बेली ललिता एक लोकप्रिय लोक गायिका और मार्क्सवादी क्रांतिकारी थीं। उन्हें ‘तेलंगाना प्रतिरोध की कोकिला’ भी कहा जाता था। वह अलग तेलंगाना राज्य के लिए होने वाले संघर्ष की प्रमुख आवाज़ों में से एक थीं। उन्होंने हमेशा पूंजीवादी शोषण के ख़िलाफ़ और मजदूरों के हितों को लेकर संघर्ष किया। वह तेलगांना कला समिति की संस्थापक भी थीं। उन्हें ‘ललितक्का’ के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने यौन तस्करी, नशे, गुटखा सेवन और जाति विरोध संघर्षों का नेतृत्व किया था। वह अपने गीतों के माध्यम से समाज में जागरूकता फैलाने का काम किया करती थी।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
बेली ललिता का जन्म 26 अप्रैल 1974 में तेलंगाना के नालगोंडा जिले के नानचारपेट आत्माकुर मंडल में एक तेलगु परिवार में हुआ था। उनके पिता एक ओग्गु गायक और मज़दूर थे। ओग्गु, यादव और कुरुमा समुदाय में गाया जाने वाला एक लोकगीत संगीत है। इनकी पांच बहनें थीं। ललिता सभी बहनों में सबसे छोटी थी। उनके भाई का नाम बेली कृष्णा था। वह भी एक क्रांतिकारी थे। अत्याधिक कमजोर आर्थिक स्तिथि होने के चलते उनका परिवार उनके नाना के घर भोंगिर रहने चला गया था। वह गोला-कुर्मु समुदाय से तालुक्क रखती थी। बचपन में वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर सकीं थी। उनका विवाह बहुत ही छोटी उम्र में कर दिया गया था। उनके दो बच्चे थें।
काम और एक्टिविज़म
बेली ललिता एक मिल मज़दूर थीं। वह भोंगीर के सूर्यवंशी रूई मिल में काम करती थीं। वह मज़दूरों की स्थिति और मालिकों के रवैये को लेकर बहुत चिंतित थी। उन्होंने मिल में मज़दूरी करने के दौरान अपने साथ काम करने वाले अन्य मज़दूर साथियों को संगठित किया। वह सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीआईटीयू) से भी जुड़ी और मज़दूरों से जुड़े संघर्षों और आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया। उसके बाद तेलंगाना आंदोलन के लिए उन्हें ‘सीआईटीयू’ छोड़ना पड़ा। इसके बाद वह राज्य के लिए चलने वाले आंदोलन में पूरी तरह जुड़ गई। उसके बाद वह ‘तेलंगाना साहित्य वेदिका’ की सदस्या बनीं। तेलंगाना के लिए संघर्ष करने वालो में बेली ललिता एक प्रमुख और मज़बूत आवाज़ के साथ-साथ प्रतिनिधि भी थीं।
वह तेलंगाना राज्य संघर्ष से बहुत छोटी उम्र से जुड़ी हुई थी। अपनी युवा उम्र में ही उन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में काफी लोकप्रिय हो गई थी और बहुत लोग उन्हें प्यार भी करते थे। तेलांगना राज्य के भीतर उन्होंने हमेशा शोषित और वंचित वर्गों के विकास, उत्थान और बल का एक सुनहरा सपना देखा था। वह उस समयकाल में तेलंगाना की प्रखर स्वर बनीं जब तेलंगाना के अलग राज्य और पहचान को लेकर ‘अघोषित आपातकाल’ लगाया गया था। तमाम राजनीतिक कठिनाइयों को पार करते हुए वह आंदोलन में डटी रही और लोगों को प्रोत्साहित करती रही।
08 मार्च 1997 को उन्होंने ‘दगपड्डा तेलंगाना सभा’ का आयोजन किया। मारोजू वेरन्ना द्वारा आयोजित नालगोडा जिले के सूर्यपट्टा में तेलंगाना महासभा के इस विशाल जनसभा ने उनको तेलांगना समुदाय के साथ सुर्खियों में ले आया था। उसके बाद वह हर मोर्च पर आगे ही आगे डटी रही। 28 दिसंबर 1997 को वारंगल घोषणा के नाम से हुए बैठक में ‘वारंगल आंदोलन’ की नींव रखने के लिए प्रेरणा बनीं। इसके साथ ही फरवरी में आयोजित हुए इसी आंदोलन ने तेलांगना चैतन्य वैदिक को बढ़ावा दिया। साथ ही जुलाई 1998 में, तेलांगना जन सभा और इसके साथ-साथ ‘तेलांगना कला समिति’ को भी आकार देने में अपना योगदान दिया। साथ ही युवाओं को आंदोलन से जोड़ने के लिए इसी वर्ष में ‘तेलंगाना स्टूडेंट फ्रंट’ का भी गठन किया गया।
उन्होंने तेलंगाना कला समिति में संयोजक के तौर पर काम किया जो तेलंगाना जन सभा की कल्चर विंग थी। राज्य की कला और संस्कृति को सहेजने में ललिता हमेशा प्रयासरत रहीं। उन्होंने हमेशा तेलंगाना राज्य के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए भी अपनी आवाज़ बुलंद रखी। इतना ही नहीं उनकी लोकप्रियता को देखकर उन्हें समाजवादी पार्टी की ओर से चुनाव का टिकट देने का भी प्रस्ताव दिया गया था।
अपने गीतों के ज़रिये लोगों को जोड़ा
बेली ललिता ने महिला सशक्तिकरण, मजदूर और किसानों को हमेशा आगे बढ़ने के लिए उनमें हौसला बढ़ाने का काम किया। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से लोगों को शिक्षित किया। उन्होंने अशिक्षित मजदूर, पुरुषों और महिलाओं को एकजुट करने के लिए अपने गीतों का इस्तेमाल किया। वह मुद्दे के अनुसार ही आवश्यकता पड़ने पर मौके पर ही गीत बनाकर गा देती थीं। उनकी इस रणनीति का लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा और बड़ी संख्या में लोग सभाओं से जुड़ें। उन्होंने बड़ी संख्या में महिलाओं को आंदोलन से जोड़ा। साथ ही उन्होंने तेलंगाना की एक पीढ़ी को दहेज, घरेलू हिंसा, मजदूरों के अधिकार और शराब की समस्या के बारे में जागरूक किया। वह लोगों को गीतों के माध्यम से सामाजिक कुरीतियों के बारे में जानकारी देती थी।
साल 1999 में ललिता का अपहरण कर लिया गया था। उसके बाद उनका उत्पीड़न किया गया और उनके शरीर को क्षत-विक्षत कर उनकी हत्या कर दी गई थी। इतना ही नहीं उनके शरीर के हिस्सों को चौटुपोल पुलिस स्टेशन के सामने फेंक दिया गया था। उनकी हत्या को लेकर बहुत रोष देखा गया था।
बेली ललिता ने तेलंगाना आंदोलन में योगदान देने वाली एक कर्मठ कार्यकर्ता थीं। ये बात भी है कि तेलंगाना राज्य बनने के बाद उनके योगदान को उचित महत्व नहीं दिया गया। तेलंगाना राज्य के लिए अपनी शहादत देने वाली बेली ललिता के गीत इसके आज भी गवाह है कि वे अलग तेलंगाना के सपने के लेकर कितनी कर्मठ थी।
स्रोतः