जुलाई 2023 में संयुक्त राष्ट्र निकायों – यूएन वीमेन और यूएनडीपी द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार भारत महिला सशक्तिकरण (डब्ल्यूईआई) और वैश्विक लिंग समानता (जीजीपीआई) के पहले ‘ट्विन इंडिसेस’ में सशक्तिकरण और समानता में भारत आज भी बेहद पीछे है। यह रिपोर्ट ‘द पाथ्स टू इक्वल’ के नाम से जारी की गई है, जिसमें पहली बार 2022 में महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता के लिए ‘ट्विन इंडिसेस’ पर 114 देशों का आंकलन किया गया है। संयुक्त राष्ट्र निकायों का दावा है कुल मिलाकर, ये सूचकांक महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में देशों की प्रगति की अधिक संपूर्ण तस्वीर पेश करते हैं।
क्या है WEI एंड GGPI सूचकांक?
संयुक्त राष्ट्र महिला और यूएनडीपी द्वारा वूमेन डिलीवर कॉन्फ्रेंस में लॉन्च की गई यह वैश्विक रिपोर्ट, दुनियाभर में लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण हासिल करने में चुनौतियों पर प्रकाश डालती है। रिपोर्ट में महिलाओं के मानव विकास में प्रगति का आंकलन करने के लिए उपकरण के रूप में दो सूचकांक – महिला सशक्तिकरण सूचकांक (डब्ल्यूईआई) और वैश्विक लिंग समानता सूचकांक (जीजीपीआई) पेश किए गए हैं।
जीजीपीआई मानव विकास के विभिन्न आयामों में पुरुषों के सापेक्ष महिलाओं की उपलब्धियों की स्थिति को दर्शाता है। WEI जीवन में विकल्प चुनने और अवसरों का लाभ उठाने की महिलाओं की शक्ति और स्वतंत्रता को मापता है। यह महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा को एक ‘स्टैंडअलोन डायमेंशन’ के रूप में शामिल करने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र लिंग सूचकांक है। यह महिलाओं और लड़कियों के लिए उनकी क्षमता, उनके अवसरों और उनके लिए उपलब्ध विकल्पों का उपयोग करने के उपायों का विस्तार करती है।
WEI और GGPI सूचकांकों की भूमिका
WEI और GGPI नीति निर्माताओं के लिए उपकरण के रूप में काम करते हैं, जो महिला सशक्तिकरण और लैंगिक समानता की दिशा में प्रगति और मार्गदर्शक कार्रवाई के लिए साक्ष्य प्रदान करते हैं। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष सतत विकास लक्ष्यों के आंकलन के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। नीति निर्माता, हितधारक और समुदाय अधिक न्यायसंगत और समावेशी दुनिया की ओर आगे बढ़ने के लिए इन सूचकांकों का उपयोग कर सकते हैं।
दुनिया एक गंभीर चौराहे पर है। हर रोज़ नये हिंसक संघर्ष, तीव्र सामाजिक ध्रुवीकरण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक खतरों के कारण होने वाली आपदाओं में वृद्धि, साथ ही साथ कोविड-19 महामारी के कारण पैदा होनेवाली चुनौतियां आपस में परस्पर जुड़े हुए वैश्विक संकट हैं। इन सबसे महिलाओं की चुनौतियां बढ़ गई हैं। दुनियाभर में पुरुषों को ऐसे विशेषाधिकार दिए गए हैं जिनमें नेतृत्व और निर्णय लेने में बड़ी भूमिकाएं शामिल हैं जो महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं हैं। ये असमानताएं कभी-कभी कानून द्वारा समर्थित होती हैं, कभी-कभी मानदंडों और प्रथाओं के माध्यम से प्रचारित होती हैं। ये शक्ति के असमान वितरण, असमान मानवीय क्षमताओं और असमान परिणामों की ओर ले जाती हैं। ये न केवल महिलाओं की भलाई और उन्नति के लिए बल्कि मानव प्रगति के लिए भी हानिकारक हैं।
WEI एंड GGPI के आंकड़े क्या कहते हैं?
