इंटरनेट संचार और सीखने का एक विशाल ज़रिया है। यह एक ऐसी दुनिया है जहां बेहतर कल्पना करके सबको समान अवसर दिए जा सकते हैं। लेकिन तकनीक जगत भी लिंग, वर्ग, जात, क्षेत्र आदि के आधार पर विशेषाधिकार प्राप्त पुरुषों द्वारा ही बनाया गया है। इस वर्ग के पास अपने पूर्वाग्रह और विशेषाधिकार हैं इसलिए महिलाएं, एलजीबीटी+ और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग यहां भी हाशिए पर न रहे इसके लिए ‘फेमिनिस्ट इंटरनेट’ के विचार को बढ़ावा दिया गया। फेमिनिस्ट इंटरनेट एक समूह है जो इंटरनेट को अधिक नारीवादी और समावेशी बनाने पर ज़ोर देता है।
फेमिनिस्ट इंटरनेट से मतलब है जहां महिलाओं और एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के पास सूचनाओं तक सरल, सुरक्षित और समान पहुंच हो। लैंगिक भेदभाव को चुनौती देने के लिए तकनीक का निर्माण हो और इसका इस्तेमाल करने में सब सक्षम हो। यह वह जगह है जहां नारीवाद का इस्तेमाल समावेशी विचारधारा का विस्तार करने के लिए किया जा सके। फेमिनिस्ट इंटरनेट साथ ही वह स्पेस देता है जहां महिलाओं, एलजीबीटी+ समुदाय और हर अल्पसंख्यक वर्ग के साथ होनेवाली हिंसा को गंभीरता से संबोधित किया जाता है। इसका मकसद इंटरनेट जगत में लैंगिक, जाति, नस्ल, वर्ग, यौनिकता आदि के आधार पर भेदभावपूर्ण व्यवहार को नारीवादी मूल्यों से जवाब देना है।
फेमिनिस्ट इंटरनेट की शुरुआत
फेमिनिस्ट इंटरनेट की कल्पना सबसे पहले साल 2014 में मलेशिया में हुई थी। अप्रैल 2014 में असोसिएशन फॉर प्रोग्रेसिव कम्यूनिकेशन (एपीसी) ने वैश्विक स्तर पर जेंडर, यौनिकता और इंटरनेट के विषय पर एक मीटिंग का आयोजन किया था। मीटिंग का लक्ष्य नारीवादी आंदोलनों और इंटरनेट अधिकारों के आंदोलनों के बीच की दूरी को खत्म करना और समावेशी तरीके से साथ मिलकर आगे काम करना था। इसका एंजेडा इंटरनेट स्पेस में जेंडर के विषय को बढ़ाना, इंटरनेट को नियंत्रित करनेवाली नीतियों में सभी लैंगिक पहचान के लोगों के प्रतिनिधित्व की कमी, नीति-निर्माण में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर केंद्रित था। इस ग्लोबल मीटिंग में एक सवाल सामने आया था कि नारीवादी के रूप में हम कैसे इंटरनेट की कल्पना करते हैं और इसे हासिल करने के लिए हमें क्या करना होगा?
