समाजख़बर वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों तक में मिसकैरिज लीव के नियम को रखा जा रहा है ताक पर

वैश्विक स्वास्थ्य संगठनों तक में मिसकैरिज लीव के नियम को रखा जा रहा है ताक पर

मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, गर्भावस्था के समय महिलाओं के रोजगार की सुरक्षा करता है। इस ऐक्ट के तहत 26 सप्ताह की गर्भावस्था में मिसकैरिज के बाद छुट्टी का अधिकार देता है।

दिल्ली के शाहदरा की रहने वाली नुपुर (बदला हुआ नाम) पेशे से एक फैशन डिजाइनर हैं। वह एक निजी दफ्तर में काम करती है। एक साल पहले उन्हें अपने काम से लगभग दो महीने की छुट्टी अचानक से लेनी पड़ी। दरअसल नुपुर पहली बार माँ बनने वाली थी। प्रेंगनेसी के 10 हफ्ते पूरे होने के बाद एक दिन अचानक से उनकी तबीयत बहुत खराब हो गई और उन्हें तुरंत डॉक्टर के यहां जाना पड़ा। प्रेगनेंसी में अधिक कॉम्पलिकेशन आने की वजह से उनका मिसकैरिज हो गया। मिसकैरिज के बाद उन्हें अपने काम से लंबी छुट्टी लेनी पड़ी। 

एक कामकाजी महिला के लिए मिसकैरिज होने पर पेड लीव का प्रावधान है लेकिन जब उन्होंने अपने ऑफिस में इस बात की जानकारी ली तो उन्हें मालूम हुआ कि उनके ऑफिस में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इस घटना के बाद वे लगभग दो महीने बाद अपने काम पर लौटीं लेकिन छुट्टी के दौरान उन्हें कोई वेतन नहीं मिला था। इस पर नुपुर का कहना है, “जब मेरा मिसकैरिज हुआ तो मुझे पहली बार पता चला कि मेरे ऑफिस में मिसकैरिज होने के बाद पेड लीव का प्रावधान नहीं हैं। मैं ऑफिस में सीनियर पॉजिशन पर हूं उन्हें मेरे काम की ज्यादा आवश्यकता है तो वे मेरे लिए रूके रहे और मेरी जगह किसी को हायर नहीं किया गया। नहीं तो ऐसा भी हो सकता था कि वे मेरी जगह किसी और को काम पर रख लेते। या फिर मेरी जगह ये किसी अन्य महिला कर्मचारी के साथ होता और उनकी पॉजिशन दूसरी है जिसको देखते हुए कंपनी आसानी से उन्हें रिप्लेस कर सकती है।” 

वे आगे कहती हैं, “मिसकैरिज होने के बाद पहले से ही आप इमोशनली और फिजिक्ली बहुत हर्ट होते है उसके बाद जब आपको ये पता चलता है कि जितना दिन रेस्ट करना है उतने दिन कोई सैलरी नहीं आने वाली है तो और चीजें भी चलती रहती है। मैं उस वक्त भी बाकी चीजों को कैसे मैनेज किया जाएगा दिमाग में ये चलता रहा। हर चीज से लड़ते हुए जल्द ही काम जाने का भी एक दबाव ना चाहते हुए भी बनने लगता है।”  

अगर भारत की बात करते तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़  25 लाख बच्चे स्टिलबर्थ के तौर पर पैदा होते हैं। 10 से 15 फीसदी महिलाएं हर साल मिसकैरिज का सामना करती हैं।

भारत दुनिया में वह देश है जहां स्टिलबर्थ के सबसे ज्यादा केस दर्ज किए जाते हैं। बच्चे खोने का अनुभव का तो बहुत लोगों को सामना करना पड़ता है लेकिन इस पर चर्चा कुछ ही के द्वारा की जाती है। मिसकैरिज को लेकर कलंक और शर्म जैसी अवधारणा इसका सबसे बड़ा कारण है। इस वजह से बड़ी संख्या में लोग मिसकैरिज होने के बाद पूरी तरह से देखभाल और सम्मान का सामना नहीं कर पाते हैं। साथ ही कामकाजी महिलाओं के सामने एक दूसरी स्थिति बन जाती है उनके काम से छुट्टी का प्रावधान न होना। भारत में मातृत्व सुरक्षा अधिनियम के तहत मिसकैरिज के बाद छुट्टी का प्रावधान है लेकिन बड़ी संख्या में निजी और असंगठित क्षेत्र से काम करने वाली महिलाएं इस सुविधा से वंछित हैं। 

23 मिलियन मिसकैरिज के मामले हर साल 

एक आंकलन के मुताबिक़ सभी प्रेगनेंसी में से 30 फीसदी की समाप्ति मिसकैरिज से होती है। द लैसेंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 मिलियन मिसकैरिज दुनिया में हर साल होते हैं। अगर भारत की बात करते तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़  25 लाख बच्चे स्टिलबर्थ के तौर पर पैदा होते हैं। 10 से 15 फीसदी महिलाएं हर साल मिसकैरिज का सामना करती हैं। इस संबंध में कई रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में महिलाओं में मिसकैरिज की संभावना अधिक होती हैं, ख़ासकर उनकी पहली गर्भावस्था के दौरान। 

मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत अधिकार

कामकाजी महिलाओं का कहना है कि कार्यस्थल पर भी पर्याप्त समर्थन और संवेदनशीलता की कमी है। मातृत्व लाभ अधिनियम 1961, गर्भावस्था के समय महिलाओं के रोजगार की सुरक्षा करता है। इस ऐक्ट के तहत गर्भावस्था में मिसकैरिज या मेडिकल टर्मिनेशन के बाद छुट्टी का अधिकार देता है। मिसकैरिज के बाद महिला छह सप्ताह तक की वेतन सहित छुट्टी की हकदार होगी। महिलाओं के मिसकैरिज के लिए प्रूफ के तौर पर मेडिकल डॉक्यूमेंट जमा करने आवश्यक है। इससे अलग जानबूझकर गर्भावस्था को खत्म कराने की स्थिति को बाहर रखा गया है। मिसकैरिज होने के बाद बीमारी होने के लिए भी एक महीने का वैतनिक अवकाश मिलता है। धारा-9 के तहत मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत एक माह की छुट्टी मिल सकती है। 

यह अधिनियम दस या उससे अधिक व्यक्तियों के रोजगार वाले सभी प्रतिष्ठानों पर लागू होता है। फैक्ट्री, खदान और बगान वाले संगठनों में काम करने वाली महिलाओं भी मिसकैरिज की घटना के बाद वेतन सहित छुट्टी मिलेगी। साल 2017 में इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे। 

तस्वीर साभारः Manegment Today

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए कार्यस्थल पर उपलब्ध सुविधाओं में से एक है मिसकैरिज लीव। सार्वजनिक हो या कॉरपोरेट हर सेक्टर में काम करने वाली महिला इसकी हकदार है। अगर किसी स्थिति में महिला को मिसकैरिज के बाद वैतनिक अवकाश नहीं मिलता है तो वह अपने हक के लिए कंपनी पर कानूनी कार्रवाई भी कर सकती है। मातृत्व कानून में संशोधन के बाद सभी कॉरपोरेट और अन्य स्थापित प्रवर्तन में मैटरनिटी लीव का नियम है। मिसकैरिज की छुट्टी पाने के लिए एक महिला को मिसकैरिज से पहले एक साल की अवधि में कम से कम 80 दिन संस्था में काम किया होना चाहिए। अगर रोजगार देने वाला महिला कर्मचारी को छुट्टी देने से मना करता है तो वह लेबर कोर्ट जाकर अपने अधिकारों की मांग कर सकती है। 

दुनिया के स्वास्थ्य संगठनों में नहीं हो रहा है पालन

महिलाओं की गर्भावस्था और उसकी हर स्थिति उनके यौन एवं प्रजनन अधिकारों से जुड़ी है इसलिए मिसकैरिज के बाद छुट्टी न मिलना और उस जानकारी से अनभिज्ञ उनके अधिकारों का हनन है। हाल ही में द गार्डियन में छपी ख़बर के मुताबिक़ वैश्विक संगठन जो यौन और प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों (एसआरएचआर) में विशेज्ञष हैं वे अपनी महिला कर्मचारियों के हितों की उपेक्षा कर रहे हैं। द ग्लोबल हेल्थ 50\50 रिपोर्ट के अनुसार 197 संगठनो में से केवल एक में कार्यस्थल नीतियों में मेंस्ट्रुएशन, मेनोपॉज और अबॉर्शन से जुड़ी नीतियां थी। बीते हफ्ते प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 29 संगठनों ने महिलाओं को प्रजनन संबंधी ज़रूरतों के लिए अपनी सिक लीव की छुट्टी इस्तेमाल करने की अनुमति दी है। वैश्विक स्वास्थ्य में लैंगिक समानता की स्थिति को देखने के लिए इस रिपोर्ट में स्थिति का वर्णन किया गया है। 

रिपोर्ट में बताया गया है कि 18 संगठनों में पूरे मातृत्व स्वास्थ्य लाभ अपने कर्मचारियों को दिए जाते हैं जो मिसकैरिज या स्टिलबर्थ का सामना करते है। वैश्विक स्वास्थ्य रिसर्च लिंडा गिबी का कहना है कि इस एसआरएचआर के अपोजिशन में अच्छी तरह से वित्त पोषित लॉबिंग समूह शामिल हैं। इसमें बहुत से देश भी हैं जिसमें रूस भी शामिल है जो संयुक्त राष्ट्र वार्ता में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के किसी भी उल्लेख में वीटो करता है। यह बहुत निराशा जनक है कि एसआरएचआर का इतना राजनीतिकरण कैसे हो गया है, क्योंकि यह एक स्वास्थ्य सेवा है और यह स्वास्थ्य सेवाओं का अधिकार है जो अंतरराष्ट्रीय काननू और समझौतों में शामिल है।

मिसकैरिज की छुट्टी पाने के लिए एक महिला को मिसकैरिज से पहले एक साल की अवधि में कम से कम 80 दिन संस्था में काम किया होना चाहिए। अगर रोजगार देने वाला महिला कर्मचारी को छुट्टी देने से मना करता है तो वह लेबर कोर्ट जाकर अपने अधिकारों की मांग कर सकती है। 

वैश्विक स्थानों के हालातों को दिखाती यह रिपोर्ट साफ कर देती है कि निजी और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की क्या स्थिति है। कानून की अवहेलना कर संस्थाएं महिला कर्मचारियों के स्वास्थ्य या तो खतरे में डाल देते हैं या फिर महिलाएं मिसकैरिज के बाद अपनी नौकरी को गवां देती है। भारत जैसे देश में जहां बड़ी संख्या में महिलाएं असंगठित क्षेत्र, निजी कंपनियों में काम करती है वहां उनके यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के अधिकारों को  ताक पर सबसे रखती है।


Leave a Reply

संबंधित लेख

Skip to content