संस्कृतिकिताबें टेढ़ी लकीर: लड़कियों का लड़कियों से इश्क़ करना और फूल देना इस्मत चुग़ताई के लिखे में कितना सहज था

टेढ़ी लकीर: लड़कियों का लड़कियों से इश्क़ करना और फूल देना इस्मत चुग़ताई के लिखे में कितना सहज था

टेढ़ी लकीर के बारे में खुद इस्मत ये लिखती हैं, “कुछ लोगों ने कहा कि टेढ़ी लक़ीर मेरी आपबीती है। मुझे खुद आपबीती लगती है। मैंने इस नाविल को लिखते वक़्त बहुत कुछ महसूस किया है। मैंने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है।

इस्मत चुग़ताई उन्नीसवीं शताब्दी की वह लेखिका हैं जो मुसलमान घरानों की महिलाओं के दिलों के जज़्बात अपनी कलम में पिरोती रहीं। वह पुरज़ोर तरीक़े से पिछड़ी और पर्दे की कई परतों में छिपी हुई औरतों के जज़्बात और उनकी उनकी यौन इच्छाओं पर विस्तार से और बड़ी बारीकी से लिखती रहीं। इसी तरह की उनकी एक किताब ‘टेढ़ी लक़ीर‘ भी है। यह किताब साल 1943 में पहली बार प्रकाशित की गई थी। इसकी कहानी मुख्य किरदार शम्मन के इर्द-गिर्द घूमती है।

क्या टेढ़ी लक़ीर इस्मत की आपबीती है?

टेढ़ी लकीर के बारे में खुद इस्मत यह लिखती हैं, “कुछ लोगों ने कहा कि टेढ़ी लक़ीर मेरी आपबीती है। मुझे खुद आपबीती लगती है। मैंने इस नॉवेल को लिखते वक़्त बहुत कुछ महसूस किया है। मैंने शम्मन के दिल में उतरने की कोशिश की है। उसके साथ आंसू बहाए हैं, कहकहे लगाए हैं। इसकी कमज़ोरियों से जल भी उठी हूं, उसकी हिम्मत की दाद भी दी है, इसके इश्क़ों-मोहब्बत के कारनामों पर चटकारे भी लिए हैं।” यह सिर्फ़ इस्मत ही नहीं उनके क़रीबी लोगों ने भी यही कहा कि यह किताब उनकी आपबीती है।

घर की नौंवीं बच्ची शम्मन

टेढ़ी लकीर की कहानी की शुरुआत एक बच्ची के मुस्लिम घराने में नौवें बच्चे के तौर पर पैदा होने से होती है। कहानी बताती है कि कैसे उसे पैदा करके छोड़ दिया गया और उसकी परवरिश उसकी बड़ी बहन मांझो ने की। उस बच्ची को कभी वह तवज्जो नहीं मिली जिसकी वह बचपन में हक़दार थी। चूंकि शम्मन रंग में काली थी तो उसकी तुलना बाकियों से इसी तरह होती रही कि वह काली है। वह बच्ची ज़िद्दी होती गई और अपनी बहन के बेहद क़रीब लेकिन उसकी भी शादी करवा दी गई। उस वक़्त के समाज में किस तरह बेटियों को बोझ समझा जाता और घर में उन्हें किस तरह की तरबियत मिलती है उसका एक बेहतरीन नमूना है यह किताब। 

जब यह नॉवल प्रकाशित हुआ था तो कई लोगों ने कहा था कि इस्मत चुग़ताई ने एक सेक्सी नेचर और बीमार ज़हनियत वाली लड़की की आपबीती लिख डाली है। इस पर इस्मत चुग़ताई का जवाब था मनोविज्ञान को पढ़ो तो यह कह पाना मुश्किल होता है कि कौन पागल है और कौन सही। जहां तक शम्मन कि बात है वह ज़िंदा ही नहीं जानदार है, उस पर कई हमले होते हैं पर वह हर हमले के बाद हिम्मत बांधकर सलामत उठ खड़ी होती है। 