फेमिनिस्ट इंटरनेट महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लोगों तक विशेषतौर पर यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार, सुरक्षित अबॉर्शन, सबतक न्याय की पहुंच और एलजीबीटीआईक्यू+ के मुद्दों पर जानकारी देना है। साथ ही इसमें भाषा, योग्यता, रुचियों और संदर्भों को विविध स्तर पर शामिल करना भी है।
इस पर तीन दिनों तक इंटरसेक्शनल लेंस से जेंडर, यौनिकता और इंटरनेट पर न केवल एक टूल के तौर पर बल्कि एक नये सार्वजनिक जगह के तौर पर चर्चा हुई। इन विषयों पर सोचते हुए मीटिंग में इंटरनेट के 15 नारीवादी सिद्धांतों को तैयार किया गया। फेमिनिस्ट प्रिंसिपल ऑफ द इंटरनेट के वर्तमान में 17 सिद्धांत है जो पांच समूहों में व्यवस्थित है। इसमें पहुंच, आंदोलन, अर्थव्यवस्था, अभिव्यक्ति आदि शामिल हैं। इसका उद्देश्य तकनीक के माध्यम से इंटरनेट स्पेस को समावेशी बनाना है।
सब तक समान पहुंच
फेमिनिस्ट इंटरनेट का मुख्य लक्ष्य हर वर्ग और लिंग के लिए इंटरनेट के स्पेस को बनाना है। फेमिनिस्ट इंटरनेट पितृसत्ता को खत्म करने के लिए विविधताओं के आधार पर काम करता है। यह महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लोगों को सशक्त कर अपनी बात रखने को कहता है। फेमिनिस्ट इंटरनेट महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लोगों तक विशेषतौर पर यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकार, सुरक्षित अबॉर्शन, सबतक न्याय की पहुंच और एलजीबीटीआईक्यू+ के मुद्दों पर जानकारी देना है। साथ ही इसमें भाषा, योग्यता, रूचियों और संदर्भों को विविध स्तर पर शामिल करना भी है।
आंदोलनों को मिलती आवाज़
फेमिनिस्ट इंटरनेट निजी और सार्वजनिक जगहों पर नारवादी आंदोलनों और प्रतिरोध को विस्तारित भी करता है। साथ यह इस बात का भी ख्याल रखता है कि जीवन के किन पहलुओं का राजनीतिकरण या इंटरनेट पर कैसे प्रचारित किया जाए। इंटरनेट भी एक ऐसा ही स्थान है जहां सामाजिक मानदंडो को थोपा जाता है लेकिन फेमिनिस्ट इंटरनेट सामाजिक मानदंडों से अलग महिलाओं को अपनी बात, अभियान और आंदोलनों को बढ़ाने का काम करता है। दुनियाभर में यौन हिंसा के विरोध में चला #MeToo अभियान के महिलाओं ने अपने साथ हुई घटना को दर्ज करवाया।
भारत के परिदृश्य में ही बात करें तो यहां मीटू अभियान के तहत यहां न केवल महिलाएं हिंसा के ख़िलाफ़ बोली बल्कि कुछ ने कानूनी लड़ाई तक लड़ी। इसके अलावा इंटरनेट स्पेस में रिप्ड जींस, हॉस्टल कर्फ्यू, ढ़ाबा नाईट, स्लट वॉक, मेरी रात मेरी सड़क, सीएएनआर जैसे अभियानों को इंटरनेट के माध्यम से पूरे देश की महिलाएं शामिल हुई। इंटरनेट के माध्यम से पुरुष वर्चस्व और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ को वर्चुअल और भौतिक दोंनो जगह पर सक्रिय तौर पर शामिल किया जा रहा है। ऑनलाइन सक्रियता से इन आंदोलनों को मजबूत करने में मदद मिलती है।
अर्थव्यवस्था और नारीवादी इंटरनेट की भूमिका
नारीवादी सिद्धांत इंटरनेट अर्थव्यवस्था पर कॉर्पोरेट नियंत्रण के विरोध और संघर्षों को बल देते हैं। साथ ही यह पूंजीवाद के दौर में महिलाओं के गलत रिप्रजेटेशन पर ही सवाल उठाता है। फेमिनिस्ट इंटरनेट सबके लिए समान और विविधता से बाजार के विस्तार पर बल देता है। फेमिनिस्ट इंटरनेट पूंजीवाद के उन तर्को की जांच करने के लिए प्रतिबंध है जो तकनीक को निजीकरण, लाभ और कॉर्पोरेट कल्चर के इर्द-गिर्द करता है। आज बड़ी कंपनियां पूरी तरह से इंटरनेट के माध्यम से बाजार, विज्ञापन, ऑनलाइन शॉपिंग पर एकाधिकार बना चुकी हैं। साथ ही यह अपनी मोनोपॉली के तहत बाजार में महिला या अन्य का रिप्रजेटेशन कर ही है। फेमिनिस्ट इंटरनेट इसके विरोध में आवाज़ उठाने का स्पेस बनाता है। विज्ञापन जगह में महिलाओं के शरीर को गलत तरीके या केवल ख़ास तरह से पेश करने का विरोध भी किया जाता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
