ग्राउंड ज़ीरो से एक ‘लोकतंत्र’ में पत्रकार रूपेश सिंह की गिरफ्तारी और उनके परिवार का संघर्ष

एक ‘लोकतंत्र’ में पत्रकार रूपेश सिंह की गिरफ्तारी और उनके परिवार का संघर्ष

अग्रिम जब अपने पिता रूपेश से मिलने जेल गया तब उसने अपने पिता से सवाल किया था कि वह घर कब आएंगे,  तब रूपेश ने जवाब दिया था- “आपके जन्मदिन पर।” अग्रिम का जन्मदिन 31 जुलाई को है। रूपेश की पत्नी ईप्सा सताक्षी बताती हैं, "जेल में हुई उस मुलाकात के बाद से अविरल अकसर मुझसे पूछा करता है, मेरा बर्थडे कब आएगा।"

झारखंड के स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह को पिछले साल 17 जुलाई को रामगढ़ स्थित उनके घर से गिरफ्तार किया गया था। रूपेश पर झारखंड की सरायकेला खरसावां ज़िले की पुलिस ने नक्सलियों से संपर्क रखने का आरोप लगाया है। पत्रकार रूपेश कुमार को गिरफ्तार हुए करीब आठ महीने हो चले हैं। उनका बेटा अग्रिम अविरल अपने छठे जन्मदिन के इंतज़ार में है। इंतज़ार में इसलिए क्योंकि अग्रिम जब अपने पिता रूपेश से मिलने जेल गया तब उसने अपने पिता से सवाल किया था कि वह घर कब आएंगे, तब रूपेश ने जवाब दिया था, “आपके जन्मदिन पर।” अग्रिम का जन्मदिन 31 जुलाई को है। रूपेश की पत्नी ईप्सा सताक्षी बताती हैं, “जेल में हुई उस मुलाकात के बाद से अविरल अकसर मुझसे पूछा करता है, मेरा बर्थडे कब आएगा।”

रूपेश की गिरफ़्तारी के दिन को याद करते हुए ईप्सा बताती हैं, “वह तारीख थी 16 जुलाई 2022। रूपेश एक रिपोर्ट के सिलसिले में गिरिडीह से लौटे थे। घर आने के बाद भी वह उसी रिपोर्ट पर काम कर रहे थे। मैं भी उन दिनों एक निजी स्कूल में काम कर रही थी और स्कूल में काम ज्यादा होने की वजह से मैं भी उस दिन काफी थक गई थी। इस वजह से हमारे बीच उस रोज़ ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी थी। हां, क्योंकि अगला दिन रविवार था तो हमने अग्रिम यानि अपने बेटे के लिए बाहर जाकर कुछ खरीददारी करने का प्लान बनाया था। उस दौरान मेरे सास-ससुर भी घर आए हुए थे। सभी ने खाना खाया और हम सोने चले गए। बस रूपेश अपनी काम की वजह से जाग रहे थे।”

आगे ईप्सा बताती हैं, “अगली सुबह यानी 17 जुलाई को सुबह पांच बजे हमारे दरवाज़े पर दस्तक हुई। एक साथ कई लोग ज़ोर-ज़ोर से दरवाज़ा खटखटा रहे थे। तब मेरे ससुर दरवाज़ा खोलने गए। उन्हें दरवाज़े के नीचे लगी जाली से एक से ज्यादा पांव नज़र आए तब उन्होंने रूपेश को आकर बताया। रूपेश हड़बड़ाकर दरवाज़े की तरफ भागे। मैंने कहा भी कि आराम से जाइए, लेकिन उनकी आदत है हड़बड़ा जाने की। उन्होंने दरवाज़ा खोला तो देखा कि दरवाज़े पर पुलिस खड़ी थी।”

