संस्कृतिसिनेमा जॉयलैंड: लैंगिक असमानता, पितृसत्ता, सेक्सुअलिटी की सच्चाई को सामने रखती एक उम्दा कहानी

जॉयलैंड: लैंगिक असमानता, पितृसत्ता, सेक्सुअलिटी की सच्चाई को सामने रखती एक उम्दा कहानी

जोयलैंड जैसी फिल्मों के बारे में सीमित शब्दों में मशक्कत करके लिखा जरूर जा सकता है लेकिन उस फिल्म की सार्थकता इसी में है कि आप उसे इत्मीनान से देखें और देखने के बाद सोचते रह जाएं कि हकीकत थी या फ़साना या फिर दोनों का मेल-जोल जो दिमाग दिल और सोच तीनों पर अपनी छाप छोड़ जाती हैं।

आज के दौर में एक अच्छी फिल्म सामने लाना वह भी अपनी पहली फिल्म किसी चुनौती से कम नहीं है। निर्देशक सैम सादिक की फिल्म जॉयलैंड इस मुश्किल को हल करती हुई दिखाई पड़ती है। चूंकि भारतीय और पाकिस्तानी परिपेक्ष में बहुत अंतर नहीं है, इसलिए इस फिल्म को भारतीय समाज के दृष्टिकोण से देखना ग़लत नहीं होगा। फिल्म जॉयलैंड 95 वे अकादमी पुरस्कार के लिए पाकिस्तान से भेजी गई थी। यह पाकिस्तान की पहली फिल्म बनी है जो ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल‘ में दिखाई गई है और जिसने ‘अनसर्टेन रिगार्ड पुरस्कार‘, ‘क्वीयर पाम पुरस्कार‘ जीता है। टोरंटो फिल्म फेस्टिवल और बूसान फिल्म फेस्टिवल में भी जॉयलैंड को दिखाया गया जहां इसे स्टैंडिंग ओवेशन मिला। इसके अलावा अन्य अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी जॉयलैंड को मिले हैं। मगर सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या है इस फिल्म में जिसके कारण पाकिस्तान में इस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

जॉयलैंड फिल्म पर बैन लगाते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय, पाकिस्तान ने कहा था कि फिल्म देश के सामाजिक और नैतिक मानकों के अनुरूप नहीं है। बैन का बहिष्कार किया गया जिसके चलते फिल्म को 18 नवंबर 2022 को रिलीज होने दिया गया। हालांकि पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में अभी भी यह फिल्म बैन है। सैम सादिक ने इस फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। अली जुनेजो, अलीना ख़ान, रस्ती फारुक़ और सोहेल समीर ने फिल्म में अहम भूमिका निभाई है। फिल्म का विषय लैंगिक असमानता, पितृसत्ता, सेक्सुअलिटी का मेल-जोल है। फिल्म सीधे और सटीक तरीके से मुद्दों को जस के तस रखती हुई दिखती है।

फिल्म की कहानी हैदर (अली जुनेजो) के बारे में है जो एक शादीशुदा और बेरोज़गार मर्द है। हैदर की पत्नी मुमताज़ (रस्ती फारुक़) एक सैलून में काम करती है। हैदर का बड़ा भाई सलीम (सोहेल समीर) नौकरीपेशा है जिसकी पत्नी नुच्ची (सरवत गिलानी) गर्भवती है। सलीम की तीन बेटियां हैं लेकिन उन्हें बेटे की उम्मीद है और जांच के अनुसार अब बेटा ही होगा। फिल्म की शुरुआत में ही नुच्ची के दर्द उठता है और हैदर अपनी भाभी को बाइक पर बैठाकर अस्पताल ले जाता है। उसी हॉस्पिटल में भाभी के लिए दवा लेते हुए हैदर को बीबा दिखती है जिसके कपड़ों पर खून लगा हुआ है। बीबा एक ट्रांस महिला है।

