संस्कृतिसिनेमा लस्ट स्टोरीज़ 2: दो वर्गों की दमित यौन इच्छाओं को दर्ज करती ‘द मिरर’

लस्ट स्टोरीज़ 2: दो वर्गों की दमित यौन इच्छाओं को दर्ज करती ‘द मिरर’

इस पूंजीवादी व्यवस्था ने मजदूर वर्ग को ऐसे तहस-नहस किया है कि वे मनुष्य होने की अपनी सामान्य इच्छाओं की पूर्ति से भी वंचित रह जाते हैं। कहानी में दोनों पति पत्नी प्रौढ़ हैं। उनके घर में उन्हें इतना स्पेस नहीं मिलता कि वे दोनों एकदूसरे को प्यार कर सकें, सेक्स कर सकें।

हाल ही में नेटफ्लिक्स पर ‘लस्ट स्टोरीज 2’ फ़िल्म रीलीज़ हुई है। इस फिल्म के संकलन में भी चार अलग-अलग कहानियां हैं जिन्हें चार अलग-अलग निर्देशकों ने बनाया है। फिल्मों की इस श्रृंखला में कोंकणा सेन की निर्देशित फिल्म ‘द मिरर’ देखते हुए मुझे बहुत पहले शायद सत्तर के दशक में बनी एक फ़िल्म आयी ‘पिया का घर।’ अनिल धवन और जया भादुड़ी की इस फ़िल्म में कुछ ऐसी ही समस्या पर बात की गई थी। लेकिन दोनों कहानियों की ज़मीन पर वर्ग का एक बड़ा फर्क है। पिया का घर भी यौन इच्छाओं को स्पेस न मिलने की ही कहानी है। फिल्म में महानगर के दो कमरे के घर में ब्याहकर आई नायिका का जीवन गाँव के बड़े से घर, खेत-खलिहान और बाग में बीता है। अब महानगर के इतने छोटे से घर को देख नायिका हैरान है। नयी शादी है, पति-पत्नी को वहां एकांत नहीं मिल रहा है। दोनों एकदूसरे का साथ चाहते हैं लेकिन घर में ऐसी सुविधा नहीं मिल पा रही है।

वर्ग विभेद, पूंजीवाद और दमित यौन इच्छाओं को दिखाती ‘द मिरर’

लेकिन घर के इस वातावरण से पति इतना असहज नहीं है जितनी पत्नी क्योंकि पति का अब तक का पूरा जीवन ऐसे ही घर में बीता है। ऐसा घर जहां का जीवन उसके लिए सामान्य बात थी लेकिन पत्नी बहुत असहज रहती है। रात में उनके एकांत के पलों में उसे लगता है कोई उनकी बातें सुन रहा है। यौनिकता और उसकी इच्छाओं घुटन और बेबसी के कारण यह फ़िल्म याद आई। लेकिन वह समस्या निम्नमध्यवर्गीय जीवन की थी और तब की थी जब महानगरीय जीवन इतना कठिन नहीं था। जीवन पर पूंजी का इस कदर दखल नहीं था। सबसे बड़ी बात वर्ग का अंतर इतना बड़ा नहीं था।

फ़िल्म के इस संकलन में कोंकणा सेन शर्मा की कहानी ‘द मिरर’ सबसे मज़बूत कहानी है। इस कहानी के विमर्श में तनाव का स्तर वहां पर है जहां इस व्यवस्था में हाशिये के मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं का दमन होता है। फ़िल्म का अंत सुखांत होता है लेकिन वह अपने बाद छोड़ जाती है धारा के पिछड़े मनुष्यों की यौनिकता के अधिकार का बेहद कठिन सवाल।

किसी भी सांस्कृतिक या सामाजिक जीवन में वर्ग सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। कोंकणा सेन की ‘द मिरर’ फ़िल्म में दो वर्गों की कहानी है और दोनों एक-दूसरे के सामने खड़े हैं। उच्च मध्यवर्गीय घरों में काम करती घरेलू कामगार सीमा (अमृता सुभाष) के घर में सिर्फ एक कमरा है जिसमें वह अपनी किशोर बेटी और पति के साथ रहती है। घर में एक ही कमरा होने के कारण पति-पत्नी को रात में एकांत नहीं मिल पाता। दिन में दोनों काम करने के लिए निकल जाते हैं। यही उनका रोज़मर्रा का जीवन है। इस पूंजीवादी व्यवस्था ने मजदूर वर्ग को ऐसे तहस-नहस किया है कि वे मनुष्य होने की अपनी सामान्य इच्छाओं की पूर्ति से भी वंचित रह जाते हैं। कहानी में दोनों पति-पत्नी प्रौढ़ हैं। उनके घर में उन्हें इतना स्पेस नहीं मिलता कि वे दोनों एकदूसरे को प्यार कर सकें, सेक्स कर सकें। इसी अभाव में वे उस उच्च वर्ग की ऑफिस जानेवाली अपनी मालकिन इशिता (तिलोत्मा शोम) का घर चुनते हैं।