फेमिनिस्ट इंटरनेट अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुद्दे पर यौन अभिव्यक्ति के अधिकार का पूरी तरह से बचाव करता है। यह किसी भी तरह की पितृसत्तात्मक निगरानी के बिना यौनिकता को अभिव्यक्त करने का स्पेस देता है। यह सेक्स, यौनिकता के बारे में जानकारी को आसानी से उपलब्ध कराने पर भी जोर देता है। यही नहीं तकनीक, कानून, हिंसा के माध्यम से नारीवादी और ट्रांस समुदाय की अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने, निगरानी करने, विनियमित करने और प्रतिबंधित करने के प्रयासों का भी कड़ा विरोध करते हैं। फेमिनिस्ट इंटरनेट इसे मोरल पुलिसिंग, सेंसरशिप और अधिकारों पर राजनीतिक बंदिश के तौर पर देखता है। इसलिए आज इंटरनेट पर बहुत से लोग हैं जो अपनी यौनिकता, अभिव्यक्ति, पसंद और नापसंद, शारीरिक सहजता से रख पाते हैं।
फेमिनिस्ट इंटरनेट की कल्पना सबसे पहले साल 2014 में मलेशिया में हुई थी। अप्रैल 2014 में असोसिएशन फॉर प्रोग्रेसिव कम्यूनिकेशन (एपीसी) ने वैश्विक स्तर पर जेंडर, यौनिकता और इंटरनेट के विषय पर एक मीटिंग का आयोजन किया था। मीटिंग का लक्ष्य नारीवादी आंदोलनों और इंटरनेट अधिकारों के आंदोलनों के बीच की दूरी को खत्म करना और समावेशी तरीके से साथ मिलकर आगे काम करना था।
फेमिनिस्ट इंटरनेट महिलाओं और क्वीयर समुदाय के लोगों को उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने की अनुमति देता है। यह सहमति, निजता और डेटा के अधिकार को लेकर बहुत सख्ती से कार्य करता है। साथ ही यह महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लोगों को यह निर्णय लेने में सहायता करता है कि उनके जीवन का कौन सा हिस्सा ऑनलाइन हो सकता है कौन सा नहीं। डेटा प्राइवेसी पर विशेष तौर पर ध्यान देने को कहा जाता है।
फेमिनिस्ट इंटरनेट सरकारों के निगरानी के विचार को पूरी तरह इनकार करता है। यह निजी डेटा को बेचने और पूंजीवाद के विचारों के ख़िलाफ़ है। हर व्यक्ति को हर समय अपनी गोपनीयता और डेटा का अधिकार है, और यह जानने का अधिकार है कि किसके पास उनका डेटा है और जब भी वे चाहे, इंटरनेट मेमोरी से इसे मिटा सकते हैं। फेमिनिस्ट इंटरनेट बच्चों और युवाओं के अधिकारों, ऑनलाइन सुरक्षा को भी महत्व देता है। यह बच्चों के स्वस्थ्य, भावनात्मक और यौन विकास के अधिकार को पहचानकर समय पर उन्हें सेक्स, जेंडर और यौनिकता के बारे में सही जानकारी को बढ़ाने के पक्ष में है।
फेमिनिस्ट इंटरनेट वह जगह है जहां महिलाओं के ख़िलाफ़ ऑनलाइन हिंसा को गंभीरता से लिया जाता है और संबोधित किया जाता है। इंटरनेट जगत में महिलाओं और ट्रांस समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ ऑनलाइन हिंसा के कई तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें साइबर बुलिंग, बलात्कार की धमकी, अभद्र भाषा, तस्वीरों के साथ छेड़खानी, ऑनलाइन स्टॉकिंग जैसे खतरों का सामना करना पड़ता है। महिलाएं और ट्रांस समुदाय के लोग बड़ी संख्या में इसका सामना करते हैं।
एक सर्वे के मुताबिक़ इंटरनेट पर 58 प्रतिशत लड़कियों ने ऑनलाइन शोषण की बात कही हैं। इंटरनेट पर मुखर तौर पर अपनी आवाज़ रखने वाली महिलाओं को ऑनलाइन हिंसा का ज्यादा सामना करना पड़ता है। हाल ही में जारी इंटरनैशनल सेंटर फॉर जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में महिला पत्रकारओं को अपनी बात स्पष्ट रूप से रखने के लिए ऑनलाइन हिंसा का सामना करना पड़ता है। एमनेस्टी इंटरनैशनल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिला नेताओं को सोशल मीडिया ट्विटर पर अभद्र व्यवहार और गालियों का सामना करना पड़ता है। टेक बैक द टेक अभियान ने फेमिनिस्ट इंटरनेट का सिद्धांत, ऑनलाइन हिंसा के मुद्दे को संबोधित करने और लैंगिक हिंसा के मुद्दे के रूप में पहचानने का भी आह्वान करता है।
स्रोतः