इतिहास रानी कित्तूर चेन्नम्मा: आज़ादी की लड़ाई की एक महत्वपूर्ण वीरांगना| #IndianWomenInHistory

रानी कित्तूर चेन्नम्मा: आज़ादी की लड़ाई की एक महत्वपूर्ण वीरांगना| #IndianWomenInHistory

रानी चेन्नम्मा ने उस दौर में संघर्ष किया जब कित्तूर राज्य में कोई पुरुष शासक न होने के कारण ब्रिटिश सरकार राज्य को अपने अपने नियंत्रण में लेना चाहती थी। 

बात उस समय की है जब राज्य की सत्ता का संचालन सिर्फ पुरुषों द्वारा ही किया जाता था। राज्य की गद्दी पर पिता के बाद पुत्र का ही अधिकार होता था। जीवन से जुड़े किसी भी क्षेत्र में स्त्रियों की कोई भागीदारी नहीं थी। उस दौर में रानी चेन्नम्मा वह शख़्स थीं जिन्होंने दरबार में बैठकर राजसत्ता का संचालन किया और अंग्रेज़ों से लोहा लिया। उन्होंने ने उस दौर में संघर्ष किया जब कित्तूर राज्य में कोई पुरुष शासक न होने के कारण ब्रिटिश सरकार राज्य को अपने अपने नियंत्रण में लेना चाहती थी। कित्तूर राज्य में पुरुष उत्तराधिकारी न होने के कारण, उस पर कुशासन का आरोप लगाकर ब्रिटिश सरकार उसे हथियाना चाहती थी।

ब्रिटिश सरकार की इस साम्राज्यवादी नीति के खिलाफ चेन्नम्मा का संघर्ष उस दौर के किसी भी पुरुष शासक से कम नहीं था।  लेकिन रानी चेन्नम्मा की संघर्षशील जीवन की कहानी भारतीय इतिहास के में बड़े ही कम शब्दों में अंकित है। उन्हें इतिहास में वह जगह नहीं मिली जो अन्य पुरुष राजाओं को प्राप्त है जिन्होंने अंग्रेज़ों की सत्ता के विरुद्ध लड़ाई लड़ी।

इतिहास के पन्नों में इनकी कहानी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई से मिलती है लेकिन इनका अंग्रेजों से सामना रानी लक्ष्मीबाई से काफी समय पहले हुआ था। भारतीय इतिहास में इन्हे कर्नाटक की रानी लक्ष्मीबाई की संज्ञा दी गई है। रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सरकार की देशी रियासतों को उनके अधीन लाने की नीति के खिलाफ़ अंग्रेज़ों को दो-दो बार पराजित किया था। साथ ही अपने राज्य को अंग्रेज़ी शासन से बचाने में काफी हद तक सफल भी रहीं लेकिन लेकिन ब्रिटिश सरकार ने छल करके कित्तूर पर कब्ज़ा कर लिया।

शुरुआती जीवन

कर्नाटक की छोटी सी रियासत काकतिया राजवंश के राजा धुलप्पा और रानी पद्मावती के यहां 23 अक्तूबर,1778 को चेन्नमा का जन्म हुआ था। उन्हें घुड़सवारी और तलवारबाज़ी का शौक था। चेन्नम्मा के लगातार अभ्यास के कारण वह युद्ध कला में निपुण हो गई थीं। सिर्फ युद्धकला में ही नहीं बल्कि उन्हें कन्नड़, संस्कृत, मराठी और उर्दू जैसी कई भाषाएं आती थीं। उनकी शादी कर्नाटक के एक राज्य कित्तूर के राजा मल्लसर्ज देसाई के साथ किया गया था। 

कित्तूर मैसूर राज्य एक छोटी सी स्वतंत्र रियासत थी। लेकिन एक होने के साथ बहुत ही समृद्धशाली राज्य भी था। कित्तूर में व्यापारी केंद्र भी था जहां से कई तरह के व्यापार हुआ करते थे। कित्तूर एक छोटा सा राज्य अपने खजाने के लिए जाना जाता था। कित्तूर में खेती भी अच्छी मात्रा में होती थी जिसमे धान की फसल की पैदावार अधिक थी। यही कारण था कि अंग्रेज़ कित्तूर पर अपना सीधा नियंत्रण चाहते थे।

कित्तूर की ‘रानी’ चेन्नम्मा

कित्तूर पर अधिकार का अवसर उन्हें राज्य का कोई पुरुष उत्तराधिकारी न होने पर मिला। वह कुशासन का आरोप लगाकर कित्तूर पर वैद्य तरीके से कब्जा कर सकते थे। राजा मल्लसर्ज की मौत असामयिक ही हो गई थी। उनकी मौत के बाद साल 1824 में रानी चेन्नम्मा के इकलौते बेटे की भी मौत भी हो गई। इसके बाद राज्य के उत्तराधिकारी का सवाल खड़ा हुआ। तब रानी चेन्नम्मा ने एक बालक को गोद लेने की रस्म को पूरा किया।

