‘जेंडर ट्रबल’ विख्यात फिलॉसफ़र और जेंडर थियोरिस्ट, जूडिथ बटलर द्वारा लिखी गई एक बेहद ज़रूरी और प्रभावशाली क़िताब है जो रैडिकल फेमिनिज़म और क्वीयर स्ट्डीज को नयी दिशा देती है। 1990 में लिखी गई यह क़िताब जेंडर और सेक्सुअलिटी के सामाजिक मायनों को पलट कर रख देती है। बटलर बताती हैं कि कैसे हम जाने-अनजाने उसी समाज का हिस्सा बन जाते हैं जो जेंडर के मायनों को निर्धारित करता है और यह तय करता है कि हमें अपने जेंडर रोल्स में कैसे फिट होना है। अगर आप उन “पूर्व-निर्धारित” नॉर्म्स में फिट नहीं बैठते, तो कैसे समाज आपको अलग-थलग कर देता है। इन्हीं गुत्थियों को सुलझाती, पितृसत्ता पर चोट करती और पाठकों को नया नज़रिया देती है बटलर की यह किताब, ‘जेंडर ट्रबल।’
क़िताब के बारे में आगे बात करेंगे, पहले जानते हैं जूडिथ बटलर कौन हैं और उनकी रचना मौजूदा समय में क्यों प्रासंगिक हो जाती है? जूडिथ बटलर, जिनका पूरा नाम जूडिथ पामेला बटलर है, एक अमेरिकन फिलॉसफ़र हैं जिन्होंने जेंडर और सेक्स की परफॉर्मेटिव थ्योरी दी है। इसके साथ हीं कल्चरल थ्योरी, क्वीयर स्ट्डीज़ और फिलोसॉफिकल फेमिनिज़म के उत्थान में अपना बहुमूल्य योगदान दिया है।
बात ‘जेंडर ट्रबल’ की
बटलर की रचना, जेंडर ट्रबल, क्वीयर थ्योरी की सबसे प्रमुख किताबों में से एक है। यह किताब जेंडर और सेक्स के मायनों को कटघरे में खड़ाकर उन सामाजिक ढांचों को तोड़ती है जिनकी आड़ में पितृसत्ता काम करती है। बटलर अपनी क़िताब में जेंडर बाइनरी पर बात करती हैं और बताती हैं कि कैसे यह महज़ एक समाज द्वारा निर्धारित कैटेगरी है जो यह तय करती है कि महिला और पुरुषों को किस तरह से बर्ताव करना चाहिए। साथ ही उन्हें अपने जेंडर के आधार पर किन सामाजिक ढर्रों का पालन करना है। लोगों को इस तरह जेंडर बाइनरी में बांटना न तो इवोल्यूशन के आधार पर सही है, न ही इसका कोई बायोलॉजिकल आधार है। यह व्यवस्था इसलिए स्थापित है क्योंकि यह एक जेंडर को दूसरे की तुलना में अधिक सत्ता और विशेषाधिकार देती है।
क़िताब के पहले हिस्से में बटलर बताती हैं कि जेंडर का अपना कोई अस्तित्व नहीं है बल्कि यह एक परफॉर्मेंस है जो लोग एक लंबे समय से दोहराते चले आ रहे हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति कहे कि, “मैं पुरुष हूं” तो बटलर के अनुसार वह एक व्यक्ति है जो पुरुषों से अपेक्षित व्यवहार और हावभाव को अभिव्यक्त कर रहा है। हालांकि, इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि वह व्यक्ति इन सभी जेंडर रोल्स को अपनी इच्छानुसार नहीं बल्कि बिना जाने-समझे हीं करता है। बटलर की परफॉर्मेटिविटी थ्योरी इस बात पर ज़ोर देती है कि हमारी जेंडर आइडेंटिटी वह नहीं है जो कि हम मानते हैं, यह वह है जो हम परफॉर्म करते हैं। व्यक्ति को लगता है कि वह अपने हावभाव, कपड़े, और गतिविधियों से