‘वह तो हमेशा बीमार रहती हैं’, ‘उसे तो हमेशा दर्द ही रहता है’, ‘उसकी बीमारी का कोई इलाज नहीं है’, ‘नींद न आना भी कोई बीमारी है’, ‘हल्का-फुल्का दर्द तो सहना ही चाहिए’ और ‘जरा सा कुछ हो जाए तुरंत डॉक्टर के जाना सही नहीं है’। ये कुछ ऐसी बातें हैं जो हमें ख़ासतौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ी किसी समस्या या पीड़ा के लिए सुनने को मिलती हैं। रूढ़िवादी पितृसत्तात्मक समाज के इसी कंडीशनिंग की वजह से महिलाएं अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती हैं। हल्का-फुल्का कह खुद के दर्द को नज़रअंदज करती रहती है जिस वजह से वे ताउम्र एक भीषण बीमारी के साथ बिना इलाज के भी बिता देती हैं। लेकिन बीमारी कोई भी उसका नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए।
अगर के शरीर के किसी भी हिस्से में लगातार हल्का दर्द बार-बार होता है तो इसको बिलकुल भी साधारण नहीं मानना चाहिए। आम सी दिखने वाली परेशानी फाइब्रोमायल्जिया की समस्या भी हो सकती है। फाइब्रोमायल्जिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें कई तरह की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति से गुजरना पड़ता है। फाइब्रोमायल्जिया बीमारी को अक्सर गलत समझा जाता है। आमतौर पर इसे ल्यूपस और गठिया संबंधी बीमारी के रूपों के साथ वर्गीकृत किया जाता है। सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेनशन (सीडीसी) के मुताबिक़ यह बीमारी पुरुषों की तुलना में महिलाओं में दोगुनी होने की संभावना होती है। अक्सर इसके लक्षणों की वजह से महिलाओं को को उनकी शारीरिक स्थिति के कारण शर्मसार भी किया जाता है।
फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त लोगों का दिमाग दर्द को उस तरह से प्रोसेस नहीं करता है जिस तरह से बिना फाइब्रोमायल्जिया वाले लोग करते हैं। दिमाग के न्यूरोमीटर जैसे सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन के निचले स्तर पर होने की वजह से दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील और गंभीर बना देता है।
फाइब्रोमायल्जिया क्या है
फाइब्रोमायल्जिया सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जो पूरे शरीर में दर्द या दर्द की अन्य कारणों की स्थिति है। इस स्थिति में लोग अक्सर थकावट, नींद की समस्या, भावनात्मक और मानसिक अवसाद से गुजरते हैं। फाइब्रोमायल्जिया की स्थिति से गुजरने वाले लोग अधिक संवेदनशील होते हैं। जिस व्यक्ति के फाइब्रोमायल्जिया है वह दबाव, तापमान (गर्म या ठंडा), चमकदार रोशनी और शोर के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। यूएस. हेल्थ डिपार्टमेंट के वीमन हेल्थ में छपी जानकारी के अनुसार फाइब्रोमायल्जिया काम करने और दैनिक गतिविधियों को करने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
फाइब्रोमायल्जिया के कारण और लक्षण
यह बीमारी ऐसी भी है जिसके होने की वजह जेनेटिक्स भी मानी जाती है। हालांकि शोधकर्ता फाइब्रोमायल्जिया के मुख्य वजहों के बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। लेकिन वंशानुक्रम (जेनेटिक्स) कारणों को भी इसके होने की पूरी संभावना बताया है। इस दिशा में हुए अध्ययन बताते हैं कि फाइब्रोमायल्जिया से ग्रस्त लोगों का दिमाग दर्द को उस तरह से प्रोसेस नहीं करता है जिस तरह से बिना फाइब्रोमायल्जिया वाले लोग करते हैं। दिमाग के न्यूरोमीटर जैसे सेरोटोनिन और नॉरपेनेफ्रिन के निचले स्तर पर होने की वजह से दर्द के प्रति अधिक संवेदनशील और गंभीर बना देता है।