लड़कियों का लड़कियों पर मरना उन्हें फूल देना सामान्य है

जब शम्मन को पढ़ने के लिए एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया तो वहां से होती है शुरुआत शम्मन की ज़िंदगी की। वहां जाकर उसने मोहब्बत करना सीखा। उसकी ज़िंदगी में मोहब्बत या इश्क़ के लिए किसी लड़के की एंट्री नहीं हुई उसने पहले अपनी टीचर से मोहब्बत की। इसकी वजह से उनको स्कूल से निकाल दिया गया, फिर उसने बाक़ी लड़कियों से मोहब्बत की। यहीं पर बड़ी आसानी से इस्मत चुग़ताई ने लड़की और लड़की के एक दूसरे से मोहब्बत करने को एक बेहद सामान्य घटना की तरह मज़बूती से अपने लिखे के ज़रिये दिखाया। उस हॉस्टल में सारी लड़कियां एक-दूसरे पर मरतीं, एक-दूसरे को फूल देती, किताबें देती, कपड़े देतीं, तारीफ़ें करतीं और हां आख़िर में और सबसे ज़रूरी एक-दूसरे से जलती भी थीं।

जहां आज के ज़माने में यानी इक्कीसवीं सदी में जब हम सेम सेक्स रिलेशन की बात करते हैं तो इसको बड़ी आसानी से नकारकते हुए यह कह दिया जाता है कि यह तो मॉडर्न ज़माने की उपज है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, यह इस्मत चुग़ताई ने टेढ़ी लक़ीर में हमें बताया है। प्यार का कोई जेंडर नहीं होता कोई वर्ग नहीं होता, कोई जाति नहीं होती, कोई धर्म नहीं होता। यह हॉस्टल में रहनेवाली लड़कियों को तो कभी पता ही नहीं था कि इनको प्यार किसी लड़के से ही करना होता है, जब तक कि इनकी बड़ी बहनें या अम्मा इनको नहीं बता देती थीं।

किताब के इस हिस्से ने इंसान से इंसान की मोहब्बत जो आज भी हमारे समाज में नाकाबिल-ए-बर्दाश्त समझी जाती है उसको मुखरता से दिखाया। किताब  सेक्शुअल प्रेफ़्रेंस या सेक्शुअल प्लेजर या फिर मोहब्बतों की थियरी जो ज़माने ने बनाई वह सब इस कहानी के सामने धरी रह जाती हैं। हॉस्टल की इन लड़कियों ने कभी यौनिकता को समझने के लिए किताबें नहीं पढ़ीं, न कभी किसी ने जागरूकता मुहिम चलाई।  साथ में इस किताब की भाषा आपको इतना सहज कर देगी कि आपको खुद-ब-खुद यह उपन्यास बहुत प्यारा और मासूम लगने लगेगा।

बाग़ी मोहब्बतें

शम्मन एक बेहद बाग़ी और मज़बूत किरदार है। इस बात का सुबूत यह है कि जब-जब इस लड़की ने मोहब्बत की या ज़िंदगी में कोई भी फ़ैसला किया तो अपने समय और अपने लड़की होने के एहसास से ऊपर उठकर ही लिया। जब उसने पहली मोहब्बत रशीद से की तो उसके बारे में इस्मत लिखती हैं कि वह ऐसा लड़का था कि जिसको लड़कियों के दुपट्टे का इस्तेमाल करना बहुत सलीक़े से आता था। वह शम्मन के कंधे से उसका दुपट्टा उतारकर अपने सिर पर बांध लिया करता था। 

यहां पर दुपट्टे के वजूद को इस्मत ने बड़ी आसानी से कुचलकर रख दिया है। हमारे समाज में ख़ासकर मुस्लिम समाज में तो मैंने यही देखा है कि दुपट्टा लड़की की ज़ीनत होती है। उसको किसी लड़की के कंधे से उतारकर किसी लड़के का सिर पर बांध लेना वैसी ही बात है जैसे किसी मशरिकी लड़की का कोई वेस्टर्न कपड़े पहन लेना। इस बात को बहुत आम से तरीक़े से इस्मत ने लिखा है लेकिन यह आम बिल्कुल नहीं है। यह समाज के ढांचे को तोड़ देनेवाली और उसकी नींव हिला देनेवाली बात है।

