इंटरसेक्शनलLGBTQIA+ हिलता हुआ ‘लिहाफ़’ जिस रचना के बोझ तले दबी रहीं इस्मत

हिलता हुआ ‘लिहाफ़’ जिस रचना के बोझ तले दबी रहीं इस्मत

इस्मत चुग़ताई की चर्चित विवादित कहानी लिहाफ, लिहाफ कहानी जिसने भी पढ़ी वह इस कहानी का मुरीद हो गया। कहानी के संवाद को इस्मत चुग़ताई ने बखूबी लिखा। साल 1942 में छपी, इस्मत चुग़ताई की उर्दू लघु कहानी ‘लिहाफ़’ एक युवा लड़की के बारे में है, जिससे उसकी मां की गोद ली हुई बहन बेग़म जान उसके साथ छेड़छाड़ करती है। युवा लड़की के दृष्टिकोण से सुनाई गई है।

इस्मत चुग़ताई की चर्चित और विवादित कहानी ‘लिहाफ’ जिसने भी पढ़ी वह इस कहानी का मुरीद हो गया। कहानी के संवाद को इस्मत चुग़ताई ने बखूबी लिखा। साल 1942 में छपी, इस्मत चुग़ताई की उर्दू लघु कहानी ‘लिहाफ़’ एक युवा लड़की के बारे में है और यह पूरी कहानी उसी के नज़रिये से सुनाई गई है। कहानी बेग़म जान पर केंद्रित है, जो एक बड़े घराने से ताल्लुक रखती हैं।

पितृसत्ता और समलैंगिकता के मज़मून की खोज करते हुए ‘लिहाफ़’ को लंबे समय से एक नारीवादी पाठ के रूप में जाना जाता है जिसमें एक महिला अपने पति के उत्पीड़न के बावजूद अपनी कामुकता को गले लगाकर अपनी पारंपरिक भूमिका से अलग हो जाती है। लिहाफ़ की आलोचना में यह भी कहा जाता है कि कैसे कहानी की लेखिका बाल कथाकार द्वारा अनुभव किए गए यौन शोषण के विषय को स्वीकार करने से बचती हैं।

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एक रात बेग़म जान की रजाई हिलती है तो कथाकार जाग जाती है। अंधेरे में रजाई ऐसी दिखती है जैसे एक संघर्ष करते हुए हाथी को छिपा रही हो। कथाकार बेग़म जान का नाम बोलने पुकारती है तो रज़ाई का हिलना बंद हो जाता है। बेग़म जान कथाकार को सोने के लिए कहती है। लेकिन कथाकार हाथी की परछाई देखकर घबराहट के बाद कमरे में दूसरी आवाज़ सुनती है तो उसे लगता है कि चोर आ गया है।

इस कहानी के मुख्य किरदार कुछ इस प्रकार हैं:

  • कथाकार

कहानी में बाल कथाकार जो अनाम है। उसका हमेशा लड़को के साथ झगड़ा होता रहता था इसलिए जब उसकी माँ एक हफ़्ते के लिए आगरा जा रही होती है तो उसको अपनी बहन ‘बेग़म जान’ के पास छोड़कर जाती हैं।

  1. बेग़म जान

बेग़म जान, कथाकार की मौसी और कहानी की प्रमुख क़िरदार हैं। बेग़म जान बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत होती हैं और उनकी शादी एक नवाब के साथ होती है। बेग़म जान को पता चलता है कि उसके पति की उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है और वह जवान लड़को के साथ समय बिताना पसंद करता है। बेग़म जान अपनी यौन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए एक मालिश करनेवाली के साथ नज़दीकियां बढ़ाती हैं। जब मालिश करनेवाली अपने बेटे से मिलने जाती है तो बेग़म जान बाल कथाकार को मालिश करनेवाली की जगह एक यौन वस्तु के रूप में देखती है। 

  1. नवाब साहब

नवाब साहब, बेग़म जान के पति हैं। एक रईस मुस्लिम और नौकरों और मेहमानों से भरे घर के मुखिया हैं। वह अपनी पत्नी की यौन ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करता है और उसे घर के एक हिस्से में रहने के लिए मजबूर कर देता है। नवाब ने मालिश करनेवाली के बेटे को भी उत्पीड़ित किया होता है जिस वजह से लड़का घर से भाग जाता है और कभी वापस लौटकर नहीं आया। 

