समाजख़बर संवर्धिनी न्यास का ‘गर्भ संस्कार’ कार्यक्रमः गर्भवती महिलाएं कैसे दें ‘संस्कारी’ बच्चों को जन्म

संवर्धिनी न्यास का ‘गर्भ संस्कार’ कार्यक्रमः गर्भवती महिलाएं कैसे दें ‘संस्कारी’ बच्चों को जन्म

राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने गर्भावस्था के दौरान महिला और बच्चे के लिए सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मंत्र उच्चारण और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने का कहा है।  राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ी संस्था संवर्धिनी न्यास ने गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भ संस्कार अभियान की शुरुआत की है।

“माँ-बाप का संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण और भगवत गीता के पढ़ने से पेट में पल रहे बच्चे के दिमाग और विकास पर गहरा असर होता है जो उनके जन्म के बाद भी जारी रहता है। संस्कृत के श्लोकों के उच्चारण का पॉजिटिव वाइब्रेशन गर्भ में बच्चे तक पहुंचता है।” यह कहना है राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े समूह संवर्धिनी न्यास का जो इस प्रक्रिया के ज़रिये भारतीय महिलाओं के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और अध्यात्मिक विकास का दावा करता है। अक्सर गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भावस्था के दौरान अच्छा भोजन, स्वास्थ्य सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान देने की बातें डॉक्टर और बड़ों द्वारा कही जाती हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने गर्भावस्था के दौरान महिला और बच्चे के लिए सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए मंत्र उच्चारण और धार्मिक ग्रंथों को पढ़ने को कहा है। 

राष्ट्रीय सेविका समिति से जुड़ी संस्था संवर्धिनी न्यास ने गर्भवती महिलाओं के लिए ‘गर्भ संस्कार’ अभियान की शुरुआत की है। राष्ट्रीय सेविका समिति, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ी है। द मिंट में प्रकाशित ख़बर के अनुसार संवर्धिनी न्यास ने बताया है कि गर्भ संस्कार कार्यक्रम को प्रेंग्नेसी से लेकर डिलीवरी तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण से आधार पर तैयार किया है। दक्षिणपंथी विचारधारा वाली इस संस्था ने जोर देकर कहा है कि यह कार्यक्रम आने वाली पीढ़ी को देशभक्त और सभ्य केवल तभी बनाएगा जब माँएं गर्भावस्था के दौरान नौ महीने धार्मिक किताबें पढ़ेंगी और संस्कृत के मंत्रों का उच्चारण करेगी। गर्भ संस्कार सुनिश्चित करेगा कि बच्चा अपनी माँ की कोख में ही सिंद्धातों और संस्कृति को सीखें।

संवार्धिनी न्यास की ओर से जोर देते हुए कहा है कि चार महीने के बाद गर्भ में बच्चा सुनना शुरू कर देता है यह विज्ञान द्वारा सिद्ध किया गया है। इसलिए माता-पिता गर्भ में बच्चे से एक निश्चित समय पर बात करेंगे, बच्चे को परिवार के सदस्यों, देश, अपने राज्य और देश की महान विभूतियों की कहानियां बताएंगे ताकि बच्चों में संस्कारी मूल्यों से परिचय किया जा सकें।

रविवार 11 जून को यह अभियान शुरू किया गया है जिसे संवर्धिनी न्यास से जुड़े डॉक्टर द्वारा पूरे देश में लागू किया जाएगा। गर्भवती माँ और उसके परिवार वालों को संस्कारी बच्चा पैदा करने के लिए विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी जाएगी जिसमें स्वस्थ भोजन लेना, अच्छा वातावरण देना शामिल है। 

संवर्धिनी न्यास विंग ने कहा है कि हमने देश को पांच क्षेत्रों में बांटा गया है और हर जगह 10 डॉक्टरों की एक टीम होगी जो प्रोग्राम लागू करेगी। इनमें से हर डॉक्टर अपने संबंधित क्षेत्रों में गर्भावस्था के 20 मामलों को लेकर अपने क्षेत्र में अभियान शुरू करेगा। साथ ही कहा गया है कि गर्भ संस्कार प्रोग्राम को अमल पर लाने के लिए आठ लोगों की एक केंद्रीय टीम भी बनाई गई है। केंद्रीय टीम में आर्युवेदिक डॉक्टर, होम्योपैथिक डॉक्टर, ऐलोपैथिक डॉक्टर और कुछ अन्य विषय विशेषज्ञ शामिल होंगे। संघ के एक सदस्य का कहना है कि उन्हें पूरा विश्वास है कि गर्भ संस्कार प्रोग्राम भारत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

तस्वीर साभारः Scroll.in

गर्भ संस्कार कार्यक्रम में क्या-क्या कब होगा

गर्भ संस्कार के दौरान माता-पिता को बच्चें के साथ गर्भ में बातचीत करना सिखाया जाएगा। संवार्धिनी न्यास की ओर से जोर देते हुए कहा है कि चार महीने के बाद गर्भ में बच्चा सुनना शुरू कर देता है यह विज्ञान द्वारा सिद्ध किया गया है। इसलिए माता-पिता गर्भ में बच्चे से एक निश्चित समय पर बात करेंगे, बच्चे को परिवार के सदस्यों, देश, अपने राज्य और देश की महान विभूतियों की कहानियां बताएंगे ताकि बच्चों का संस्कारी मूल्यों से परिचय करवाया जा सके।

