मैं जब आठवीं कक्षा में थी तब प्रार्थना के बाद आठवीं से बारहवीं तक की छात्राओं को ग्राउंड में ही रोक लिया जाता था। ग्राउंड में हमारी स्पोर्टस टीचर भी मौजूद होती थीं। मैं एक को-एड स्कूल में पढ़ती थी और स्कूल की यूनिफॉर्म स्कर्ट और शर्ट थी। हम लड़कियों को रोज़ हमारी ड्रेस के लिए टोका जाता था। टीचर सबकी स्कर्ट उठा कर यह चेक किया करती थी कि लड़कियों ने नीचे शॉर्टस पहने हैं या नहीं। लड़कियों को ज्यादातर शर्ट बाहर निकालने, घुटनों से ऊपर की स्कर्ट पहनने और स्कर्ट के नीचे शॉर्टस न पहनने के लिए टोका जाता था।
एक दिन, हर रोज़ की तरह टीचर चेकिंग कर रही थी तभी उन्होंने सब के सामने एक लड़की को थप्पड़ मार दिया क्योंकि उसने स्कर्ट के नीचे शॉर्टस नहीं पहने थे। वह आधा घंटा हम सभी लड़कियों के लिए बहुत अपमानजनक और शर्मिंदगी से भरा होता था। क्लास में जाते ही सब एक-दूसरे से पूछा करते थे कि हमें हर रोज़ इस तरह क्यों रोका जाता है और हमारे पास उसका कोई जवाब नहीं होता था।
इस अनुभव को लेकर उसी स्कूल की विद्यार्थी रहीं 21 वर्षीय अनिका (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “यह मेरे लिए बहुत शर्मीदगी भरा था। मुझे यह सब देखकर बहुत अजीब लगता था, गुस्सा भी आता था। सबके सामने स्कर्ट उठाकर चेक करने से ज्यादा असहज और शर्मीदगी वाला और क्या हो सकता है।”
वहीं, 22 वर्षीय सलोनी कहती हैं, “ऐसा करना सबके सामने हमारी इमेज खराब करने जैसा था। इस सबकी वजह से कुछ लड़कियां कई दिनों तक स्कूल नहीं आती थी। टीचर को बच्चों के साथ सहयोग करना चाहिए। वह लड़कियों को अकेले में भी डांट सकती थीं लेकिन उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया। मुझे यह सब बहुत डिप्रेसिंग लगता था। हमारी यूनिफॉर्म स्कर्ट और शर्ट थी इसलिए गेम्स पीरियड में लड़के और लड़कियों को अलग-अलग खिलाया जाता था। लड़को को वॉलीबॉल, बैडमिंटन जैसे खेल खिलाते थे और हमें सिर्फ खो-खो खिलाया जाता था। अगर किसी का खो-खो खेलने का मन ना हो तो उसे एक कोने में बैठे रहना होता था।”
हमारे आसपास लोग दूसरों के कपड़ो को लेकर अपनी राय देना ज्यादा पसंद करते हैं। ख़ासतौर पर जब राय एक महिला या लड़की के कपड़ो पर देनी हो। यह बहुत हद तक खतरनाक तब हो सकता है जब फरमान किसी के कपड़ों पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने, सवाल करने का मौका देता है। यह एक ऐसा माहौल बनाता है जिससे व्यक्ति को घुटन, अपमान और प्रतिबंध महसूस होता है।
स्कूल और कॉलेज में ड्रेस कोड बनाए रखने का आधार ‘समानता’ सुनिश्चित करना होता है। लेकिन यहां यह और कुछ नहीं बल्कि निगरानी के माध्यम से छात्रों और उनके शरीर को नियंत्रित करने का एक तरीका है। इसके ज़रिये उन्हें अपनी शारीरिकता के बारे में जागरूक किया जाता है, जैसे कि वे वस्तु के अलावा और कुछ नहीं हैं। उन्हें कुछ अलग पहनने के लिए सबके सामने अपमानित करना, बॉडी शेमिंग और इसी तरह के सभी ड्रेस कोड सुनिश्चित करने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं। यह छात्रों को उनके शरीर, कपड़ों और पसंद के बारे में असुरक्षित महसूस करता है। ड्रेस कोड स्थापित करने का दावा किसी भी ‘अनुशासन’ या ‘विनम्रता’ को शामिल करने में विफल रहता है।
मिंट में प्रकाशित ख़बर के अनुसार हाल ही में असम सरकार में स्कूली टीर्चस के जींस और टी-शर्ट पहनकर पढ़ाने पर रोक लगा दी। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन में लिखा है कि शिक्षण संस्थानों के कुछ शिक्षकों को अपनी पसंद की पोशाक पहनने की आदत है, जो कभी-कभी लोगों को स्वीकार्य नहीं होती है। चूंकि एक शिक्षक से सभी प्रकार की शालीनता का एक उदाहरण होने की उम्मीद की जाती है। विशेष रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय, एक ड्रेस कोड का पालन करना आवश्यक हो गया है जो कार्यस्थल पर मर्यादा, शालीनता, व्यवसायिकता और उद्देश्य की गंभीरता को दर्शाता हो।
