्तव में अपनाने के लिए अपनी प्रणाली को बदलने की बहुत आवश्यकता है।


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