स्वास्थ्यशारीरिक स्वास्थ्य मिसकैरिज का ज़िम्मेदार हमेशा औरतों को क्यों माना जाता है?

मिसकैरिज का ज़िम्मेदार हमेशा औरतों को क्यों माना जाता है?

मिसकैरिज की घटनाओं पर बड़े पैमाने पर ध्यान न देकर चुप्पी, गलत जानकारी, आरोप लगाना और अंधविश्वास में डूबा व्यवहार ज्यादा चलन में है। ये वजह कई अन्य परेशानियों को जन्म देती है।

बहुत से लोग सोचते हैं कि मिसकैरिज एक बहुत ही अप्रत्याशित स्थिति है। हमारा समाज मानता है कि मिसकैरिज होने की वजह महिलाएं खुद होती हैं। कई महिलाएं खुद को इसका जिम्मेदार मानते हुए अपनी गलती मानती है। रूढ़िवादी विचारधारा में अजन्मे भ्रूण को खोने को पाप और कर्मों की सजा के तौर पर भी देखा जाता है। ये सब वे धारणाएं हैं जिनके आधार पर मिसकैरिज होने पर उस व्यक्ति के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नज़रअंदाज किया जाता है। 

अमेरिका में हर साल एक मिलियन महिलाएं अपनी गर्भावस्था के दौरान मिसकैरिज का सामना करती हैं। हालांकि, चिकित्सा प्रणाली के अनुसार मिसकैरिज कई तरह के हो सकते हैं जिसमें विशेष तौर पर उस व्यक्ति पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है जिसका मिसकैरिज हुआ है। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है जो गर्भावस्था का ही एक हिस्सा है। कई अनुवांशिक वजहें भी मिसकैरिज होने का कारण बनती हैं। यह तय है कि हर प्रेंगनेंसी में मिसकैरिज होने की संभावना हो सकती है लेकिन इसके लिए उस इंसान को ‘अपराधी’ के नज़रिये से देखना एक पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है।

मिसकैरिज पर बड़े पैमाने पर चुप्पी, गलत जानकारी, आरोप लगाना और अंधविश्वास में डूबा व्यवहार ज्यादा चलन में है। ऐसा व्यवहार कई अन्य परेशानियों को जन्म देता है। मिसकैरिज होनेवाले इंसान की मेडिकल ज़़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। पोस्ट मिसकैरिज पर्याप्त देखभाल न मिलने के कारण अन्य खतरनाक संक्रमण की संभावना को बढ़ा दिया जाता है। कई मामलों में अपराध बोध होना, डिप्रेशन और पोस्ट ट्रैमेट्रिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) का सामना भी लोगों को करना पड़ता है।

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चिकित्सा प्रणाली के अनुसार मिसकैरिज कई तरह के हो सकते हैं जिसमें विशेष तौर पर उस व्यक्ति पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है जिसका मिसकैरिज हुआ है। यह एक प्राकृतिक प्रतिक्रिया है जो गर्भावस्था का ही एक हिस्सा है।

मिसकैरिज की वजह

कई अध्ययनों के अनुसार प्रेगनेंसी के दौरान मिसकैरिज की बहुत ही कॉमन वजह जेनेटिक और मेडिकल समस्याएं हैं। कॉमन जेनेटिक समस्या की वजह से भ्रूण में क्रोमोसॉम की असमान्य संख्या हो जाती है जिस वजह से मिसकैरिज होता है। यह मिसकैरिज होने की सबसे आम वजहों में से एक मानी जाती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के दौरान अलग-अलग मेडिकल कंडीशन भी इसका कारण बनती है। 

पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग सर्विस में छपे लेख के अनुसार क्लीनिकल रेक्गनाइज़ प्रेगनेंसी में से 15 से 20 प्रतिशत प्रेगनेंसी पूरी हो ही नहीं पाती है। मिसकैरिज के 80 फीसद केस गर्भावस्था के शुरू के तीन महीने के समय में होते हैं। क्रोमोसॉम की अधिकता या कमी की वजह से मिसकैरिज होने की संभावना होती है। हेल्थ लाइन में प्रकाशित लेख के मुताबिक मिसकैरिज के कारणों में खानपान, कुपोषण, नशीले पदार्थों का सेवन, थॉयराइड की समस्या, हार्मोन डिसबैलेंस, डायबिटीज, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर जैसी वजहें शामिल हैं।

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 पितृसत्तात्मक सोच सबसे पहला दोष महिलाओं को देती है

गार्डियन में प्रकाशित में प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार बड़ी संख्या में लोग मिसकैरिज के बाद अपराध बोध महसूस करते हैं। अध्ययन में शामिल हर पांच में से दो ने माना था कि उन्होंने कुछ गलत किया था जिसकी वजह से यह हुआ है। ठीक इतने ही लोगों ने मिसकैरिज के बाद खुद को अकेला भी पाया है। जर्नल ऑफ अब्स्टेट्रक्स एंड गाइनकॉलजी का सर्वे कहता है कि 47 प्रतिशत लोगों ने मिसकैरिज की वजह खुद की गलती मानी। 41 प्रतिशत लोगों का कहना है कि उन्होंने कुछ गलत किया है जिसकी वजह से मिसकैरिज हुआ है। 76 प्रतिशत अमेरिकी विश्वास करते हैं कि तनाव की वजह से मिसकैरिज होता है। 64 प्रतिशत लोगों का मानना है कि भारी वजन उठाने की वजह से प्रेगनेंसी खत्म हुई है। 22 प्रतिशत का मानना है कि ओरल कॉन्ट्रासेप्शन मिसकैरिज की वजह है।   