  1. रब्बू

रब्बू, बेग़म जान की मालिश करनेवाली है।

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लिहाफ़ कहानी एक अनाम युवा लड़की कथाकार के साथ शुरू होती है। जो यह बताती है कैसे, जब एक रात वह सर्दियों में अपने ऊपर रजाई डालती है, तो दीवार पर उसे हाथी की तरह लहराती रजाई की छाया दिखाई देती है। यह छवि एक भयानक याद को पैदा करती है जब कथाकार एक छोटी लड़की थी। कथाकार इस कहानी में बताती है कि कैसे बेग़म जान की रईस नवाब साहब से अरेंज मैरिज हुई थी। नवाब साहब को जनता गुणी मानती है क्योंकि किसी ने कभी उनके घर में नर्तकियों और वेश्याओं को नहीं देखा। हालांकि, नवाब जवान लड़कों के रहने के लिए हमेशा अपने घर के दरवाज़े खुला रखता था। आखिरकार अपनी तमाम कोशिश बर्बाद होने के बाद बेग़म जान को मालिश करने वाली ‘रब्बू’ मिल जाती है। 

रब्बू, बेग़म जान की लगातार मालिश करती है। वह हर समय उसके पास रहती है और उसके बगल में ही सोती है। बेग़म जान को लगातार खुजली होती है जिसे कोई डॉक्टर ठीक नहीं कर पाया। केवल रब्बू ही खुजली को खरोंच सकती है। घर की दूसरी नौकरानियां बेग़म जान की रब्बू पर निर्भरता के बारे में गपशप करती हैं लेकिन वह इन सब बातों से बेख़बर होती हैं, उनका ध्यान सिर्फ अपनी खुजली पर होता था। 

जब साहित्यिक पत्रिका ‘अदब-ए-लतीफ’ में कहानी ‘लिहाफ़’ छपी तो समलैंगिकता के जिक्र ने सार्वजनिक हंगामा खड़ा कर दिया। इस्मत चुग़ताई पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया और उन पर केस किया गया

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कथाकार, एक बच्चे के रूप में बेग़म जान के यहां रहने के लिए आती है। कथाकार, बेग़म जान को पसंद करती है क्योंकि वह बहुत ही ज़्यादा खूबसूरत होती है। अक्सर वह उनकी खूबसूरती की तारीफ़ करती रहती है। कथाकार उसी कमरे में सोती है जिसमें बेग़म जान और रब्बू सोती है। एक रात बेग़म जान की रजाई हिलती है तो कथाकार जाग जाती है। अंधेरे में रजाई ऐसी दिखती है जैसे एक संघर्ष करते हुए हाथी को छिपा रही हो। कथाकार बेग़म जान का नाम बोलने पुकारती है तो रज़ाई का हिलना बंद हो जाता है। बेग़म जान कथाकार को सोने के लिए कहती है। लेकिन कथाकार हाथी की परछाई देखकर घबराहट के बाद कमरे में दूसरी आवाज़ सुनती है तो उसे लगता है कि चोर आ गया है।

सुबह उठकर कथाकार रात की बातें भूल गई थी। अगली रात वह रब्बू और बेग़म जान को दबी आवाज़ में बहस करते हुए सुनती है। रब्बू रोती है और फिर कथाकार एक बिल्ली की थाली चाटने की आवाज सुनती है। अगले दिन, रब्बू अपने बेटे से मिलने जाती है। वहीं, बेटा जो पहले नवाब के साथ रहता था और नवाब के व्यवहार के बाद वह घर छोड़कर चला जाता है। रब्बू के चले जाने से बेग़म जान परेशान हो जाती है। वह सारा दिन कुछ नहीं खाती और उदास पड़ी रहती। रब्बू की गैरमौजूदगी में रात को कथाकार बेग़म जान को मालिश करने की पेशकश करती हैं। बेग़म जान उसे चुपचाप लेटे हुए मालिश करने देती हैं।

