संस्कृतिकिताबें मैं ऐसी कहानी सुनाने वाली आखिरी लड़की होना चाहती हूं: नादिया मुराद

मैं ऐसी कहानी सुनाने वाली आखिरी लड़की होना चाहती हूं: नादिया मुराद

नादिया मुराद की कहानी उन हजारों यज़ीदी स्त्रियों जैसी है जिनका जीवन 2014 में अचानक से बदल गया। उनके गाँव पर आतंकियों ने हमला किया। आतंकी यज़ीदियों को 'नीच नास्तिक' कहते थे।

हर इंसान अपनी एक पहचान के साथ जीता है। ये पहचान भाषा, धर्म, जाति, लिंग, भूगोल किसी की भी हो सकती है। इसी पहचान के कारण अक्सर लोगों को कई तरह की यातनाओं और हिंसा से गुज़रना पड़ता है। साल 2014 में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने इराक में हजारों लोगों का सिर्फ़ इसलिए नरसंहार कर डाला क्योंकि वे यज़ीदी थे। नादिया मुराद की कहानी उन हजारों यज़ीदी स्त्रियों जैसी है जिनका जीवन 2014 में अचानक से बदल गया। उनके गाँव पर आतंकियों ने हमला किया। आतंकी यज़ीदियों को ‘नीच नास्तिक’ कहते थे। उनके हिसाब से यज़ीदी धर्म का अस्तित्व ख़त्म कर देना चाहिए और उनकी स्त्रियों पर कब्जा कर लेना चाहिए।

आईएसआईएस ने सिंजर में रह रहे यज़ीदी पुरुषों को मार डाला, बच्चों को माओं से अलग कर दिया गया। स्त्रियों का अपहरण करके अपने साथ कैंप में ले गए। वहां उन्हें सामान की तरह ख़रीदा-बेचा जाता था। यह भाव कमोबेश हर अल्पसंख्यक समुदाय की स्त्रियों के प्रति देखा जाता है। भारत में कश्मीरी लड़कियों के लिए बहुसंख्यक आबादी इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल करती नज़र आती है। युद्ध कहीं भी हो वह सबसे पहले और अंत में स्त्री की देह पर लड़ा जाता है। युद्ध का परिणाम कुछ भी हो, हारती स्त्री ही है।

नादिया का जन्म इराक के सिंजर ज़िले के कोचो गाँव में हुआ था। उनका परिवार खेती करता था। नादिया का सपना था कि स्कूल ख़त्म होने के बाद वह ‘ब्यूटी पार्लर’ खोलेंगी। अपनी किताब ‘द लास्ट गर्ल‘ में नादिया लिखती हैं, “मेरी माँ मुझे प्यार तो करती थीं, लेकिन मुझे जन्म नहीं देना चाहती थीं।” वह अपनी माँ की ग्यारहवीं संतान थीं। इस बारे में वह लिखती हैं, “ग्यारह बच्चों को जन्म देना काफ़ी नहीं था। उन्हें हर बार प्रसव पीड़ा से गुज़रना पड़ता था। इसके अलावा मेरी गर्भवती माँ से यह भी उम्मीद की जाती थी कि वह ईंधन की लकड़ी काटकर लाए, खेत में मदद करें, ट्रैक्टर चलाए और प्रसव होने तक सब काम करती रहे।”

तस्वीर साभार: BBC

नादिया अपनी किताब में बताती हैं कि सिंजर में हुए नसंहार के बाद आतंकी लड़कियों को बसों में बिठाकर अलग-अलग कैंप में ले जाते थे, जहां उन्हें बेचा जाता था। बस में आतंकी, लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न करते। तीन महीने तक इन लड़कियों का शोषण होता रहा। कल के बारे में इन्हें नहीं पता होता कि इन्हें किसके हाथ बेचा जाएगा। बलात्कार से पहले उन्हें सजने-संवरने के लिए कहा जाता था। इनकार करने पर उन्हें कठोर सजा दी जाती थी। इन लड़कियों की मानवीय गरिमा ख़त्म कर दी गई थी। हंटर से मारना, सिगरेट से दाग देना, ये तमाम यातनाएं इन पर की जाती थीं।

नादिया ने अपनी किताब में ज़िक्र किया है, “मैंने अपनी अंगुलियां मुंह में डालकर उल्टी करने की कोशिश की। मैं चाहती थी कि मेरे कपड़ों पर उल्टी गिर जाए ताकि वे मुझे छूना बंद कर दे।” तीन महीने के यातना भरे जीवन के बाद एक दिन किसी तरह नादिया आतंकियों के चंगुल से भाग पाने में कामयाब रहीं।

नादिया अपनी किताब में इस बारे में लिखती हैं, “मेरे शरीर पर मार का कोई ऐसा घाव बन जाए, जिसके कारण मेरे साथ बलात्कार नहीं हो, तो मैं उस घाव को ज़ेवर की तरह संभालकर रखना चाहूंगी।” आतंकियों की क्रूरता का आलम यह था कि जो लोग भागने की कोशिश करते उन्हें गोली मार दी जाती थी। एक बूढ़ी औरत गाँव से बाहर अपने कच्चे मकान में रहती थी। आतंकियों ने उसे जाने को कहा। लेकिन उसने इनकार कर दिया तो उसे घर ज़िंदा जला दिया गया। कई लड़कियों ने आत्महत्या की कोशिश की।

