इंटरसेक्शनलजेंडर ‘जेंडर आपरथाइड’ के ख़िलाफ़ क्यों ज़रूरी है अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग

‘जेंडर आपरथाइड’ के ख़िलाफ़ क्यों ज़रूरी है अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग

जेंडर आपरथाइड यानी भेदभाव और अलगाव की एक ऐसी प्रणाली जिसमें लिंग के आधार पर व्यवस्थित अलगाव, भेदभाव और असमानता को परिलक्षित करता है। जेंडर और लिंग के आधार पर आर्थिक और सामाजिक लैंगिक भेदभाव किया जाता है।

पितृसत्ता के चलते हर जगह  लैंगिक भेदभाव मौजूद है; जिस वजह से महिलाओं और लड़कियों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। जेंडर आपरथाइड किसी जेंडर के ख़िलाफ़ संस्थागत और व्यवस्थित भेदभाव को ही कहते है। किसी एक जेंडर द्वारा दूसरे जेंडर पर वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास किया जाता है और उन्हें प्रताड़ित करने के लिए अमानवीय कृत्यों का सहारा लिया जाता है।

जेंडर आपरथाइड क्या है? 

जेंडर आपरथाइड शब्द की उतपत्ति दक्षिण अफ्रीका के नस्लीय रंगभेद से हुई है जिसमें गोरे रंग के लोगों को वर्चस्व दिया गया है और देश के बहुसंख्यक काले निवासियों को अलग किया गया है। अफ्रीका में नस्ल के आधार पर होने वाले अलगाव के लिए आपरथाइड शब्द का इस्तेमाल होता है इसी तरह जेंडर के आधार पर अलगाव और उत्पीड़न के द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए भी आपरथाइड शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। 

जेंडर आपरथाइड यानी भेदभाव और अलगाव की एक ऐसी प्रणाली जिसमें लिंग के आधार पर व्यवस्थित अलगाव, भेदभाव और असमानता को परिलक्षित करता है। जेंडर और लिंग के आधार पर आर्थिक और सामाजिक लैंगिक भेदभाव किया जाता है। इस तरह से यह सर्वाइवर के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, फिर चाहे वह कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, शिक्षा, रोजगार, सामाजिक परिवेश, परिवार आदि। नारीवादी स्कॉलर फीलिस चेस्लर इसे ऐसी प्रथाओं के रूप में परिभाषित करती है जिसमें लड़कियों और महिलाओं को एक अलग और अधीनस्थ अस्तित्व बनाती है और पुरुषों और लड़कों को उनकी महिला रिश्तेदारों की स्थायी संरक्षक बनाती है। यह प्रथा सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के साथ-साथ महिलाओं को शारीरिक नुकसान भी पहुंचाती है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के तहत रहने वाली महिलाएं और लड़कियों के ख़िलाफ़ यह एक व्यवस्थित और संरचनात्मक युद्ध है। इसे सत्ता पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से दमन स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

मानवता के ख़िलाफ़ एक संगीन अपराध  

इस तरह का व्यवहार लैंगिक उत्पीड़न [Gender Persecution] जो कि मानवता के प्रति अपराध है। इस्लामी गणतंत्र ईरान और अफगानिस्तान में तालिबान के शासन के तहत रहने वाली महिलाएं और लड़कियों के ख़िलाफ़ यह एक व्यवस्थित और संरचनात्मक युद्ध है। इसे सत्ता पर कब्जा जमाने के उद्देश्य से दमन स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहां की सरकारों द्वारा नियमों के तहत महिलाओं के साथ दोयम दर्जे के नागरिकों जैसा व्यवहार किया जाता है।

तस्वीर साभारः Scroll.in

अलज़जीरा में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के एक विशेषज्ञ ने कहा कि तालिबान द्वारा अफगान महिलाओं और लड़कियों के साथ किया जाने वाला व्यवहार जेंडर आपरथाइड के समान हो सकता है क्योंकि सरकारी अधिकारियों द्वारा उनके अधिकारों को लगातार कमजोर किया जा रहा है। अफगानिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत रिचर्ड ने ह्यूमन राइट्स काउंसिल जेनेवा में बताया है, “महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ गंभीर, व्यवस्थिति और संस्थागत भेदभाव तालिबान की विचारधारा और शासन के केंद्र में है। जो एक गंभीर चिंता को जन्म देता है है।” उन्होंने सत्र के बाद मीडिया से कहा कि हमें जेंडर आपरथाइड के और बिंदुओं की खोज की अधिक आवश्यकता है जो वर्तमान में एक अंतरराष्ट्रीय अपराध नहीं है लेकिन हो सकता है। उन्होंने आगे कहा है कि अगर आपरथाइड की परिभाषा जो इस समय नस्ल के लिए है और अफगानिस्तान पर लागू करता है तो वहां नस्ल की जगह सेक्स का उपयोग करता है तो स्थिति की ओर इशारा करने वाले मजबूत तथ्य प्रतीत होते है। 