इस रिपोर्ट के अनुसार “उच्च महिला सशक्तिकरण और छोटे जेंडर गैप वाले देश में 1% से भी कम महिलाएं और लड़कियां रहती हैं। विश्व स्तर पर, महिलाएं अपनी पूरी क्षमता का औसतन केवल 60% हासिल करने के लिए सशक्त हैं, जैसा कि WEI द्वारा मापा गया है। GGPI के अनुसार महिलाएं प्रमुख मानव विकास आयामों में औसतन, पुरुषों की तुलना में 72% हासिल करती हैं, जो 28% लिंग अंतर को दर्शाता है।”
रिपोर्ट के निष्कर्षों पर टिप्पणी करते हुए, संयुक्त राष्ट्र महिला कार्यकारी निदेशक सिमा बाहौस ने कहा: “सतत विकास लक्ष्यों के साथ, वैश्विक समुदाय ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता बनाई है। हालांकि, हम इन नए सूचकांकों के साथ स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि देशों में, महिलाओं की पूरी क्षमता का एहसास नहीं हुआ है, और बड़े लिंग अंतर आम बात बनी हुई है, जिससे सभी लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रगति बाधित और धीमी हो रही है।”
भारत की स्थिति
वैश्विक समुदाय इन व्यापक संकटों से पहले ही 2030 तक लैंगिक समानता हासिल करने की राह से भटक गया था, अब हाल के मौजूदा रुझानों ने प्रगति को और भी दूर धकेल दिया है। भारत भी इन सबसे अछूता नहीं रहा है। पितृसत्तात्मक मानसिकता, पिछड़ापन, अशिक्षा, गरीबी इसको बढ़ावा देने में हाथ बंटाती है। भारत में WEI के अनुसार सशक्तिकरण घाटा 48% है और GGPI के अनुसार लैंगिक अंतर 44% है।
भारत का स्कोर मध्य और दक्षिणी एशिया के क्षेत्रीय औसत से अधिक है जहां सशक्तिकरण घाटा 50% है। हालाँकि, भारत में 44% लैंगिक अंतर मध्य और दक्षिणी एशिया क्षेत्रीय लैंगिक अंतर 42% से थोड़ा अधिक है। वहीं दूसरी ओर, भारत में, महिलाएं और लड़कियां कुछ सशक्तिकरण संकेतकों में अच्छा प्रदर्शन करती हैं। उदाहरण के लिए, प्रजनन आयु की 77.5% महिलाओं की परिवार नियोजन की आवश्यकता आधुनिक तरीकों से पूरी होती है। इसके अलावा, देश की किशोर जन्म दर 15-19 आयु वर्ग की प्रति 1000 महिलाओं पर 16.3 है, जो क्षेत्रीय औसत 27.8 से काफी कम है।
इसके अतिरिक्त, भारत वित्तीय समावेशन में क्षेत्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन करता है, 15 वर्ष और उससे अधिक आयु की 77.6% महिलाओं और लड़कियों का खाता किसी वित्तीय संस्थान या मोबाइल मनी सेवा प्रदाता के पास है। स्थानीय सरकार में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भी भारत सबसे आगे है। भारत में स्थानीय सरकार की 44% सीटें महिलाओं के पास हैं। हालांकि, राष्ट्रीय राजनीतिक प्रतिनिधित्व पिछड़ गया है, केवल 14.7% संसदीय सीटें महिलाओं के पास हैं और प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं की उपस्थिति केवल 15.9% है। इसके अलावा, पांच में से दो से अधिक युवा महिलाएं (15-24 वर्ष की आयु), या 43.5% पुरुषों के लिए 13.7% की तुलना में शिक्षा, रोजगार या प्रशिक्षण में नहीं हैं। श्रम बल की भागीदारी के संदर्भ में, 6 साल से कम उम्र के कम से कम एक बच्चे वाले घरों में केवल 27.1% प्रधान कामकाजी उम्र की महिलाएं (25-54 वर्ष की आयु) कार्यबल में भाग लेती हैं, जबकि पुरुषों के लिए यह 97.3% है।
