समाजख़बर नोबेल पुरस्कार 2023: महिला आंदोलनों की सशक्त आवाज़ नरगिस मोहम्मदी का संघर्ष

नोबेल पुरस्कार 2023: महिला आंदोलनों की सशक्त आवाज़ नरगिस मोहम्मदी का संघर्ष

नोबेल का शांति पुरस्कार पाने वाली नरगिस मोहम्मदी शिरीन एबादी के बाद ईरान की दूसरी महिला हैं। नोबेल पुरस्कार के 122 साल के इतिहास में यह पांचवीं बार है, जब शांति पुरस्कार किसी ऐसे शख़्स को दिया जा रहा है जो जेल में है या फिर घर में नज़रबंद है।

महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्षरत ईरान की ऐक्टिविस्ट नरगिस मोहम्मदी अपने देश में वर्षों से जेल में बंद हैं और नॉर्वे की नोबेल समिति उन्हें इस साल नोबेल के शांति पुरस्कार से सम्मानित करती है। स्त्री अधिकारों को लेकर दुनिया में जो संघर्ष हो रहे हैं उनके लिए ये एक बड़ी उपलब्धि है। कट्टरपंथी विचारों को इससे सबक लेना चाहिए कि हक़ की आवाज़ को वे लाख जतन करके भी दबा नहीं सकते। स्वतंत्रता की चेतना, गै़रबराबरी देख लेने की दृष्टि जब जिस कौम के मनुष्यों में आ जाती है तो उनको दबाने के लिए कोई मुल्क कोई सत्ता लाख दमन करे लेकिन उनकी आवाज दिगंत तक गूंजने लगती है और यही आगे चलकर आंदोलन की आवाज बनती हैं।

नरगिस मोहम्मदी का जन्म ईरान के जंजन शहर में 21 अप्रैल 1972 में हुआ था। नरगिस भौतिकी की विद्यार्थी रहीं और पढ़ाई करने के बाद उन्होंने इंजीनियर के पद पर काम किया। जब किसी देश में सच की आवाज़ को लगातार दबाया जाता है तो एक दिन वहीं से विद्रोह की किरण फूट पड़ती है और संवेदनशील मन उस विद्रोह से जुड़ ही जाते हैं। पहली बार नरगिस मोहम्मदी को जेल में बंद ऐक्टिविस्टों और उनके परिजनों की सहायता करने के कारण जेल जाना पड़ा था। महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करती नरगिस मोहम्मदी अपने जीवन के 30 साल इस संघर्ष में लगा चुकी हैं। 

जैसा कि जगजाहिर है ईरान का मौजूदा माहौल मानवाधिकार अधिकारों और उनमें भी महिलाओं के अधिकारों के मामले में बेहद तानाशाही प्रवृत्ति का है जहां लड़कियों की शादी की उम्र को घटाकर 13 साल कर दी गई। इसी तरह के जाने कितने अमानवीय कानून हैं वहां और ईरान में जो भी इनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता है उसे तमाम तरह की यातनाएं दी जाती हैं। जो मानवाधिकार कार्यकर्ता इन अधिकारों के लिए संघर्ष करता है, उनका बर्बरता से दमन किया जाता है। उन्हें जेल में डाल दिया जाता है। नरगिस मोहम्मदी को 13 बार गिरफ़्तार किया गया है, पांच बार दोषी ठहराया गया और कुल 31 साल जेल और 154 कोड़े की सज़ा सुनाई गई है।

आज जब नॉर्वे  नोबेल समिति ने नरगिस मोहम्मदी को नोबेल का शांति पुरस्कार से सम्मानित किया तो  नरगिस मोहम्मदी दुनिया की उन उन्नीस महिलाओं में शामिल हो गई हैं जिन्होंने इस प्रतिष्ठित और सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। नोबेल का शांति पुरस्कार पाने वाली नरगिस मोहम्मदी शिरीन एबादी के बाद ईरान की दूसरी महिला हैं। नोबेल पुरस्कार के 122 साल के इतिहास में यह पांचवीं बार है, जब शांति पुरस्कार किसी ऐसे शख़्स को दिया जा रहा है जो जेल में है या फिर घर में नज़रबंद है।

नॉर्वे की नोबेल समिति ने अपने बयान में कहा, “इस साल का शांति पुरस्कार उन लाखों लोगों को भी सम्मानित करता है, जो पिछले कुछ सालों में महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव और उत्पीड़न की धार्मिक नीतियों के ख़िलाफ़ विरोध करते रहे हैं। नरगिस मोहम्मदी ने लगातार भेदभाव और उत्पीड़न का विरोध किया है। उन्होंने उनके सम्मानजनक जीवन जीने के अधिकार के लिए संघर्ष की वकालत की है।”

कहा जाता है कि क्रांति उम्र की मोहताज नहीं होती जब हम न्याय के लिए खड़े होते हैं तभी जवान होते हैं। अपने जीवन के बीसवें बसंत के साथ ही 1990 के दशक में अपने मुल्क में समानता और महिलाओं के अधिकारों पर बोलने लगीं। शिरीन एबादी के नेतृत्व वाले एक गैर-सरकारी संगठन, ‘डिफेंडर्स ऑफ ह्यूमन राइट्स सेंटर’ की उप प्रमुख नरगिस मोहम्मदी ने हमेशा समानता और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उन्हें 2011 में पहली बार गिरफ़्तार किया गया था। उन पर जेल में बंद कार्यकर्ताओं और उनके परिवारों की मदद करने का इल्ज़ाम था। भेदभाव और अन्याय के खिलाफ अपने संदेश को लिखकर अधिक से अधिक लोगों तक पहुचाने का महत्वपूर्ण काम वह करती रही हैं जिसके लिए उन्होंने अखबारों में कई लेख लिखे। नरगिस की एक किताब ‘व्हाइट टॉर्चरः इंटरव्यूज़ विद ईरानी वूमेन प्रिज़नर्स’ भी प्रकाशित हुई और दुनियाभर में उसकी चर्चा हुई। इस किताब ने अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और मानवाधिकार फोरम में ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ के लिए एक पुरस्कार भी जीता है।