द वायर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार इस कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य बच्चे के लिए सुंदरकांड, भगवत गीता, रामायण और महाभारत का पाठ करना चाहिए। तेलंगाना की राज्यपाल ने संवर्धिनी न्यास के प्रयासों की सराहना की और कहा कि गर्भावस्था के प्रति ‘वैज्ञानिक और समग्र दृष्टिकोण’ का गर्भावस्था पर हर हाल में सकारात्मक असर पड़ेगा। इससे पहले मार्च में दिल्ली में जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में गर्भ संस्कार वर्कशॉप का आयोजन किया गया था। इस वर्कशॉप में देशभर में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाले बहुत से डॉक्टर, आर्युवेदिक डॉक्टर और दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने भी हिस्सा लिया था। 

आरएसएस की विचारधारा और महिलाएं

आरएसएस और उससे जुड़े अन्य समूह ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के पैरोकार हैं। ये संगठन पूरी तरह महिला विरोधी विचार रखते हैं। इतिहास से लेकर वर्तमान तक महिलाओं की स्वतंत्रता और स्वायत्ता से जुड़े कई मुद्दों पर उनके ख़िलाफ़ सार्वजनिक मंचों से राय जाहिर करते दिखे हैं। आरएसएस और उससे सहयोगी संगठन महिलाओं की स्वतंत्रता के विरोधी और मनुस्मृति के विचारों के पैरोकार ही नज़र आए हैं। मनुस्मृति के अनुसार महिलाओं को कभी आत्मनिर्भर नहीं होना चाहिए, घर हो या बाहर हमेशा पुरुषों के अधीन रहना चाहिए।

तेलंगाना की राज्यपाल तमिलिसाई साउंडराजन ने कहा कि गर्भवती महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ्य बच्चे के लिए सुंदरकांड, भगवत गीता, रामायण और महाभारत का पाठ करना चाहिए। तेलंगाना की राज्यपाल ने संवर्धिनी न्यास के प्रयासों की सराहना की और कहा कि गर्भावस्था के प्रति “वैज्ञानिक और समग्र दृष्टिकोण” का गर्भावस्था पर हर हाल में सकारात्मक असर पड़ेगा।

साल 2013 में आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि बलात्कार इंडिया में होते है भारत में नहीं। आरएसएस प्रमुख का कहना था कि पश्चिमी सभ्यता को अपनाने का यह परिणाम है। इसी साल उन्होंने कहा था कि अगर पत्नी घर के काम, बच्चे और परिवार की देखभाल करने में असमर्थ रहती है तो पति को उसे अपनाने से इनकार कर देना चाहिए। जबतक पत्नी यह कॉन्ट्रेक्ट पूरा करती है तबतक ही वह पति के साथ रह सकती है। साथ ही इससे पहले आरएसएस से जुड़े के. सुदर्शन ने कहा था कि हर हिंदू महिला को कम से कम पांच बच्चे पैदा करने चाहिए। 

आरएसएस की ओर से कई बार कहा जा चुका है कि महिलाओं को केवल घर में रहना चाहिए। बीते कुछ समय पहले तलाक पर बोलते हुए आरएसस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि तलाक अधिकतर समृद्ध और शिक्षित परिवारों में होता है। संस्कार और संस्कृति की दुहाई देने वाले आरएसएस ने हमेशा महिलाओं को लेकर इसी तरह की सोच जाहिए की है। अगर और पीछे जाए तो आरएसएस ने हिंदू कोड बिल का भी विरोध किया था जो महिलाओं को तलाक, उत्तराधिकारी, अपनी पसंद से शादी करने जैसे अधिकार देता है।

दक्षिणपंथी विचारों को बढ़ाने वाले आरएसएस से जुड़े अलग-अलग कई संगठन पूरी तरह से समाज में हिंसा और क्रोध को बढ़ावा देने का काम कर रहे हैं। इनकी महिला विंग इन्हीं विचारों को छोटी उम्र की लड़कियों और महिलाओं में प्रसारित कर रहे हैं। राष्ट्र सेविका समिति, हिंदू वाहिनी, दुर्गा वाहिनी जैसे कई समूह महिलाओं के भीतर हिंदुओं पर खतरे और मुसलमान के प्रति नफरत जैसी बातों को स्थापित करने का काम कर रहे हैं। शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के नाम पर लगी शाखाओं में महिलाओं को पितृसत्ता के नियमों के बारे में जानकारी दी जा रही है और उन्हें जीवन में अपनाने तक पर जोर दिया जा रहा है।

तस्वीर साभारः BBC

रविवार की शाखाओं में मणिकर्णिका प्रोग्राम के तहत छोटी बच्चियों को आत्मसुरक्षा और स्वास्थ्य के नाम पर संघ और उसके विचारों से जोड़ा जा रहा है।  पुल्तिज़र सेंटर में प्रकाशित ख़बर के अनुसार दुर्गा वाहिनी ग्रुप लड़कियों में पारंपरिक भूमिकाओं को निभाने के साथ-साथ उन्हें मुस्लिम धर्म विरोधी विचारों को स्थापित करने का काम करता है। यह समूह अच्छी हिंदू महिलाएं कैसे बनें और हिंदू धर्म की सुरक्षा के लिए लड़ने के लिए उन्हें हथियारों को चलाने की ट्रेनिंग दे रहा है।

संस्कृति और संस्कार के नाम पर गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए संवार्धिनी न्यास के प्रोग्राम को राजनीति और वैज्ञानिक नज़रिये से देखने की सबसे पहले आवश्यकता है। संघ और उससे जुड़े समूह इस तरह के प्रोग्राम को चलाकर हिंदू भावनाओं और अंधविश्वास को बढ़ाने का काम कर सकता है जो भारतीय संविधान के विरूद्ध है। दरअसल भारतीय संविधान वैज्ञानिक सोच को प्रचारित करने का आह्वन करता है। यह योजना पूरी तरह राजनीतिक और उस सांस्कृति को बढ़ावा देती है जहां वैज्ञानिक तर्कों का कोई मूल्य नहीं है। 


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