इंटरसेक्शनलजेंडर औरतों के शरीर पर बाल होना शर्म की बात कैसे है भला!

औरतों के शरीर पर बाल होना शर्म की बात कैसे है भला!

शरीर के बाल मानव शरीर में प्राकृतिक और सामान्य है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने किसी न किसी तरह से सबसे प्राकृतिक और सामान्य प्रक्रिया को एक अभिशाप की तरह देखने के लिए भी लोगों को मजबूर कर दिया है।

पितृसत्तात्मक व्यवस्था में महिलाओं के शरीर, उसकी सुंदरता को लेकर ख़ास पैमाने तय किए गए हैं। अगर कोई महिला इन नियमों से इतर है तो उनके स्त्रीत्व पर सवाल खड़े कर दिए जाते हैं। उनका मज़ाक बनाया जाता है और उन्हें शर्मिंदा भी किया जाता है। इसी तरह महिलाओं की शारीरिक सुंदरता को लेकर यह कहा जाता है कि महिलाओं के शरीर पर बाल नहीं होने चाहिए।

शुरुआत से ही समाज ने यह सोच थोपी है कि महिलाओं के शरीर के बाल उन्हें अनाकर्षक बनाते हैं। लेकिन पुरुषों के शरीर पर बाल उन्हें अधिक ‘मर्द’ बनाते हैं। शरीर पर बाल होना एक प्राकृतिक और सामान्य बात है लेकिन पितृसत्तात्मक समाज ने इस सामान्य बात को महिलाओं के लिए एक शर्मिंदगी की वजह बना दिया है। समाज ने हर चीज के अर्थ और महत्व को विशेष जेंडर से जोड़ दिया है जो कि यह निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति ‘मर्दाना’ और ‘स्त्री’ कैसे है।

उदाहरण के लिए देखें तो अगर कोई पुरुष बिना अपने पैरों और अंडरआर्म्स के बालों को शेव किए बिना हाफ पैंट और हाफ टीशर्ट पहन ले तो वह लोगों को बहुत ही कूल और मर्दाना लगता है। लेकिन कोई महिला बिना अपने पैरों के बालों को शेव किए हुए हाफ पैंट पहन ले तो या अंडरआर्म्स (बगल) के बाल न शेव करे तो फिर उसे गंदी, अनपढ़, अनहाईजीनिक और पता नही क्या-क्या सुनना पड़ता है।

“मैं तो हमेशा अपने बालों को शेव करती हूं”, “तुम तो इतनी पढ़ी-लिखी हो और तुम्हें तो बहुत सारी टेक्निक पता होंगी जिससे तुम इन्हें साफ कर सकती हो।”

द गार्डियन में छपे लेख के अनुसार शरीर के बालों को हमेशा से ‘मर्दाना’ समझा जाता है। इसलिए समाज को ये बाल महिलाओं के शरीर पर ज्यादा आकर्षक नहीं लगता है। पितृसत्तात्मक समाज के इन मानदंडों के अनुसार औरतों को ज्यादा फेमिनिन दिखने के लिए अपने पूरे शरीर के बालों को हटाना पड़ता है। लेकिन पुरुषों को ऐसा नहीं करना पड़ता है क्योंकि उन्हें ज्यादा मजबूत और मर्दाना दिखना होता है। कुल मिलाकर शरीर पर बाल होना और न होना हमारी लैंगिक पहचान से भी जुड़ा हुआ है।

शरीर पर बालों के लिए किया जाता है जज

एक दिन जब मैं और मेरे कुछ दोस्त आपस में बातचीत कर रहे थे तो उनमें से एक ने अचानक मेरी टांगों पर बाल देखें। उसने तुरंत मुझसे कहा, “मुझे यह गंदगी बिलकुल अच्छी नहीं लगती है। मैं तो हमेशा अपने बालों को शेव करती हूं। तुम तो इतनी पढ़ी-लिखी हो और तुम्हें तो बहुत सारी टेक्निक पता होंगी जिससे तुम इन्हें साफ कर सकती हो। छोटे कपड़े पहनकर बाहर जाती हो तो लोग देखते हैं।”

मैंने उसे जवाब देते हुए कहा, “मुझे शेव करने का ज़रूरत नहीं महसूस होती। हर महीने इतना खर्च और तमाम प्रक्रियाओं से गुज़रने का क्या ही मतलब है जब फिर से उन बालों को वापस आना ही है।” तभी एक दूसरी दोस्त ने मुझे टोकते हुए बोला फिर तुम तो अंडरआर्म्स के बालों को भी शेव नहीं करती होगी। इस पर मेरा जवाब था, “बिलकुल नहीं।”

पूंजीवाद ने कैसे गढ़ी महिलाओं के शरीर पर बालों को लेकर हीनता

हम हर रोज़ टीवी, अख़बार या फिर इंटरनेट के ज़रिये ऐसे बहुत से विज्ञापन देखते हैं जो महिलाओं के शरीर के बालों को शर्मिदगी से जोड़ते हैं। इनमें महिलाओं में बॉडी हेयर को असहजता और आत्मविश्वास की कमी से जोड़ा जाता है। जैसे, “क्या आप भी अपने डार्क स्पॉट से परेशान हैं, क्या आपकी हेयर ग्रोथ बहुत जल्द होती है, जल्दी से इस क्रीम का इस्तेमाल कर पाएं छुटकारा।”

इसके अलावा फिर कुछ लेख हमें पढ़ने को मिल जाता है जिनकी हेडलाइंस कुछ इस प्रकार की होती हैं कि बॉलीवुड की हीरोइन के क्लीन अंडरआर्म्स का राज। आपको ये क्रीम दिला सकती है स्मूथ स्किन। इस तरह के प्रचार और विज्ञापनों की वजह से महिलाओं के शरीर के बालों को एक गैर-ज़रूरी हिस्से की तरह पेश किया जाता है। 

तस्वीर साभारः श्रेया टिंगल फेमिनिज़म इन इंडिया के लिए।

इन सब की वजह से जिनको अपने बाल शेव करना होता है या फिर नहीं भी करना होता है वे ज़रूर असमंजस में पड़ जाते हैं। ज़्यादातर लोग पूंजीवादी पितृसत्ता के दबाव में आकर अपने बालों को शेव करने का फैसला ले लेते हैं। पूंजीवादी पितृसत्ता ने लोगों के दिमाग में यह बसाने की कोशिश की है कि हमारे शरीर के बाल प्राकृतिक नहीं होते है और वे इसमें सफल भी हुए हैं। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है ताकि वह अपना व्यापार खड़ा कर सकें और मार्केट में अपने प्रोडक्ट्स को बेच सकें। पुरुषों के स्वामित्व वाले बाज़ार में महिलाओं के शरीर की आवश्यकता को बताकर इन्हें बेचा जाता है। केवल महिलाओं पर ही शरीर के बाल शेव करने के लिए दबाव डाला जाता है। एक चिकने, बिना बालों वाले शरीर को स्त्री सौंदर्य के लिए आदर्श बना दिया गया है।

हमारे शरीर के हर अंग की तरह बाल भी हमें स्वस्थ और सुरक्षित रखने में भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के तौर पर हमारी भौहें और पलकें हमारी आंखों को गंदगी और बैक्टीरिया से बचाती हैं। हमारे शरीर के पर इन बालों का होना किसी तरह की गंदगी नहीं है बल्कि यह तो शरीर की सुरक्षा के लिए एक प्राकृतिक ज़रूरत है।  


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