मुज़फ़्फ़रनगर जिले की रहने वाली 53 वर्षीय सुशीला बीते समय से घुटनों में दर्द का सामना कर रही हैं। समय के साथ उनकी समस्या बढ़ती जा रही है। डॉक्टर से परामर्श करने पर उन्हें इसकी वजह बढ़ती उम्र और शरीर में होने वाले बदलावों को कहा गया। लेकिन इन सबसे अलग महिलाओं के शरीर में हड्डियां कमजोर होने के अन्य कारण भी हैं। बढ़ती उम्र में महिलाओं में हड्डियों की कमजोरी की एक वजह वायु प्रदूषण भी है। यह तथ्य कोलंबिया यूनिवर्सिटी के मेलमैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में हुए एक नये अध्ययन से सामने आया है। वायु प्रदूषण महिलाओं की हड्डियों के लिए बहुत खतरनाक है।
द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक़ वायु प्रदूषण का संपर्क महिलाओं में बढ़ती उम्र में बोन मिनरल डेंसिटी की कमी के साथ ऑस्टियोपोरोसिस से भी जुड़ा है। इस वजह से हड्डियों से जुड़ी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। ऑस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होता है। वैज्ञानिकों ने पोस्टमेनोपॉज की अवस्था से गुजर रही महिलाओं में बढ़ते वायु प्रदूषण के असर का पता लगाया है। इस स्टडी में 161,808 पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया। इस स्टडी में 50 से 76 वर्ष की उम्र की महिलाएं शामिल थी। इन महिलाओं के घर के आधार पर वायु प्रदूषण जैसे पीएम 10, नाइट्रिक ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड के खतरे का अनुमान लगाया।
ऑस्टियोपोरोसिस होने का जोखिम पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा होता है। वैज्ञानिकों ने पोस्टमेनोपॉज की अवस्था से गुजर रही महिलाओं में बढ़ते वायु प्रदूषण के असर का पता लगाया है। इस स्टडी में 161,808 पोस्टमेनोपॉजल महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
वैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण में बोन मिनरल डेंसिटी (बीएमडी) को मापा गया है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने ड्यूल एनर्जी एक्स-रे अब्सॉर्पटीओमेट्री तकनीक की मदद ली है। तकनीक की मदद से महिलाओं के पहले, तीसरे और छठे साल में बीएमडी को मापा था। रिसर्च के अनुसार महिलाओं में सबसे ज्यादा असर लंबर स्पाइन की हड्डी पर देखा गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह असर ऑक्सीडेटिव के नुकसान और अन्य तंत्रों के माध्यम से हड्डी की कोशिकाओं के खत्म होने की वजह से होते हैं। इंडिया टुडे में छपी ख़बर के अनुसार स्टडी से जुड़े शोधकर्ता डिडिएर प्राडा का कहना है कि रिसर्च के नतीजे दिखाते हैं कि खराब हवा हड्डियों के होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
किनके स्वास्थ्य के लिए वायु प्रदूषण हानिकारक है
वर्तमान में वायु प्रदूषण एक भीषण समस्या है। इसका स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। जैसे-जैसे दुनिया का तापमान बढ़ता जा रहा है ये समस्या और बढ़ती जाएगी। नौ में से दस लोग खराब हवा में सांस लेने को मजबूर हैं जिससे हर साल सात मिलियन लोगों की मौत होती है। आधी दुनिया के पास अभी तक साफ ईधन और तकनीक जैसे स्टोव और लैंप तक की पहुंच नहीं है। अगर भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति को देखे तो यह दुनिया के शीर्ष दस सबसे प्रदूषित देशों में से एक है। हाल ही में जारी वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट 2022 के मुताबिक़ दुनिया के 131 देशों में भारत दुनिया का आठवां सबसे प्रदूषित देश है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के 50 प्रदूषित शहरों में 39 भारत के हैं।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार घरों में होने वाले प्रदूषण की वजह से दुनिया में बच्चे और महिलाएं प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। लगभग 3.2 मिलियन मौतें हाउसहोल्ड एयर प्लूशन की वजह से होती हैं। महिलाएं और बच्चे घर के काम के भार की वजह से प्रदूषित ईधन का सामना करते है। इस वजह से उनके शरीर की मसल्स, हड्डियां और लिगामेंट्स प्रभावित होते है।
गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण गर्भावस्था में जटिलताओं और खतरे को बढ़ाता है। इस वजह से अबॉर्शन, गर्भावस्था में होने वाली शुगर, हाई ब्लड प्रेशर, समय से पहले डिलीवरी और स्लिटबर्थ जैसी समस्याएं पनप जाती है।
कई तरह से महिलाओं के स्वास्थ्य पर प्रभाव
