वर्तमान में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में लैंगिक असमानता की बात जब हम करते हैं तो इसके इतिहास में जाने पर तस्वीर अलग मिलती है। कहने का मतलब यह है कि 20वीं सदी की शुरुआत में कम्प्यूटर प्रोग्रामरों में अधिक संख्या में महिलाएं शामिल थीं। उन्होंने तकनीक को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान निभाया। समय के साथ जैसे-जैसे तकनीक में बदलाव आया प्रोग्रामर के रूप में महिलाओं की भूमिका बदली गई। धीरे-धीरे उन्हें कार्यक्षेत्र से बाहर कर दिया गया। हालांकि, इतिहास में भी उनकी उपलब्धियों को कम करके आंका गया।
विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं का योगदान बहुत पहले शुरू हो गया था। इतिहास में दर्ज 2600 ईसा पूर्व में प्राचीन मिस्र की पेसेशेट पहली महिला डॉक्टर हैं। उन्होंने उस समय कई सौ महिलाओं को चिकित्सीय प्रशिक्षण भी दिया था। इसी तरह बेबिलॉनियन टैबलेट पर मिले 1200 ईसा पूर्व के शिलालेख के मुताबिक़ टापुति-बेलाटेकालिम दुनिया की पहली रसायनशास्री थीं। वह इत्र बनाना जानती थीं। उन्होंने तरल पर्दार्थों को साफ करने के लिए एक उपकरण भी बनाया था। इसे आगे अलेक्जेंडिया की हाइपेशिया खगोल विज्ञान पर लेक्चर देने वाली पहली महिला बनीं। समय के साथ-साथ विज्ञान-तकनीक में बदलाव होते रहे और महिलाएं भी इसमें शामिल होती रही।
द्वितीय विश्व युद्ध में कम्प्यूटर पर काम करने वाले लोगों की ज्यादा आवश्यकता हुई। तब पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के मूर स्कूल ऑप इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में 200 से अधिक महिलाओं को सेना के लिए आर्टिलरी-ट्रेजेक्टरी टेबल बनाने के लिए काम पर रखा गया।
शुरुआती दौर में विज्ञान में महिलाएं
18वीं सदी में महिला वैज्ञानिकों ने खगोल खोज से जुड़ी जानकारियां हासिल कीं। मारिया मिशेल, शुक्र ग्रह की गति की गणना में शामिल रही। इतना ही नहीं कम्प्यूटर द्वारा डिजाइन एल्गोरिथम को एडा लवलेस द्वारा डिजाइन किया गया। ग्रेस हॉपर, प्रोग्रामिंग भाषा के लिए कम्पाइलर डिजाइन करने वाली पहली व्यक्ति थीं। 19वीं सदी और 20वीं सदी की शुरुआत में द्वितीय विश्व युद्ध तक प्रोग्रामिंग मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा की जाती थी। इतिहासकार मैरी क्रोर्कन के अनुसार 18वीं शताब्दी में मैरी एडवर्ड्स ने दशकों तक ब्रिटिश सरकार के लिए खगोलीय तालिकाओं की गिनती करके वार्षिक कलैंडर बनाने का काम किया। ठीक इसी तरह निकोल-रीन-लेपाउट ने फ्रांसीसी वैज्ञानिकों के साथ गणना से जुड़ा हुआ काम किया।
द्वितीय विश्व युद्ध में अधिक महिलाओं को काम पर रखा गया
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेना ने आर्टिलरी ट्रैजेक्टोरियों की गणना करने के लिए महिलाओं के एक समूह को काम पर रखा गया। 1930 के समय महिलाओं को कम्प्यूटिंग और गणना से जुड़े कामों में ज्यादा नियुक्त होने लगी थी क्योंकि इस काम को नीरस और निम्न स्तर के रूप में देखा गया था। विशेषाधिकार प्राप्त पुरुष उस समय इस काम में हिस्सा नहीं लेना चाहते थे। इतना ही नहीं महिलाओं से अलग ब्लैक, विकलांग और अन्य हाशिये से जुड़े लोगों तब कोडिंग के काम पर रखा गया।
इसके बाद द्वितीय विश्व युद्ध में कम्प्यूटर पर काम करने वाले लोगों की ज्यादा आवश्यकता हुई। तब पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी के मूर स्कूल ऑप इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में 200 से अधिक महिलाओं को सेना के लिए आर्टिलरी-ट्रेजेक्टरी टेबल बनाने के लिए काम पर रखा गया। 1944 के ग्रायर दस्तावेजों के मुताबिक़ कम्प्यूटरों पर काम करने वाली लगभग आधी महिलाएं थीं। इतना ही नहीं महिलाओं के 1000 घंटो के गणना के कामों के संदर्भ में ‘किलोगर्ल’ शब्द का इस्तेमाल किया था।
कम्प्यूर से जुड़े के काम के लिए महिलाओं को माना आदर्श