ब्रिटिश सरकार की इस साम्राज्यवादी नीति के खिलाफ चेन्नम्मा का संघर्ष उस दौर के किसी भी पुरुष शासक से कम नहीं था।  लेकिन रानी चेन्नम्मा की संघर्षशील जीवन की कहानी भारतीय इतिहास के में बड़े ही कम शब्दों में अंकित है।

ब्रिटिश सत्ता की नज़र तो पहले से ही कित्तूर के खज़ाने पर थी। उत्तराधिकारी के अभाव ने अब उन्हें राज्य पर कब्ज़ा करने का बहाना भी दे दिया। अंग्रेज़ो ने चेन्नम्मा के गोद लिए बालक को कित्तूर राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया। उसे अवैद्य घोषित कर दिया और कहा कि उन्होंने गोद लेने की रस्म को वैद्य तरीके से पूरा नहीं किया है। बालक को गोद लेने से पहले ब्रिटिश सरकार की अनुमति नहीं ली गई है। इसलिए इसे अस्वीकार कर दिया गया और कित्तूर राज्य के प्रशासन को ब्रिटिश सत्ता को सौंप देने का फरमान जारी किया।

ब्रिटिश सत्ता के इस आदेश के बाद रानी चेन्नम्मा ने कित्तूर राज्य के प्रशासन पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने का काम किया। वह दरबार में बैठकों का संचालन अत्यधिक योग्यता के साथ करतीं। उनकी संचालन की योग्यता और कूटनीतिक फासले ने उन्हें राज्य के अधिकारियों और जनता के बीच लोकप्रिय बना दिया। इसी लोकप्रियता का परिणाम था की वह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा कहलाने लगीं। 

रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश सरकार के इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया कि कित्तूर राज्य को अब ब्रिटिश सत्ता को सौंप दिया जाए। इस आदेश के खिलाफ़ उन्होंने अपने राज्य में यह आदेश जारी किया कि किसी भी ब्रिटिश अधिकारी के आदेश का पालन न किया जाए। रानी चेन्नम्मा ब्रिटिश सरकार कूटनीति से पूरी तरह से परिचित थीं। वह जानती थीं कि अंग्रेज़ सरकार कभी भी राज्य पर कब्ज़ा जमाने के लिए आक्रमण कर सकती है। इसलिए उन्होंने राज्य में सेना का प्रशिक्षण करना शुरू कर दिया। उन्होंने राज्य की जनता से सेना में भर्ती होने की अपील की और जनता द्वारा अपनी रानी के आदेशों का पालन किया गया।

रानी चेन्नम्मा के राज्य की सेना अंग्रेज़ सरकार की सेना के सामने संख्या में कम थी लेकिन साहस में उनसे कई गुना ज्यादा। रानी चेन्नम्मा के भाषण और उनका नेतृत्व कित्तूर की जनता के लिए प्रेरणा का काम कर रही थी जिसके रास्ते वे अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश सरकार की गुलाम बनने से बचा सकते थे और आज़ाद रह सकते थे।

18 अक्टूबर 1824 को ब्रिटिश सरकार द्वारा कित्तूर राज्य पर आक्रमण कर देने का आदेश दिया गया। इस आदेश का अर्थ रानी चेन्नम्मा पर दबाव डालना था लेकिन रानी ने युद्ध करना स्वीकार किया और अंग्रेज़ों को अधिकारियों को आश्चर्य में डाल दिया। कित्तूर की सेना ने रानी चेन्नम्मा की नेतृत्व में अदम्य साहस के साथ इस युद्ध को जीत लिया अंग्रेज़ी सत्ता को कित्तूर राज्य की सीमा से दूर खदेड़ दिया।

रानी चेन्नम्मा के भाषण और उनका नेतृत्व कित्तूर की जनता के लिए प्रेरणा का काम कर रही थी जिसके रास्ते वे अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश सरकार की गुलाम बनने से बचा सकते थे और आज़ाद रह सकते थे।

1824 को पूरे कित्तूर राज्य में जीत का जश्न मनाया जा रहा था लेकिन इस हमले के कुछ समय बाद ही अंग्रेज़ों ने अपने कित्तूर राज्य पर फिर हमला कर दिया। दूसरी बार फिर अपने राज्य को स्वतंत्र रखने  के लिए कित्तूर की सेना ने भीषण युद्ध किया और विजय प्राप्त की। लेकिन कित्तूर राज्य के कुछ विश्वासघाती अधिकारियों ने रानी चेन्नम्मा को धोखा दिया। इन अधिकारियों की सहायता से अंग्रज़ों की सेना ने रानी चेन्नम्मा को बंदी बना लिया। रानी के बंदी बनते ही कित्तूर रियासत की कमान अंग्रेज़ी सरकार के हाथों में आ गई।

रानी चेन्नम्मा को नज़रबंद कर दिया गया और उनकी साल 1829 में कैद में ही मौत हो गई। कित्तूर चेन्नम्मा ने अपने आखिरी क्षण तक अपने राज्य की आज़ादी की लड़ाई लड़ी। उस समय रानी चेन्नमा का अपने राज्य की आज़ादी के लिए संघर्ष एक मिसाल के है जिसका वर्णन हमारे इतिहास में बहुत ही कम शब्दों में किया गया है।


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