दुनियाभर विशेष में इस तरह से होने वाले भेदभाव का सामना कर रहे लोगों को अमानवीय, आपराधिक अत्यचारों से मुक्ति दिलाने के लिए एक प्रयास किया जा रहा है। लैंगिक भेदभाव के इस व्यवस्था को समाप्त करने के लिए यह वैश्विक कार्रवाई में शामिल हो इसकी मांग की जा रही है। सरकारों से तीन मांगें रखी गई है। इंड जेंडर आपरथाइड.कॉम के अनुसार सबसे वह पहले सरकारों से मांग करते हैं कि वे ईरान और अफगानिस्तान में इस तरह के भेदभाव के तहत रहने वाली महिलाओं के अनुभव और दयनीय परिस्थितियों के बारे में जागरूकता फैलाए। दूसरा, सरकारें यह स्वीकार करते हुए राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ साझा बयान और प्रस्ताव या संकल्प जारी करे कि ईरान और अफगानिस्तान लैंगिक भेदभाव वाले देश है, और अंत में, संस्थागत लिंग-आधारित भेदभाव के गंभीर रूपों को शामिल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय कानूनों के तहत इसकी कानूनी परिभाषा की व्याख्या और विस्तार करें।

जेंडर आपरथाइड के ख़िलाफ़ अभियान

दरअसल विद्धानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समान रूप से जेंडर आपरथाइड के रूप में विशेष कृत्यों को पहचानने और रोकने के लिए कार्रवाई की कमी के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों की आलोचना की है। आलोचकों के अनुसार कल्चर रिलेटिज़म यानी सांस्कृतिक सापेक्षवाद के सहारे अक्सर जेंडर के आधार पर होने वाले राष्ट्रों के भेदभाव के बचाव का स्रोत रहा है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति एक बड़ी वजह रही है कि अबतक इस व्यवस्थित अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ कानून नहीं है।

1997 में फेमिनिस्ट मेजोरिटी फाउंडेशन ने तालिबान के द्वारा होने वाले महिलाओं के मानवाधिकारों के हनन की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अफगानिस्तान में जेंडर के आधार पर होने वाली प्रथागत भेदभाव को रोकने के लिए अभियान शुरू किया था। उसके तालिबान के शासन खत्म होने के बाद अभियान का नाम बदलकर अफगान महिलाएं और लड़कियां रखा गया था। इसी तरह 2009 में सउदी अरब में महिलाओं की स्थिति को संबोधित करते हुए नो वीमन, नो प्ले कैंपेन शुरू किया गया था। अभियान का उद्देश्य सउदी अरब में महिलाओं को खेलों में भाग लेने की अनुमति देना था। ठीक इसी तरह रोमन कैथोलिक धर्म में जेंडर आपरथाइड के संबंध में महिलाओं के समन्व्य पर रोक लागने वाली चर्च की स्थिति का विरोध करने के लिए महिलाओं ने संगठन का गठन किया।   

यदि जेंडर आपरथाइड कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त शब्द बन जाता है, तो उन नेताओं के ख़िलाफ़ मुकदमा चलाने के रास्ते साफ़ होंगे जो इन अत्याचारों को अंजाम दे रहे हैं। उन देशों के ख़िलाफ़जहाँ भी लैंगिंक रंगभेद की घटनाएं सामने आएंगी वहां वैश्विक संस्थानों द्वारा व्यापारिक प्रतिबंध, आर्थिक प्रतिबंध और भी कई तरह के प्रतिबंध लगाए जा सकते है। महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ जेंडर के आधार पर होने वाले भेदभाव के व्यवहार को अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

महिलाओं को किसी समाज में जेंडर के आधार पर होने वाले भेदभाव को रणीतिकारों के तहत सामान्यीकृत कर दिया जाएगा तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे जो व्यक्तियों, समुदायों और उस समाज की समग्र प्रगति को प्रभावित करेंगे। जेंडर आपरथाइड को सामान्य बनाने का सीधा और साफ अर्थ है, अनिवार्य रूप से लैंगिक पहचान के आधार पर व्यवस्थित भेदभाव और अलगाव को स्वीकार करना और उसका समर्थन करना है। यदि ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है तो मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा, समाज आर्थिक स्थिरता का शिकार हो जाएगा, शैक्षिक पिछड़ापन का सामना करना पड़ेगा, जिससे हाशिये पर रहने वाले समूहों के बीच निरक्षरता और कौशल की कमी बन जाएगी, जो कि गरीबी के चक्र को और मज़बूती प्रदान करेगी और सामाजिक प्रगति की संभावना का तो बिल्कुल अंत ही हो जाएगा। 