ईरान में पहली बार नरगिस को दो साल की सजा मिली थी। लेकिन जेल में रहकर आयीं नरगिस का हौसला नहीं टूटा था। वह लगातार स्त्रियों की आज़ादी की आवाज़ बनी रहीं। जहां धर्म और जेंडर के आधार पर महिलाओं के साथ लगातार कठोर अन्याय होते हैं वहीं से उनका विद्रोह भी फूटता है। जेल से छूटने के बाद नरगिस मोहम्मदी, सज़ा-ए-मौत के ख़िलाफ़ चलाई गई एक मुहिम में शामिल हुईं। इसके लिए साल 2015 में उन्हें एक बार फिर गिरफ़्तार किया गया और उनकी सज़ा को बढ़ा दिया गया। वह तब से ही जेल में बंद हैं। लेकिन जेल का कठिन जीवन नरगिस मोहम्मदी के लिए रुकावट न बन पाया। जेल से ही उन्होंने राजनीतिक क़ैदियों पर सत्ता के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ लगातार अपना विरोध जताया है। मनुष्य के अधिकारों के लिए लड़ रहे लोगों के समर्थन में रहीं। वहां की महिला कैदियों पर हो रहे उत्पीड़न और यौन हिंसा का वह लगातार विरोध कर रही हैं।

ईरान में पिछले साल एक युवा कुर्दिश महिला महसा अमिनी ईरान की मोरेलिटी पुलिस की हिरासत में मारी गईं। महसा अमिनी का अपराध यह था कि उन्होंने सर नहीं ढका था।  इस घटना के बाद, लोगों का दबा हुआ गुस्सा बाहर आ गया। देशभर में महिलाओं के अधिकारों के लिए विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए।  ‘औरत-ज़िंदगी-आज़ादी’ के नारे के तहत हज़ारों ईरानियों ने सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की। सत्ता में आने के बाद ये इस तानाशाही सत्ता के ख़िलाफ़ सबसे बड़े राजनीतिक प्रदर्शन माना जाता है। इस विरोध को कुचलने के लिए सत्ता ने कड़ी कार्रवाई की इसमें 500 से भी ज़्यादा प्रदर्शनकारी मारे गए। हज़ारों लोग घायल हुए। कई लोग पुलिस की चलाई रबर की गोलियों से अंधे हो गए। इस दरमियान तक़रीबन 20,000 लोगों को गिरफ़्तार किया गया।

तब नरगिस मोहम्मदी तेहरान की एविन जेल में थीं उन्होंने अपने साथियों को इकट्ठा कर, देश में हो रहे विरोध-प्रदर्शन के साथ-अपना समर्थन दर्ज कराया। जेल में लोगों को इकट्ठा करना प्रदर्शन करना ज़ाहिर है कि इस पर जेल अफ़सरों ने बौखला कर नरगिस पर और भी कड़ी पाबंदियां लगा दीं। बावजूद इसके उन्होंने किसी तरह ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ को अपना एक लेख भेजा। अख़बार ने इसे महसा अमिनी की हत्या की पहली सालगिरह पर छापा। नरगिस मोहम्मदी ने इस लेख में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा था, “वे हम में से जितने ज़्यादा लोगों को गिरफ़्तार करेंगे, हम उतना मज़बूत होंगे।”

नरगिस मोहम्मदी को नोबेल शांति पुरस्कार मिलने से  दुनियाभर के अमनपसंद और मानव अधिकारों के समर्थकों ने इस फै़सले की जहां खुलकर तारीफ़ और अपनी खुशी जताई है, तो ईरान की कट्टरपंथी सरकार इसकी भर्त्सना करते हुए क़दम को ‘पक्षपातपूर्ण और राजनीतिक’ बताया है। महिलाओं की स्वतंत्रता को नापसंद करती ईरान की सरकार का ये बयान उनकी कट्टरपंथी सोच की स्थिति को बताता है। स्पष्ट है कि नरगिस मोहम्मदी को मिले ये पुरस्कार उनके क्रूर अमानवीय चेहरे को बेनकाब करता है क्योंकि दुनिया भर में  जब पुरस्कार की चर्चा होगी तो जाहिर सी बात है ईरान के राजनीतिक और सामाजिक स्थिति की भी बात होगी। पुरस्कार किसे और क्यों मिला इसपर बात होना लाज़िम सी बात है।

कोई भी देश अपने देश की औरतों को उनके अधिकारों से वंचित करके महान नहीं बन सकता। ये एक बर्बर समाज का चलन है जहां महिलाओं के अधिकार को कुचला जाता है। मनुष्य की स्वतंत्रता और समानता ही किसी समाज को सच्चे अर्थ में सभ्य बनाती है जो किसी भी राज्य के नागरिकों के बुनियादी अधिकार हैं। एकदिन उनकी आवाजें चीखें बन जाती हैं उनकी हिम्मत और संघर्ष का बखान गीत की तरह गाया जाने लगता है।


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