इंटरसेक्शनलजाति क्यों महिलाओं को मनुस्मृति के ख़िलाफ़ होना चाहिए

क्यों महिलाओं को मनुस्मृति के ख़िलाफ़ होना चाहिए

मनुस्मृति ग्रंथ अगर थ्योरी है तो हम उसका प्रैक्टिकल आज अपनी आंखों के सामने लव जिहाद, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी, आरक्षण विरोधी सत्ता के रूप में देख रहे हैं।

बीते 15 दिसंबर को द हिंदू में एक रिपोर्ट छपी, इस रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के एक कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए मनुस्मृति को कोट किया। जी.किशन रेड्डी ने कहा, “मनु ने पुलिस के काम को 2 अलग-अलग विभागों में बांटा- आपराधिक जांच विभाग और कानून और व्यवस्था विभाग। ध्यान रहे यहां हमारे देश के केंद्रीय मंत्री मनु को कोट कर रहे हैं एक आधिकारिक कार्यक्रम के दौरान, उस देश के मंत्री जो संविधान से चलता है।”

दूसरा वाकया कुछ यूं है। पिछले महीने सोनी टीवी चैनल पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम केबीसी जिसे अभिनेता अमिताभ बच्चन होस्ट करते हैं, उस शो के एक एपिसोड में मनुस्मृति से जुड़ा एक सवाल पूछा गया। यह सवाल था कि 25 दिसंबर 1927 को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने किस ग्रंथ की प्रतियां जलाई थी। इसका जवाब ज़ाहिर है मनुस्मृति है। महज़ इस सवाल पर बीजेपी महाराष्ट्र के एक एमएलए अभिमन्यु पवार ने हिंदू भावनाओं को आहत करने के आरोप के तहत शिकायत दर्ज करवा दी।

ये तो बस 2 वाकये हैं। बीते 6 सालों में कई ऐसे और वाकये हुए हैं जिसके ज़रिये मनुस्मृति में लिखी गई बातों को हमारे देश में लागू करने की पुरजोर कोशिश हुई है। यह कोशिश आज भी जारी है। ज़रूरी नहीं कि कोई यह घोषणा करे कि हमारे देश में मनुस्मृति लागू की जा रही है तभी हमें पता चले। अपने आस-पास हो रही घटनाओं, मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक माहौल इस बात की पुष्टि करते हैं कि मनुस्मृति अब पहले से कहीं ज़्यादा प्रभावी ढंग से हमारे बीच मौजूद है। इस स्थिति में 25 दिसंबर 1927 के दिन को याद करना और भी ज़रूरी हो जाता है। यह दिन ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि इस दिन बाबा साहब आंबेडकर ने मनुस्मृति की प्रतियां जलाई थी। यह घटना प्रतीक थी कि मनुस्मृति में लिखी बातों को खारिज करने की। मनुस्मृति दहन दिवस को एक उत्सव के रूप में मनाना और इसमें लिखी बातों को खारिज करना नारीवाद की विचारधारा में विश्वास करने वालों के लिए भी आवश्यक है। अगर कोई शख्स यह कहता है कि वह नारीवादी है तो उसे मनुस्मृति का भी विरोध करना होगा क्योंकि मनुस्मृति औरतों की व्याख्या एक दोयम दर्ज़े के इंसान, पुरुषों की संपत्ति, उनकी गुलाम के रूप में करता है।

मनुस्मृति ग्रंथ अगर थ्योरी है तो हम उसका प्रैक्टिकल आज अपनी आंखों के सामने लव जिहाद, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी, आरक्षण विरोधी सत्ता के रूप में देख रहे हैं।

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मनुस्मृति का विरोध क्यों ज़रूरी है इसके लिए हमें इस ग्रंथ में औरतों के लिए लिखी गई कुछ रूढ़िवादी, पितृसत्ता से ओत-प्रोत विचारों से गुज़रना होगा। औरतों के बारे में मनु के विचार कुछ इस तरह थे :

  • एक औरत को चाहे वह युवा हो या बुज़ुर्ग उसे आत्मनिर्भर होकर खुद से कुछ नहीं करना चाहिए, यहां तक कि अपने घर में भी नहीं।
  • रात हो या दिन महिलाओं को हमेशा पुरुषों और अपने परिवार के अधीन ही रहना चाहिए।
  • बचपन में एक औरत अपने पिता, जवानी में अपने पति, और बुढ़ापे में अपने बेटे के अधीन होनी चाहिए। एक महिला को कभी भी आत्मनिर्भर नहीं होना चाहिए।
  • महिलाओं के पास तलाक का अधिकार नहीं होना चाहिए।
  • सभी जातियों की यह ज़िम्मेदारी होती है कि वे अपनी पत्नी की रक्षा करें, सबसे कमज़ोर पति को भी अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए।
  • एक ऐसी औरत जिसके बाल लाल हो, या जिसका कोई अंग खराब हो, जो अधिक बीमार रहती है, जिसकी लाल आंखे हो, जिसके बाल बहुत ज़्यादा या बिल्कुल न हो, ऐसी औरतों से शादी नहीं करनी चाहिए।
  • भद्र पुरुषों को ऐसी औरतों से शादी नहीं करनी चाहिए जिनके भाई न हो या जिनके माता पिता की समाज में प्रतिष्ठा न हो।
  • रिझाना महिलाओं की प्रवृत्ति होती है इसलिए भद्र लोगों को औरतों के साथ अकेले वक्त नहीं बिताना चाहिए।