यह खुद तय करता है कि उसे अपना जेंडर कैसे व्यक्त करना है, लेकिन बटलर कहती हैं यह एक भ्रम है कि व्यक्ति जेंडर से पहले आता है, सच तो यह है कि जेंडर और उससे जुड़ी धारणाएं हीं व्यक्ति के जीवन को तय करती हैं। आप अपनी मर्ज़ी से एक भी क्रिया नहीं कर सकते, आप सिर्फ़ उन्हीं पूर्व निर्धारित क्रियाओं को दोहराते जाते हैं जो पुरुष और नारी होने के मायनों को परिभाषित करती हैं।
जूडिथ बटलर अपनी क़िताब में बताती हैं कि किस प्रकार समाज के हेट्रोनॉर्मेटिव ढांचे को तैयार और स्थापित किया जाता है। यहां पहले हमें “हेट्रोनॉर्मेटिव” शब्द के अर्थ को समझना होगा। हेट्रोनॉर्मेटिव का मतलब होता है विषमलैंगिकता को हीं सामान्य मान लेना और उससे इतर लोगों की लैंगिक और यौनिक पहचान को ख़ारिज कर देना। बटलर बताती हैं कि यह हेट्रोसेक्सुअल मैट्रिक्स समाज में जेंडर रोल्स को लागू करता है और हेट्रोसेक्सुअल संबंधों को ही लीक बना देता है।
बटलर समाज की इसी हेट्रोनॉर्मेटिव सरंचना को तोड़ने की बात करती हैं। हम अपनी गतिविधियों के ज़रिए यह तय कर सकते हैं कि हमें इन रूढ़िवादी जेंडर नॉर्म्स में फिट बैठना है या उसे चुनौती देना है। अगर हम एक भी ऐसी गतिविधि करते हैं जो जेंडर बाइनरी के लीक से हटकर है, तो वह इस ढर्रे को तोड़ने में मदद करती है और इसकी अस्थिरता और कृत्रिम रूप को दर्शाती है। यह विद्रोह की गतिविधियां जेंडर बाइनरी की पूरी व्यवस्था पर सवाल उठाती हैं और इसी के साथ अन्य पहचानों को भी अभिव्यक्ति प्रदान करती हैं।
बटलर के अनुसार, कोई भी व्यक्ति न तो शत-प्रतिशत पुरुष हो सकता है न ही स्त्री। इस परस्पर अनन्य और एक दूसरे के विलोम माने जाने वाले वर्गीकरण से लगातार सवाल करते रहना ज़रूरी है। बटलर लोगों को बताती हैं कि जेंडर फ्लूडिटी हीं हमें सही मायनों में अभिव्यक्ति की आज़ादी देती है, और सारे रूढ़िवादी जेंडर धारणाओं को तोड़ती है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा ऐसी राजनीति में सक्रिय होना होगा जहां क्वीयर आइडेंटिटी हीं सच्चाई हो और हेट्रोसेक्सुअल मैट्रिक्स को पलटने की कोशिश हो। प्राइड परेड, मार्च, अधिक से अधिक जेंडर नॉर्म्स को चुनौती देना और खुद को बिना किसी बाइनरी में फिट हुए अभिव्यक्त करना, एक दिन हमारे हेट्रोनॉर्मेटिव समाज की सच्चाई को बदल सकता है।
मौजूदा समय में जब पूरे विश्व में एलजीबीटीक्यू+ कम्यूनिटी के अधिकारों को लेकर बहस चल रही है, जगह-जगह जागरूकता अभियान और समावेशी पहल किए जा रहे हैं, कई देशों की सरकारें इस क्षेत्र में प्रगतिशील फैसले भी ले रहीं हैं, हालांकि, कंजर्वेटिव सरकारें अभी भी इसमें पीछे हैं, ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि हम जेंडर और सेक्सुअलिटी के मायनों को बारीकी से समझें और पितृसत्ता के बनाए हुए सभी संस्थानों और नॉर्म्स को चुनौती दें।