द मिरर का एक दृश्य, तस्वीर साभार: IndiaTimes

फ़िल्म में जहां एक तरफ निम्नवर्गीय जीवन में यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्पेस नहीं दिखता। वहीं, दूसरी तरफ उच्चवर्गीय जीवन में नितांत एकल जीवन और यौन इच्छाओं का दमन दिखता है। फ़िल्म की कहानी में मालकिन इशिता के ऑफिस चले जाने के बाद सीमा घर में अकेली होती है। वह हर रोज़ अपने पति को वहीं बुला लेती हैं और दोनों मालकिन के कमरे में सेक्स करते हैं। लेकिन एकदिन किसी काम से इशिता ऑफिस से लौटती है वह देखती है कि उसकी मेड किसी के साथ उसके बेड पर सेक्स कर रही है। अचानक उन्हें इस तरह देखकर वह घबरा जाती है और अपनी सहेली को फोन करके सब बताती है। सहेली घरेलू कामगार को निकाल देने की बात करती है क्योंकि उसके लिहाज़ से उसके घर में उसके बिस्तर पर दोनों बहुत ‘गंदा’ काम कर रहे थे।

कोंकणा सेन शर्मा की बनाई कहानी में वर्गों के दो ध्रुवों पर खड़ी स्त्रियां हैं। एक उच्च मध्यवर्गीय कामकाजी एकल स्त्री और उसके घर में काम करने वाली घरेलू कामगार का जीवन है। ये दोनों दो वर्गों के लोग हैं लेकिन एक-दूसरे के अंतरंग पलों से वाकिफ रहते हैं।

समाज में यह गजब का भेदभाव और पूर्वाग्रह है अमीरों का प्यार और सेक्स ‘पवित्र’ गरीबों का प्यार और सेक्स गंदा और गलीच है। जबकि दोनों उसी एक संवेदना से एक ही क्रिया करते हैं। बाद में कुछ सहज होने पर इशिता को लगता है कि वह घबरा गई थी उस पल लेकिन उन दोनों को देखना उसे कहीं न कहीं अच्छा भी लग रहा था। इसके बाद इशिता रोज ऑफिस से लौटकर उन्हें देखने लगी। एक दिन शीशे में सीमा उसे देख लेती है कि उसकी मालकिन उन्हें देखती है और वह जान जाती है कि देखना उन्हें अच्छा लगता है। लेकिन एकदिन दोनों आमने-सामने आ जाते हैं तो मालकिन उसे निकाल देती है।

बाद में दोनों को अपनी भूल का अहसास होता है और दोनों एकदूसरे को समझ जाते हैं। ‘द मिरर’ की कहानी हमें यौन इच्‍छाओं की सहजता और स्वीकार्यता के बेहद मानवीय दृष्‍ट‍िकोण को समझाती है। यौन संतुष्‍ट‍ि के लिए शरीर ही शामिल हो जरूरी नहीं है। इस आनंद को महसूस करने के और भी तरीके हैं और यह कोई अपराध नहीं है। जब तक कि वह किसी को धोखे में रखकर या किसी की निजता में खलल न बने। खासकर आज के दौर में जब सिंगल रहने का चलन बढ़ा है, वहां यौन सुख के आनंद को लेकर अलग-अलग नज़रिया है। उसे किसी पारंपरिक विधा में देखना पलटकर पीछे देखना है।

द मिरर में जहां एक तरफ निम्नवर्गीय जीवन में यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए स्पेस नहीं दिखता। वहीं, दूसरी तरफ उच्चवर्गीय जीवन में नितांत एकल जीवन और यौन इच्छाओं का दमन दिखता है।

कोंकणा सेन शर्मा की बनाई कहानी में वर्गों के दो ध्रुवों पर खड़ी स्त्रियां हैं। एक उच्च मध्यवर्गीय कामकाजी एकल स्त्री और उसके घर में काम करने वाली घरेलू कामगार का जीवन है। ये दोनों दो वर्गों के लोग हैं लेकिन एक-दूसरे के अंतरंग पलों से वाकिफ रहते हैं। यह कहानी इस फिल्म की सबसे ठोस कहानी है। अच्छी पठकथा और कोंकणा सेन शर्मा का सधा हुआ निर्देशन बहुत उम्दा है। फ़िल्म के कलाकार तिलोत्तमा शोम और अमृता सुभाष का अभिनय अपने अपने किरदार में खूब प्रभावी है।

शादी में यौन संबंध की वरीयता पर बात करती ‘मेड फ़ॉर इच अदर’

फ़िल्म की पहली कहानी है ‘मेड फ़ॉर इच अदर’ जिसे आर. बाल्की ने निर्देशित किया है। यह कहानी वैवाहिक संबंधों में यौन संबंधों की वरीयता पर बहुत बोल्ड तरीके से बात करती है। कहानी में शादी करने जा रहे एक जोड़े को लड़की की दादी शादी से पहले ‘टेस्ट ड्राइव’ करने की सलाह देती हैं। उनका मानना है कि विवाह में तमाम योग्यता को देखने से ज्यादा यौन संबंधों की योग्यता देखना चाहिए। वे इसमें स्वतंत्रता के इस स्तर पर जाती हैं औक कहती हैं कि बाद में पछताने से तो बेहतर है कि अभी एक-दूसरे को परख लो।