जहां आज के जमाने में यानी इक्कीसवी सदी में जब हम सेम सेक्स रिलेशन की बात करते हैं तो इसको बड़ी आसानी से नकारकर यह कह दिया जाता है कि यह तो मॉडर्न ज़माने की उपज है। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, यह इस्मत चुग़ताई ने टेढ़ी लक़ीर में हमें बताया है।

साथ में जब शम्मन अपनी सहेली प्रेमा के पिता राय साहब से मोहब्बत कर बैठी जो कि तक़रीबन पचास साल की उम्र के शख़्स रहे होंगे और शम्मन इस वक़्त बीस की। इस किरदार की जुर्रत भी देखिए कि इसने राय साहब से मोहब्बत का इज़हार भी कर दिया जिसकी वजह से अपनी सहेली गवां बैठी। उन्नीसवीं शताब्दी में ऐसा कर गुज़रना ही अपने आप में बग़ावत से कम नहीं था। वह भी जब हॉस्टल से बाहर जाने की इजाज़त बमुश्किल मिलती हो। एक तो धर्म के ख़िलाफ़ मोहब्बत दूसरा अपने से सालों बड़े और सहेली के पिता से मोहब्बत करना उस ज़माने से कहीं आगे का काम रहा होगा। शायद हर ज़माने में ढांचे और नियम क़ानून तोड़ने वाले लोग बसे होंगे तभी ये दुनिया थोड़ी बहुत सहज और जीने लायक़ बची रही होगी।

आख़िर में अधूरा फिर भी पूरा इश्क़

ख़ैर शादी शम्मन ने भी की लेकिन अमेरिकी शख़्स रूफ़ी टेलर से। शादी के शुरुआती दिनों में दोनों का समाज में बाहर सड़कों पर आना-जाना मुहाल हो गया क्योंकि एक भारतीय लड़की और अमेरिकी लड़के की उस वक़्त पर क्या ही जोड़ी रही होगी। लेकिन फिर भी शम्मन ने इश्क़ किया और आख़िर में रूफ़ी उसको छोड़कर चला गया। तब भी शम्मन ने रूफ़ी को बदनसीब क़रार दिया खुद को नहीं। इसी बात से इस लड़की के मज़बूत और खुद पर यक़ीन होने का ईमान और पुख़्ता हो जाता है और इस्मत की लिखाई से एक बार फिर से मोहब्बत हो जाती है।

इस्मत की किताबें, कहानियां वाक़ई में ठंडी हवा की तरह हैं किसी भी लड़की की ज़िंदगी में। उनकी कहानियों की किरदार कभी इस पितृसत्तात्मक समाज के सामने हारी ही नहीं, वह टूटी, गिरी बिखरी, लेकिन आख़िर में इस पूरी दुनिया के सामने उठ खड़ी हुई फिर से मुक़ाबला करने को तैयार। इस्मत चुग़ताई के क़िरदार योद्धा होते हैं, बिल्कुल शम्मन की तरह। वे कायर नहीं होते और अगर कहीं कायर होते भी हैं तो इस्मत उनको लड़ना सिखा ही देती हैं।

आख़िर में, जब यह नॉवल प्रकाशित हुआ था तो कई लोगों ने कहा था कि इस्मत चुग़ताई ने एक सेक्सी नेचर और बीमार ज़हनियत वाली लड़की की आपबीती लिख डाली है। इस पर इस्मत चुग़ताई का जवाब था मनोविज्ञान को पढ़ो तो यह कह पाना मुश्किल होता है कि कौन पागल है और कौन सही। जहां तक शम्मन कि बात है वह ज़िंदा ही नहीं जानदार है, उस पर कई हमले होते हैं पर वह हर हमले के बाद हिम्मत बांधकर सलामत उठ खड़ी होती है। 


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