साफ-सुथरी हवा और ऊर्जा का लक्ष्य पूरा होता है तो वह कई तरह से फायदेमंद है। महिलाओं के जीवन और स्वास्थ्य से जोड़ते हुए इसे देखे तो यह उनकी जीवन आयु, प्रजजन स्वास्थ्य और स्वास्थ्य के कई पहलूओं के लिए फायदेमंद है। द गार्डियन में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक़ वायु प्रदूषण की वजह से महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है। चीन के 18,000 जोड़ों पर हुए विश्लेषण में पाया गया कि छोटे कण के प्रदूषण के प्रभाव में रहने वाली महिलाओं में इनफर्टिलिटी का 20 प्रतिशत जोखिम रहता है। स्क्रोल में छपी ख़बर के मुताबिक़ गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण गर्भावस्था में जटिलताओं और खतरे को बढ़ाता है। इस वजह से अबॉर्शन, गर्भावस्था में होने वाली शुगर, हाई ब्लड प्रेशर, समय से पहले डिलीवरी और स्लिटबर्थ जैसी समस्याएं पनप जाती है। इसके अलावा कुछ अध्ययनों में महिलाओं में कम फर्टिलिटी रेट और गर्भवती महिलाओं में इसे डिप्रेशन से भी जोड़ा है।
वायु प्रदूषण का महिलाओं के जीवन के पर अलग-अलग उम्र और तरीके से असर पड़ता है। जर्नल बीएमसी में छपी शोध के अनुसार जो महिलाएं घरों में होने वाले प्रदूषण का सामना करती है उनकी याददाश्त, रोजमर्रा के काम करने करने की क्षमता, तार्किक और बुद्धिमता क्षमता पर असर पड़ता है। युवा और बुजुर्ग महिलाएं इस प्रदूषण से सबसे ज्यादा प्रभावित है।
साफ-सुथरी हवा दूर कर सकती है एनीमिया की कमी
नेचर में प्रकाशित स्टडी में महिलाओं में खून की कमी यानी एनीमिया के कारण और पीएम 2.5 के प्रदूषकों को आपस में जोड़ा है। स्टडी के नतीजे बताते है कि आस-पास के माहौल में पीएम 2.5 में बढ़ोत्तरी के चलते महिलाओं में औसत एनीमिया का प्रसार 7.23 प्रतिशत बढ़ जाता है। पीएम 2.5 का मतलब अति सूक्ष्म कणों या पार्टिकुलेट मैटर से है। यह सांस लेते समय शरीर के अंदर चले जाते है। अध्ययन के अनुसार भारत में प्रजनन की आयु (19-49) वाली महिलाओं में एनीमिया का प्रसार 53.1 प्रतिशत था। अगर भारत में साफ-सुथरी हवा का लक्ष्य हासिल कर लिए जाए तो एनीमिया की महिलाओं में दर 39.5 प्रतिशत हो जाएगा।
क्यों प्रदूषण महिलाओं को ज्यादा प्रभावित करता है
महिलाओं के लिए प्रदूषित हवा का अनुभव हर कोने में भरा हुआ है। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर महिलाओं को घर में रहने और घर के काम की वजह से दूषित हवा में सांस लेनी पड़ती है। महिलाओं के काम की जिम्मेदारी उन्हें जहरीली हवा के चैंबर में धकेल देती है। औरतें और लड़कियों को खाना पकाने, उसके लिए ईधन इकठ्ठा करने जैसी गतिविधियां उसके ज्यादा वायु प्रदूषण से प्रभावित होने का कारण है। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिसीज स्टडी, 2019 के अनुसार ठोस ईधन जलाने से घरेलू वायु प्रदूषण होता है।
आज भी ग्रामीण हो या शहरी क्षेत्र बहुत सी महिलाएं घरों या अपनी झुग्गियों में लकड़ी, गोबर के उपले जैसे चीजों को जलाकर खाना पकाती दिख जाएंगी। भले ही सरकारी योजनाएं खाना बनाने के लिए ठोस ईधन के इस्तेमाल को जड़ से खत्म करने के दावा करती हो। गाँव कनेक्शन में छपी ख़बर के मुताबिक 54 प्रतिशत घरों में अभी भी भोजन पकाने के लिए लकड़ी और उपलों का ही इस्तेमाल होता है।
पितृसत्ता की बनाई भूमिका भी एक वजह
महिलाओं के ऊपर वायु प्रदूषण का ज्यादा असर उनकी जेंडर के आधार पर बनायी भूमिका भी है। जिस वजह से वे घर के अंदर रहकर खराब गुणवत्ता वाली हवा के बहुत ही उच्च स्तर से प्रभावित होती रहती है। वहीं इससे उभरने के लिए आर्थिक कठिनाईयों के साथ-साथ पितृसत्ता के नियम भी उनके सामने बाधा बनते हैं। चूल्हे की रोटी स्वादिष्ट होती है जैसी बातें एलपीजी या अन्य सुविधा के बावजूद महिलाओं को चूल्हा और धुएं का सामना करने पर मजबूर करती है।
दूसरा आर्थिक क्षमता की वजह से महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी सुविधाओं पर सबसे कम ध्यान दिया जाता है जिस वजह से ठोस ईधन का उनके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर को नज़रअंदाज कर दिया जाता है। समय-समय के अंतराल पर महिलाओं के स्वास्थ्य और घरेलू प्रदूषण के बीच संबंध पर कई शोध सामने आ रहे हैं। अब इस समस्या को पहचान कर उसके निदान की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। वायु प्रदूषण और महिलाओं के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर नीतियों में निवेश होने की आवश्यकता है।