इस तरह से कम्प्यूटर के कामों को करके रोजगार के तौर पर अपनाने में महिलाएं शामिल होने लगी थी। द गार्डियन में छपे लेख के मुताबिक़ प्रौद्योगिकी इतिहासकार मैरी हिक्स के मुताबिक़ महिलाओं ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय बड़े कमरों के समान इलेक्ट्रोमैकेनिकल कम्प्यूटरों को ऑपरेट किया करती थी जो कोड क्रैक करते थे। इससे अतिरिक्त युद्ध में सेना की रसद का जानकारी और बैलिस्टिक गणना का काम करती थी। बाद में सरकारी विभाग में डेटा इकट्ठा करने के लिए सिविल सेवा विभागों में उनसे काम लिया गया। हिक्स के मुताबिक़ इस काम को अकुशल (अनस्किल्ड), अत्याधिक महिलाओं वाला काम (हाईली फेमिनाइज़ड) के तौर पर देखा गया।
हिक्स आगे कहती हैं कि महिलाओं को उन नौकरियों के लिए बहुत आसान श्रम के तौर पर भी देखा गया। प्रबंधकों ने महिलाओं को कंप्यूटिंग उद्योग के लिए आदर्श माना। शादी और बच्चों की वजह से महिलाओं का करियर छोटा होता है जिसका मतलब था एक ऐसा कार्यबल जो निराश नहीं होता है या प्रमोशन और उच्च वेतन की मांग नहीं करता। लेकिन 1970 के बाद से तस्वीर बदलनी शुरू हो गई। महिलाओं की जगह पुरुषों को आगे लाया गया।
इतिहासकार मैरी क्रोर्कन के अनुसार 18वीं शताब्दी में मैरी एडवर्ड्स ने दशकों तक ब्रिटिश सरकार के लिए खगोलीय तालिकाओं की गिनती करके वार्षिक कलैंडर बनाने का काम किया। ठीक इसी तरह निकोल-रीन-लेपाउट ने फ्रांसीसी वैज्ञानिकों के साथ गणना से जुड़ा हुआ काम किया।
खगोलीय खोज में भी रहीं शामिल महिलाएं
युद्ध के खत्म होने के बाद तकनीक के क्षेत्र में और आगे बढ़ने और अंतरिक्ष की दौड़ जारी हुई। इसमें कम्प्यूटर गणना के लिए ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को फिर से नियुक्त किया गया। नैशनल एडवाइजरी कमेटी फॉर एस्ट्रोनोटिक्स (एनएसीए) में बहुत सी महिलाओं को काम पर रखा गया। एनएसीए और नासा जैसी संगठन महिलाओं की अधिक नियुक्ति में बेहतर रहे। अन्य संस्थानों के मुकाबले इनमें युवा महिलाओं को ज्यादा भुगतान किया गया और शादीशुदा और माँओं को भी टीम में शामिल किया गया।
1960-70 का समय आते-आते मानव गणना का दौर खत्म हुआ और आधुनिक सॉफ्टवेयर विकसित होना शुरू हो गया। इस नये दौर में भी महिलाओं ने काम किया लेकिन उनको महत्व मिलना कम होता गया। सॉफ्टवेयर की बदलाव की दुनिया में सुई फिनले शामिल रही। उन्होंने फॉर्टन कम्प्यूटर भाषा सीखने के बाद लंबे समय तक कोंडिग के क्षेत्र में काम किया। उन्होंने नासा स्पेस मिशन, शुक्र ग्रह के मिशन, अंतरिक्ष यान के क्षेत्र में काम किया।
आधुनिक सॉफ्टवेयर और लैंगिक असमानता
धीरे-धीरे तस्वीर बदलनी शुरू हो गई और महिलाओं के लिए तकनीकी क्षेत्र में चुनौतियां आने लगी। इतिहासकारों के अनुसार महिलाओं की इस क्षेत्र से बाहर किया गया। जैसे-जैसे कम्प्यूटर इंडस्ट्री आगे बढ़ती रही और ताकतवर होती चली आई पुरुषों को महत्व दिया गया। महिलाओं को इससे निकाल दिया गया। रिसर्चर सुई गार्डनर के मुताबिक़ महिलाएं सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री में करियर की शुरुआत में उत्साह के साथ आती हैं लेकिन वर्षों बाद किसी तरह की कोई तरक्की न होने की वजह से वे हतोत्साहित होकर रह जाती हैं।
सॉफ्टवेयर, तकनीकी क्षेत्र में महिलाओं के साथ भेदभाव कई स्तर पर हो रहा है। कंपनियां महिला कर्मचारियों और पुरुषों को अलग-अलग तरह से देखती हैं। उनके वेतन में अंतर होता है। उनके काम को कम महत्व दिया जाता है। रूढ़िवाद की वजह से तकनीकी क्षेत्र को महिलाओं का क्षेत्र नहीं माने वाली बात की जाती है। फेसबुक, गूगल जैसी कंपनियों में महिलाओं के साथ जेंडर पे गैप की बात सामने आ चुकी हैं।
तमाम चुनौतियों के बावजूद महिलाएं इस क्षेत्र आज भी मौजूद हैं। तकनीक के नये रूप को आकार देने में किसी से पीछे नहीं है। इतिहास में दर्ज दस्तावेज साफ जाहिर करते है कि कैसे ख़ासतौर पर कम्प्यूटिंग के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान को भुलाया गया। आधुनिक समय में रूढ़िवादी सोच और पूर्वाग्रहों को स्थापित किया गया कि कम्प्यूटर, विज्ञान महिलाओं का क्षेत्र नहीं हैं।
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