रूपेश और ईप्सा, तस्वीर साभार: ईप्सा शताक्षी

ईप्सा आगे बताती हैं, “पुलिस ने बताया कि उन्हें हमारे घर की तलाशी लेनी है और उन्होंने रूपेश को सर्च वारंट दिखाया। इस दौरान पुलिसवाले कई बार घर के अंदर-बाहर करते रहे। तलाशी लेते हुए एक पुलिस ने मुझसे कहा कि मैडम आपको कुछ ज्यादा ही कपड़े जमा करने का शौक नहीं है? आप ही बताईए यह कैसा सवाल था। खैर, तलाशी को अब कुछ घंटे बीत चुके थे। इस बीच रूपेश ने मुझसे कहा कि लगता है आज गिरफ्तारी भी होगी। तो मैंने उनसे कहा, नहीं ऐसा नहीं होगा। फिर थोड़ी देर बाद रूपेश ने एक पुलिसवाले से पूछा कि सर रास्ते में खाना-वाना तो खिलाएंगे न? तो पुलिसवाले ने जवाब दिया हां-हां ज़रूर खिलाएंगे। तब मैंने उनसे कहा आप ऐसा क्यों कह रहे हैं। तब पुलिसवाले ने कहा अरे नहीं! रूपेश मज़ाक कर रहे हैं तो हम भी उनसे मज़ाक कर रहे हैं।”

करीब डेढ़ बजे एक पुलिसवाले ने अपनी पॉकेट से एक पर्चा निकाला और रूपेश के हाथ में थमा दिया। वह पर्चा अरेस्ट वारंट था। इसके जितना वक़्त मिला ईप्सा दौड़-दौड़कर रूपेश की ज़रूरत का सामान जैसे ब्रश, टूथपेस्ट, साबुन वगैरह झोले में डालने लगीं।

बीते साल दिसंबर में ईप्सा ने पत्रकारिता के कोर्स में भी एडमिशन लिया है। जब फेमिनिज़म इन इंडिया ने उनसे पत्रकारिता की पढ़ाई करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि आज रूपेश जेल में क्यों हैं, आदिवासी, गरीब, पिछड़ों की आवाज़ उठाने की वजह से न तो अब उन्होंने भी वही करने का फैसला किया है। वह कहती हैं, “देखते हैं वह किन किन को जेल में डालते हैं।”

रूपेश की गिरफ्तारी और परिवार की आजीविका का संकट

इन दिनों ईप्सा सताक्षी अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए अपने घर पर ही बच्चों को ट्यूशन पढ़ा रही हैं। ईप्सा बताती हैं, “मैं रूपेश की गिरफ़्तारी से पहले एक निजी स्कूल के अकाउंट डिपार्टमेंट में काम करती थी। रूपेश की गिरफ़्तारी से मेरे काम पर काफी असर पड़ा है जो कि लाज़मी है। काम के दौरान मुझे वकील से बात करनी होती। कभी रूपेश का फ़ोन आता था, जिसे मैं किसी भी हाल में नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती थी। वह हफ्ते में दो दिन ही फ़ोन किया करते थे और उसका समय 12 से 4 बजे के बीच में होता था। उनकी गिरफ़्तारी के बाद दो महीने तो मैंने जैसे-तैसे काम किया लेकिन इस दौरान जो कुछ हो रहा था वह स्कूल प्रबंधन को भी नज़र आ रहा था। आखिर एक दिन मुझसे कहा गया कि मैं पहले रूपेश के केस पर ध्यान दूं। जब वह घर आ जाएं तब दोबारा नौकरी जॉइन कर लूं। इसके बाद मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी।”

ईप्सा ने अकाउंट्स ऑनर्स से ग्रैजुएशन और इंटरनैशनल बिज़नेस ऑपरेशन विषय से अपना मास्टर्स किया है। साथ ही उन्होंने बीते साल दिसंबर में पत्रकारिता के कोर्स में भी एडमिशन लिया है। जब फेमिनिज़म इन इंडिया ने उनसे पत्रकारिता की पढ़ाई करने की वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि आज रूपेश जेल में क्यों हैं, आदिवासी, गरीब, पिछड़ों की आवाज़ उठाने की वजह से न तो अब उन्होंने भी वही करने का फैसला किया है। वह कहती हैं, “देखते हैं वह किन किन को जेल में डालते हैं।”