मिसकैरिज पर बड़े पैमाने पर चुप्पी, गलत जानकारी, आरोप लगाना और अंधविश्वास में डूबा व्यवहार ज्यादा चलन में है। ऐसा व्यवहार कई अन्य परेशानियों को जन्म देता है। मिसकैरिज होनेवाले इंसान की मेडिकल ज़़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया जाता है। पोस्ट मिसकैरिज पर्याप्त देखभाल न मिलने के कारण अन्य खतरनाक संक्रमण की संभावना को बढ़ा दिया जाता है।

तमाम शोध और चिकित्सा प्रणाली इस बात की तस्दीक करते हैं कि मिसकैरिज, प्रेगनेंसी का एक हिस्सा है। बावजूद इसके दुनियाभर में मिसकैरिज को एक शर्म और कलंक की तरह देखा जाता है। यह धारण पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चलती जाती है जिस वजह से मिसकैरिज को एक कलंक, दुर्भाग्य और शर्म समझा जाता है। जिन महिलाओं का मिसकैरिज होता है उन्हें बीमार या बांझ तक कह दिया जाता है। इस तरह की बातें शर्म और हिचक को बढ़ावा देती हैं। मिसकैरिज को असमान्य मानकर इसे केवल दुख, बांझ या बीमारी के साथ जोड़कर देखा जाता है। महिलाओं को निजी तौर पर शोक मनाने के लिए मजबूर भी किया जाता है। वे क्या चाहती हैं, उनकी ज़रूरत क्या है इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। यह व्यवहार महिलाओं को अवसाद में जानबूझकर धकेलने का काम करता है। 

अधिकतर महिलाएं मोरल पुलिसिंग और पूर्वानुमानों से बचने के लिए चुप्पी साध लेती हैं। इस तरह की सोच मिसकैरिज के लिए महिला को जिम्मेदार मानते हुए घटना का सारा दोष देकर उसे अपमानित करती है। यही नहीं, मिसकैरिज होने पर यह तक सुनने को मिलता है कि होनेवाले बच्चे को ‘बुरी नज़र’ लग गई जिस वजह से प्रेगनेंसी समय से पहले खत्म हुई है।

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वाइस में प्रकाशित एक लेख में महिलाएं, मिसकैरिज के बाद डॉक्टर के साथ अपने अनुभवों को साझा करते हुए यह बताती हैं कि हास्पिटल में भी उन्हें मिसकैरिज के बारे में ज्यादा जानकारी या बात करने का मौका नहीं मिला। लेख के अनुसार मिसकैरिज के बाद उनसे डॉक्टर और नर्सिंग स्टॉफ ने सही तरीके से बात नहीं की गई और अस्पताल में पोस्ट केयर के बारे में भी जानकारी नहीं दी गई। 

मिसकैरिज को लेकर कई तरह के मिथ्य प्रचलित है जिस वजह से इसे गर्भावस्था की प्रक्रिया का एक हिस्सा न मानकर अपवाद माना जाता है। द हिंदू में प्रकाशित लेख के अनुसार भारत में रूढ़िवाद और अवैज्ञानिक तर्कों के आधार पर प्रचलित इन मिथकों में गर्भावस्था में कुछ चीजें खाने को भी मिसकैरिज का कारण मानते हैं। इसके अलावा घूमने-फिरने और पूरी तरह से बिस्तर पर न लेटने को भी मिसकैरिज की एक वजह माना जाता है। 

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अधिकतर महिलाएं मोरल पुलिसिंग और पूर्वानुमानों से बचने के लिए चुप्पी साध लेती हैं। इस तरह की सोच मिसकैरिज के लिए महिला को जिम्मेदार मानते हुए घटना का सारा दोष देकर उसे अपमानित करती है। यही नहीं, मिसकैरिज होने पर यह तक सुनने को मिलता है कि होनेवाले बच्चे को ‘बुरी नज़र’ लग गई जिस वजह से प्रेगनेंसी समय से पहले खत्म हुई है।

मिसकैरिज का मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है असर 

दुनियाभर में 12 से 15 प्रतिशत प्रेगनेंसी मिसकैरिज की वजह से समय से खत्म हो जाती है। मिसकैरिज होने की वजह मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इंटरनैशनल फेडरेशन ऑफ गाइनकलॉजि एंड अब्सट्रेटक्स में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार मिसकैरिज के बाद 30 से 50 प्रतिशत महिलाएं एन्गज़ायटी और 10 से 15 प्रतिशत महिलाएं डिप्रेशन का सामना करती हैं। आंकड़े यह दिखाते हैं कि मिसकैरिज के बाद मानसिक सेहत पर ध्यान देने की बहुत ज्यादा ज़रूरत होती है। इससे इतर मिसकैरिज को एक टैबू और सोशल सिटग्मा मानकर उस इंसान को अलग-थलग कर दिया जाता है

मिसकैरिज में दोष न देकर, उस व्यक्ति का ख्याल रखना बेहद ज़रूरी होता है। इस ज़रूरत के बीच पूर्वाग्रह बहुत बड़ी रुकावट है। मिसकैरिज के बाद स्वास्थ्य का ध्यान रखने और भावनात्मक सहारे की बहुत आवश्यकता होती है। यह तभी संभव है जब मिसकैरिज पर खुलकर बात होगी। नहीं तो सदियों से चलती आ रही रुढ़िवादी सोच ही बनी रहेगी। जितना लोग जानेगें यह क्यों होता है, यह कितनी बार हो सकता है तभी सदियों से चले आ रहे मिथकों को खत्म किया जा सकेगा।

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तस्वीर साभारः iStock/Creator: Ponomariova_Maria

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