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ऊपर लिखी गई बातें मनु के विचारों का बस एक हिस्सा भर हैं। इन बातों से यही साबित होता है कि महिलाओं का अपना कोई व्यक्तित्व नहीं होता, उनके अधिकार नहीं होते। महिलाएं सिर्फ ब्राह्मण जाति के पुरुषों की गुलामी के लिए पैदा लेती हैं। इससे इतर अगर वह कुछ करती हैं तो वह मनु की ब्राह्मणवादी पितृसत्ता के अनुसार अच्छी औरतों के खांचे में फिट नहीं बैठती। औरतों को शिक्षित नहीं होना चाहिए, औरतों के अंदर यौन इच्छा नहीं होना चाहिए, उनके पास संपत्ति का अधिकार नहीं होना चाहिए, एक महिला को हमेशा पुरुष के अधीन ही होना चाहिए और वह पुरुष सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मण होना चाहिए। 

उदाहरण के लिए मनुस्मृति में लिखी गई ये बातें पढ़िए :

अगर एक महिला उच्च जाति के पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाना पसंद करती है तो यह एक दंडनीय अपराध नहीं है। लेकिन अगर एक महिला निचली जाति के पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाना पसंद करती है तो उसे सज़ा मिलनी चाहिए और उसे अलग रखा जाना चाहिए।

अगर एक निचली जाति का पुरुष किसी उच्च जाति की महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो जो इंसान सवालों के घेरे में हो उसे मौत की सज़ा मिलनी चाहिए।

यानी इस ग्रंथ में यह साफ़ लिखा गया है कि महिलाओं अगर किसी के अधीन हो सकती हैं तो वे सिर्फ ब्राह्मण पुरुष ही होंगे। इस ग्रंथ के मुताबिक इंसान होने का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मण पुरुषों के पास है और बाकी सभी उनकी गुलामी और उनकी खातिरदारी के लिए इस दुनिया में आए हैं। जो ग्रंथ हमें हमारे इंसान होने के मूलभूत अधिकार से ही वंचित करता है क्या उसके दहन का दिवस हमारे लिए एक उत्सव नहीं होना चाहिए? न सिर्फ महिलाओं बल्कि दलित समुदाय के लोगों, शुद्रों को मनुस्मृति में ब्राह्मणों का गुलाम माना गया। मनुस्मृति का मूल, उसकी नींव ही ब्राह्मणवादी पितृसत्ता पर रखी गई है, जो उच्च जाति के ब्राह्मण पुरुषों के अलावा किसी भी अन्य इंसान को कोई अधिकार देने की वकालत नहीं करता।

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जैसा कि लेख की शुरुआत में हमने ज़िक्र किया था कि बीते कुछ सालों से मनुस्मृति के विचारों को और अधिक प्रभावी ढंग से लागू करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि यह भी एक तथ्य कि मनुस्मृति के विचार हमारे समाज में हमेशा मौजूद रहे हैं। ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जातिवाद जो मनुस्मृति का आधार है, उसी आधार पर हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा भी टिका हुआ है। लेकिन बीते कुछ सालों में हमारे देश में दक्षिणपंथी विचारधारा बेहद सशक्त रूप से उभरी है। दक्षिणपंथी विचारधारा की नींव भी मनुस्मृति के विचारों पर ही रखी गई है। तभी तो आए दिन मनुस्मिति की आलोचना दक्षिणपंथी नेताओं को नहीं भाती, वे इस ग्रंथ की आलोचना हिंदू धर्म का अपमान मानते हैं। साथ ही उस देश में जो संविधान से चलता है मनुस्मृति के विचारों का सार्वजनिक रूप से बखान करने से भी नहीं कतराते।

उदाहरण के तौर पर हम ‘लव जिहाद’ जिसकी कोई बुनियाद नहीं है उसके खिलाफ़ बीजेपी की कई राज्य सरकारें कानून लेकर आने की बात कर रही हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो तुरंत इस कानून को पारित कर लागू भी कर दिया। अब उत्तर प्रदेश में इस कानून की आड़ में लोगों के अधिकारों का भी हनन शुरू हो गया है। यह कानून लव जिहाद जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है उसे रोकने के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को सीमित करने के लिए लाया गया है। मनुस्मृति क्या कहती है- यही न कि औरतों को अपनी मर्ज़ी से कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए। लव जिहाद कानून भी तो अंदरखाने यही कहता है कि महिलाएं अपनी मर्ज़ी से किसी से मोहब्बत या शादी नहीं कर सकती। अगर वह किसी विशेष धर्म के इंसान से शादी करती हैं तो उन्हें इस कानून के तहत सज़ा भुगतनी होगी।

मनुस्मृति और उसके विचारों को वर्तमान में हम मौजूदा राजनीतिक माहौल से अलग रखकर नहीं देख सकते। मनुस्मृति ग्रंथ अगर थ्योरी है तो हम उसका प्रैक्टिकल आज अपनी आंखों के सामने लव जिहाद, नागरिकता संशोधन कानून, एनआरसी, आरक्षण विरोधी सत्ता के रूप में देख रहे हैं। वह सत्ता जो अल्पसंख्यक, महिला विरोधी है आखिर वह कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष तौर पर मनुस्मृति को लागू नहीं कर रही तो क्या कर रही है। इसीलिए अपने अधिकारों के लिए जो हमें संविधान ने दिए हैं उनकी रक्षा के लिए हमें मनुस्मृति का विरोध करना ही चाहिए।

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Comments:

  1. Pankaj garge says:

    जरूरत है इसकी की हम समझे की व्यवहारिक रूप से ये विचार धारा हमारे ऊपर हावी है,वो भी उस देश में जहा संविधान लागू है।

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