हमारे देश में आज के समय में, पहले से कहीं अधिक लड़कियां शिक्षित हैं। सरकार लड़कियों की शिक्षा को लेकर जागरूकता अभियान चला रही है। मिड डे मील, फ्री राशन, फ्री स्कूल यूनिफार्म और किताबें आदि योजनाएं लड़कियों की शिक्षा में आनेवाली बाधाओं को दूर करने के लिए ही चलायी गई हैं। बाल विवाह और बाल मज़दूरी जैसी हानिकारक प्रथाएं कम हो रही हैं। प्रसव के दौरान भी अब महिलाओं के मरने का आंकड़ा कम हो रहा है। महिलाओं का जीवन दर अधिक हो गया है। अब महिलाएं अधिक बच्चे पैदा करने की जगह कम बच्चे पैदा कर रही हैं और उनकी परवरिश पर ध्यान दे रही हैं।
बाल विवाह पर रोक के कारण अब 18 वर्ष की आयु से पहले बच्चा होने की संभावनाएं भी कम हो गई हैं। अब महिलाएं घर बैठने के बजाये सार्वजनिक जीवन में प्रवेश कर रही हैं। वे संसद में प्रतिनिधियों के रूप में और मंत्रियों और न्यायाधीशों के रूप में नज़र आने लगी हैं। और अधिक संख्या में पुरुष भी शामिल होकर लिंग आधारित हिंसा के खिलाफ बोल रहे हैं। महिलाएं और लड़कियां भी आगे बढ़ते हुए अपने साथ-साथ दूसरे लोगों के लिए भी संघर्ष कर रही हैं।
इस प्रगति के बावजूद, भारत में लैंगिक समानता का रास्ता अब भी लंबा और बाधाओं से भरा हुआ है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं के स्वास्थ्य और शिक्षा में कम संसाधनों का निवेश किया जाता है। महिलाओं को पुरुषों की तुलना में भुगतान वाले काम तक कम पहुंच प्राप्त है, और जब महिलाएं नियोजित होती हैं, तो उन्हें कम वेतन दिया जाता है। परिवार नियोजन और देखरेख की अधिकतर ज़िम्मेदारी महिलाओं के कंधों पर डाली जाती है जिसके परिणामस्वरूप कामकाजी महिलाओं के काम पर असर पड़ता है। घरों में ओर कार्यक्षेत्र पर महिलाओं के साथ शारीरिक ओर मानसिक हिंसा की जाती है। कई बार उन्हें मजबूरन काम छोड़ना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर, घरेलू महिलाओं के स्वास्थ्य पर कम ध्यान दिया जाता है।
भेदभाव के अतिव्यापी रूपों का सामना करने वाली महिलाओं और लड़कियों को समाज में पूरी तरह से और प्रभावी ढंग से भाग लेने से बाहर रखा जाता है। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा व्यापक बनी हुई है, भले ही देश में इसको लेकर कई कानून पारित हो चुके हैं। यह हाल हमारे देश का तब है जब भारत वित्तीय समावेशन में अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। ‘डिजिटल इंडिया’ के इस युग में महिलाओं के एक बड़े वर्ग के पास अपने स्वयं के बैंक खाते हैं। भारत स्थानीय स्वशासन में भागीदारी में अग्रणी है, इसके बावजूद रिपोर्ट इस बात पर प्रकाश डालती है कि देश में कौशल निर्माण, श्रम में महिलाओं की उपस्थिति, बाजार, राजनीतिक भागीदारी और निजी क्षेत्र में प्रतिनिधित्व में अभी भी बड़े अंतर हैं।
यूएनडीपी प्रशासक, अचिम स्टीनर ने कहा कि “इस आंखें खोलने वाले विश्लेषण से पता चलता है कि उच्च मानव विकास अपने आप में पर्याप्त स्थिति नहीं है, क्योंकि महिला सशक्तिकरण सूचकांक और वैश्विक समानता सूचकांक गिरावट सूचकांक में निम्न और मध्यम प्रदर्शन वाले आधे से अधिक देश बहुत उच्च और उच्च मानव विकास समूह में आते हैं। बड़ी संख्या में महिलाएं और लड़कियां ऐसे देशों में रह रही हैं जो उन्हें अपनी क्षमता का केवल एक अंश तक ही पहुंचने की अनुमति देते हैं। यह नयी रिपोर्ट वास्तविक लोगों के लिए वास्तविक परिवर्तन को प्रभावित करने में मदद करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। अब देखना यह है कि हमारे देश की केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारें इन आंकड़ों को कैसे बेहतर करने की कोशिश करेंगी और सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए क्या-क्या उपाय करेंगी।