घर में बच्चा होने की खुशी में अब्बा (हैदर के पिता) हैदर से कुर्बानी करवाते हैं मगर हैदर बकरे की गर्दन पर छुरी चलाने में असमर्थ है। इसी दृश्य के बाद हैदर अपने अब्बा की मालिश करता है। अब्बा का किरदार पितृसत्तात्मक है जो हैदर को अभी तक एक भी बच्चा न कर पाने के लिए ताना मारते हैं। इस दृश्य में हैदर के भीतर का द्वंद प्रदर्शित किया गया है कि उसके ‘मर्द’ होने का सबूत एकमात्र उसकी औलाद होगी? फिल्म ऐसे दृश्यों से भरी पड़ी है जो हैदर के भीतर के द्वंद् की परतों को उकेरते चले जाते हैं। वह कभी खुद के काम को लेकर द्वंद में है, कभी अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर द्वंद में है। इसी द्वंद के हल के नतीजे में वह खुद को बीबा के करीब पाता है।

जॉयलैंड फिल्म पर बैन लगाते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय, पाकिस्तान ने कहा था कि फिल्म देश के सामाजिक और नैतिक मानकों के अनुरूप नहीं है। बैन का बहिष्कार किया गया जिसके चलते फिल्म को 18 नवंबर 2022 को रिलीज होने दिया गया।

बीबा एक इरोटिक डांस थियेटर में इंटरवल के दौरान शोज़ करती है, उसकी एक प्रतिद्वंदी महिला डांसर भी है जिसकी वजह से बीबा का करियर खतरे में है। बीबा अपनी प्रतिद्वंदी डांसर से बहुत अच्छा डांस करती है मगर ट्रांस होने के कारण सामाजिक और व्यवसायिक भेदभाव का सामना करती है। हैदर अपने भीतर की इच्छाओं से जब मिलता है तब बीबा के प्रेम में पड़ जाता है। इससे उसके घर में और अस्थिरता आ जाती है। साउथ एशियन मुल्कों में गृहस्थी के चलने-चलाने का एक पैटर्न है। जब यह पैटर्न हल्का सा भी हिलता है तब उसमें महिलाएं सबसे पहले चपेट में आती हैं। ऐसा ही होता है मुमताज़ यानी हैदर की पत्नी के साथ। घर का मुखिया, अब्बा, हैदर की नौकरी लग जाने के बाद मुमताज़ की नौकरी छुड़वा देते हैं और उसे घरों के कामों में ध्यान देने को कहते हैं।

मुमताज़ घर के कामों में और हैदर बीबा के साथ डांस प्रैक्टिस में ज़्यादा वक्त बिताने लगता है। डांस ग्रुप के ‘मर्द’ बीबा के साथ साथ हैदर का भी मज़ाक बनाने लगते हैं कि वह भी एक ट्रांस है। बीबा को आसपास घूमते मर्द उसे अच्छी नीयत से बिल्कुल नहीं देखते हैं। यही वजह है कि बीबा का किरदार मजबूत है अपनी इच्छाओं को लेकर, काम को लेकर और आगे के भविष्य को लेकर। लेकिन फिल्म के एक सीन में बीबा हैदर एक दूसरे के करीब हैं, बीबा को लगता है कि हैदर बाकी पुरुषों से अलग होगा और उसे अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल नहीं करेगा। वह तब टूट जाती है जब वह यह पाती है कि हैदर भी दरअसल अपनी कामुक इच्छाएं पहले पूरी करना चाहता है बजाय यह सोचे कि वह क्या चाहती है। बीबा क्या चाहती है इस बात को उसके आसपास का कोई व्यक्ति नहीं समझता।

फिल्म का एक दृश्य, तस्वीर साभार: KoiMoi

वहीं, मुमताज़ सिस हेट महिला होते हुए नौकरी छूटने, बच्चे की उम्मीद, घर के काम जैसी परेशानियों के बीच बेहद परेशान है। एक सीन में चार बच्चे होने के कारण नुच्ची अपनी एक बेटी को हैदर और मुमताज़ के साथ सुलाती है जिससे उनकी प्राइवेसी भंग होती है और मुमताज़ हैदर के साथ शारीरिक संबंध भी ठीक से नहीं बना पाती। हैदर मुमताज़ को लेकर बहुत गंभीर नहीं दिखता है। इसका पता इससे लग जाता है कि बाथरूम में बैठी मुमताज़ फिनायल पीती है लेकिन वहीं खड़ा हैदर इस बात पर गौर तक नहीं करता।