तस्वीर साभार: MenXp

यौनिकता और एक व्यवहारिक दृष्टि से वह जिस स्त्री-पुरुष के आपसी संबंधों में जिस्मानी संतुष्टि की अनिवार्यता पर बल देती है वह ठीक बात है। आपका लाइफ पार्टनर आपका बेस्‍ट सेक्‍स पार्टनर हो यह ज़रूरी है। नीना गुप्‍ता का किरदार इस मायने में बेहद खास है कि वह औरतों की यौन संतुष्टि की भावना को प्रमुखता से रखती है। उनका मानना है कि इसमें घबराहट या शर्मिंदगी की बात नहीं है। खासकर औरतों की इच्‍छाएं, जो बंद कमरों में कहीं दबी रह जाती है, उसपर अब बात होनी ही चाहिए। फ़िल्म का मुद्दा महत्वपूर्ण है लेकिन किसी विवाह या संबंध के लिए यौनिकता ही सबसे बड़ा प्रश्न नहीं है आपसी समझ और सम्मान दोस्ती और समानता ये भी जरूरी सवाल हैं। फिर भी यह फिल्म याद रह जाती है दादी की मजेदार बातों और नसीहतों के कारण। नीना गुप्ता दादी के रोल में खूब जंची हैं और अभिनेत्री मृणाल ठाकुर प्यारी और सुलझी लगी हैं।

औसत कहानियां ‘सेक्‍स विद एन एक्‍स’ और ‘तिलचट्टा’

तस्वीर साभार: The Hindu

तीसरी कहानी सुजॉय घोष के निर्देशन में बनी ‘सेक्‍स विद एन एक्‍स।’  यह एक अजीब सी कृत्रिम कहानी है कहानी में अभिनेता (विजय) की गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाता है एक गांव में। वहां अचानक उसे उसकी पत्नी मिल जाती है।  वह पत्नी जो दस साल पहले न जाने कहां गुम हो गई थी। वह बार-बार उसे वहां से जाने को कहती है लेकिन विजय नहीं जाता। फिर दोनों के बीच यौन संबंध बनते हैं। इसके बाद कई राज खुलते हैं हत्या और मैरिटल अफेयर्स के। जैसे विजय वर्मा का किरदार एक्‍स्‍ट्रा मैरिटल अफेयर के लिए ही बना है। यहां विजय का करेक्टर एक धूर्त अपराधी व्यक्ति का है लेकिन उसे खूब ग्लैमराइज करके दिखाया गया है। कुल मिलाकर यह एक औसत कहानी है जिसे बोल्ड अंतरंग दृश्यों से चमकाया गया है।

तिलचट्टा का एक दृश्य, तस्वीर साभार: India Post

इस फ़िल्म की आखिरी कहानी अमित रविन्द्र नाथ शर्मा की कहानी है तिलचट्टा। अंत तक ये एक थ्रिलर फ़िल्म साबित होती है। फ़िल्म की कहानी में एक गाँव में एक पुराना महल है। राजपाट के बिना एक अय्याश ‘राजा’ है। राजपरिवार में बीते दिनों के उस राजा के साथ उसकी पत्नी अपने बेटे के साथ रहते हैं। कहानी के केंद्र में एक लम्पट सामंती सोच का व्यक्ति (कुमुद मिश्रा) है। उसकी पत्‍नी का रोल (काजोल) ने निभाया है। एक बेटा है और घर में काम करनेवाली एक घरेलू कामगार है। पत्‍नी अपने पति की हिंसा से त्रस्‍त है। वह उससे छुटकारा पाना चाहती है और एक साजिश रचती है लेकिन ठगी जाती हैं। इस कहानी का नाम ‘त‍िलचट्टा’ रखा है, एक ऐसा कीट-पतंग है जो हर हाल में जिंदा बच जाता है। ठीक कहानी के भ्रष्‍ट, हवसी व्यक्ति उस राजा की तरह। यही कहानी है इस फ़िल्म की जो प्रभावित नहीं करती।

फ़िल्म के इस संकलन में कोंकणा सेन शर्मा की कहानी ‘द मिरर’ सबसे मज़बूत कहानी है। इस कहानी के विमर्श में तनाव का स्तर वहां पर है जहां इस व्यवस्था में हाशिये के मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं का दमन होता है। फ़िल्म का अंत सुखांत होता है लेकिन वह अपने बाद छोड़ जाती है धारा के पिछड़े मनुष्यों की यौनिकता के अधिकार का बेहद कठिन सवाल। आखिर क्या जवाब है इस सवाल का क्या हाशिये के मनुष्यों का जीवन इतना निरीह होना चाहिए कि जिस इच्छा की पूर्ति जानवर कर लेते हैं उसे इस व्यवस्था का निम्नवर्ग का मनुष्य नहीं कर पा रहा है। ये सवाल किसी देश का नागरिक होने और मनुष्य होने के अधिकार से भी जुड़ता है। राज्य की इस पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिक वर्ग का जीवन हर दिन बद्तर होता जा रहा है।


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