राज्य में स्कूल में शिक्षकों को जींस, टी-शर्ट, लैंगिग जैसे कपड़ों को पहनने के लिए मना किया गया है। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि सभी महिला और पुरुष शिक्षकों को साफ, स्वच्छ और सादगी वाले कपड़े पहनने चाहिए। फैंसी, केजुअल और अधिक रंगीन कपड़ों को पहनने से बचना चाहिए। असम सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग की ओर से शिक्षकों के लिए एक ड्रेसकोड तय किया गया है।
दिल्ली के सरकारी स्कूल में प्राइमरी क्लास की टीचर 40 वर्षीय सोनिया बताती हैं, “महिला टीचर्स को सूट या साड़ी पहनने के लिए कहा जाता हैं। साड़ी बिल्कुल भी आरामदायक नहीं है, यात्रा करने में बहुत दिक्कत होती है। जिस कपड़े में हम असहज हैं उसे पहनकर हमारा सारा ध्यान उसे ठीक करने में ही लगा रहता है। समाज, हमसे यह अपेक्षा करता हैं कि हम ‘कुशल नारी’ होने का परिचय सूट और साड़ी पहन कर ही दे सकते हैं। प्राइमरी कक्षा के बच्चों की टीचर्स के लिए एक ऐसा ड्रेस कोड होना चाहिए जिसमें वह सहज हो। सरकार शायद भारतीय संसकृति को आगे बढ़ाने के लिए सूट और साड़ी पहनने को बोलती है।”
अधिकांश ड्रेस कोड नियमों को संभावित यौन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार के कारण लागू किया जाता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अकेले ड्रेस कोड ऐसे मुद्दों को नहीं रोकते या उनका समाधान नहीं करते हैं। यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार जटिल समस्याएं हैं जिनके लिए सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण बनाने के लिए व्यापक रणनीतियों, नीतियों और शिक्षा की आवश्यकता होती है।
ड्रेस कोड से तय होता एक किस्म का नियंत्रण
ड्रेस कोड के रूप में लगी बाधाएं असमान रूप से एक विशिष्ट लिंग को लक्षित करती हैं। ये जरूरत से अत्यधिक सख्त मानकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं या शालीनता पर अनावश्यक जोर देते हैं। यह वस्तुनिष्ठता या असमानता की भावनाओं को भी बढ़ाने में योगदान देते हैं। दरअसल उचित मानकों को बनाए रखने के साथ-साथ व्यक्तिगत स्वायत्तता और आराम का सम्मान करने के बीच संतुलन बनाना बहुत आवश्यक है। ड्रेस कोड समावेशी और सम्मानजनक तौर-तरीकों पर विचार करने वाला होना चाहिए। उन्हें एक ऐसा वातावरण बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए जहां व्यक्ति ऑब्जेक्ट या सेक्सिट होने के बजाय मूल्यवान और सशक्त महसूस करें।
ऐसे में संगठनों और संस्थानों को अपने ड्रेस कोड के संभावित प्रभाव के बारे में सावधान रहना चाहिए। उन्हें समानता, सम्मान और व्यक्तिगत स्वायत्तता के सिद्धांतों के अनुरूप यह सुनिश्चित करने के लिए नियमित रूप से उनका मूल्यांकन और संशोधन करना चाहिए।
22 वर्षीय सलोनी कहती हैं, “यह सबके सामने लड़की की इमेज खराब करने जैसा था। इस सब की वजह से कुछ लड़किया कई दिनों तक स्कूल नहीं आती थी। टीचर को बच्चों के साथ सहयोग करना चाहिए। वह लड़की को अकेले में भी डांट सकती थी लेकिन उन्होने ऐसा कभी नहीं किया। मुझे यह सब बहुत डिप्रेसिंग लगता था।”
एक ख़ास विचारधार के आधार पर ड्रेस कोड अक्सर चर्चा और आलोचना का विषय होते हैं। यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि ड्रेस कोड नीतियों को संबोधित करने का मतलब शिक्षा के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं की अवहेलना या अनदेखी करना नहीं है। अपनी मर्जी के कपड़े पहनना एक अधिकार का विषय है। हमें किसी भी व्यक्ति को उसकी पसंद के प्रति सम्मानित महसूस करना चाहिए और उनके कपड़ों की पसंद के लिए आपत्तिजनक या तिरस्कृत नहीं करना चाहिए। कैंपस स्पेस में इंटरजेनरेशनल इंटीग्रेशन और आपसी सम्मान पर बातचीत नहीं की जा सकती लेकिन लोकतंत्र में, पसंद की स्वतंत्रता आवश्यक और अपरिहार्य है, जिसे ड्रेस कोड वाले संस्थान भूल गए हैं।