भारत में लोकतंत्र की स्थापना आज से लगभग 71 साल पहले हो चुकी थी। इस देश के संविधान को बनाने में सबसे अहम भूमिका निभाने वाले डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने हर संभव प्रयास किया कि इस देश में समानता आ सके। लेकिन आज 71 साल बाद भी हमारे देश में जाति, धर्म, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव, हिंसा जारी है। खासकर ब्राह्मणवादी पितृसत्ता और जातिवाद के कारण आज भी समाज की एक बड़ी आबादी अपने मूल अधिकारों से भी वंचित है। लेकिन हमारे देश का दलित, बहुजन और आदिवासी तबका अपने अधिकारों और अपने साथ सदियों से चले आ रहे भेदभाव को मिटाने के लिए सामाजिक न्याय की लड़ाई में सबसे आगे है। ख़ासकर महिलाएं इस लड़ाई में सबसे आगे हैं। हमारे इस लेख में आज हम ऐसी ही सात दलित महिला सामाजिक कार्यकर्ताओं की बात कर रहे हैं।
1. राधिका वेमुला

राधिका वेमुला दलित अधिकारों के लिए लगातार आवाज़ उठाती रही हैं। वह जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ़ लंबे समय से लड़ रही हैं। उनके बेटे रोहित वेमुला की 17 जनवरी 2016 में सांस्थानिक जातिगत भेदभाव के कारण हैदराबाद विश्वविद्यालय में आत्महत्या से मौत हो गई थी। इस घटना ने पूरे देश में आक्रोश पैदा कर दिया था। रोहित वेमुला भी जातिगत भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाते थे। रोहित के जाने के बाद राधिका वेमुला ने उनके शुरू किए आंदोलन को अपना बना लिया और आज वह विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में हो रहे जातीय भेदभाव के खिलाफ प्रदर्शन करती हैं और इसे खत्म करने के लिए हर संभव प्रयास में जुटी हुई हैं।
2. रूथ मनोरमा

रूथ मनोरमा भारत की एक दलित सामाजिक कार्यकर्ता हैं। जो दलित महिलाओं के अधिकारों, घरेलू कामगारों के अधिकारों और असंगठित क्षेत्र के साथ-साथ शहरी झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए लड़ती हैं। वह बेंगलुरु में रहती हैं और साल 2006 में उन्हें राइट लाइवलीहुड अवार्ड से सम्मानित भी किया गया है।
3. सिंथिया स्टीफन

सिंथिया स्टीफन एक दलित कार्यकर्ता, लेखक, सामाजिक नीति शोधकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह दलित अध्ययन और शैक्षिक नीति के क्षेत्रों में काम करती हैं। उन्होंने कई लेख लिखे हैं और दलित महिलाओं, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता, जातिगत भेदभाव और कई मुद्दों पर पुस्तकों के लिए अध्यायों में योगदान दिया है। वह प्रशिक्षण, संपादकीय और विकास सेवा ट्रस्ट (TEDS) की अध्यक्ष हैं।
4. गौरी कुमारी

गौरी पेशे से एक वकील हैं और उन्होंने 2008 से अखिल भारतीय दलित महिला अधिकार मंच के साथ काम किया है। वर्तमान में वह एक वकील के रूप में मुंगेर सिविल कोर्ट में अभ्यास करती हैं। वह राज्य में दलित महिलाओं की आवाज़ को सक्रिय रूप से बढ़ा रही हैं। वह एक ऐसी महिला हैं अपने जिन्होंने समुदाय के भीतर और बाहर दोनों से उत्पीड़न की कई परतों को उजागर किया है।
5. किरूबा मुनुसामी

किरूबा मुनुसामी एक सामाजिक,राजनीतिक और न्यायिक कार्यकर्ता हैं। वह मानव अधिकारों की वकालत करती हैं। वह जातीय और लैंगिक भेदभाव के खिलाफा लगातार काम कर रही हैं। वह सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता भी हैं।
6. बीना पल्लिकल

बिना पल्लिकल (Beena Pallical) वतर्मान में NCDHR (नेशनल कैंपेन ऑन दलित ह्यूमन राइट्स) में आर्थिक और शैक्षणिक अधिकारों की निदेशक हैं। पिछले 8 वर्षों में उन्होंने नीति निर्धारण में दलित महिलाओं को शामिल होने के लिए लगातार काम किया है और कई युवा औरतों को प्रशिक्षित किया हैं। उनका मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच आर्थिक व लैंगिक समानता लाना है। उनका मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था में दलितों का महत्वपूर्ण योगदान है।
7. तेनमोझी सौंदराजन

तेनमोझी सौंदराजन (Thenmozhi Soundararajan) एक दलित अधिकार कार्यकर्ता हैं। वह एक ट्रांसमीडिया कथाकार, गीतकार, हिपहॉप संगीतकार और प्रौद्योगिकीविद् भी हैं। अपने काम के माध्यम से वह हाशिये के समुदाय के लोगों की आवाज़ उठाती रहती है। वर्तमान में वह दक्षिण एशिया के प्रगतिशील अंबेडकराइट संगठन के इक्वैलिटी लैब की निदेशक हैं। यह संगठन सामुदायिक रंगभेद, श्वेत वर्चस्व और धार्मिक उत्पीड़न, जातिगत भेदभाव, डिजिटल सुरक्षा जैसे मुद्दों पर काम करता है। उनके माता-पिता भारत के ग्रामीण क्षेत्र से थे।
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A very simple girl with very high aspirations. An open-eye dreamer. A girl journalist who is finding her place and stand in this society. A strong contradictor of male-dominant society. Her pen always writes what she observes from society. A word-giver to her observations.