ईप्सा अपने बेटे के प्रति चिंता ज़ाहिर करते हुए कहती हैं, “मुझे अपनी फ़िक्र नहीं होती। मुझे इसकी आदत हो चुकी है। जब साल 2019 में रूपेश को गिरफ्तार किया था तब मैं बहुत घबरा गई थी और कमज़ोर पड़ गई थी। लेकिन मैंने डरना बंद कर दिया है। मुझे अविरल के भविष्य की फ़िक्र सताती है। अब वह बड़ा हो रहा है। उसकी समझ भी बढ़ रही है। अभी वह सादा दिल है। कहीं उसके ज़हन में कोई नकारात्मक बात या सोच न घर कर जाए। इससे लोगों के प्रति उसका व्यवहार बदल सकता है। मैं नहीं चाहती कि इन सब वजहों से उसके मन में किसी के भी प्रति नफरत समा जाए।”   

बता दें कि, साल 2019 के जून महीने में बिहार की गया पुलिस ने पत्रकार रूपेश कुमार को गिरफ्तार किया था। उस वक्त भी उन पर नक्सलियों से संबंध रखने के आरोप लगाए गए थे। उन्हें आईपीसी की धारा 414, 120(बी), 34 और यूएपीए की धारा-10, 13, 18, 38, 39 के तहत गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, पुलिस उस वक़्त पर सबूत पेश नहीं कर पाई थी जिस कारण रूपेश डिफॉल्ट बेल पर जेल से रिहा हो गए थे।

रूपेश और ईप्सा, तस्वीर साभार: ईप्सा शताक्षी

“अब इस डर के साथ जीना सीख लिया है”

यह पूछने पर कि बार-बार होती इन गिरफ्तारियों से क्या उन्हें डर नहीं लगता, ईप्सा कहती हैं, “ऐसी बात नहीं है कि मुझे डर नहीं लगता लेकिन अब किया भी क्या जा सकता है। मैंने अब इस डर के साथ जीना सीख लिया है। आपको मालूम है जब से रूपेश गिरफ्तार हुए हैं तब से मैंने ड्राइव करना छोड़ दिया है क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि शायद मेरे साथ कोई हादसा हो सकता है। लेकिन इस साजिश से हम डरने वाले या चुप बैठने वाले नहीं। जीत हमेशा सच की होती है। आप सच को परेशान या प्रताड़ित तो कर सकते हैं लेकिन आप उसे कभी मार नहीं सकते।”

ईप्सा अपने बेटे के प्रति चिंता ज़ाहिर करते हुए कहती हैं, “मुझे अपनी फ़िक्र नहीं होती। मुझे इसकी आदत हो चुकी है। जब साल 2019 में रूपेश को गिरफ्तार किया था तब मैं बहुत घबरा गई थी और कमज़ोर पड़ गई थी। लेकिन मैंने डरना बंद कर दिया है। मुझे अविरल के भविष्य की फ़िक्र सताती है।”

बता दें कि संयुक्त राष्ट्र की ह्यूमन राइट्स डिफेंडर मैरी लॉलर ने भी इस साल भारत सरकार को चिट्ठी लिखकर रूपेश की रिहाई की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि रूपेश कुमार पर झूठे चार्ज लगाए गए हैं। साथ ही उन्होंने जेल में रूपेश के स्वास्थ्य को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की थी। ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में रूपेश की गिरफ्तारी का मामला उठाया है।

रूपेश इकलौते पत्रकार नहीं है जो जेल में बंद हैं। कश्मीर नैरेटर के रिपोर्टर आसिफ सुल्तान, कश्मीर वाला के पत्रकार सज्जाद गुल, कश्मीर वाला के संपादक फ़हद शाह ऐसे कई नाम हैं जिन्हें उनके काम के लिए जेल में बंद किया गया है। बीते 2 फरवरी को केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को दो साल से भी ज्यादा वक़्त के बाद ज़मानत पर रिहा किया गया। उन्हें अक्टूबर 2020 में तब गिरफ्तार किया गया था जब वह यूपी के हाथरस में हुए सामूहिक बलात्कार मामले की कवरेज के लिए जा रहे थे। अपने काम के लिए जेल में बंद इन पत्रकारों के परिवारों की मुश्किलें शायद ही सामने आ पाती हैं। उनका नैरेटिव, उनका संघर्ष बमुश्किल ही मीडिया को नज़र आता है।


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