अगले दिन रब्बू वापस नहीं आती है तो बेग़म जान चिड़चिड़ी हो जाती हैं और उनके सिर में दर्द होता है। कथाकार फिर से उनकी मालिश करती है और बेग़म जान कामुक सांसों के साथ अपनी संतुष्टि व्यक्त करती है। बाज़ार से चीज़ें ख़रीदने के बारे में बात करते हुए उसका हाथ न जाने कहां से कहां पहुंचा। कथाकार को बमुश्किल ध्यान आता है और अपना हाथ हटा देती है।

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जब साहित्यिक पत्रिका अदब-ए-लतीफ में कहानी ‘लिहाफ़’ छपी तो समलैंगिकता के जिक्र ने सार्वजनिक हंगामा खड़ा कर दिया। इस्मत चुग़ताई पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया और उनपर केस किया गया। अदालत में अपना बचाव करने के लिए उन्होंने लाहौर की यात्रा की। कई लोगो ने उनको माफ़ी मांगने की सलाह दी लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया।

बेग़म जान हंसती है और कथाकार को अपने बगल में लेटा लेती है। वह कथाकार के विरोध के बावजूद उसकी पसलियों को गिनते हुए, गलत तरीके से कथाकार को छूना शुरू कर देती है। कथाकार दूर जाने की कोशिश करती है लेकिन बेग़म जान की आँखों में एक सख़्ती होती है। एक अजीब डर कथाकार पर हावी हो जाता है। बेग़म जान उसे ऐसे दबाती है जैसे वह कोई वस्तु हो। आखिरकार, बेग़म जान भारी सांस लेते हुए वापस लेट जाती है। कथाकार कमरे से निकल जाती है और रब्बू के उस रात लौटने पर शुक्र मनाती है।

कथाकार बेग़म जान के घर में रहती है। वह नौकरानियों के साथ समय बिताकर अपने आस-पास महसूस होनेवाले अनजान ख़तरे से बचने की कोशिश करती है। जब भी बेग़म जान नहाती हैं तो कथाकार को अपने बगल में बिठा देती हैं। बेग़म जान कथाकार को बाज़ार से एक सोने का हार और मिठाई देने की बात करती है लेकिन कथाकार जोर देकर कहती है कि वह सिर्फ घर जाना चाहती है। बेग़म जान जब कथाकार के साथ धक्का-मुक्की वाला बर्ताव करती हैं तो रब्बू उनको फटकार लगाती हैं। उस रात बेग़म जान शांत हो जाती हैं। कमरे में कथाकार ने बेग़म जान की रजाई को फिर से हिलते हुए देखा तो वह कमरे की बत्ती जलाती है। रजाई के नीचे बेग़म जान और रब्बू आगे की ओर झुके हुए होते हैं। कथाकार रजाई के कोने के नीचे देखती है वह जो देखती है उसके कारण वह हांफने लगती है और फिर वह अपने बिस्तर में गहराई से डूब जाती है। 

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जब साहित्यिक पत्रिका ‘अदब-ए-लतीफ’ में कहानी ‘लिहाफ़’ छपी तो समलैंगिकता के जिक्र ने सार्वजनिक हंगामा खड़ा कर दिया। इस्मत चुग़ताई पर अश्लीलता का आरोप लगाया गया और उन पर केस किया गया। अदालत में अपना बचाव करने के लिए उन्होंने लाहौर की यात्रा की। कई लोगो ने उनको माफ़ी मांगने की सलाह दी लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इस्मत चुग़ताई ने अपने खिलाफ लगे आरोपों से लड़ने के लिए मुकदमा लड़ा। चुग़ताई ने कहानी को एक बच्चे के भोले-भाले दृष्टिकोण से लिखा था, अश्लीलता का कही कोई ज़िक्र नहीं था और गवाह किसी भी अश्लील शब्दों की ओर इशारा नहीं कर सकते थे। घटना के बाद उन्होंने कहा था,“कहानी ने मुझे इतनी बदनामी दिलाई कि मैं जीवन से बीमार हो गई यह मुझे मारने के लिए कहावत बन गई और बाद में मैंने जो कुछ भी लिखा वह उसके वजन के नीचे कुचल गया।”

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