अगवा की गईं इन लड़कियों की जीने की इच्छा बिल्कुल ख़त्म हो गई थी। हर रोज़ उन्हें मरना पड़ता था। आतंकी, यज़ीदी लड़कियों को हिकारत से देखते थे। लड़कियां ख़ुद को गंदा रखने की कोशिश करतीं जिससे आतंकी उनके पास न आए। नादिया ने अपनी किताब में ज़िक्र किया है, “मैंने अपनी अंगुलियां मुंह में डालकर उल्टी करने की कोशिश की। मैं चाहती थी कि मेरे कपड़ों पर उल्टी गिर जाए ताकि वे मुझे छूना बंद कर दे।” तीन महीने के यातना भरे जीवन के बाद एक दिन किसी तरह नादिया आतंकियों के चंगुल से भाग पाने में कामयाब रहीं। एक स्थानीय परिवार ने उनकी मदद की। नासिर नाम के लड़के ने उन्हें वापस उनके परिवार तक पहुंचाया।

नादिया की किताब, द लास्ट गर्ल, तस्वीर साभार: Arm Chair Journal

साल 2018 में नादिया को ‘युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के हथियार के रूप में यौन हिंसा के इस्तेमाल को खत्म करने के उनके प्रयासों के लिए’ शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। लेकिन क्या यह पुरस्कार नादिया को उनकी पिछली ज़िंदगी लौटा सकता था? नोबेल पुरस्कार लेते समय अपने भाषण में नादिया ने कहा, “कोई भी अवॉर्ड हमारे लोगों और परिजनों को नहीं लौटा सकता, जिन्हें सिर्फ़ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे यज़ीदी थे।” उनके छह भाइयों को मार दिया गया था। उनकी माँ को मार दिया गया था। भतीजी जिससे नादिया बहुत प्यार करती थीं उसे मार दिया गया। नोबेल लेते हुए नादिया ने यह भी कहा,” हमारे घर, हमारा परिवार, हमारी परंपरा और हमारे सम्मान को खत्म कर दिया गया।” यह उनका साहस था जो उन्हें आतंकियों से बचा लाया। इतनी यातनाओं से गुज़रने के बाद उन्होंने दुनिया के सामने अपनी कहानी रखी।

अपनी आत्मकथा ‘द लास्ट गर्ल’ में अपने जीवन की त्रासदियों को नादिया ने दर्ज किया है। साल 2016 में नादिया को संयुक्त राष्ट्र कार्यालय ऑन ड्रग्स एंड क्राइम के लिए मानव तस्करी से बचे लोगों की गरिमा के लिए पहले ‘सद्भावना राजदूत’ के रूप में नियुक्त किया गया। अपनी संस्था ‘नादिया इनिशिएटिव’ के माध्यम से वह नरसंहार, सामूहिक हिंसा और मानव तस्करी की सर्वाइवर स्त्रियों और बच्चों की सहायता के लिए काम करती हैं। नादिया कहती हैं, “मुझे सहानुभूति नहीं चाहिए। मैंने जो महसूस किया है बस उसे क्रियान्वित करना चाहती हूँ।” ये सब बीते ज़माने की बात नहीं है। इसी 21वीं शताब्दी में यह घटित हुआ है। जब हम आधुनिक होने का दावा करते हैं उस समय धर्म के नाम लड़कियों का बलात्कार किया जाता है।

नोबेल पुरस्कार लेते समय अपने भाषण में नादिया ने कहा, “कोई भी अवॉर्ड हमारे लोगों और परिजनों को नहीं लौटा सकता, जिन्हें सिर्फ़ इसलिए मार दिया गया क्योंकि वे यज़ीदी थे।”

नादिया ने दुनिया के सामने अपनी कहानी सुनाई। जो उन्होंने भोगा है उसे कहते हुए स्मृतियां ताजा हो जाती हैं। जख़्म फिर से उभर आते हैं। लेकिन नादिया कहती हैं, “ईमानदारी और सच्चाई से सुनाई गई कहानी मेरा सबसे बड़ा हथियार है, जिसे मैंने आतंकवाद के खिलाफ़ इस्तेमाल किया है।” उन तमाम गुनहगारों को जिन्होंने ये जघन्य अपराध किए हैं वे सजा दिलाना चाहती हैं। भाषण के दौरान उन्होंने कहा था कि इकलौता पुरस्कार जो उनके सम्मान को लौटा सकता है वह न्याय है।

नादिया के सपने नहीं पूरे हुए। उनका घर उजड़ गया। अपनी ज़मीन से उन्हें ज़ुदा होना पड़ा। दुनियाभर में इस तरह की हिंसा होती रही है। अल्पसंख्यकों को मारा जाता रहा है। स्त्रियों के साथ शारीरिक-मानसिक हिंसा होती रही है। नादिया किताब के आखिर में लिखती हैं, “मैं ऐसी कहानी सुनाने वाली आखिरी लड़की होना चाहती हूं।” अगर ऐसा होता है तभी वह न्याय मिलेगा जिसकी बात नादिया करती हैं।


Comments:

  1. Sahil says:

    Mehsus kar rha kya guzri hogi Nadiya ke shaat

  2. Geeta says:

    Bhot sashakt lekh , yuddh ka parinam kuch bhi ho harti toh stri hi hai meri favourite line rhi

  3. आशुतोष says:

    ऐसे विषय पर लिखने के लिए जिस भाषा का बर्ताव चाहिए वह आयुष्मान ने बनाए रखा है। उनका लेखन संवेदनशील मुद्दों पर हमारी राय और समृद्ध करेगा।

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