फाइब्रोमायल्जिया के लक्षण हालांकि बिना किसी चेतावनी के भी हो सकते है, लेकिन कुछ स्थिति ऐसी होती है जिन वजह से लक्षण साफ होते हैं। गर्भावस्था या मेंस्ट्रुएल साइकल के दौरान हार्मोनल बदलाव की वजह से शरीर में हार्मोन्स का स्तर गिर जाता है तो सोने में अधिक परेशानी होती है। पीरियड्स शुरू होने से पहले सिरदर्द अधिक हो जाता है। पीरियड्स बहुत दर्दनाक हो सकते है। लंबे समय तक क्रोनिक तनाव में रहने की वजह से भी शरीर में फाइब्रोमायल्जिया होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके अलावा किसी भी तरह का तनाव चाहे वह काम या किसी घटना से जुड़ा हो, किसी व्यक्ति की मृत्यु का आघात हो तो फाइब्रोमायल्जिया बहुत बढ़ जाता है।
फाइब्रोमायल्जिया के लक्षणों में वृद्धि मौसम के बदलाव से भी जुड़ी हुई है। कुछ महिलाएं तापमान के बदलाव जैसे गर्म से ठंडा हो जाने या नमी के दिनों में दर्द की शिकायत करती है। फाइब्रोमायल्जिया की वजह से लोग मांसपेशियों में अधिक दर्द और थकावट का सामना करते हैं।
मेडिकल न्यूज़ टुडे.कॉम में प्रकाशित जानकारी के अनुसार कुछ अध्ययन ये बताते है कि जिन महिलाओं की किसी ट्रामा की हिस्ट्री होती है तो उनको फाइब्रोमायल्जिया होने की संभावना बहुत रहती है। 2017 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ फाइब्रोमायल्जिया से ग्रसित 49 प्रतिशत महिलाओं ने अपने बचपन में किसी भावनात्मक या शारीरिक उत्पीड़न का सामना किया था। इतना ही नही फाइब्रोमायल्जिया से ग्रसित महिलाओं में छह गुना अधिक पोस्ट ट्रामैटिक स्ट्रैस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) की हिस्ट्री भी देखी गई। इसके अलावा इसे एक ऑटोइम्यून डिसऑर्डर भी कहा गया। यह जब होता है जब शरीर, स्वस्थ्य टिशू पर हावी हो जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार फाइब्रोमायल्जिया में सूजन और दर्द की वजह ऑटो इम्यून डिसऑर्डर भी है। इसके अलावा सेंट्रल सेंसिटाइजेशन भी एक कारक है जिसकी वजह से नसें बहुत अति सक्रिय और संवेदनशील होती है। फाइब्रोमायल्जिया से ग्रसित लोगों में इस वजह से दर्द के प्रति संवेदना बढ़ जाती है जो सेंट्रल सेंसिटाइजेशन से भी जुड़ा है।
फाइब्रोमायल्जिया से प्रभावित महिलाओं को क्यों किया जाता हैं शर्मसार
रूढ़िवादी समाज में महिला स्वास्थ्य से जुड़ी स्थिति को चिकित्सा के पहलू से नहीं देखा जाता है। इस वजह से महिलाओं के बीमार पड़ने और बार-बार किसी न किसी बीमारी या दर्द होने की वजह से उन्हें शर्मसार किया जाता है। फाइब्रोमायल्जिया रोग महिलाओं के शरीर को अलग तरह से प्रभावित करता है। ऑक्सफोर्ड एकेडमिया में प्रकाशित जानकारी के मुताबिक़ फाइब्रोमायल्जिया से पीड़ित बहुत सी महिलाएं को बिना किसी गलती के भी कलंकित किया जाता है। पश्चिमी समाज में प्राचीन काल में शारीरिक दर्द को किसी सजा के मिलने से जोड़ने की प्रवृत्ति की वजह से नकारात्मक तौर पर देखा जाता है। नकारात्मक सांस्कृतिक विश्वास और दृष्टिकोण के कारण फाइब्रोमायल्जिया से ग्रसित महिलाओं के शारीरिक दर्द और अन्य लक्षणों की वजह से उन्हें लांछित या अपमानित किया जाता है।
जिन महिलाओं की किसी ट्रामा की हिस्ट्री होती है तो उनको फाइब्रोमायल्जिया होने की संभावना बहुत रहती है। 2017 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक़ फाइब्रोमायल्जिया से ग्रसित 49 प्रतिशत महिलाओं ने अपने बचपन में किसी भावनात्मक या शारीरिक उत्पीड़न का सामना किया था।
फाइब्रोमायल्जिया का निदान
हेल्थलाइन में प्रकाशित लेख के मुताबिक़ फाइब्रोमायल्जिया का उपचार बहुत कठिन है क्योंकि इसके लक्षण एक्स-रे, खून परीक्षण और अन्य जांच में नहीं दिखते हैं। पीरियड्स होने वाले लोगों में जो पीरियड्स में बहुत दर्द का सामना करते हैं वे भी इसे सामान्य हार्मोनल बदलाव मानकर नज़रअंदाज कर देते हैं। मायोक्लीनिक के मुताबिक़ बहुत से लोगों में फाइब्रोमाइयलिज्या की पहचान तीन या उससे लंबे समय तक दर्द होने के बाद होता है। इसके निदान के लिए और दर्द को कम करने के लिए थेरेपी, ध्यान, नींद थेरेपी, शारीरिक व्यायाम पर ध्यान देना चाहिए।
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