तस्वीर साभारः YLBHI

जेंडर के आधार पर भेदभाव को सामान्य बनाना पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं और रूढ़ियों को मज़बूती करता है। यह प्रतिगामी दृष्टिकोण लैगिंक समानता की दिशा में हो रहे प्रयासों का बाधक है। और तो और समाज के भीतर लैंगिक भूमिकाओ की अधिक समावेशी समझ को भी बाधित करता है। जेंडर के आधार पर होने वाले इस भेदभाव के सामान्यीकृत होने पर सबसे अधिक प्रभाव महिलाओं पर पड़ेगा। इसकी वजह से महिलाओं का अमानवीयकरण हो जायेगा। महिलाओं का अमानवीयकरण एक व्यथित करने वाला और व्यापक मुद्दा है जो पूरे इतिहास में विभिन्न समाजों और संस्कृतियों में बना हुआ है। यह महिलाओं को मानव से कमतर मानने, उन्हें उनकी अंतर्निहित गरिमा, अधिकार और आज़ादी से वंचित करने के कृत्य को संदर्भित करता है।

अमानवीयकरण कई तरीकों से प्रकट होता है, महिलाओं के शरीर को वस्तु की तरह पेश करने से लेकर उनके साथ हिंसा और दुर्व्यवहार करके तथा उन्हें मिल रहे अवसरों और स्वायत्तता को सीमित करने तक जैसे अनगिनत तरीकों का इस्तेमाल होता आ रहा है। इस घटना के दूरगामी सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक परिणाम देखने को मिलते हैं, और इसका समाधान करना एक अधिक न्यायपूर्ण और न्यायसंगत दुनिया बनाने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

महिलाओं की भूमिकाओं और क्षमताओं के बारे में पितृसत्तात्मक समाज की रूढ़िवादिता उनकी क्षमता को सीमित करके और कठोर सामाजिक मानदंडों को लागू करके महिलाओं के साथ वर्षो से अमानवीय व्यवहार करते आ रहा है। जेंडर आपरथाइड शासन द्वारा जो महिलाओं पर अत्याचार किया जा रहा है उसमें हमे पितृसत्ता की वैश्विक व्यस्था का स्वरूप आसानी से नज़र आ जाता हैं। इसलिए यदि हमें भेदभाव के इस शासन के खिलाफ़ जो आंदोलन चल रहा है, उसे और अधिक मज़बूती देनी होगी। पितृसत्ता की वैश्विक व्यवस्था को ख़त्म करना एक जटिल और परिवर्तनकारी प्रयास है जिसके लिए दुनिया भर में व्यक्तियों, समुदायों, सरकारों और संस्थानों के ठोस प्रयासों की आवश्यकता है। पितृसत्ता एक सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था को संदर्भित करती है जो पुरुषों को महिलाओं के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर असंगत शक्ति और नियंत्रण देकर लिंग आधारित असमानताओं को कायम रखती है।

आलोचकों के अनुसार कल्चर रिलेटिज़म यानी सांस्कृतिक सापेक्षवाद के सहारे अक्सर जेंडर के आधार पर होने वाले राष्ट्रों के भेदभाव के बचाव का स्रोत रहा है। साथ ही अंतरराष्ट्रीय कूटनीति एक बड़ी वजह रही है कि अबतक इस व्यवस्थित अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ कानून नहीं है।

लैंगिक भेदभाव के ख़िलाफ़ ये जो आंदोलन है वह सर्वसमावेशी है क्योंकि लिंग के आधार का प्रयोजन सिर्फ महिलाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसमें ऐसे सर्वाइवर भी शामिल हो सकते हैं जो अपनी पहचान महिलाओं, लड़कियों, पुरुषों, लड़कों, गैर-बाइनरी और LGBTQIA+ व्यक्तियों के रूप में करते हैं। लैंगिक अपराध व्यक्तियों को उनके यौन रुझान, लिंग पहचान और लिंग अभिव्यक्ति या उनके लिंग के आधार पर लक्षित करते हैं। लैंगिक अपराधों पर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के अभियोजक के मार्गदर्शन में लिंग को ‘यौन विशेषताओं और सामाजिक निर्माणों और मानदंडों के रूप में परिभाषित किया गया है, जिनका उपयोग भूमिका, व्यवहार, गतिविधियों और विशेषताओं सहित पुरुषत्व और स्त्रीत्व को परिभाषित करने के लिए किया जाता है। ये सामाजिक संरचनाएं समाजों के बीच भिन्न हो सकती हैं और समय के साथ बदल सकती हैं।

जिस प्रकार दक्षिण अफ्रीका के लोगो ने नस्लीय रंगभेद के खिलाफ वर्षो तक आंदोलन किया और लगातार संघर्ष करते रहे जब तक की उन्हें नस्लीय रंगभेद से आजादी नही मिल गयी ठीक इसी प्रकार हमे वैश्विक स्तर पर एकजुट होकर लगातर संघर्ष करना पड़ेगा ! इसे ईरानी और अफगानी महिलाओं, लड़कियों की परेशानी समझ के नज़र अंदाज़ नही कर सकते हैं , क्योकि यह लगातर वैश्विक समस्या बनता जा रहा है।

स्रोतः

  1. International service for human rights
  2. United Nation
  3. Wikipedia
  4. Vital Voices Global Partnership

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