फिल्म ऐसे दृश्यों से भरी पड़ी है जो हैदर के भीतर के द्वंद् की परतों को उकेरते चले जाते हैं। वह कभी खुद के काम को लेकर द्वंद में है, कभी अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर द्वंद में है। इसी द्वंद के हल के नतीजे में वह खुद को बीबा के करीब पाता है।

नुच्ची, मुमताज़ के अलावा एक और छोटा सा किरदार मिसेज फय्याज़ का है जो इस परिवार की पड़ोसी हैं। वह अपने बुढ़ापे का अकेलापन दूर करने इस घर में किसी न किसी बहाने से आती जाती रहती हैं। फिल्म का ताना-बाना पूरी तरह से सभी किरदारों को जोड़कर देखा जाए तो हैदर इंट्रोवर्ट है और अपनी सेक्सुअलिटी को लेकर द्वंद में है। बीबा ट्रांस जेंडर महिला होते हुए हर चीज़ के लिए लड़ रही है। मुमताज़ अपने मन के अनुसार कुछ नहीं कर पाती। नुच्ची इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बावजूद घरेलू कामों में फंसी हुई है। यह फिल्म हैदर को केंद्र में ज़रूर रखती है, उसके सिरे से कहानी गढ़ती है लेकिन माइक्रोस्कोपिक व्यू से देखते हैं तो मुमताज़, बीबा, अपनी कहानियां कह रही हैं।

स्रोत: NBT

जिस समाज में महिलाओं तक को अपने हिस्से का दर्ज़ा नहीं मिला है वहां बीबा होना और भी मुश्किल है। हम लोगों ने कुछ कायदे-कानून इसीलिए बनाए ताकि इंसानों का रहना सभ्य हो सके, बेहतर हो सके लेकिन अब समाज के कानून इतने विशाल हो चुके हैं कि चुनिंदा लोगों को छोड़ बाकी लोगों के साथ शारीरिक, मानसिक, व्यवसायिक, आर्थिक, मनोवैज्ञानिक शोषण होते रहते हैं जिसमें किसी मुमताज़ की आत्महत्या से मौत हो जाती है। कोई बीबा न चाहते हुए भी दूसरों के ‘मनोरंजन’ का साधन बनी रहती है, कोई हैदर खुद को ही नहीं समझ पाता। फिल्म में बीबा बीच, समुद्र का ज़िक्र हैदर से करती है, हैदर मुमताज़ से पूछता है जो खुद बचपन में समुद्र किनारे जा चुकी होती है लेकिन हैदर कभी वहां नहीं गया है। फिल्म के आखिर में वह अकेले वहां जाता है।

साउथ एशियन मुल्कों में गृहस्थी के चलने-चलाने का एक पैटर्न है। जब यह पैटर्न हल्का सा भी हिलता है तब उसमें महिलाएं सबसे पहले चपेट में आती हैं। ऐसा ही होता है मुमताज़ यानी हैदर की पत्नी के साथ। घर का मुखिया, अब्बा, हैदर की नौकरी लग जाने के बाद मुमताज़ की नौकरी छुड़वा देते हैं और उसे घरों के कामों में ध्यान देने को कहते हैं।

जॉयलैंड जैसी फिल्मों के बारे में सीमित शब्दों में मशक्कत करके लिखा जरूर जा सकता है लेकिन उस फिल्म की सार्थकता इसी में है कि आप उसे इत्मीनान से देखें और देखने के बाद सोचते रह जाएं कि हकीकत थी या फ़साना या फिर दोनों का मेल-जोल जो दिमाग दिल और सोच तीनों पर अपनी छाप छोड़ जाती हैं। फिल्म, फिल्म का नाम जॉयलैंड होते हुए भी एक उदास कहानी कहती हुई खत्म होती है।


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